विशेष
-कोल्हान का हर निवासी इन्हें ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से पुकारता है
-शुरूआत से ही झामुमो के मजबूत स्तंभ रहे हैं झारखंड के नये मुख्यमंत्री

झारखंड की राजनीति में चंपई सोरेन जाना-पहचाना नाम है। झामुमो को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने वाले शिबू सोरेन परिवार के साथ चंपई सोरेन का विश्वसनीय नाता रहा है। यही कारण है कि जब शिबू सोरेन परिवार से बाहर के किसी व्यक्ति को सत्ता सौंपने की परिस्थिति पैदा हुई, तो शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन पर विश्वास जताया। यह पहला अवसर है, जब सोरेन परिवार से बाहर का कोई व्यक्ति झारखंड की सत्ता के शीर्ष पर बैठा है। इसके पहले दिशोम गुरु शिबू सोरेन झारखंड के तीन बार मुख्यमंत्री रहे, उसके बाद उनके पुत्र हेमंत सोरेन ने उनकी विरासत संभाली। हेमंत सोरेन भी दो बार मुख्यमंत्री बने। हेमंत सोरेन के युग में झामुमो सत्ता के उत्कर्ष तक पहुंचा। कांग्रेस और राजद के साथ मिल कर पूर्ण बहुमत की सरकार बनायी। पहली बार सोरेन परिवार झारखंड की सत्ता से दूर हुआ है और ‘कोल्हान टाइगर’ के नाम से मशहूर झामुमो के मजबूत स्तंभ चंपई सोरेन राज्य के 12वें मुख्यमंत्री बन गये हैं। झारखंड की राजनीति में चंपई सोरेन ने कई उपलब्धियां हासिल की हैं। झामुमो के गढ़ कोल्हान के प्रमुख नेता के रूप में चंपई सोरेन ने अपनी अलग पहचान बनायी है। वह सोरेन परिवार के बेहद करीबी तो रहे ही हैं, कोल्हान के लोगों के भी बेहद करीब हैं। ‘फकीराना अंदाज’ में जीवन जीनेवाले चंपई सोरेन ने ऐसे समय में कमान संभाली है, जब सोरेन परिवार मुसीबतों से घिरा है। लेकिन छह बार के विधायक और तीन बार के मंत्री रहे चंपई सोरेन की पहचान ऐसे नेता के रूप में होती है, जो कभी चुनौतियों से घबड़ाते नहीं हैं। आदिवासी हितों के संरक्षक के रूप में उनके कई फैसले बेहद चर्चित रहे हैं। चंपई झारखंड आंदोलन का बड़ा चेहरा रहे हैं। पार्टी के अंदर इनकी साख है। झामुमो जब-जब सत्ता में आयी, चंपई सोरेन को जगह मिली। कौन हैं झारखंड के नये मुख्यमंत्री चंपई सोरेन और क्या हैं उनके सामने चुनौतियां, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

पैरों में चप्पल, ढीली शर्ट-पैंट और सिर के बालों पर फैली सफेदी। झारखंड के नये मुख्यमंत्री चंपई सोरेन की यही पहचान है। वह सादगी से जीवन जीते रहे हैं। किसी को दिक़्कत हुई, तो उन्हें टैग कर सोशल मीडिया पोस्ट किया। फिर चंद मिनटों में उसका समाधान। ये सब करते रहते हैं चंपई सोरेन। अब वह झारखंड के मुख्यमंत्री बन गये हैं। राज्यपाल डॉ सीपी राधाकृष्णन ने शुक्रवार 2 फरवरी को उन्हें शपथ दिला दी है।
कोल्हान में सरायकेला के जिलिंगगोड़ा कस्बे के जुझारू नेता चंपई सोरेन की इस मुकाम तक पहुंचने की राह बेहद पथरीली रही है। चंपई सोरेन जंगल और जमीन को मां मानते हैं। इसकी रक्षा करते-करते ठेठ किसान से ‘टाइगर’ बन गये और अब सीएम। झामुमो का यह फैसला प्रदेश की 28 से अधिक आदिवासी बहुल विधानसभा सीटों की तस्वीर बदल सकती है।

