वैश्विक महामारी कोरोना के कारण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित लॉकडाउन का आज पांचवां दिन है। देश में इस खतरनाक वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या एक हजार के पार पहुंच चुकी है, लेकिन संतोष इस बात का है कि झारखंड में अब तक इससे कोई संक्रमित नहीं मिला है, यानी इस प्रदेश में अब तक इस वायरस का प्रवेश नहीं हो सका है। बहुत से लोग इसे प्रकृति का वरदान या ईश्वरीय चमत्कार मान रहे हैं, लेकिन वास्तव में इसका मुख्य कारण सरकार और यहां के लोगों की जागरूकता है। जिस तरह हेमंत सोरेन सरकार ने पिछले रविवार को जनता कर्फ्यू के बाद राज्य में लॉकडाउन का फैसला किया और फिर व्यवस्था को चुस्त-दुरुस्त करने में जुट गयी, वह इस संक्रमण को अब तक दूर रखने में बहुत मददगार साबित हो रहा है। इस संकट ने एक तरफ जहां आम लोगों को जागरूक और जिम्मेदार बना दिया है, वहीं तंत्र को भी बेहद सक्रिय बना दिया है। आज प्रशासन का हर अंग झारखंड को इस खतरनाक वायरस से बचाने में जुटा हुआ है। इतना ही नहीं, लोग भी प्रशासन का भरपूर सहयोग कर रहे हैं। यह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के संकल्प और कार्यशैली का ही परिणाम है कि आज प्रशासन लोगों के दरवाजे पर पहुंच कर उनकी मदद कर रहा है। नागरिक प्रशासन से लेकर पुलिस और स्वास्थ्य सेवा से लेकर स्थानीय निकाय तक कोरोना से बचाव और लोगों की मदद में जुटा है। झारखंड की इस चुस्ती और सक्रियता पर आजाद सिपाही टीम की खास रिपोर्ट।
कहानी 15 दिन पुरानी है। दुनिया भर में तेजी से फैलते कोरोना और लोगों को इसका शिकार बनने की खबरें सुर्खियों में थीं। झारखंड में तब तक न लॉकडाउन हुआ था और न ही जनता कर्फ्यू का एलान किया गया था। झारखंड विधानसभा का बजट सत्र होली के अवकाश के बाद शुरू हुआ था। सदन की कार्यवाही खत्म होने के बाद बाहर निकले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने साथ चल रहे अधिकारियों से कोरोना संकट का अपडेट मांगा। जवाब मिलने के बाद चलते-चलते ही उन्होंने कहा कि झारखंड को हर कीमत पर इस संक्रमण से बचाना है और इसके लिए अभी से तैयारी शुरू कर दी जाये। विधानसभा परिसर में लोग इस बात की चर्चा कर ही रहे थे कि मुख्यमंत्री ने अधिकारियों की बैठक बुलायी और तत्काल इंतजाम शुरू करने का निर्देश दिया। सीएम खुद इसकी मॉनिटरिंग में जुट गये। हालांकि तब तक स्थिति इतनी बिगड़ी नहीं थी। लेकिन हेमंत सोरेन ने तंत्र को अलर्ट कर दिया था। इसके पांच दिन बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू का आह्वान किया। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों के साथ आम जनता से भी इसे सफल बनाने की अपील की। उन्होंने सोमवार को ही झारखंड में 31 मार्च तक के लिए लॉकडाउन की घोषणा भी कर दी।
अगले दिन 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने तीन सप्ताह के लिए देशव्यापी लॉकडाउन का एलान किया, तब तक हेमंत सोरेन और उनकी टीम झारखंड इस संकट से निबटने के लिए कमर कस चुकी थी। जिन राज्यों में कोरोना से संक्रमित मरीज थे, वहां भी इतनी तैयारी नहीं थी। झारखंड सरकार ने पहले ही दिन राज्यस्तरीय कंट्रोल रूम बना दिया और तमाम सरकारी अस्पतालों को अलर्ट मोड में रख दिया। इसके साथ ही नागरिक प्रशासन को जरूरतमंद लोगों के दरवाजों पर पहुंचने के लिए कहा गया, जबकि पुलिस को लॉकडाउन का पालन करने के लिए सड़कों पर उतारा गया। इसका परिणाम यह हुआ कि झारखंड में उतनी अफरा-तफरी नहीं फैली, जितनी दूसरे राज्यों में।
