विशेष
-ऐसे अधिकारियों के कारण ही प्रदेश पर लगा है भ्रष्टाचार का कलंक
-अब समय आ गया है ऐसे अफसरों को तत्काल बेनकाब किया जाये
करीब 25 साल पहले शिव विश्वनाथन और हर्ष सेठी ने भारत में भ्रष्टाचार की कहानियों पर ‘क्रॉनिकल आॅफ करप्शन : फाउल प्ले’ नामक एक किताब लिखी थी, जिसमें उन्होंने भ्रष्टाचार को चार तरह से परिभाषित किया है। लेकिन उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी कि झारखंड में इस तरह का और इस स्तर का भ्रष्टाचार होगा, जिसकी चर्चा मात्र से प्रदेश का सिर शर्म से झुक जायेगा। हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय की गिरफ्त में आये झारखंड के एक इंजीनियर वीरेंद्र राम की करतूतों ने राज्य के माथे पर जो कलंक का टीका लगाया है, उसकी कल्पना भी मुश्किल है। विश्वनाथन और सेठी ने भ्रष्टाचार के इस तरीके की परिभाषा नहीं की, क्योंकि यह नये किस्म का भ्रष्टाचार है, जिसमें सीधे राज्य के संसाधनों को अश्लील तरीके से लूटा गया और यहां की गरीब जनता के हकों को रौंद दिया गया। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि इन ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ ने लूट-खसोट का साम्राज्य खड़ा किया, लेकिन चालाकी से कभी उसका दोष अपने ऊपर नहीं लगने दिया। भ्रष्टाचार के हर मामले में दोष राजनीतिक नेतृत्व पर लगता रहा। झारखंड में भ्रष्टाचार का यह एकदम नया एंगल है। यह विडंबना ही है कि जिस राज्य का हर दूसरा बच्चा कुपोषित हो, जहां आज भी लोग पीने के पानी के लिए रतजगा करते हों, वहां ऐसे भ्रष्ट अधिकारी अपनी काली कमाई का अश्लील प्रदर्शन करते हैं, राजनेता उन्हें संरक्षण देते हैं और अधिकारी नियम-कायदों के प्रति बेपरवाह हो जाते हैं। ऐसे अफसरों की पहचान करने और उन्हें बेनकाब करने की अब सख्त जरूरत है, क्योंकि पानी अब सिर से ऊपर जा चुका है। वीरेंद्र राम के काले कारनामों की पृष्ठभूमि में झारखंड के भ्रष्ट अधिकारियों के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
घोटालों और संस्थागत भ्रष्टाचार के लिए पूरी दुनिया में चर्चित झारखंड का एक और भ्रष्ट इंजीनियर प्रवर्तन निदेशालय के हत्थे चढ़ा है। वीरेंद्र राम जल संसाधन विभाग में नियुक्त हुए और अपने राजनीतिक आकाओं की बदौलत ग्रामीण विकास कार्य विभाग के सर्वेसर्वा बन गये। इडी की छापामारी में उनकी काली करतूत जैसे-जैसे सामने आ रही है, झारखंड के लोग यह सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर इस राज्य को ऐसे ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ से कब छुटकारा मिलेगा। आखिर क्यों ऐसे अफसरों की पहचान नहीं हो रही है और उन्हें लूट-खसोट की खुली छूट कैसे दी गयी।
वास्तव में झारखंड में ऐसे भ्रष्ट अफसरों की यह कहानी न पहली है और न अंतिम। 22 साल पहले बनाये गये झारखंड राज्य को भष्टाचार के दानव ने ऐसा दबोचा है कि इसे खत्म करने की ताकत किसी में नहीं है, चाहे कोई सरकार हो या कोई भी राजनीतिक दल। इस दानव को ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ ने खूब पाला-पोसा। अब जब इनके काले कारनामे सामने आ रहे हैं, तो झारखंड अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है।