कोल्हान शुरू से रहा है सत्ता का केंद्र
आदिवासियों का गढ़ होने के कारण कोल्हान शुरू से सत्ता का केंद्र रहा है। राज्य में अब तक सात मुख्यमंत्रियों में चार कोल्हान मंडल के ही रहे हैं। शेष तीन में दो सीएम शिबू सोरेन और हेमंत का भी कोल्हान से नाता रहा है। सरायकेला-खरसावां जिले के चांडिल में शिबू सोरेन की ससुराल और हेमंत की ननिहाल है। कोल्हान से बननेवाले सीएम में मधु कोड़ा, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास के बाद अब चौथे व्यक्ति चंपई सोरेन हैं। संथाल और कोल्हान प्रमंडल की 13 विधानसभा सीटों पर हार-जीत का सीधा फैसला आदिवासी वोटरों के हाथ में है।

कौन हैं चंपई सोरेन
झारखंड मुक्ति मोर्चा के ये 67 वर्षीय नेता पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन और उनके बेटे हेमंत सोरेन दोनों के विश्वसनीय रहे हैं। हेमंत सोरेन के मंत्रिमंडल में वह परिवहन और खाद्य-आपूर्ति विभाग का काम देख रहे थे। झारखंड राज्य गठन के आंदोलन में वह शिबू सोरेन के निकट सहयोगी रहे हैं। झारखंड विधानसभा में वह सरायकेला सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। वह इस सीट से सात बार विधायक रहे हैं। उनके पिता सेमल सोरेन किसान थे। साल 2020 में 101 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था। चंपई सोरेन उनकी अपने माता-पिता की छह संतानों में तीसरे नंबर पर हैं। उनकी मां माधो सोरेन गृहिणी थीं। चंपई सोरेन का विवाह काफी कम उम्र में मानको सोरेन से हुआ। इस दंपति की सात संतानें हैं। इनमें तीन पुत्री और चार पुत्र हैं।
साल 1991 में सरायकेला सीट के लिए हुए उपचुनाव में उन्होंने पहली बार जीत हासिल की और तत्कालीन बिहार विधानसभा के सदस्य बने। तब वह उपचुनाव वहां के तत्कालीन विधायक कृष्णा मार्डी के इस्तीफे के कारण हुआ था। इसके बाद वह 1995 में फिर चुनाव जीते, लेकिन साल 2000 का चुनाव हार गये। साल 2005 में हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिर से जीत हासिल की और उसके बाद कोई चुनाव नहीं हारे। वह छह बार इस सीट से विधायक रहे हैं। 11 नवंबर 1956 को जन्मे चंपई सोरेन ने दसवीं तक की पढ़ाई की है।

चंपई सोरेन पर कभी नहीं लगा विवादों का दाग
मुख्यमंत्री चंपई सोरेन सरायकेला-खरसावां जिला स्थित जिलिंगगोड़ा गांव के रहने वाले हैं। पूर्व की झामुमो सरकार में सबसे वरिष्ठ मंत्री चंपई कभी विवादों में नहीं रहे। झारखंड अलग राज्य आंदोलन में झामुमो के वरिष्ठ नेता चंपई सोरेन की भूमिका काफी अहम रही थी। दिवंगत सांसद सुनील महतो और शहीद रतिलाल महतो के साथ आंदोलन को उग्र रूप देने में चंपई ने जम कर मेहनत की थी। आंदोलन के दौरान चंपई पुलिस के डर से घर के बजाय जंगल और पहाड़ों में आश्रय लेते थे। इस दौरान उन्हें कई दिनों तक सिर्फ पानी से गुजारा करना पड़ा था। बकौल चंपई, खाने-पीने की परवाह किये बगैर वह गांवों में लोगों को अलग झारखंड राज्य के आंदोलन के लिए प्रेरित करते थे। उनके साथ झोला में पानी की एक बोतल होती थी। पुलिस के भय से गोहाल में भी सोना पड़ता था। ग्रामीणों का उन्हें काफी सहयोग मिला था। ग्रामीण उन्हें काफी सम्मान देते थे और हर बार पुलिस से उन्हें बचा कर अगले गांव की ओर रवाना कर देते थे।