हेमंत सोरेन ने मुख्यमंत्री का पदभार संभालने के बाद ही कहा था कि उनकी कोशिश प्रशासन को जनता के दरवाजे तक पहुंचाने की होगी। जब कोरोना का संकट पैदा नहीं हुआ था, तब भी झारखंड का प्रशासन लोगों के दरवाजे तक पहुंचने लगा था। संकट की स्थिति में यह सिस्टम और भी रेस हो गया है। अब तो थानों में दाल-भात केंद्र काम करने लगे हैं, जहां हर जरूरतमंद को भरपेट भोजन मिल रहा है। इसमें सबसे खास बात यह है कि इन दाल-भात केंद्रों के संचालन का जिम्मा थाने में तैनात वे पुलिसकर्मी ही उठा रहे हैं, जिनकी छवि आम तौर पर कठोर रही है। सब्जी-अनाज लाने से लेकर परोसने तक की जिम्मेवारी पुलिसकर्मी संभाल रहे हैं, जिससे उनका मानवीय चेहरा सामने आया है। सड़कों पर भी जो पुलिसवाले तैनात हैं, वे भी लोगों की हरसंभव मदद कर रहे हैं और अनावश्यक तफरीह करनेवालों से सख्ती से निपट भी रहे हैं।
कोरोना के संक्रमण से झारखंड को बचाने के लिए प्रशासन हरसंभव उपाय कर रहा है। राज्य सरकार ने अब तक करीब 10 हजार लोगों को क्वारेंटाइन करने की व्यवस्था की है। बाहर से आये जिन लोगों को क्वारेंटाइन या आइसोलेशन में रखा गया है, उनकी सुख-सुविधा का पूरा ध्यान रखा जा रहा है। राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स और दूसरे सरकारी और निजी अस्पतालों में संक्रमित मरीजों के इलाज की मुकम्मल व्यवस्था है। झारखंड पहला ऐसा राज्य है, जहां बाहर में फंसे झारखंड के लोगों के लिए एक टास्कफोर्स काम कर रहा है। इसमें अलग-अलग राज्यों में फंसे लोगों की मदद से लिए अलग-अलग अधिकारियों को रखा गया है। इन अधिकारियों के संपर्क नंबर सार्वजनिक किये गये हैं और बाहर फंसे लोग उनसे संपर्क कर रहे हैं और उन लोगों को मदद मिल भी रही है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस पर सतत निगाह रख रहे हैं। वह खुद दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों से संपर्क बना कर वहां फंसे झारखंड के लोगों की मदद करने की अपील कर रहे हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर ही रांची जिला प्रशासन ने लोगों के दरवाजे तक जरूरी सामान पहुंचाने की व्यवस्था की, जिसका अनुसरण अब पूरे राज्य में किया जा रहा है। लोगों की सुविधा के लिए दवाओं की होम डिलिवरी भी की जा रही है।
ऐसा नहीं है कि इन तमाम व्यवस्थाओं में खामी नहीं है। बहुत से लोग शिकायत करते हैं कि उन्हें जरूरत का सामान नहीं मिल रहा है या अधिकारी फोन नहीं उठाते हैं या पुलिस वाले ज्यादती कर रहे हैं। लेकिन ऐसे लोगों को समझना चाहिए कि झारखंड बेहद सीमित संसाधनों वाला राज्य है। यहां प्रशासन के हर अंग में कार्मिकों की और संसाधनों की बेहद कमी है। इन सीमित संसाधनों में अगर इतना भी काम हो रहा है, तो उसकी तारीफ ही होनी चाहिए। हां, मदद के लिए नोडल अधिकारी की भूमिका निभा रहे अफसरों को जरूर संवेदनशील बनने की जरूरत है। उनके बारे में बार-बार यह शिकायत आ रही है कि वे फोन नहीं उठा रहे।
अगर झारखंड में अब तक कोरोना दस्तक नहीं दे पाया है, तो यह सब एक सुनियोजित प्लानिंग और समन्वित प्रयासों का परिणाम है। कहा जाता है कि असली नायक की पहचान संकट के समय होती है। सामान्य दिनों में तो कोई भी काम कर सकता है। हेमंत सोरेन इस परीक्षा में भी पूरी तरह खरे उतरे हैं। अब यह झारखंड के लोगों पर निर्भर करता है कि वे कोरोना के संक्रमण को दूर रखने में सरकार और प्रशासन का कितना सहयोग करते हैं। झारखंड के लोगों को यह भी ध्यान देने की जरूरत है कि अगर उनके यहां दूसरे राज्य से कोई आता है, तो घर में घुसने से पहले वे उनकी जांच करवायें। उन्हें क्वारेंटाइन रखें।
तंत्र हुआ रेस, लोगों के दरवाजे पर पहुंच रहा प्रशासन
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