-आखिर कौन सा नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं मौलाना अरशद मदनी
-माफी मांगने के बावजूद इस मुद्दे को तो सुलगा ही दिया मौलाना ने

दुनिया के एक सौ सर्वाधिक प्रभावशाली मुसलमानों की सूची में शामिल जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर सनातन धर्म और उसके प्रतीकों को लेकर विवादित बयान दिया। इस विवादित टिप्पणी के बाद भारत में इस्लाम के आगमन पर एक नयी बहस छिड़ गयी और साथ में सनातन धर्म के प्रति इस्लामी धर्मगुरुओं का नजरिया भी साफ हो गया। आपको बता दें, जमीयत उलेमा-ए-हिंद की आमसभा में उन्होंने इस्लाम पर खूब बड़ी-बड़ी बातें कीं। मौलाना मदनी ने कहा कि जब न श्रीराम थे और न शिव, तो मनु किसकी पूजा करते थे। इतना ही नहीं, उन्होंने यहां तक कह दिया कि इस्लाम ही दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म है। उन्होंने ‘ओम’ और ‘अल्लाह’ को एक बताते हुए कई और विवादित बातें कहीं। उनके इस बयान पर जैन धर्मगुरु लोकेश मुनि भड़क गये और मंच से नीचे उतर गये। उन्होंने कहा कि वह अपनी आंखों के सामने अपने धर्म और संस्कृति का अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता। इतना ही नहीं, उन्होंने मौलाना मदनी को इस मुद्दे पर शास्त्रार्थ करने की चुनौती भी दे डाली। विवाद बढ़ता देख कर मौलाना मदनी ने अपने बयान पर माफी भी मांग ली। लेकिन यहां सबसे बड़ा सवाल यही है कि आखिर ये कथित धर्मगुरु सनातन धर्म के बारे में विवादित टिप्पणी क्यों करते हैं। मौलान मदनी के माफी मांगने से उनके द्वारा पैदा किया विवाद फिलहाल शांत तो हो गया है, लेकिन इसने एक सवाल तो खड़ा कर ही दिया है कि आखिर यह मौलाना क्या नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं। आखिर क्यों इन्हें बार-बार झूठा नैरेटिव गढ़ने की जरूरत पड़ती है। इन सवालों का जवाब तलाश रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

