हेमंत सोरेन सरकार का पहला बजट कई मायनों में बेहतरीन और संतुलित है। इस बजट ने झारखंड के विकास का रोडमैप तो जनता के सामने पेश किया ही है, इसमें कइयों के लिए नसीहतें भी हैं। बजट में आंकड़ों की बाजीगरी नहीं है, बल्कि यह धरातल की हकीकत से लोगों को रूबरू कराता है। बजट पर गहराई से निगाह डालने पर साफ होता है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की सरकार ने आमदनी और खर्च का संतुलन कायम करने के लिए गहरी सूझबूझ दिखायी है। यह बताया है कि जनोपयोगी योजनाओं के लिए फंड की कमी नहीं होने दी जायेगी, लेकिन फिजूलखर्ची का बोझ भी खजाने पर नहीं दिया जा सकता। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने साबित किया है कि उन्हें झारखंड की जरूरतों की समझ दूसरों की अपेक्षा अधिक है और वह यह भी जानते हैं कि इन जरूरतों को कैसे पूरा किया जा सकता है। हेमंत सोरेन सरकार के बजट पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास समीक्षा रिपोर्ट।

मंगलवार तीन मार्च को झारखंड विधानसभा में पेश किये गये बजट पर बुधवार को सुबह जब आम लोग नुक्कड़ों पर चर्चा कर रहे थे, तब उनकी चर्चा के केंद्र में एक सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने और आठ लाख तक की आय वालों का स्वास्थ्य बीमा कराये जाने की घोषणा थी। पारा शिक्षकों के नियमित मानदेय के लिए अलग से कोष की व्यवस्था और सरकारी स्कूलों में पढ़नेवाले सभी बच्चों के लिए स्कॉलरशिप की घोषणा की भी बात हो रही थी। लोग इस बात से बेहद संतुष्ट दिखे कि सरकार ने उनके बिजली बिल में पांच-छह सौ रुपये की कमी कर दी है, यानी जिस घर को अभी हर महीने बिजली बिल के रूप में 18 सौ रुपये देने पड़ते थे, अब 12 सौ रुपये ही देने पड़ेंगे।
हेमंत सोरेन सरकार द्वारा की गयी इन घोषणाओं की आलोचना चाहे कितनी भी की जाये, एक बात शीशे की तरह साफ हो गयी है कि इस बजट ने न केवल राजनीतिक दलों को, बल्कि आर्थिक मामलों के विशेषज्ञों के सामने भी एक नजीर पेश की है। महज दो महीने पहले सत्ता संभालनेवाली सरकार ने बजट पेश करने से एक दिन पहले राज्य की अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र जारी कर साफ कर दिया था कि उसे विरासत में खाली खजाना मिला है।
इस श्वेत पत्र के माध्यम से यह भी बता दिया गया था कि शासन की आगे की राह बेहद चुनौतीपूर्ण है और झारखंड के सवा तीन करोड़ लोगों को इस सफर का हमराही बनना होगा। इसलिए जब बजट में उद्योग, ऊर्जा और जल संसाधन जैसे विभागों के बजट में कटौती की गयी, तब किसी को बुरा नहीं लगा। इतना ही नहीं, पथ निर्माण, नगर विकास और ग्रामीण कार्य जैसे विभागों के बजट आवंटन में हेमंत सोरेन ने कटौती करने का साहस दिखा कर साबित किया है कि वह अपने स्टैंड के अनुसार फिजूलखर्ची में कटौती करने से पीछे नहीं हटेंगे। दूसरी तरफ उन्होंने ग्रामीण विकास और शिक्षा के साथ उन विभागों के बजट आवंटन को बढ़ा दिया, जिनसे आम लोग सीधे जुड़े हैं। वह चाहे परिवहन हो या उच्च शिक्षा, पेयजल स्वच्छता हो या खाद्य आपूर्ति, हेमंत सोरेन ने इनका बजट आवंटन बढ़ा कर आम लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ाया है।
बजट प्रस्तावों में पथ निर्माण, पशुपालन, जल संसाधन, कल्याण और उद्योग के साथ कृषि विभाग के बजट में भी कटौती की गयी है। लेकिन खास बात यह है कि बजट आवंटन में कटौती किये जाने के बावजूद जनोपयोगी योजनाओं और कार्यों के लिए पर्याप्त धन दिया गया है। हेमंत सोरेन सरकार ने सबसे अधिक कटौती पथ निर्माण और जल संसाधन विभाग में की है। पिछली बार जहां पथ निर्माण को चार हजार सात सौ करोड़ दिये गये थे, इस बार उसके लिए तीन हजार तीन सौ 84 करोड़ ही दिये गये हैं। जल संसाधन विभाग को पिछली बार 1940 करोड़ रुपये दिये गये थे, इस बार महज 902 करोड़ दिये गये हैं। इसी तरह ग्रामीण कार्य विभाग के आवंटन को तीन हजार नौ सौ 25 करोड़ से घटा कर दो हजार चार सौ 35 करोड़ किया गया है। हेमंत सोरेन ने जिन विभागों के आवंटन में कटौती की है, उनमें ‘बड़ा खेल’ होने की शिकायत भी मिलती थी। इसलिए बजट के जरिये हेमंत सोरेन ने यह संकेत भी दिया है कि उनके शासन में किसी ‘बड़े खेल’ के लिए अब कोई जगह नहीं है। टेंडर मैनेज करने और ठेका हासिल करने के साथ डीपीआर बनाने का खेल अब नहीं चलनेवाला है। जाहिर है कि बजट में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और उनकी सरकार का दृढ़ संकल्प भी झलकता है और आत्मविश्वास भी। ऐसा भी नहीं है कि इन विभागों में जारी योजनाओं को बंद कर दिया गया है। लोक कल्याण के कार्यों के लिए इन्हें पर्याप्त पैसा मिला है, लेकिन उन्हें फिजूलखर्ची करने की कतई इजाजत नहीं दी गयी है।
कयास लगाये जा रहे थे कि पूर्ववर्ती सरकार द्वारा महिलाओं के नाम पर 50 लाख तक की संपत्ति की एक रुपये के शुल्क पर रजिस्ट्री की योजना बंद की जा सकती है, लेकिन हेमंत सरकार ने हड़बड़ी में पूर्ववर्ती सरकार की योजना को बंद करने के बजाय इसकी पूरी तरह समीक्षा का निर्णय लिया है। फिलहाल यह योजना जारी रहेगी।
इस तरह मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस बजट को कई खूबियों से भर दिया है, जो किसी भी सरकार के लिए एक सबक हो सकता है।
नयी अर्थव्यवस्था के दौर में आज जब पूरे देश में घटती आर्थिक विकास दर पर चिंता व्यक्त की जा रही है, हेमंत सोरेन ने आठ प्रतिशत की दर हासिल करने का चुनौतीपूर्ण लक्ष्य तय किया है। इस बात में कोई संदेह नहीं होना चाहिए कि उनकी प्रतिबद्धता और कड़े फैसले लेने की उनकी हिम्मत से यह लक्ष्य हासिल करना मुश्किल नहीं होगा। और यदि सचमुच ऐसा हो गया, तो झारखंड का नाम उस इतिहास में दर्ज हो जायेगा, जिसके लिए दूसरे प्रदेश तरसते हैं। इसका श्रेय तो निश्चित रूप से हेमंत सोरेन और उनकी सरकार को ही मिलेगा। इसके लिए जरूरी है कि हर झारखंडी इस सरकार के बड़े लक्ष्यों को अपना लक्ष्य समझे और फिर इस चुनौतीपूर्ण रास्ते में मिल कर आगे बढ़े।

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