वीरेंद्र राम के परिवार पर दौलत का नशा अब भी सिर चढ़ कर बोल रहा है। इतना ही नहीं, इन अधिकारियों और उनके परिजनों को भरोसा है कि इस कार्रवाई से कुछ नहीं होगा। तभी तो वीरेंद्र राम की पत्नी राजकुमारी देवी इडी के अधिकारियों को महंगे डाइनिंग टेबल का धौंस दिखाते हुए उस पर खाना खाने से मना करती है, तो बेटा कमरे में बिखरे ब्रांडेड शर्ट की कीमत बताते हुए कहता है कि कपड़ों को छू कर देख लो, एक शर्ट की कीमत कम से कम 35 हजार रुपये है। जिस झारखंड में लोग भर पेट खाना खाने के लिए जद्दोजहद में जुटे रहते हैं, वहां का एक अधिकारी इतना ढीठ हो सकता है, यह सोच से भी परे है। इतना ही नहीं, वीरेंद्र राम के परिवार के लोग साधारण पानी नहीं, फ्रांस की कंपनी का पानी पीते हैं, जिसकी कीमत तीन सौ रुपये प्रति लीटर है। फ्रांस की कंपनी में बना मिनरल वाटर इनके घर में इस्तेमाल होता है। पत्नी को महंगी चीजों का इतना शौक है कि वह नौकरों को सामान खरीदने भेजती है, तो कहती है सस्ती चीजें मत लेकर आ जाना।
सिस्टम ही बनाता है ‘वीरेंद्र राम’
झारखंड में तैनात वीरेंद्र राम जैसे इंजीनियर जानते हैं कि कितना भी भ्रष्टाचार करें, बाद में बरी हो जायेंगे, क्योंकि हमारी सरकारें ऐसे इंजीनियरों को आज तक सजा नहीं दे पायी हैं। ऐसे इंजीनियरों-अधिकारियों की सूची बहुत लंबी है। पथ निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख रहे रास बिहारी सिंह पर सड़क परियोजनाओं के टेंडर में गड़बड़ी के आरोप लगे। 30 फीसदी तक कम बोली पर टेंडर देने फिर प्रोजेक्ट को संशोधित करके एसओआर से ऊपर लाने में वह फंसे भी थे। टेंडर घोटाले की जांच का आदेश दिया गया। जांच कमेटी ने एसीबी से जांच कराने की अनुशंसा की थी। रास बिहारी निलंबित हुए, पर सेवानिवृत्ति से पहले निलंबन हटा लिया गया। कार्रवाई से संबंधित फाइल पर अफसर कुंडली मारे बैठे रहे। जाहिर है, ऐसा करने के लिए अफसर ने भी मोटी रकम ली होगी। इडी को ऐसे अफसरों को भी रडार पर लेना चाहिए। इसी तरह भवन निर्माण विभाग के अभियंता प्रमुख रहे अरविंद कुमार सिन्हा पद पर रहते हुए सरकार की अनुमति के बिना विदेश चले गये। विधानसभा और हाइकोर्ट की बिल्डिंग के निर्माण में गड़बड़ी का आरोप भी लगा। बिना अनुमति विदेश यात्रा पर बर्खास्त करने तक का प्रावधान है। कार्रवाई की प्रक्रिया भी शुरू हुई, लेकिन मोटी रकम लेकर अफसरों ने फाइल दबा दी। नतीजा गंभीर आरोप के बावजूद बेदाग सेवानिवृत्त हुए। उनके खिलाफ एसीबी में भी शिकायत की गयी थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। उनके खिलाफ जांच करने की फाइल पर सहमति नहीं देनेवाले का भी चेहरा सामने ांना चाहिए। रांची नगर निगम के पूर्व चीफ इंजीनियर राजदेव सिंह पर निगम सहित अन्य विभागों में रहते हुए गंभीर आरोप लगे। निगम में दो करोड़ की