राज्य गठन के बाद पहली बार 2005 में शिबू परिवार के पास आयी सत्ता
चंपई सोरेन के शपथ ग्रहण के साथ राज्य की सत्ता पहली बार शिबू सोरेन परिवार से दूर चली गयी। वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद पांच वर्षों के बाद यानी 2005 में शिबू परिवार ने पहली बार सत्ता संभाली। खुद पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन 2003 में 12 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। इसके बाद शिबू सोरेन ने ही 2008 में तत्कालीन मधु कोड़ा को हटा कर मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। हालांकि शिबू सोरेन राजा पीटर के हाथों विधानसभा चुनाव हार गये और सत्ता हाथ से निकल गयी। इसके बाद शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन ने राजनीति में पकड़ बनायी और हेमंत 2013 में पहली बार मुख्यमंत्री बने। उन्होंने करीब 13 महीने सरकार चलायी। वर्ष 2019 में हेमंत सोरेन ने पूर्ण बहुमत के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। शासन की गाड़ी को अच्छी तरह हांक रहे थे, लेकिन कुछ विवादों में उनकी सरकार घिर गयी। जमीन खरीद-बिक्री मामले में इडी ने उन पर शिकंजा कसा और हेमंत सोरेन को इस्तीफा देना पड़ा और चंपई सोरेन के हाथ सत्ता आयी।

चंपई सोरेन को क्यों सौंपी गयी कमान
चंपई सोरेन हेमंत सोरेन के पिता और पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के करीबी माने जाते हैं। वह पार्टी के वफादार सदस्य रहे हैं और वर्तमान में वह पार्टी के उपाध्यक्ष भी हैं। इन सबके अलावा हेमंत सोरेन द्वारा उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर आगे करने की सबसे बड़ी वजह यह है कि चंपई कोल्हान इलाके से आते हैं और इस इलाके में उनकी मजबूत पकड़ है। यह इलाका राजनीतिक तौर पर अहम है। वहां की सभी विधानसभा सीटों पर जेएमएम के विधायक हैं। हेमंत सोरेन का चंपई को अपना उत्तराधिकारी चुनना आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उनका एक सोचा-समझा रणनीतिक कदम है। चंपई को प्रदेश की राजनीति में ‘झारखंड टाइगर’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्हें राज्य आंदोलन से लेकर अब तक एक लोकप्रिय जमीनी नेता के तौर पर देखा जाता है। चंपई को कमान सौंप कर हेमंत सोरेन ने पार्टी फुसफुसाहट की आवाज को विराम दे दिया है। इससे पहले हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाने की अटकलें तेज थीं। उनके लिए पार्टी के एक विधायक ने सीट भी खाली कर दी थी। हालांकि उस समय भी चंपई सोरेन का नाम उछल रहा था। कहा जा रहा था कि अगर किसी कारणवश सोरेन परिवार से अलग अगर किसी के हाथ में सत्ता सौंपने की बात आती है, तो पहली पसंद चंपई सोरेन ही होंगे। हुआ भी यही, गुरुजी और हेमंत सोरेन ने चंपई सोरेन पर विश्वास जताया। कुर्सी पर बैठते ही चंपई सोरेन ने भी उस विश्वास को प्रगाढ़ किया। उन्होंने अपने पहले ही बयान में कहा है कि शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन उनके नेता हैं और वह हेमंत सोरेन के कामों को और गति देंगे।

चुनाव में एनडीए को परेशान करेगा यह दांव
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो चंपई सोरेन को कमान सौंपने का झामुमो का दांव लोकसभा चुनाव से लेकर विधानसभा चुनाव तक एनडीए को परेशान कर सकता है। इससे झामुमो कोे न केवल परिवारवाद के आरोपों से मुक्ति मिलेगी, बल्कि आदिवासियों में पार्टी के प्रति विश्वास बढ़ेगा। चंपई की सादगी और उनकी साफ-सुथरी छवि से भी महागठबंधन को लाभ मिलेगा। इस फैसले के बाद कोल्हान और संथाल के अलावा राज्य के अन्य जिलों में भी आदिवासी वोटरों को एकजुट करने में मदद मिलेगी।

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