जनता कर्फ्यू में लोगों ने दिया संयम और संकल्प का परिचय

वैश्विक महामारी कोरोना से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर रविवार को पूरे देश में 14 घंटे का ‘जनता कर्फ्यू’ लगाया गया। कोरोना वायरस के चेन को तोड़ने के लिए 130 करोड़ भारतीयों ने संयम और संकल्प का परिचय दिया और पूरे दिन घरों में रहे। शाम पांच बजे लोगों ने अपने घरों से ताली-थाली और घंटी-शंख बजा कर उन लोगों का शुक्रिया अदा किया, जो इतनी खतरनाक परिस्थिति में भी आम लोगों की सेवा में लगे हुए हैं। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह ऐतिहासिक आयोजन था, जो जनता के लिए जनता का और जनता के द्वारा किया गया। सरकार या प्रशासन की इसमें कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन इस पूरे आयोजन की कुछ बातें बेहद खटकनेवाली थीं। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जनता कर्फ्यू के दिन ही सरकारी स्कूलों में मिड डे मील बांटा, जबकि तमिलनाडु सरकार ने एक धार्मिक आयोजन किया, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया। दूसरे मुद्दों पर राजनीति को कुछ देर के लिए बर्दाश्त भी किया जा सकता है, लेकिन किसी आपात और खतरनाक स्थिति में राजनीति न तो लोगों के हित में होती है और न की जानी चाहिए। ममता बनर्जी ने तो यहां तक कहा कि जनता कर्फ्यू से कोरोना को फैलने से रोका नहीं जा सकता। उधर तमिलनाडु सरकार के एक मंत्री ने कहा कि इस धार्मिक आयोजन में शामिल होनेवाले लोग कभी बीमार नहीं पड़ते। इन कुतर्कों से केवल आम लोगों को खतरे में डाला जा सकता है। ‘जनता कर्फ्यू’ की सफलता और इस पर हुई राजनीति का विश्लेषण करती आजाद सिपाह की खास पेशकश।

गुरुवार 19 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैश्विक महामारी कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए देश भर में ‘जनता कर्फ्यू’ लगाने की अपील की थी, तब बहुत से विघ्नसंतोषी लोगों ने इसकी खिल्ली उड़ायी थी। लेकिन दुनिया भर से आ रही खबरों में जो भयावहता बतायी जा रही है और यहां तक कि देश के कुछ राज्यों के बारे में जो सूचनाएं आ रही हैं, उनसे यह साफ हो गया कि ‘जनता कर्फ्यू’ तो कुछ भी नहीं है। इस खतरनाक महामारी से बचने का एक ही तरीका है और वह है संकल्प और संयम। देश के 130 करोड़ लोगों ने रविवार को 14 घंटे तक घर में बंद रह कर अपने संकल्प और संयम का परिचय दे दिया। लोगों का यह संयम ऐतहिासिक और दुनिया के लिए एक सबक है। यह भारत के लोगों के दृढ़ संकल्प का परिचायक भी है। भारत के लोग भले ही पश्चिम की नजर में पिछड़े हों, लेकिन कोरोना के खिलाफ जंग में उन्होंने जो आहुति दी है, वह उन्हें मानवता के सर्वोच्च शिखर पर विराजमान करती है।

‘जनता कर्फ्यू’ की सफलता रूस के राष्ट्रपित ब्लादिमीर पुतिन के उस बयान की याद दिलाता है, जिसमें उन्होंने कहा है कि लोग या तो 15 दिन तक अपने घरों में रहें या फिर पांच साल तक जेल में। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में हालांकि इस तरह के कदम सफल नहीं हो सकते, लेकिन स्थिति जिस तरह भयावह रूप ले रही है, सरकार को कड़े कदम उठाने पड़ें, तो कोई आश्चर्य नहीं। ऐसे में भारत के लोगों ने बता दिया है कि वे मानवता की रक्षा और अपनी सुरक्षा के लिए बड़े से बड़ा बलिदान देने को तैयार हैं। लेकिन जन सुरक्षा के इस बड़े कदम का राजनीतिक विरोध कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन सरकारी स्कूलों में मिड डे मील बांटने का आदेश दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि सरकारी स्कूलों में बड़ी संख्या में बच्चों के अभिभावक जमा हुए और अपने बच्चों के लिए भोजन लिया। यदि यह मान भी लिया जाये कि बच्चों को भोजन मिलना जरूरी है, तब भी उनके अभिभावकों को स्कूल में बुलाया जाना उचित नहीं कहा जा सकता। सरकार यदि बच्चों के भोजन के प्रति इतनी ही गंभीर थी, तो वह उनके घरों तक मिड डे मील पहुंचा सकती थी। इसका तंत्र सरकार के पास है। लेकिन ममता बनर्जी को हर चीज में राजनीति ही नजर आती है। उन्हें ‘जनता कर्फ्यू’ के आह्वान के पीछे भी साजिश की बू आ रही थी। ममता बनर्जी को अपना यह रवैया बदलना ही होगा, नहीं तो जनता उन्हें बदल कर रख देगी।

उधर तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक सरकार ने ऐन ‘जनता कर्फ्यू’ के दिन एक धार्मिक आयोजन किया, जिसमें पूरे राज्य से हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। इस आयोजन के बारे में तमिलनाडु सरकार के एक मंत्री ने कहा कि इसमें शामिल होनेवाले लोग कभी बीमार नहीं पड़ते। इसलिए इसे कराया गया। आज सूचना क्रांति और वैज्ञानिक युग में इस तरह के तर्क कौन दे सकता है, यह अच्छी तरह समझा जा सकता है। देश के कुछ और हिस्सों में इस तरह के आयोजन की तैयारी चल रही है, जबकि डॉक्टर लगातार सलाह दे रहे हैं कि भीड़ न लगने दें, क्योंकि कोरोना का संक्रमण भीड़ में तेजी से फैलता है। धर्म भारत के लोगों के जीवन से जुड़ा है, लेकिन यदि मानव सभ्यता ही नष्ट हो जायेगी, तो धर्म कहां बचेगा, यह सोचनेवाली बात है। इसलिए सरकार और प्रशासन को इस तरह के आयोजनों से फिलहाल तो बचना ही चाहिए। जरूरत पड़े, तो इसके लिए सख्त कदम भी उठाने से पीछे नहीं हटना चाहिए।

‘जनता कर्फ्यू’ से एक बात साफ हो गयी है कि भारत के लोग इस महामारी की भयावहता से पूरी तरह अवगत हैं और उन्हें इस बात का एहसास भी है कि यदि आज इसे रोकने के प्रयास नहीं किये गये, तो यह पूरी मानव जाति को लील लेगा। फिर भी कुछ पढ़े-लिखे और जागरूक समझे जानेवाले लोग इसे लेकर गैर-जिम्मेदारी का परिचय दे रहे हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकना होगा। इसके लिए समाज को आगे आना होगा, वरना न कोई जनता बचेगी और न ही कोई चेतावनी देनेवाला। चीन की हालत दुनिया देख चुकी है और इटली-इरान की स्थिति हम देख रहे हैं। इसलिए जितनी जल्दी हो, हम सचेत हो जायें। इसमें ही सबकी भलाई है।

Share.

Comments are closed.

Exit mobile version