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    Home»विशेष»बहुत दूर तक सुनाई देगी दिल्ली के जनादेश की गूंज
    विशेष

    बहुत दूर तक सुनाई देगी दिल्ली के जनादेश की गूंज

    shivam kumarBy shivam kumarFebruary 7, 2025No Comments7 Mins Read
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    एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सच हुई, तो बदलेगी सियासत
    दांव पर है अरविंद केजरीवाल और राहुल गांधी की प्रतिष्ठा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली में विधानसभा की सभी 70 सीटों पर वोट डाले जा चुके हैं और संभावित चुनाव परिणाम के बारे में एग्जिट पोल के नतीजे भी सामने आ चुके हैं। 8 फरवरी को मतगणना से पहले एग्जिट पोल के नतीजों ने सियासत को गरम कर दिया है। दिल्ली के मतदाताओं ने किसे जनादेश दिया है, यह खुलासा तो 8 फरवरी को मतगणना के बाद ही हो पायेगा, लेकिन एक बात बिल्कुल साफ है कि देश की राजधानी दिल्ली से निकले जनादेश की गूंज बहुत दूर तक सुनाई देगी। कहने को तो यह भी कहा जा सकता है कि दिल्ली एक पूर्ण राज्य भी नहीं है और केवल 70 विधायकों वाली विधानसभा का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भला कैसे पड़ सकता है, लेकिन यह तर्क अपने-आपमें पूरी तरह से गलत और बेमानी है। दिल्ली में वैसे तो मुख्य मुकाबला आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी का ही माना जा रहा है, लेकिन अपने राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस ने भी इस चुनाव के लिए अपना पूरा जोर लगाया है। शुरूआती दौर में थोड़ी हिचक के बाद राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे से लेकर कांग्रेस के तमाम बड़े नेताओं ने जिस अंदाज में चुनावी रैलियां की, रोड शो किये, उसने दिल्ली की चुनावी लड़ाई को काफी दिलचस्प बना दिया था। दिल्ली में एक तरफ आम आदमी पार्टी है, जो लगातार चौथी बार दिल्ली में सरकार बनाने के लिए चुनाव लड़ रही है। यह चुनाव आम आदमी पार्टी से ज्यादा उनके नेता अरविंद केजरीवाल के लिए महत्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि दिल्ली की हार अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व पर प्रश्नचिह्न खड़े कर देगी और पार्टी के अंदर भी कई तरह के सवाल उठने लगेंगे। वहीं दूसरी तरफ भाजपा है, जो देश की राजधानी दिल्ली में 27 साल के अपने वनवास को खत्म करना चाहती है। दिल्ली की चुनावी रेस में तीसरे नंबर की पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस इस बार सरकार बनाने से ज्यादा किंग मेकर के रूप में उभरना चाहती है। उसके लिए दिल्ली का यह चुनाव राजनीतिक अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण चुनाव माना जा रहा है। अगर केजरीवाल लगातार चौथी बार विधानसभा का चुनाव जीत जाते हैं, तो फिर वे राष्ट्रीय नेता के तौर पर देश की राजनीति में स्थापित हो जायेंगे। उनकी मजबूती राष्ट्रीय स्तर पर सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन के साथ ही विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए भी खतरे की घंटी होगी। वहीं अगर कांग्रेस इस चुनाव में किंग मेकर के रूप में उभर कर दिल्ली की सत्ता से आम आदमी पार्टी को बाहर कर देती है तो राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी। क्या हो सकता है दिल्ली के चुनाव परिणाम का सियासी असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान खत्म हो चुका है। वहीं अब लोगों को 8 फरवरी का इंतजार है, जब मतगणना के बाद रिजल्ट की घोषणा की जायेगी। इस बार के विधानसभा चुनाव में भाजपा, आप और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला, लेकिन मतदान के समय भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। हालांकि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी मिल कर गठबंधन में एक साथ चुनाव लड़ते, तो चुनाव के नतीजे कुछ और ही होते, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी दिल्ली चुनाव में एक दूसरे के सामने रहीं। अगर दिल्ली के एग्जिट पोल ठीक साबित होते हैं, तो राहुल गांधी और अरविंद केजरीवाल को नये सिरे से रणनीति बनानी होगी। यदि एग्जिट पोल की भविष्यवाणी सही हो गयी, तो इस चुनाव के बाद बहुत कुछ बदल सकता है। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि आप और कांग्रेस को किस दिशा में ठोस काम करना जरूरी होगा।

