विधानसभा चुनावों में ऐतिहासिक जीत हासिल कर दो महीने पहले झारखंड की सत्ता में आये झामुमो-कांग्रेस और राजद गठबंधन की पहली परीक्षा की घड़ी आ गयी है। यह परीक्षा अगले 26 मार्च को उस समय होगी, जब राज्य से राज्यसभा की दो सीटों के लिए चुनाव होगा। झारखंड विधानसभा की वर्तमान दलगत स्थिति के मद्देनजर यह परीक्षा बेहद कठिन और राजनीतिक सूझबूझ की होगी। साथ ही इस चुनाव में इस बात का टेस्ट भी हो जायेगा कि सत्ताधारी महागठबंधन कितना मजबूत है और इसके घटक दलों के बीच आपसी विश्वास और समन्वय कितना है। राजनीतिक हलकों में यह सवाल उठ रहा है कि राज्यसभा चुनाव में दोनों सीटें जीतने का दावा कर रहे महागठबंधन का पहला उम्मीदवार कौन होगा और किस उम्मीदवार पर रिस्क उठाया जायेगा। दूसरी सीट जीतने के लिए महागठबंधन को कम से कम छह वोट की जरूरत होगी। यह सवाल जहां महागठबंधन के भविष्य से जुड़ा है, वहीं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के राजनीतिक कौशल से भी संबंधित है। राज्यसभा चुनाव में महागठबंधन की रणनीति का विश्लेषण करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
राजनीति में, खास कर भारतीय राजनीति में कहा जाता है कि यहां न कोई स्थायी दोस्त होता है और न स्थायी दुश्मन। झारखंड के संदर्भ में तो यह बात शत-प्रतिशत लागू होती है और राज्य के दो दशक के इतिहास में यह कई बार सही प्रमाणित भी हो चुकी है। इसी महीने की 26 तारीख को होनेवाले राज्यसभा चुनाव में भी इस कथन की प्रामाणिकता एक बार फिर कसौटी पर है। साथ ही कसौटी पर राज्य में सत्ताधारी महागठबंधन की एकजुटता भी है। झारखंड से राज्यसभा के दो सदस्यों परिमल नथवाणी और प्रेमचंद्र गुप्ता का कार्यकाल नौ अप्रैल को समाप्त हो रहा है और इन दोनों सीटों पर चुनाव कराया जा रहा है।
राज्यसभा की इन दोनों सीटों पर महागठबंधन की निगाह है और उसकी ओर से दोनों सीटें जीतने की हरसंभव कोशिश शुरू की गयी है। लेकिन पेंच इस सवाल को लेकर फंस रहा है कि इनमें से पहला उम्मीदवार कौन होगा और किस दूसरे उम्मीदवार को दांव पर लगाया जायेगा।
इस सवाल को लेकर झामुमो और कांग्रेस में अब तक कोई औपचारिक ऐलान नहीं किया गया है, लेकिन पहले झामुमो के केंद्रीय महासचिव सह प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य का बयान और फिर कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के रांची आकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से गुफ्तगू करने के बाद इस बात के कयास लगाये जाने लगे हैं कि अभी इस मुद्दे पर दोनों दलों के बीच सहमति नहीं बनी है। सुप्रियो ने तीन दिन पहले मीडिया से कहा था कि पार्टी में आम तौर पर सहमति है कि शिबू सोरेन को राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया जाये। इधर आरपीएन सिंह ने बुधवार को कहा कि विधानसभा चुनाव से पहले के गठबंधन और अभी के गठबंधन में बहुत अंतर आ गया है।
पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले जब महागठबंधन आकार ले रहा था, उस समय इसके नेताओं ने साफ कहा था कि गोड्डा लोकसभा सीट झाविमो को दिये जाने के बदले में किसी अल्पसंख्यक को राज्यसभा में भेजा जायेगा। इसके बाद विधानसभा चुनाव से पहले भी जब गठबंधन के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे पर बात हो रही थी, उस समय भी कहा गया था कि राज्यसभा के लिए कांग्रेस की ओर से किसी अल्पसंख्यक को टिकट दिया जायेगा। विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद कांग्रेस के कई विधायकों ने आलाकमान से कहा है कि वह वादे के अनुरूप किसी अल्पसंख्यक को प्रत्याशी बनाये। हालांकि अब आरपीएन सिंह ने इस बात से ही इनकार कर दिया है कि कांग्रेस ने किसी से कोई वादा किया था। यह तो कांग्रेस का अंदरूनी मामला है, लेकिन झामुमो चाहता है कि उसके उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित हो जाये और दूसरी सीट जीतने का जिम्मा कांग्रेस पर छोड़ दिया जाये। दरअसल, झामुमो इस बार कोई खतरा उठाने के मूड में नहीं है। पिछली बार बसंत सोरेन की हार से उसने यही सबक सीखा है कि राजनीति में कुछ भी संभव है।
यह है वर्तमान समीकरण
झारखंड विधानसभा में झामुमो के 29 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 16 और राजद के पास एक विधायक हैं। इनके अलावा झाविमो के प्रदीप यादव और बंधु तिर्की भी कांग्रेस के पक्ष में हैं। इस तरह सत्ताधारी गठबंधन के पास 48 विधायक हैं। राज्यसभा की एक सीट जीतने के लिए 27 वोट की जरूरत होगी। महागठबंधन का एक उम्मीदवार तो बड़ी आसानी से जीत जायेगा, लेकिन दूसरे उम्मीदवार को जीतने के लिए कम से कम छह अतिरिक्त वोटों का जुगाड़ करना होगा। इसके लिए उसे राकांपा के कमलेश सिंह, माले के विनोद सिंह और निर्दलीय सरयू राय और अमित यादव तथा आजसू के दो विधायकों को अपने पक्ष में करना होगा। इनमें से निर्दलीय अमित यादव और आजसू के दो वोट महागठबंधन प्रत्याशी को मिल सकेंगे, इसमें संदेह है। उस स्थिति में महागठबंधन के दूसरे उम्मीदवार को अधिक जोखिम उठाना पड़ेगा।
एक तो शिबू सोरेन, दूसरा कौन!
राज्यसभा चुनाव में सत्ताधारी महागठबंधन की तरफ से झामुमो ने शिबू सोरेन के नाम की घोषणा कर दी है, लेकिन महागठबंधन का दूसरा उम्मीदवार कौन होगा, इस पर अभी सस्पेंस है। लेकिन यह भी सच है कि महागठबंधन दोनों सीटों को जीतने की रणनीति बना रहा है। अभी से वह जोड़-घटाव कर रहा है। निर्दलीय अमित यादव, केशव महतो कमलेश और सरयू राय के वोट पर महागठबंधन नजरें गड़ाये हुए है। वह माले के विनोद सिंह से भी आस लगाये हुए है, लेकिन आजसू से उसे किसी तरह का सकारात्मक जवाब नहीं मिला है। हालांकि कांग्रेस के कुछ नेता आजसू से संपर्क में हैं, लेकिन यह भी सच है कि आजसू की तरफ विपक्ष यानी भाजपा उम्मीद लगाये बैठा है। विपक्ष की रणनीति किसी तरह एक सीट जीतने की है। अब देखना यह है कि यह कैसे पूरा होता है। वहीं सत्ता पक्ष के लिए भी यह चुनाव लिटमस टेस्ट होगा।