भारत –पकिस्तान के बीच चल रही तानातानी अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है, लेकिन मिशन 2019 की ललकार सभी दलों ने शुरू कर दी है। दो देशों के बीच अभी मामला पूरी तरह से शांत नहीं हुआ है, मगर झारखंड में चुनावी युद्ध का आगाज सभी राजनीतिक दलों ने कर दिया है। सभी राजनीतिक दल वोटरों को साधने में जुट गये हैं। सबसे ज्यादा टशन भाजपा और कांग्रेस के बीच देखी जा रही है। ऐसा नहीं है कि झारखंड की अन्य राजनीतिक पार्टियां हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। झामुमो की बात करें, तो वह लगातार दुर्गापूजा के समय से ही संघर्ष यात्रा के माध्यम से जनता को ताड़ने का काम कर रहा है। पिछले पांच महीने में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने संघर्ष यात्रा के माध्यम से पूरी ताकत झोंक दी है। उन्होंने झारखंड के सभी पांचों प्रमंडलों में कार्यक्रम कर चुनाव का आगाज कर दिया है। झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी पहले ऐसे नेता हैं, जो लगातार चार वर्षों से कार्यकर्ताओं के बीच उपस्थित रह रहे हैं। पोल खोल कार्यक्रम के द्वारा उन्होंने झारखंड में लगभग हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यक्रम किया है।

सांगठनिक रूप से देखा जाये, तो बाबूलाल मरांडी किसी ना किसी कार्यक्रम के माध्यम से अपने को जनता और कार्यकर्ता के बीच रखने का काम किया है। भाजपा की प्रमुख सहयोगी दल आजसू भी लगातार स्वाभिमान यात्रा के माध्यम से हर विधानसभा क्षेत्र में कार्यक्रम कर रही है। आजसू प्रमुख सुदेश महतो स्वाभिमान यात्रा के माध्यम से अपनी जमीन को और मजबूत करने में जुटे हुए हैं। वह लगातार कार्यक्रम कर रहे हैं। देखा जाये, तो हेमंत, बाबूलाल और सुदेश महतो मिशन 2019 को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हालांकि यह भी सच है कि इन क्षेत्रीय दलों का लोकसभा से ज्यादा विधानसभा चुनाव पर ध्यान है, लेकिन जनता को गोलबंद करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राजद भी झारखंड में अपनी उपस्थिति दोबारा दर्ज करने में जुटा हुआ है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजद का झारखंड में खाता भी नहीं खुला हुआ था, लेकिन अन्नपूर्णा देवी को जब से प्रदेश की कमान मिली है, वह सांगठनिक रूप से पार्टी को मजबूती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं।

पहले उन्होंने राजद के प्रभाव वाले इलाके में राज्य स्तर का कार्यक्रम किया और अब लालू संदेश यात्रा के माध्यम से जनता को अपने पक्ष में करने की मुहिम में लगी हुई हैं। क्षेत्रीय पार्टियों से इतर यदि राष्ट्रीय पार्टियों की बात की जाये, तो भाजपा लगातार संगठन को मजबूत करने में जुटी हुई है। खासकर धर्मपाल सिंह के संगठन महामंत्री बनने के बाद से पार्टी एक मिशन के तहत काम कर रही है। फरवरी महीने में तो भाजपा ने मुहिम के तहत पूरे प्रदेश को पांच कलस्टर में विभाजित कर कार्यक्रम किया। केंद्रीय नेताओं को इस कार्यक्रम में बुलाया गया। भाजपा के तीन राष्ट्रीय महामंत्री का कार्यक्रम हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दो-दो कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसके बाद भाजपा ने प्रधानमंत्री के बूथ जीतो-चुनाव जीतो कार्यक्रम को पूरे प्रदेश में प्रसारित कराया। शनिवार को एक बार फिर मोदी सरकार कार्यक्रम के तहत पूरे प्रदेश में विजय संकल्प रैली का आयोजन किया गया।

मुख्यमंत्री, प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्रियों सहित भाजपा के सभी विधायकों, सांसदों और प्रदेश के पदाधिकारियों ने विजय संकल्प बाइक रैली में अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। हर विधानसभा क्षेत्र और मंडलों में यह रैली निकाली गयी। दूसरी राष्ट्रीय पार्टी की बात करें, तो कांग्रेस पार्टी ने राहुल गांधी का कार्यक्रम कराकर अपनी ताकत का एहसास कराने का प्रयास किया। कहा जाये तो राहुल के कार्यक्रम से झारखंड कांग्रेस को संजीवनी मिली है। प्रदेश प्रवक्ता राजेश ठाकुर का कहना है कि राहुल गांधी के कार्यक्रम के बाद कांग्रेस नयी ऊर्जा का संचार हुआ है। राहुल का कार्यक्रम भाजपा के लिए आखिरी किल साबित होगी। नेताओं के बयानों से इतर अगर देखा जाये, तो इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी के कार्यक्रम के बाद कांग्रेस पार्टी को ताकत मिली है।

हालांकि अभी चुनाव की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से सभी राजनीतिक दलों ने कार्यक्रम कर जनता को साधने का प्रयास किया है, वह आम चुनाव के लिए दिलचस्प होगा। यहां यह उल्लेख करना लाजिमी है कि कार्यकर्ता के मामले में भाजपा अन्य सभी दलों से काफी आगे है। लेकिन यह भी सच है कि पूरे विपक्ष के पिछले लोकसभा चुनाव के वोट को मिलाकर देखा जाये, तो भाजपा से लगभग सात प्रतिशत वोट उसका ज्यादा था। झारखंड में महागठबंधन का सीन बन रहा है। राहुल गांधी ने अपनी रैली में इसे स्पष्ट भी कर दिया था। विपक्ष भले ही पिछले लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर सिमट गया था, लेकिन यदि मिलकर चुनाव लड़ता है, तो भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा विपक्ष के बनने वाले महागठबंधन के खिलाफ क्या रणनीति बनाती है। वजह यह भी है कि भाजपा की सहयोगी पार्टी आजसू अबतक उससे आंखें तरेरे हुए है।

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