कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 21 दिन के देशव्यापी लॉकडाउन का आज तीसरा दिन है, जबकि झारखंड का चौथा दिन। झारखंड में आज तक इस जानलेवा संक्रमण से पीड़ित कोई व्यक्ति नहीं मिला है, लेकिन जिस तरह से बाहर से लोग यहां आ रहे हैं, ऐसा नहीं लगता कि बहुत दिनों तक हम इस बीमारी से अछूते रह पायेंगे। इसलिए हमें मजबूर होकर कहना पड़ रहा है कि झारखंड में आपका स्वागत ‘नहीं’ है। झारखंड के समाज में अतिथियों को देवतुल्य समझा जाता है और उनका स्वागत किया जाता है, लेकिन अभी की संकटकालीन स्थिति में झारखंड अपनी इस परंपरा को छोड़ने के लिए मजबूर हो गया है, क्योंकि इसे खुद को बचाना जरूरी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी देश-दुनिया में रह रहे झारखंड के लोगों से बार-बार अपील कर रहे हैं कि जो जहां है, वहीं रहे। उनकी तकलीफों को दूर करने का हरसंभव प्रयास किया जायेगा। मुख्यमंत्री ऐसा कर भी रहे हैं। सुदूर गांवों से लेकर छत्तीसगढ़ तक में फंसे झारखंड के लोगों के लिए वहां के प्रशासन के माध्यम से मदद पहुंचा रहे हैं। ऐसे में बाहर फंसे हर झारखंडी का यह फर्ज बनता है कि वह अपने प्रदेश को सुरक्षित रखने के लिए थोड़ी तकलीफ उठाये और जो जहां है, वहीं रहे। इस मुद्दे पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
कोरोना महामारी को लेकर देशव्यापी लॉकडाउन शुरू होने के बाद से करीब दो हजार लोग अलग-अलग रास्तों और माध्यमों से झारखंड आये हैं। ये सभी झारखंड के रहनेवाले हैं और रोजी-रोटी कमाने के लिए बाहर गये थे। ये लोग ऐसे समय में वापस आये हैं, जब झारखंड की सरकार और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लगातार अपील कर रहे हैं कि जो जहां है, वहीं रहे। घर से दूर फंसे लोगों की तकलीफों को समझा जा सकता है, लेकिन झारखंड को कोरोना से बचाने के लिए यहां के हर व्यक्ति को कुछ न कुछ कुर्बान करना ही पड़ेगा।
देश के दूसरे हिस्सों में फंसे झारखंड के लोगों के लिए हेमंत सोरेन सरकार कितनी तत्पर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसने हरेक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश के लिए अधिकारियों को प्रतिनियुक्त कर दिया है। ये अधिकारी चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं और वहां फंसे लोगों की मदद से लिए स्थानीय प्रशासन के संपर्क में हैं। इतना ही नहीं, खुद मुख्यमंत्री और राज्य के तमाम सांसद-विधायक भी लगातार ऐसे लोगों की तकलीफों को संबंधित प्रशासनों तक पहुंचा रहे हैं और इससे लोगों को मदद भी मिल रही है। तीन दिन पहले गढ़वा के करीब 50 मजदूर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में फंसे थे। मुख्यमंत्री को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी गयी। मुख्यमंत्री ने तत्काल छत्तीसगढ़ के सीएम से संपर्क किया। उन मजदूरों को वहां हरसंभव सहायता पहुंचायी गयी और बाद में उन्हें उनके गांव भेजा गया। इसी तरह हरिद्वार में फंसे देवघर के लोगों तक उत्तराखंड सरकार के माध्यम से मदद पहुंचायी गयी। दिल्ली में फंसे कुछ झारखंडी मजदूरों की तकलीफ की जानकारी जैसे ही मुख्यमंत्री को मिली, उन्होंने वहां के विधायक सोमनाथ भारती और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को संदेश भेजा। इन दोनों ने जवाब दिया कि दिल्ली में रहनेवाला हर झारखंडी उनका अपना है। इसलिए चिंता की जरूरत नहीं है। उन्हें मदद पहुंचायी जा रही है। इतना ही नहीं, दूसरे राज्यों के जो लोग झारखंड में फंसे हैं, राज्य सरकार उनका भी खयाल रख रही है। उनके लिए ठहरने और भोजन की व्यवस्था की जा रही है और इस पूरे काम की मॉनिटरिंग खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कर रहे हैं।
