अजय शर्मा
रांची। राज्य के नये पुलिस प्रमुख एमवी राव अपने काम में जुट गये हैं। बुधवार को वे कार्यालय में रहे और मुख्यालय के अधिकारियों के कामकाज की जानकारी ली। इस दौरान उन्हें वह दिन भी याद आता रहा, जब कुछ आइपीएस अधिकारियों के कारण वे पूर्व की सरकार के निशाने पर रहे। उन्हें कभी मुख्य धारा की पोस्टिंग नहीं मिली। उन्हें लगातार शंटिंग में रखा गया। उन्होंने अपनी भावना से उस समय भी सरकार को अवगत कराया था। उस समय राव जब रांची आये थे, तब खुखरी गेस्ट हाउस में रुके थे। उस समय झारखंड पुलिस मुख्यालय से उन्हें कोई वाहन नहीं दिया गया था। बाद में उन्होंने सीआरपीएफ के अधिकारियों से अनुरोध कर एक वाहन मंगाया। उन्हें नीचा दिखाने में तत्कालीन डीजीपी डीके पांडेय, मुख्यालय के डीजी पीआरके नायडू और एडीजी स्तर के एक अधिकारी ने अहम भूमिका निभायी। उनके साथ हद तो तब हो गयी, जब कम समय में ही उन्हें सीआइडी के एडीजी के पद से हटा दिया गया। उनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने बकोरिया मामले की सच्चाई उजागर की थी। मुख्यालय के कई अधिकारी तिलमिला गये थे।

तत्कालीन डीजीपी ने मीटिंग में उन्हें सबक सिखाने की धमकी तक दी थी। हुआ यह था कि डीके पांडेय ने ही उन्हें भला-बुरा कहा था। इस पर राव ने अपनी भावना से सरकार को अवगत करा दिया था। इससे पांडेय नाराज हो गये थे और उनसे स्पष्टीकरण तक पूछने की कोशिश की। सीआरपीएफ के आइजी के रूप में उन्होंने 514 निर्दोष आदिवासी युवकों को नक्सली बताकर फर्जी सरेंडर कराने के मामले का खुलासा किया था। उन्होंने यह भी लिखा था कि सीआरपीएफ की कोबरा बटालियन को उन युवकों की सुरक्षा में लगाया गया है। अब उम्मीद की जा रही है कि इस मामले में दोषी अधिकारियों पर कार्रवाई तय है।

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