अति आत्मविश्वास ने डुबा दी आम आदमी पार्टी की नाव
भारी पड़ गयी आम लोगों को पीछे चलनेवाली भीड़ समझना
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी सिर्फ हारी ही नहीं, बल्कि राजनीति में नैतिकता और शुचिता के जिन मूल्यों की स्थापना के जिस दावे के साथ इस दल का अन्ना आंदोलन के गर्भ से जन्म हुआ था, कहीं न कहीं उनसे दूर होना इस पार्टी को ले डूबा। इस बार सिर्फ पार्टी ही नहीं, बल्कि निवर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी और मंत्री गोपाल राय को छोड़ कर कमोबेश आप के सभी बड़े नेता चुनाव हार गये। वरना यही बीजेपी, यही नरेंद्र मोदी और यही अमित शाह 2015 और 2020 में भी तो थे। तब भी पूरा जोर लगाया गया था, लेकिन तब अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी का नयी और अलग राजनीति का नारा भाजपा की संगठन शक्ति, उसके नेताओं की चमक, साधन, संसाधन और तंत्र बल पर भारी पड़ा था। अगर आम आदमी पार्टी और टीम केजरीवाल अपनी नैतिक आभा नहीं खोते, तो उनकी जीत की संभावनाओं पर कोई संशय नहीं होता। दरअसल 2013 से दिल्ली की राजनीति में मिलने वाली अपार लोकप्रियता से अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी के अपराजेय होने का भ्रम पैदा कर दिया था। उन्होंने जनता को अपने पीछे चलने वाली भीड़ समझ लिया। वो भूल गये कि जनता किसी व्यक्ति या दल के पीछे नहीं, बल्कि उन वादों, दावों और सपनों के साथ है, जिन्हें नयी राजनीति के नारे के साथ अरविंद केजरीवाल और आप ने शुरू किया था और जिनमें कट्टर ईमानदारी, सत्ता के तामझाम से दूर सादगी, आम जन से निकटता, राजनीति में शुचिता, सार्वजनिक नैतिकता की स्थापना, भ्रष्टाचार उन्मूलन और सर्व धर्म समभाव शामिल थे। वह यह भी भूल गये कि उनके सामने उस नरेंद्र मोदी की प्रचंड लोकप्रियता है, जो अब भारतीय लोकतंत्र का पर्याय बन चुका है। इसके अलावा कई अन्य कारण भी रहे, जिसने दिल्ली में 27 साल बाद भाजपा की वापसी का मार्ग प्रशस्त किया। क्या रहे दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के कारण, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भाजपा ने आम आदमी पार्टी को दिल्ली में जीत का चौका लगाने से रोक दिया। भाजपा ने यहां 27 साल बाद सत्ता में वापसी कर ली है। 27 साल पहले भाजपा की सुषमा स्वराज 52 दिन के लिए दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं। अरविंद केजरीवाल के इस्तीफे के बाद आतिशी ने दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली थी। केजरीवाल के इस्तीफे के बाद दिल्ली चुनाव का परिदृश्य बदल गया था। भाजपा मुखर हो गयी, वहीं कांग्रेस ने भी इस तरह टिकट बांटे, जिसने आम आदमी पार्टी को कई सीटों पर आसान जीत से रोक दिया। दिल्ली का चुनाव परिणाम देश के सियासी परिदृश्य पर असर तो डालेगा ही, इससे आम आदमी पार्टी और खास कर अरविंद केजरीवाल के भविष्य पर भी सवालिया निशान लग गया है। इसलिए यह जानना दिलचस्प है कि दिल्ली में भाजपा की जीत और आम आदमी पार्टी की हार के क्या कारण रहे।
कारण नंबर एक: बड़े नेताओं का जेल जाना
केजरीवाल ने लगातार तीन बार दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनायी। अपनी सरकार की लोकलुभावन नीतियों की वजह से वे सत्ता में बने रहे। पूरी पार्टी केजरीवाल के इर्द-गिर्द ही रही, लेकिन दिल्ली की शराब नीति से जुड़े मामले में गिरफ्तारी और जेल जाने के बाद जब वे रिहा हुए, तो सितंबर 2024 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सत्येंद्र जैन पहले ही जेल जा चुके थे। वहीं, पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और संजय सिंह को भी लंबे समय तक जमानत नहीं मिल सकी। आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं का जेल जाना और अदालती शर्तों से बंधे रहना चुनाव से पहले बड़ा टर्निंग प्वाइंट रहा। एक अहम तथ्य यह भी है कि भष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से निकली अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे। केजरीवाल ने हमेशा से वीआइपी कल्चर पर सवाल उठाये, लेकिन इस बार शीश महल को लेकर उन पर ही सवाल खड़े हो गये। भाजपा-कांग्रेस ने आप को जमकर घेरा।
कारण नंबर दो: मुफ्त की योजनाओं का हथियार नहीं चला