हेमंत सोरेन सरकार की इस सक्रियता के बावजूद कुछ लोग अब भी इधर से उधर आना-जाना कर रहे हैं। तीन दिन पहले महाराष्ट्र से छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के रास्ते करीब ढाई सौ लोग टैक्सियों से गुमला और आसपास पहुंचे। उनके से कुछ बगोदर के भी रहनेवाले थे। इन लोगों ने न खुद को स्क्रीनिंग के लिए अधिकारियों के सामने पेश किया और न ही इनके परिजनों ने इनके आने की सूचना स्थानीय प्रशासन को दी है। ऐसे कई लोग हैं, जो अपने यहां बाहर से आनेवाले लोगों की सूचना प्रशासन को नहीं दे रहे हैं। एक सप्ताह पहले रांची के बरियातू इलाके की एक महिला ने अमेरिका से अपने बेटे के आने की सूचना किसी को नहीं दी। तबीयत खराब होने पर उसे तो अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उसका बेटा अब भी छिपा हुआ है। यह लापरवाही पूरे झारखंड के लिए खतरनाक ही नहीं, जानलेवा हो सकती है। यहां कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो बाहर से आये लोगों को छिपाने के लिए धर्मस्थलों तक का इस्तेमाल कर रहे हैं। तमाड़ और धनबाद के गोविंदपुर से ऐसी घटनाएं सामने आ चुकी हैं। चिकित्सकों द्वारा घर में ही अलग-थलग रहने के निर्देश के बाद रांची में ही दो भाई इसकी अवहेलना कर चुके हैं। इनके खिलाफ प्राथमिकी भी दर्ज कर ली गयी है।
इसलिए अब समय आ गया है, जब झारखंड में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को यह संकल्प लेना होगा कि वह अपने यहां बाहर से आये किसी भी व्यक्ति को तब तक नहीं रखेगा, जब तक कि उसकी स्क्रीनिंग नहीं हो जाती, चाहे आनेवाला व्यक्ति कितना भी करीबी क्यों न हो। बाहर फंसे झारखंड के लोगों को भी यह संकल्प लेना होगा कि अपने प्रदेश को कोरोना से सुरक्षित रखने के लिए वे तकलीफ उठाने के लिए तैयार हैं। झारखंड आ चुके लोगों को भी यह संकल्प लेना होगा कि वे डॉक्टरों के निर्देशों का पालन करते हुए कुछ दिन तक घर में बंद रहेंगे। जब तक हर व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी नहीं समझेगा, संकल्प नहीं लेगा, झारखंड को कोरोना से लंबे समय तक बचा कर रखना संभव नहीं होगा। झारखंड के लोगों को यह भी समझना होगा कि कोरोना से बचाव के लिए केवल सरकार का प्रयास ही काफी नहीं है। इसके लिए हर व्यक्ति को जिम्मेदारी समझनी और उठानी होगी।
हम यह भी जानते हैं कि हमारी स्वास्थ्य सेवाएं इतनी सुदृढ़ नहीं हैं कि सभी का इलाज किया जा सके। इसलिए अगले कुछ दिन तक झारखंड में बाहर से आनेवालों का प्रवेश पूरी तरह रोक दिया जाना चाहिए। इसमें प्रशासन को भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी। उसे सख्ती भी करनी होगी, लेकिन इसका कोई विकल्प नहीं है। लोगों को लगातार जागरूक किया जा रहा है, अपील की जा रही है, लेकिन झारखंड की खूबसूरती को कोरोना के भद्दे दाग से बचाने की जिम्मेदारी आम लोगों की भी है।