मनोज मिश्र/कमलेश
धनबाद। कोयलांचल की राजधानी धनबाद में बीच सड़क पर रास्ता रोक कर मौत की नींद सुलाने का चलन पुराना है। धनबाद में बड़े लोगों को निशाने बनाने के लिए सड़क को भी चुना जाता रहा है। नीरज सिंह समेत चार लोगों की सरेराह हुई हत्या ने धनबाद की पुरानी हत्याओं की यादें ताजा कर दी हैं। इससे पहले विनोद को इसी अंदाज में गोली मारी गयी थी। विनोद सिंह और उनके चालक, सकलदेव सिंह और उनके चालक, फाब्ला नेता सुशांतो सेनगुप्ता और उनके भाई और चालक तथा वासेपुर में मनोज सिंह उर्फ डब्बू और उसके समर्थक को सड़क पर ही गोलियों से मौत की नींद सुलाया गया था। अभी जनवरी महीने में रंजय सिंह की हत्या भी सड़क पर ही कर दी गयी थी। वह स्कूटी से जा रहे थे कि अचानक किसी ने पीछे से गोली मार दी और वह जमीन पर गिर मौत की नींद सो गये। नीरज सिंह की हत्या भी ठीक इन्हीं घटनाओं की तरह हुई है। नीरज सिंह के शरीर में 67 गोलियों के निशान मिले। सीने पर 36, एक बांह में 16, दूसरी बांह में 8 और चेहरे पर 7 गोलियां लगीं। घटनास्थल से पुलिस ने 50 से अधिक खोखे जब्त किये। 15 जुलाई 1998 को ठीक इसी अंदाज में कतरास हटिया में शहीद भगत सिंह चौक के पास ताबड़तोड़ गोलियों से हमला कर विनोद सिंह और उनके चालक मन्नू अंसारी को मौत के घाट उतार दिया गया था। गोलियों से विनोद सिंह की एंबेस्डर कार छलनी हो गयी थी। कार की दाहिनी ओर से 17, बायीं ओर से पांच और शीशे से 13 गोलियां घुसी थीं। कार के अंदर 23 गोलियां मिली थीं। घटनास्थल से पुलिस ने 30 खोखे जब्त किये थे। दोनों के मांस के लोथड़े और खून से कार का फर्श लाल हो गया था।
रास्ता रोक कर मौत की नींद सुलाने का चलन पुराना
गैंगवार और आर्थिक वर्चस्व के 33वें शिकार नीरज सिंह
धनबाद। कोयले से अवैध कमाई तथा वासेपुर गैंगवार धनबाद कोयलांचल को अशांत करता रहा है। जीटी को लेकर धमकियां, अंडरवर्ल्ड से कनेक्शन भी धनबाद कोयलांचल में अशांति की वजह रही है। हत्याओं का पुराना इतिहास रहा है। गैंगवार, आर्थिक अपराध और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता ने कई जानें ली हैं। गैंगवार के 33वें शिकार नीरज सिंह बने। यूपी, बंगाल और बिहार के अपराधियों का इस धरती से गहरा संबंध है। 1977 से शुरू हत्या का दौर अब तक जारी है।