रांची। कोल्हान का पश्चिमी सिंहभूम यानी चाईबासा लोकसभा सीट पूरी तरह से पांचवीं अनुसूची वाले इलाके के तहत है। यहां छह विधानसभा क्षेत्र हंै और सभी एसटी के लिए आरक्षित हं। यह इलाका लौह अयस्क के लिए प्रसिद्ध है। रेड कोरिडोर के अंतर्गत भी इस इलाके की गिनती होती है। सारंडा का जंगल जो कभी नक्सलियों का सबसे बड़ा पनाहगार हुआ करता था, इसी इलाके में है। इस लोकसभा का गठन 1957 में हुआ। पहले चुनाव से लेकर पांचवें चुनाव तक यहां झारखंड पार्टी का आधिपत्य रहा। 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां से खाता खोला। भाजपा पहली बार इस सीट पर 1996 में जीती।
इसके बाद भाजपा 1999 और 2014 के चुनाव में जीती। कांग्रेस के बागुन सुम्बु्रई ने इस लोकसभा का सबसे अधिक बार प्रतिनिधित्व किया। इन्होंने पहली बार 1977 में झारखंड पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता था। वह 1980 में कांग्रेस में शामिल हुए और कांग्रेस के हिस्से इस सीट को लेकर आये। लगातार 1989 के चुनाव तक बागुन दा यहां से जीतते रहे। पांच टर्म तक बागुन सुम्ब्रुई ने चाईबासा का प्रतिनिधित्व किया। 2014 के चुनाव में एक दशक के बाद भाजपा ने यहां वापसी की है। पिछले चुनाव में भाजपा को इस सीट पर कांग्रेस ने टक्कर नहीं दी थी।
जय भारत समानता पार्टी जो चाईबासा तक ही सीमित थी, उसकी प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा ने मोदी लहर में भी भाजपा को कड़ी टक्कर दी थी। छह में से तीन लोकसभा क्षेत्र में तो गीता कोड़ा ने भाजपा की एक नहीं चलने दी थी। चाईबासा, सराइकेला और चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र में लक्ष्मण गिलुआ आगे थे। खासकर सराइकेला विधानसभा क्षेत्र में लक्ष्मण गिलुआ के बढ़त का अंतर निर्णायक साबित हुआ था। इसके बाद भी गीता कोड़ा ने अपने दम पर दो लाख 15 हजार वोट लाया था। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि गीता कोड़ा इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के साथ-साथ सरकारी जांच एजेंसी से भी लड़ रही थीं। सरकारी जांच एजेंसी ने इन्हें इस कदर अपने नियमों के जाल में बांध रखा था कि चुनाव के दौरान सही से पूरे क्षेत्र का दौरा भी नहीं कर पायी थीं। कोल्हान में कांग्रेस के कभी दिग्गज नेता रहे बागुन सुम्बु्रई के निधन के बाद पार्टी में बड़े नेताओं का अभाव रहा है।
ऐसे में गीता कोड़ा का पार्टी में आना और मधु कोड़ा का समर्थन कांग्रेस के लिए मजबूती का कारण बन सकता है। मधु कोड़ा वर्ष 2009 में चाईबासा से लोकसभा चुनाव जीते थे, लेकिन फिर भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने के कारण वह वर्ष 2014 का चुनाव लड़ने से अयोग्य हो गये थे। उन्होंने अपनी पत्नी को मैदान में उतारा, लेकिन वह चुनाव हार गयीं, मगर यह संकेत जरूर दे गयीं कि उनके लिए अभी आसमां और भी हैं। हालांकि विधानसभा चुनाव में अपनी पत्नी गीता कोड़ा को दूसरी बार जगरनाथपुर से विधायक बनाने में मधु कोड़ा सफल रहे। कोल्हान की राजनीति में कभी मधु कोड़ा भाजपा की सबसे मजबूत कड़ी होते थे। लेकिन वर्ष 2006 में अर्जुन मुंडा से विवाद के कारण उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ लिया। फिर कांग्रेस और अन्य दलों के सहयोग से निर्दलीय मुख्यमंत्री बने थे।
मधु कोड़ा पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप लगे और तब कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया। लेकिन एक बार फिर सियासत की जरूरत और चुनावी समीकरण को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने मधु कोड़ा की पार्टी को अपने में विलय कराकर एक नयी राजनीतिक चाल चलने की कोशिश की है। गीता कोड़ा सफल राजनेता की तरह काम कर रही हैं। उन्होंने अपने को झारखंड की राजनीति में स्थापित कर लिया है।