सड़क को 22 करोड़ में बनाने का आरोप भी राजदेव और तत्कालीन कार्यपालक अभियंता रमेश सिंह पर लगा था। इसके अलावा एक सौ करोड़ रुपये की सड़क-नाली की योजना और पेवर्स ब्लॉक लगाने में भी गड़बड़ी का आरोप लगा था। एसीबी जांच की सिफारिश की गयी, लेकिन उस फाइल पर भी अफसर कुंडली मार कर बैठ गये और राजदेव सिंह रिटायर भी हो गये। इसी तरह राज्य आवास बोर्ड के पावरफुल अभियंता संजीव सिंह पर चहेते ठेकेदारों को करोड़ों रुपये का ठेका देने, ठेकेदारों से मिलीभगत करके योजना को प्राक्कलन से ज्यादा रेट का बनाने और नौ से 10 फीसदी कम रेट पर टेंडर देने का आरोप लगा। इसके अलावा भू-खंड आवंटन सहित कई गंभीर आरोप लगे थे। नगर विकास विभाग ने जांच के बाद किसी प्रीमियर एजेंसी से जांच की अनुशंसा की थी, पर फाइल पर अफसरों ने कुंडली मार ली। इंजीनियर को बोर्ड से हटा कर नगर निगम में पदस्थापित कर दिया गया। रामविनोद सिन्हा का नाम कौन नहीं जानता। वह कहने को जूनियर इंजीनियर थे, लेकिन हनक किसी आइएएस से कम नहीं थी। करोड़ों रुपये के घोटाले के आरोप में खुद तो जेल गये ही, आइएएस पूजा सिंघल को भी ले डूबे।
आइएएस भी बहुत पीछे नहीं
ऐसा नहीं है कि झारखंड में लूट-खसोट के इस खेल में केवल इंजीनियर शामिल हैं। आइएएस अधिकारी भी कम नहीं हैं। राज्य के कई आइएएस अफसरों पर भ्रष्टाचार के आरोप की जानकारी के लिए रिपोर्ट मांगी गयी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इन अफसरों पर भ्रष्टाचार के मामलों में जांच चल रही है। राज्य सरकार ने पांच आइएएस के बारे में जो रिपोर्ट भेजी है, उसके मुताबिक केके खंडेलवाल के खिलाफ बिहार में वर्ष 1999 में मामला दर्ज है। बिहार से इस संबंध में 13 बार पत्राचार कर अद्यतन स्थिति मांगी गयी है, लेकिन अब तक जवाब नहीं मिला है। आइएएस सुनील कुमार और के श्रीनिवासन के खिलाफ भी जांच गड़बड़ दिशा में चली गयी और यह कह दिया गया कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिला है। जबकिआइएएस छविरंजन के खिलाफ 26 अक्तूबर 2016 को ही न्यायालय में चार्जशीट दाखिल कर दिया गया है। आइएएस मनोज कुमार के खिलाफ वर्ष 2017 में प्रशासनिक कार्रवाई के लिए अनुशंसा की गयी है, जो अब तक लंबित है। उनके खिलाफ कार्रवाई करने से कौन रोक रहा है, यह भी सामने आना चाहिए।
अब झारखंड के लिए यह तय करने का समय आ गया है कि उसे ऐसे ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ की जरूरत है या नहीं, जिन्हें हर वह सुविधा दी जाती है, जिसके लिए आम झारखंडी तरसता है। ऐसे ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ की संतानों को तत्काल झारखंडी होने का प्रमाण पत्र मिल जाता है, अच्छी शिक्षा के अवसर मिल जाते हैं और नौकरी करने का अवसर भी मिल जाता है। लेकिन जब बात झारखंड के हितों की होती है, तो ये ‘वीरेंद्र राम’ और ‘पूजा सिंघल’ उसकी बलि चढ़ाने में जरा भी नहीं हिचकते। इसलिए अब ऐसे ‘वीरेंद्र रामों’ और ‘पूजा सिंघलों’ की पहचान करने और उनसे छुटकारा पाने का वक्त आ गया है।