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    Home»Breaking News»झारखंड में महागठबंधन सुनते-सुनते पकने लगे कान
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    झारखंड में महागठबंधन सुनते-सुनते पकने लगे कान

    azad sipahiBy azad sipahiMarch 12, 2019No Comments4 Mins Read
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    रांची। अब जब पूरे देश में चुनाव की डुगडुगी बज चुकी है। लोग बेसब्री से महागठबंधन की हकीकत जानना चाह रहे हैं। वैसी स्थिति में महागठबंधन की गांठ किस कदर फंसी हुई है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सोमवार को झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन को बाबूलाल मरांडी के आवास पर जाना पड़ा। यहां प्रदीप यादव की मौजूदगी में एक घंटे तक राय-मशविरा हुआ। यह चिंता व्यक्त की गयी कि अगर जल्द से जल्द महागठबंधन का स्वरूप सामने नहीं आया, तो महागठबंधन को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

    इसी को देखते हुए बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन को राहुल गांधी से बात कर समस्या का हल निकालने के लिए अधिकृत कर दिया। इस बात पर भी एका बनी कि अब इस गांठ को खोलने के लिए दिल्ली नहीं जायेंगे। कांग्रेस को रांची में ही गांठ को खोलने की पहल करनी होगी। उम्मीद की गयी कि सात दिन के अंदर कांग्रेस पहल करके समस्या का समाधान निकाल लेगी। एक तरफ झारखंड में महागठबंधन की स्थिति यह है, दूसरी तरफ भाजपा चुनावी रण में पूरी तरह उतर चुकी है। वह अकेले मैदान में गदा भांज रही है, जबकि विपक्ष के पास जनता के बीच जाने का हथियार ही अभी नहीं मिला है।

    मान लीजिए, एक हफ्ते के अंदर महागठबंधन हो भी जाता है और सीट शेयरिंग भी हो जाती है, फिर महागठबंधन के नेताओं को एक साथ मंच साझा करने का समय कहां मिलेगा। उदाहरण के लिए झाविमो के बाबूलाल का जिक्र किया जा सकता है। उस दल में दो ही बड़े नेता हैं बाबूलाल और प्रदीप यादव। दोनों ही चुनाव में भाग्य आजमायेंगे। ऐसे में वे अपना चुनाव क्षेत्र देखेंगे या साझा विपक्षी उम्मीदवार के पक्ष में प्रचार करने जायेंगे। यही स्थिति झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन की भी होगी। वह पूरी तरह से संथाल में ठेहा गाड़ कर बैठ जायेंगे, फिर साझा विपक्ष का लाभ कैसे मिलेगा। कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह उत्तरप्रदेश से चुनाव लड़ रहे हैं। उनकी उम्मीदवारी घोषित भी हो चुकी है। अब उनका ध्यान पूरी तरह से अपनी सीट पर होगा। क्योंकि वह सीट उनकी प्रतिष्ठा से जुड़ी हुई है। ऐसे में वह झारखंड में कांग्रेस उम्मीदवारों के साथ-साथ विपक्षी उम्मीदवारों के लिए कितना समय निकाल पायेंगे। जबकि दूसरी तरफ स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह एक राउंड का प्रचार कर चुके हैं। ऐसे में कांग्रेस को अब सक्रिय होना ही होगा।

    जानकारों की मानें तो झारखंड में महागठबंधन का अभी स्वरूप ही नहीं बन पाया है। सीट शेयरिंग को लेकर अभी भी पेंच फंसा है। गोड्डा सीट कांग्रेस के गले की हड्डी बनती जा रही है। इस सीट पर जहां एक ओर बाबूलाल मरांडी ने दावा ठोका है, वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के फुरकान अंसारी किसी भी हाल में यहां से अपनी दावेदारी छोड़ना नहीं चाहते। उनका कहना है कि यह सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट है। इसे लेकर फुरकान अंसारी के पुत्र विधायक इरफान अंसारी ने तो नेतृत्व के खिलाफ ही मोर्चा खोल रखा है। उन्होंने कांग्रेस को यह चेतावनी तक दे दी है कि अगर गोड्डा सीट उनके पिता फुरकान अंसारी को नहीं मिली, तो झारखंड की चौदह सीटों पर उसका बुरा असर पड़ेगा। जाहिर है, धमकी भरे शब्दों में वह यही संदेश देना चाहते हैं कि अगर फुरकान को सीट नहीं मिली, तो झारखंड के मुसलमान कांग्रेस से अलग हो जायेंगे। हालांकि एक बार फिर हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी की बैठक के बाद यह बात सामने आयी है कि एक सप्ताह में महागठबंधन की स्थिति स्पष्ट हो जायेगी। इस बार भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या भेड़िया आया वाली कहावत ही होगी या फिर शीट शेयरिंग फाइनल हो जायेगा।

    क्यों फंसा हुआ महागठबंधन का पेंच
    तमाम कवायदों के बाद भी पेंच फंसा हुआ है। स्थिति स्पष्ट नहीं हो पायी है। इसके पीछे कई कारण सामने आ रहे हैं। सबसे पहले अंदर-अंदर लड़ाई इस बात की है कि झारखंड में महागठबंधन का नेतृत्व कौन करेगा। बात करें झामुमो की तो यह झारखंड में विपक्षी खेमे में सबसे बड़ी पार्टी है, जिस कारण झामुमो चाहता है कि लोकसभा नहीं तो विधानसभा में नेतृत्व मिले और विधानसभा का फार्मूला भी अभी ही तय कर लिया जाये। वहीं बाबूलाल मरांडी गोड्डा सीट पर अड़े हुए हैं। कांग्रेस कुछ दिन पहले हुए तीन राज्यों में चुनाव जीतने के बाद से झारखंड महागठबंधन की चाबी अपने हाथों में रखना चाहती है। इसका नजारा कुछ दिन पहले रांची में हुए राहुल के कार्यक्रम में भी देखने को मिला। जहां महागठबंधन के सभी नेता मंच पर विराजमान हुए, लेकिन हेमंत उपस्थित नहीं हुए।

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