दुनिया भर में करीब एक करोड़ अनुयायियों को इस्लाम का पाठ पढ़ानेवाले सर्वाधिक प्रभावशाली मुसलमानों की सूची में शामिल धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी ने एक बार फिर सनातन धर्म के बारे में विवादित और अनावश्यक टिप्पणी कर नया विवाद पैदा कर दिया है। उन्होंने इस्लाम को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म बताते हुए यहां तक कह दिया कि ‘ओम’ और ‘अल्लाह’ एक है। उन्होंने इस्लाम को पूरी तरह भारत का धर्म बताया। बकौल मदनी, इस्लाम सभी धर्मों में सबसे पुराना है। इस्लाम भारत का ही मजहब है और सारे मजाहिद और सारे धर्मों में सबसे पुराना मजहब है। इस्लाम के आखिरी इसी दिन को मुकम्मल करने के लिए तशरीफ लाये थे।
मौलाना मदनी के इस बयान पर काफी हंगामा हुआ। जिस मंच से वह यह बयान दे रहे थे, वहां मौजूद जैन धर्मगुरु लोकेश मुनि तत्काल यह कहते हुए बाहर निकल गये कि वह अपनी आंखों के सामने अपने धर्म और संस्कृति का अपमान सहन नहीं कर सकते। मौलाना मदनी के बयान पर हंगामा बढ़ता ही गया। इसे देखते हुए मौलाना ने अपने बयान पर माफी मांग ली और अपना बयान वापस ले लिया।
लेकिन मौलान मदनी के माफी मांगने से या बयान वापस लेने से इस विवाद का अंत नहीं हुआ है। मौलान मदनी के बयान ने एक बड़ा सवाल यह पैदा किया है कि आखिर इस्लामी धर्मगुरु बार-बार ऐसा विवादित बयान क्यों देते हैं और वे क्या नैरेटिव गढ़ना चाहते हैं। मौलाना मदनी द्वारा माफी मांगने से एक बात तो साफ हो गयी है कि उन्होंने जो बयान दिया था, वह सरासर झूठ था और उसका कोई आधार नहीं था। उन्होंने केवल इस्लाम की झूठी बड़ाई की थी। इसलिए उनके बयान पर बहुत आश्चर्य है कि एक नैरेटिव गढ़ने के लिए वह झूठ भी बोलते हैं, और वह भी इतनी सफाई से। अपने झूठ को पुख्ता बनाने के लिए वह पैगंबर मोहम्मद का भी हवाला देते हैं।
दरअसल आज भारत की हकीकत यही है कि यहां इस समय नैरेटिव गढ़ने का दौर चल पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि 21वीं सदी विकास के लिए कम, नैरेटिव के लिए जरूर अधिक याद की जायेगी।
लौटते हैं मौलाना मदनी पर। इसकी पृष्ठभूमि में थोड़ा इतिहास के पन्ने पलटने होंगे। यह पिछली शताब्दियों की ही बात है, जब मैक्समूलर, विलियम हंटर और लॉर्ड टॉमस बैबिंग्टन मैकॉले, इन तीन लोगों के कारण भारत के इतिहास का विकृतिकरण आरंभ हुआ। इन्होंने भी अपने हित को देखते हुए एक नैरेटिव रचा और भारत के तथाकथित बुद्धिमान उसके चक्र में फंस गये। अंग्रेजों ने कहना शुरू किया, भारतीय इतिहास की शुरूआत सिंधु घाटी की सभ्यता से हुई है। फिर कहा कि सिंधु घाटी के लोग द्रविड़ थे। आर्यों ने बाहर से आकर सिंधु सभ्यता को नष्ट करके अपना राज्य स्थापित किया। 1500 इसा पूर्व से 500 इस्वी पूर्व के बीच के काल को अंग्रेजों ने आर्यों का काल घोषित कर दिया। अंतत: समाज में यह भ्रांति फैलती गयी की आर्यों ने दृविड़ों की सिंधु सभ्यता को नष्ट कर दिया। आर्य घोड़े पर सवार होकर आये और उन्होंने भारत पर आक्रमण कर यहां के लोगों पर शासन किया। तात्पर्य यह कि 1500 इसा पूर्व घोड़े के बारे में सिर्फ आर्य ही जानते थे, जबकि तथ्य यह है कि मध्य पाषाण काल का युग 9000 इसा पूर्व से 4000 इसा पूर्व के बीच था। इस काल में व्यक्ति शिकार करने के साथ ही पशुओं को पालने लगा था। घोड़े उस समय भी पाले जाते थे।
वास्तव में मौलाना मदनी भी बड़ी चालाकी से झूठी ‘आर्यन इन्वेजन थ्योरी’ की तरह यह धारणा बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि इस्लाम दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। इसमें भी गजब यह है कि खुले साक्ष्यों के बावजूद शब्दों का जादू दिखा रहे हैं।
कोई मदनी जी से पूछे, दारुल-हरब और दारुल-इस्लाम की कल्पना क्या है? इनकी ही मान्यतानुसार कुरान मजीद में पहले नबी, धरती के पहले मनुष्य आदम थे। अब तक कुरान के अनुसार अनगिनत नबी हुए हैं। कुरान यहूदियों के अब्राहम, मूसा को और इसाइयों के जीसस को नबी बताती है। लेकिन यहूदी और इसाइ आज भी इस्लाम की नजरों में अलग मत हैं। आखिर ऐसा क्यों? घोर आश्चर्य है कि महमूद मदनी जैसे लोग कुरान मजीद के आधार पर दूसरों के पूर्वजों को अपना पूर्वज तो स्वीकारते हैं, किंतु उनकी मान्यताओं को नहीं स्वीकारते।

कौन हैं मौलाना अरशद मदनी
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना असद मदनी थे। उनका 2008 में इंतकाल हो गया था। इसके बाद जमीयत की अगुआई को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौजूदा चीफ महमूद मदनी का अपने चाचा मौलाना अरशद मदनी से विवाद हो गया। लंबे झगड़े के बाद जमीयत दो हिस्सों में बंट गयी। एक गुट की अगुआई महमूद मदनी और दूसरे गुट की अगुआई अरशद मदनी करने लगे। दोनों ने अपनी-अपनी जमीयत उलमा-ए-हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद ले लिया था। हालांकि पिछले साल दोनों में सुलह हो गयी थी। जमीयत उलेमा-ए-हिंद भारत के अग्रणी इस्लामिक संगठनों में से एक है। यह देवबंदी विचारधारा से प्रभावित है। इसकी स्थापना साल 1919 में हुई थी। कहा जाता है कि देशभर में जमीयत के एक करोड़ से अधिक अनुयायी हैं।
मौलानी मदनी के विवादित बयान के बाद अब एक बार फिर सनातन और इस्लाम की बीच की खाई नये सिरे से चौड़ी होती हुई दिख रही है। इसलिए उनके माफी मांगने के बावजूद उनके संगठन पर सवालिया निशान तो लगाया ही जा सकता है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version