    बदले की राजनीति ने कांग्रेस और आप को डुबोया
    राजनीति के जानकारों का कहना है कि अरविंद केजरीवाल को हरियाणा विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने की आशंका थी। फिर भी उन्होंने सभी सीटों पर प्रत्याशी उतारे। इसके बाद अरविंद केजरीवाल पर तानाशाही व्यवहार का आरोप लगा और कहा गया कि इसके चलते कांग्रेस और आप के बीच दिल्ली में गठबंधन नहीं हुआ। राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि राहुल गांधी ने शुरू में दिल्ली विधानसभा चुनाव में जिस तरह से आप के साथ गठबंधन की इच्छा जतायी थी, उस पर केजरीवाल ने आक्रामक रुख अपनाये रखा। यहां तक कि कांग्रेस के उम्मीदवारों की सूची जारी होने से पहले ही अपनी सूची जारी कर दी। इसके चलते कांग्रेस को भी सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारने पड़े। जानकारों का कहना है कि अगर कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन होता, तो भाजपा का सत्ता में आना लगभग नामुमकिन था।

    राहुल गांधी ने गिनायीं केजरीवाल की कमियां
    दिल्ली चुनाव में प्रचार करते समय राहुल गांधी ने दिल्ली सरकार की काफी कमियां गिनायीं और आम आदमी पार्टी पर काफी हमलावर भी रहे। वहीं अरविंद केजरीवाल भी कांग्रेस पर कई बार हमलावर रहे। राहुल गांधी ने दिल्ली चुनाव में आप के खिलाफ जो बातें कहीं, उसका असर भी पड़ा। ऐसा लग रहा है कि काफी लोगों ने राहुल गांधी के बयानों से प्रभावित होकर भाजपा को वोट दिया। ऐसे लोगों ने कहा कि वे आम आदमी पार्टी को इस बार वोट नहीं देना चाहते थे, क्योंकि दिल्ली में पानी की समस्या को 11 सालों में भी वह खत्म नहीं कर पाये। गंदगी भी है। लोगों ने कहा कि वे कांग्रेस को वोट देकर वोट खराब नहीं करना चाहते थे, क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस की सरकार नहीं बनेगी। इसी कारण वे भाजपा को वोट देकर आये हैं।

    क्यों नहीं हुआ आप और कांग्रेस का गठबंधन
    कांग्रेस के अनुसार हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी से सीट शेयरिंग को लेकर चर्चा हो रही थी। कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को चार सीटें आॅफर की थीं और कहा था कि हम स्थानीय नेताओं से बात करके सूचित करेंगे। इसी बीच अरविंद केजरीवाल जेल से बाहर आये और उन्होंने एलान कर दिया कि वे हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए सभी 90 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ेंगे। इस तरह उन्होंने खुद ही गठबंधन तोड़ दिया। इसके बाद दिल्ली में आम आदमी पार्टी के नेता गोपाल राय ने दिल्ली की सभी 70 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की। इसके बाद कांग्रेस ने सभी 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया। राहुल गांधी ने गठबंधन नहीं तोड़ा। गठबंधन टूटने की वजह सीएजी रिपोर्ट और आम आदमी पार्टी के नेताओं की अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा थी।

    पहली रैली में राहुल गांधी ने नहीं किया निजी हमला
    बता दें कि दिल्ली चुनाव के लिए राहुल गांधी की पहली रैली सीलमपुर में थी। इस दौरान राहुल ने केवल दिल्ली के विकास और काम को लेकर केजरीवाल सरकार पर निशाना साधा था। हालांकि अरविंद केजरीवाल ने राहुल गांधी के खिलाफ एक्स पर पोस्ट शेयर करके लिखा कि राहुल गांधी पार्टी बचाने निकले हैं और हम देश बचाने निकले हैं। इसके बाद दोनों पार्टियों में दो तरफा आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गया। हालांकि राहुल गांधी के बयानों से भाजपा को फायदा हुआ, क्योंकि स्वाति मालीवाल के बाद राहुल गांधी भी दिल्ली सरकार के काम को लेकर सवाल उठाने लगे थे। ऐसे में लोगों ने दिल्ली सरकार की नाकामी और कांग्रेस में जनता के बीच पहुंच की कमी को लेकर बहुत से लोगों ने भाजपा को वोट दिया। वहीं एग्जिट पोल के अनुसार दिल्ली में भाजपा और आम आदमी पार्टी में कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है।

    राहुल और केजरीवाल को करने होंगे ये काम
    कांग्रेस ने दिल्ली चुनाव को लेकर दलित-मुस्लिम फॉर्मूला अपनाया था। ऐसी 10 सीटें हैं, जिन पर दलितों और अल्पसंख्यकों का दबदबा है। लेकिन मुस्तफाबाद और सीलमपुर जैसी मुस्लिम बहुल सीटों पर भी कांग्रेस पर भरोसा करने की बजाय लोगों ने एआइएमआइएम पर भरोसा दिखाया है। इसके अलावा केजरीवाल की दिल्ली दंगों को लेकर खामोशी के चलते मुस्लिम वोटर भी आप से खासे नाराज हैं। ऐसे में दोनों दलों को मुस्लिम वोटरों का भरोसा जीतने के लिए जमीन पर उतर कर सार्थक कदम उठाने होंगे। वहीं, पीएम मोदी सबका साथ सबका विकास का नारा देकर हर समुदाय के लिए कार्य कर रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस और आप इन वोटरों को किस तरह से जोड़ेंगी, यह तो आने वाले समय में पता चल पायेगा।

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