दिल्ली में आप की लोकप्रियता की बड़ी वजह मुफ्त बिजली, पानी जैसी योजनाओं को माना जा सकता है। इस चुनाव से पहले भाजपा मुफ्त रेवड़ियों के खिलाफ आवाज बुलंद कर रही थी। केजरीवाल इसी बात का फायदा उठाकर पूरे देश में मुफ्त बिजली और इलाज जैसे मुद्दे उठाते रहते थे, लेकिन चुनाव में भाजपा ने भी आप वाला ही दांव चला और चुनावी वादों में महिलाओं-बच्चों, युवाओं से लेकर आॅटो रिक्शा चालकों तक के लिए बड़े एलान किये। इसके साथ ही कांग्रेस ने भी ऐसे ही वादे किये, जिससे आप की चुनौती बढ़ गयी।
कारण नंबर तीन: शीशमहल विवाद को मुखरता से उठाना
भाजपा ने दिल्ली में मुख्यमंत्री आवास को आलीशान तरीके से बनाने और उस पर करोड़ों रुपये खर्च करने का मुद्दा उठाया। भाजपा ने कई पोस्टर जारी कर केजरीवाल को इस मुद्दे पर घेरा। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे को उठाया। देश की संसद में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम नेताओं ने आप को इस मुद्दे पर घेरा।
कारण नंबर चार: यमुना सफाई, सड़कें और जलभराव पर भी घिरी आप
दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने से पहले से केजरीवाल और तमाम आप नेता यमुना की सफाई के मुद्दे को उठाते रहे हैं। तत्कालीन दिल्ली की सरकार को आड़े हाथों लेकर सभी नेताओं ने सरकार में आने पर नदी को साफ करने का वादा किया था। इसके बाद दिल्ली की जनता ने आप को सरकार बनाने का मौका दिया। हालांकि 10 से ज्यादा साल तक सत्ता में रहने के बाद भी यमुना साफ नहीं हो पायी। इस बार जब चुनाव प्रचार चल रहा था, तो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दिल्ली आकर केजरीवाल को चुनौती दी। इसके बाद केजरीवाल ने यमुना के जहरीले पानी का मुद्दा उठाया। उन्होंने इसका ठीकरा हरियाणा सरकार पर फोड़ा। इसके अलावा दिल्ली की खस्ताहाल सड़कें और बारिश के मौसम में जलभराव के मुद्दे ने भी केजरीवाल की मुश्किलें बढ़ायीं। भाजपा-कांग्रेस दोनों ने ही इस मुद्दे पर केजरीवाल और आप को घेरा।
कारण नंबर पांच: मोदी की लोकप्रियता का तोप
दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का तोप भी खूब चला। मोदी ने चुनावी सभा में आप को आपदा करार दिया। इससे भाजपा कार्यकर्ताओं में जोश दोगुना हो गया। इस चुनावी नारे के साथ भाजपा ने हर कदम पर केजरीवाल और उनकी पार्टी को निशाना बनाया। किसानों के फायदे के काम हों या फिर आयुष्मान योजना हो, केंद्र की हर वह योजना, जो दिल्ली में आप सरकार ने लागू नहीं की, अन्य राज्यों को उससे होने वाले लाभ भाजपा ने दिल्ली की जनता को बताये। आप के इस रवैये को भाजपा ने आपदा करार दिया। इसी चुनावी नारे के साथ भाजपा ने आप को टक्कर दी।
कारण नंबर छह: कांग्रेस का मजबूती से चुनाव लड़ना
पिछले दो विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने एक भी सीट नहीं जीती। हालांकि, 2015 में कांग्रेस को 9.7 फीसदी तो 2020 में 4.3 फीसदी वोट मिले। इस बार यह आंकड़ा 6.62 फीसदी पर रहने की उम्मीद है। लोकसभा में विपक्षी एकता का नारा लगाकर भाजपा को चुनौती देने वाली आप और कांग्रेस की विधानसभा चुनाव में राहें अलग-अलग हो गयीं। कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत झोंकी। इसका असर परिणामों में साफ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस का वोट शेयर बढ़ने की वजह से आप को नुकसान हुआ है।
कारण नंबर सात: अति आत्मविश्वास और सत्ता का अहंकार
2013 में दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल में संभावना देखी। 2015 में उन्हें अपार बहुमत देकर बड़ा मौका दिया और 2020 में मुफ्त, बिजली, पानी, बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य के लिए उठाये गये कदमों पर मुहर लगाते हुए दोबारा भरोसा दिया कि वो सब करो, जो आप कहते हो। हालांकि 2020 से 2025 के दौरान अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी रास्ता भटक गयी या यूं कहें कि उन्होंने रास्ता बदल दिया। 2022 में दिल्ली नगर निगम की जीत ने आप और टीम केजरीवाल का मनोबल और बढ़ा दिया। इससे वो अति आत्मविश्वास के शिकार हुए, जो कालांतर में सत्ता के अहंकार में बदल गया, क्योंकि दोनों के बीच की सीमा रेखा बेहद पतली होती है।
क्या है इस हार का सियासी मतलब
दिल्ली में आप की हार का सियासी मतलब साफ है कि इस देश के मतदाता किसी भी नेता के पीछे चलने के लिए तैयार नहीं हैं। वे काम पर ही वोट देते हैं और अपना फैसला बहुत सोच-समझ कर करते हैं। इस हार ने अरविंद केजरीवाल को राजनीति की मुख्यधारा से फिलहाल अलग कर दिया है, जबकि कांग्रेस का अस्तित्व अब राष्ट्रीय राजधानी में खत्म सा हो गया है। इसलिए अब देश की सियासत को फिलहाल ‘मोदी मार्ग’ पर चलना तय हो गया है।