बीते 3 मार्च को झारखंड विधानसभा में बजट पेश किये जाने के बाद पत्रकारों से मुखातिब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पूर्ववर्ती रघुवर दास के कार्यकाल में सैकड़ों करोड़ की लागत वाले आलीशान भवनों के निर्माण पर सवाल खड़े किये। उन्होंने कहा कि जब झारखंड की आम जनता को बदहाली से उबारने के लिए सरकार की ओर से ठोस कदम उठाये जाने चाहिए थे, तब विधानसभा और हाईकोर्ट के लिए इतनी विशाल और आलीशान बिल्डिंगों पर सैकड़ों करोड़ खर्च किये जाने का कोई औचित्य नहीं थी। इसके बाद इसी मसले पर सरयू राय ने ट्वीट कर निवर्तमान रघुवर सरकार को निशाने पर लिया। जाहिर है, यह मामला यहीं थमनेवाला नहीं है। इन दोनों भवनों पर जितनी बड़ी रकम खर्च की गयी है, उसकी समीक्षा के बाद मौजूदा सरकार बड़े कदम उठा सकती है। इस पूरे मसले का जायजा लेती दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड विधानसभा में वर्ष 2020-21 का बजट पेश करने के एक रोज पहले सरकार ने राज्य की आर्थिक स्थिति पर श्वेत पत्र पेश किया। राज्य में किसी सरकार ने पहली बार ऐसा किया। श्वेत पत्र के जरिए सरकार ने जनता को राज्य के खजाने की स्थिति से तो अवगत कराया ही, यह भी बताया कि बीते पांच वर्षों के शासनकाल में पूर्ववर्ती सरकार की किन नीतियों और निर्णयों की वजह से राजस्व को नुकसान हुआ। श्वेत पत्र पेश किये जाने के अगले दिन यानी तीन मार्च को वित्त मंत्री डॉ रामेश्वर उरांव ने 2020-21 के लिए 86 हजार 370 करोड़ का बजट पेश किया। बजट के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि हमने शासन के रथ को झोंपड़ियों की ओर मोड़ दिया है। अभी तक राज्य में जो कुछ भी हुआ है, वह लोक-लाज से हटकर हुआ है। जिस राज्य में बेरोजगारों की फौज हो, वहां सवा चार सौ करोड़ की विधानसभा, छह सौ करोड़ का हाइकोर्ट भवन और 17 सौ करोड़ का सचिवालय बने, ये बातें सहीं नहीं लगतीं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस बयान के अगले दिन चार मार्च को निर्दलीय विधायक सरयू राय ने ट्वीट किया कि बजट के बाद प्रेस कांफ्रेंस में राजधानी में दो बड़े भवनों के निर्माण की नीति-नीयत का संज्ञान लेने के लिए हेमंत सोरेन को धन्यवाद।
एक में विधि- विधान बनेंगे और दूसरे में न्याय-निर्णय होंगे। इनसे जुड़ी फिजूलखर्ची और भ्रष्टाचार खासकर नन शिड्यूल आइटम दर में भी संज्ञान और कार्रवाई आवश्यक है।
इशारों-इशारों में हेमंत और सरयू ने कहीं बातें
पूर्ववर्ती सरकार में भवन निर्माण के नाम पर खर्च हुई रकम की उपयोगिता पर सवाल पहले भी उठता रहा है, लेकिन अब खुद मुख्यमंत्री और रघुवर सरकार में मंत्री रहे सरयू राय के वक्तव्य से यह जाहिर है कि इस मामले से जुड़े सवाल आनेवाले दिनों में भी उठेंगे। इन दोनों भवनों के निर्माण की लागत मिला दें, तो यह रकम एक हजार करोड़ होती है। रघुवर सरकार के कार्यकाल में नये विधानसभा भवन का जो शुरुआती प्राक्कलन तैयार हुआ था, उसमें 290 करोड़ की राशि तय की गयी थी। पर धीरे-धीरे यह रकम बढ़ती गयी और आखिरकार जब यह भवन बनकर तैयार हुआ तो इसकी कुल लागत 425 करोड़ रुपये पहुंच गयी। हाइकोर्ट के भवन में भी ऐसे ही लागत राशि बढ़ी। रघुवर सरकार के कार्यकाल में भी इन भवनों के निर्माण की लागत बढ़ने पर सवाल उठाये गये थे। झामुमो के प्रवक्ता तनुज खत्री का कहना है कि हेमंत सोरेन की सरकार की प्राथमिकता में ठेकेदार या अरबपति नहीं, आम जनता है। इसलिए बजट का फोकस गांव-गरीब और किसानों तथा बेरोजगारों के कल्याण पर है। इधर भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव का कहना है कि झारखंड में चाहे नया विधानसभा भवन हो या हाइकोर्ट बिल्डिंग, इनका निर्माण राज्य की आवश्यकताओं के अनुसार हुअ है। ये भवन किसी भी राज्य के लिए लैंडमार्क होते हैं। जब विधानसभा भवन का उद्घाटन हुआ था, तब हेमंत सोरेन नहीं गये थे। उन्होंने इसमें गड़बड़ियों की बात कही थी। आज वे उसी भवन में बैठकर शासन चला रहे हैं। अब राज्य की जनता की निगाहें उन पर हैं।