भले ही उनके पति पर आरोप लगे हों, लेकिन आज तक गीता कोड़ा पर किसी तरह का आरोप नहीं है। समय की नजाकत को देखते हुए गीता कोड़ा ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है। पिछले चुनाव में भले ही वह 87 हजार वोट से हर गयी थीं लेकिन विपक्ष के अन्य दलों कांग्रेस, झाविमो के वोट को मिला दिया जाये तो भाजपा से लगभग 80 हजार वोट ज्यादा है। जाहिर है इस बार विपक्ष महागठबंधन के तहत चुनाव लड़ रहा है और गीता कोड़ा को पार्टी में शामिल कराने के पीछे वजह भी चाईबासा सीट से उन्हें प्रत्याशी बनाना है। लक्ष्मण गिलुआ दो बार चाईबासा से चुनाव जीते हैं। एक बार तब जब देश में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की लहर थी और एक बार तब, जब मोदी लहर में पूरा देश सराबोर था। लेकिन इस बार सीन कुछ अलग है।
पिछले चुनाव में विपक्षी खेमा बंटा हुआ था, लेकिन इस बार महागठबंधन के पूरे आसार हैं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि चाईबासा की छह विधानसभा सीट पर भाजपा का पिछले विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला था। लोगों के टेंपरामेंट में पिछले चुनाव की तुलना में इस बार परिवर्तन दिख रहा है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ और मोदी की लहर में जनता बह गयी थी। इस बार सीन कुछ अलग है। भाजपा के लिए राह आसान नहीं है। इस लोकसभा क्षेत्र में हो जनजाति का प्रभाव है। बागुन दा भी इसी समुदाय से थे और मधु कोड़ा भी इसी समुदाय से हैं। इस जनजाति पर मधु कोड़ा की जबरदस्त पकड़ है। भाजपा की तरफ से इस जनजाति को कभी भी अपने विश्वास में लेने का प्रयास नहीं किया गया। कोल्हान में भाजपा संगठन में भी शीत युद्ध चल रहा है। पूर्व मंत्री बड़कुंवर गगराई सीन से पिछले चार वर्षों से गायब हैं। उन्हें अर्जुन मुंडा का समर्थक माना जाता है। ग्रामीण इलाके में आज भी क्षेत्रीय पार्टी ज्यादा मजबूत है।
विधायक गीता कोड़ा ने दावा किया कि वह कोल्हान की हवा को बदल देंगी। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी ही भाजपा को बोरिया बिस्तर समेटने पर मजबूर कर सकती है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार ने संकेत दिया है कि गीता कोड़ा चाईबासा लोकसभा क्षेत्र से कांग्रेस उम्मीदवार हो सकती हैं। हालांकि झारखंड में महागठबंधन बनाने को लेकर चल रही चर्चा में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी चाईबासा सीट पर कांग्रेस के सामने अपनी दावेदारी रखी है। इस बीच भारतीय जनता पार्टी के महामंत्री दीपक प्रकाश ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने मधु को ले लिया और कोड़ा को छोड़ दिया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी मधु कोड़ा की पूरी पार्टी को निगल गयी और केवल कोड़ा को छोड़ दिया।
उन्होंने कहा कि गीता कोड़ा भी कांग्रेस के दलदल में फंस गयी हैं। साथ ही उन्होंने यह भी दावा किया है कि केंद्र और राज्य सरकार ने विकास के जो कीर्तिमान गढ़े हैं, जनता विकास के साथ है और इस बार भी भाजपा भारी अंतर से चुनाव जीतेगी। बहरहाल दावा तो सभी दल जीत का करते हैं, लेकिन जो समीकरण है उस हिसाब से अभी तक तो कोल्हान की चाईबासा सीट भाजपा के लिए टेढ़ी खीर के समान है। गिलुआ को आगे बढ़ने से रोकने के लिए गीता चट्टान की तरह खड़ी हो गयी हैं। यह चट्टान सिर्फ हवा के झोंके से नहीं, भयंकर आंधी से ही गिर सकती है।