134 करोड़ बढ़ गयी विधानसभा की लागत
झारखंड के विधानसभा भवन के निर्माण के लिए चार कंपनियों ने टेंडर भरा था। इसमें आरके कंस्ट्रक्शन ने 290.71 करोड़ का, नागार्जुना ने 345.15 करोड़ और शापोर पालोनजी ने 353.51 करोड़ का टेंडर भरा था। एलएंडटी ने 365.41 करोड़ का टेंडर भरा था। विधानसभा भवन का टेंडर आरके कंस्ट्रक्शन को मिलने के बाद कंपनी के मालिक रंजन सिंह ने कहा था कि देश की बड़ी कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में झारखंड की कंपनी को काम मिलना गर्व की बात है। इस निर्माण में राज्य सरकार को 32 करोड़ रुपये की बचत होगी। इससे दूसरे जनोपयोगी काम हो सकेंगे। पर टेंडर मिलने से काम पूरा होने तक लागत बढ़ कर 425 करोड़ हो गयी और इस विधानसभा भवन में सरकार को 134 करोड़ की राशि अधिक खर्च करनी पड़ी।
इसी तरह हाइकोर्ट के नये भवन के निर्माण में भी शुरुआती प्राक्कलन से अधिक राशि खर्च की गयी। हाइकोर्ट निर्माण की लागत गलत तरीके से बढ़ाने के मामले की सीबीआइ जांच की मांग को लेकर जो याचिका अधिवक्ता राजीव कुमार ने दायर की है, उसके अनुसार शुरुआत में हाइकोर्ट की निविदा 265 करोड़ की थी, जो बढ़ कर 697 करोड़ से अधिक हो गयी। इस योजना के लिए इन्वायरमेंटल क्लीयरेंस नहीं लिया गया और हाइकोर्ट से भी जानकारी छिपायी गयी।
रामकृपाल कंस्ट्रक्शन पर लगे गंभीर आरोप
राज्य में भ्रष्टाचार के कई मुद्दों पर हाईकोर्ट में पीआइएल दाखिल करने वाली संस्था जनसभा के महासचिव पंकज यादव का कहना है कि चाहे वह झारखंड विधानसभा हो या हाइकोर्ट भवन, इन दोनों के अलावा कई अन्य भवनों के निर्माण में टेंडर स्कैम हुआ है। ऐसे स्कैम को लेकर रामकृपाल कंस्ट्रक्शन सवालों के घेरे में है। पंकज ने बताया कि हाइकोर्ट भवन के निर्माण में बढ़ी लागत की सीबीआइ जांच के लिए अधिवक्ता राजीव कुमार ने पीआइएल किया है। वहीं विधानसभा भवन की बढ़ी लागत की जांच के लिए भी पीआइएल किया गया है। इन दोनों भवनों के निर्माण में घोटाले की जांच की मांग की गयी है। दोनों मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं। हालांकि एक वरीय आइएएस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विधानसभा भवन की प्रशासनिक स्वीकृति 425 करोड़ की राशि से मिली थी और उसमें भवन का निर्माण पूरा हो गया। इसका टेंडर 290 करोड़ में हुआ था, पर टेंडर तो कई पार्ट में निकाला जा सकता है। वहीं हाइकोर्ट की बिल्डिंग में जो राशि बढ़ी, उसका प्रस्ताव कैबिनेट को स्वीकृति के लिए भेजा गया है। यह स्वाभाविक है।
पूर्ववर्ती सरकार के विकास मॉडल को खारिज किया
हेमंत सोरेन के हालिया बयानों पर गौर करें तो उन्होंने पूर्ववर्ती सरकार के विकास मॉडल को कठघरे में खड़ा किया है। पूर्ववर्ती सरकार ने जो मॉडल अपनाया, उसमें बड़ी-बड़ी बिल्डिंगों के निर्माण को विकास का पैमाना माना गया। इसके विपरीत हेमंत सरकार के बजट में सोशल सेक्टर पर अधिक ध्यान दिया गया है। सरकार ने अपने बजट में सिविल कंस्ट्रक्शन के लिए गुंजाइश कम रखी है।
दरअसर सिविल कंस्ट्रक्शन में भ्रष्टाचार की बड़ी गुंजाइश होती है। इसमें प्राक्कलन बढ़ाने का खेल होता है और इस बहाने कमीशनखोरी होती है। हेमंत सरकार ने नये सचिवालय भवन का प्लान खारिज कर दिया। सरकार सोशल सेक्टर पर खर्च करने को अधिक ख्वाहिशमंद है। हेमंत सरकार पूर्ववर्ती रघुवर सरकार से अलग है, यह तो साफ है, पर यदि इस सरकार ने भवन निर्माण में हुए घपलों की जांच हुई, तो कई ठेकेदारों और अधिकारियों की गर्दन फंसेगी, यह तय है।

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