तमाम आलोचनाओं और दुष्प्रचार को करारा जवाब देकर लगातार दूसरी बार देश के सबसे बड़े राज्य उत्तरप्रदेश की सत्ता संभालने के लिए तैयार योगी आदित्यनाथ के राजनीतिक कैरियर के बारे में तो बहुत कुछ कहा-सुना और लिखा-दिखाया जा चुका है। लेकिन आज तक उनके व्यक्तित्व की गहराइयों में झांक कर किसी ने देखने की कोशिश नहीं की है कि अपने घर-परिवार और सांसारिक सुखों को त्यागने के बाद एक व्यक्ति लोगों के दिलो-दिमाग पर छा जाता है और प्रशासनिक कुशलता का शानदार प्रदर्शन कर दुनिया भर में नाम कमाता है। भारतीय धर्मशास्त्रों में भगवान श्री राम को जहां मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, वहीं महायोगी का विशेषण भगवान श्रीकृष्ण को मिलता है। लेकिन यह जानना बेहद दिलचस्प है कि योगी आदित्यनाथ इन दोनों को अपने भीतर इस कदर स्थापित कर चुके हैं कि उनका कद कई गुना बढ़ जाता है। योगी आदित्यनाथ के व्यक्तित्व के इसी पहलू को उजागर करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह की खास रिपोर्ट।
सनातन का अर्थ है शाश्वत हो और सदा के लिए सत्य हो। जिन बातों का शाश्वत महत्व हो, वही सनातन कहा गया है। जैसे सत्य सनातन है, ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म भी सत्य है। वह सत्य, जो अनादि काल से चला आ रहा है, जिसका कभी भी अंत नहीं होगा, वही सनातन या शाश्वत है। जिसका न प्रारंभ है, जिसका न अंत है, उस सत्य को ही सनातन कहते हैं।
ऐसे ही सनातनी हैं योगी आदित्यनाथ, जिनके पास शास्त्र के साथ-साथ शस्त्र का भी प्रशिक्षण है। एक संन्यासी, जिसके एक हाथ में माला, तो दूसरे में भाला है। जिनकी वाणी में वह तेज है, जो लोगों को अपने कर्म और धर्म के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करती है। एक ऐसा योगी, जो किसी के साथ अन्याय न हो, उसकी बात करता है, लेकिन अगर किसी के साथ अन्याय हो रहा है, तो सहता भी नहीं। यह प्रवृत्ति सनातन धर्म की प्रतिबिंब की ही हो सकती है, जिसमें भक्ति भी है, शक्ति भी है, करुणा भी है, क्रोध भी है, संयम भी है, जोश भी है, वात्सल्य भी है, तो दुराचारियों को ठिकाने लगाने की कला भी। यह भारत की वास्तविक परंपरा है। इस देश का योगी ही इस देश का राजयोगी भी बना है। इसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं योगी आदित्यनाथ।
चार हजार वर्ष पुराना उत्तरप्रदेश वह इंद्रधनुषी भूमि है, जहा पुरातन काल से भारतीय संस्कृति खिली और दुनिया भर में उसने अपनी रंगत बिखेरी। जिसके इतिहास में धर्म का उदय और उत्सव भी है, तो इसे रक्तरंजित करने वाली कई कहानियां भी। उत्तरप्रदेश, जिसने भगवान राम और भगवान कृष्ण के जन्म उत्सव को मनाया। वहीं दूसरी ओर राम मंदिर और श्रीकृष्ण जन्मस्थली को आतताइयों द्वारा ध्वस्त होता देख आंसू भी बहाये। उत्तरप्रदेश, जिसने पिछले एक हजार साल में चार बार काशी विश्वनाथ मंदिर का नामो-निशान मिटाने की कोशिशों को देखा, तो यहां के सनातन के प्रहरियों के प्रयासों द्वारा इसे बार-बार बनते ओर संवरते भी देखा। इसी क्रम में भारत के इतिहास की संजोने ओर इसे फिर से वही चमक दिलाने का प्रयास नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ द्वारा भी किया जा रहा है। आज अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो रहा है। वहीं दूसरी ओर काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का भी लोकार्पण प्रधानमंत्री मोदी ने कर दिया है, जिसकी भव्यता देखते ही बनती है। काशी भारत की आत्मा का एक जीवंत अवतार भी है। अगर काशी की धरोहर को नष्ट करने औरंगजेब आता है, तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं। योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि हजारों वर्षों की तपस्या अब पूरी हो रही है। एक तरफ भगवान राम का भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है, तो दूसरी तरफ काशी विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण। वह कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारत की संस्कृति को वैश्विक तौर पर प्रदर्शित करने का प्रयास भारत के इतिहास और संस्कृति को सुरक्षित रखेगा। धर्म को सुरक्षित रखना खुद के अस्तित्व को सुरक्षित रखना और आने वाली पीढ़ियों के वजूद को सुरक्षित रखने के समान है। अगर योगी आदित्यनाथ फैजाबाद का नाम बदल कर अयोध्या करते हैं और इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करते हैं, तो इसके पीछे उनका मानना है कि यही उसकी असली पहचान है। भगवान राम फैजाबाद में नहीं, अयोध्या में जन्मे थे। ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार इलाहाबाद पहले प्रयागराज के नाम से ही जाना जाता था। लेकिन 1526 में यह पौराणिक भूमि मुगलों के अधीन हो गयी और तब मुगल शासक अकबर ने प्रयागराज का नाम बदलकर अलाहाबाद कर दिया था। पौराणिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए वर्षों से इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की मांग उठती आ रही थी। मगर कभी भी इस पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया। जब मार्च 2017 में योगी आदित्यनाथ की सरकार उत्तर प्रदेश में आयी, तो उन्होंने इलाहाबाद का नाम फिर से प्रयागराज करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। आज अगर अयोध्या में दीपोत्सव मनाया जाता है और रिकॉर्ड दीप प्रज्ज्वलित होते हैं, तो उसके पीछे योगी आदित्यनाथ की मंशा यही है कि भारत की संस्कृति की चमक दुनिया देखे। आने वाली पीढ़ियां भारत के गौरवशाली इतिहास के बारे में जानें, गर्व करं, हिस्सा लें ओर उसे संजोकर रखे।
योगी आदित्यनाथ का जीवन परिचय
योगी आदित्यनाथ का जन्म 5 जून 1972 को पंचूर गांव, जिला पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड में एक राजपूत परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम आनंद सिंह बिष्ट और माता का नाम सावित्री देवी है। आनंद सिंह बिष्ट और सावित्री देवी के सात बच्चों में अजय सिंह (योगी आदित्यनाथ) पांचवें नंबर के हैं। तीन बड़ी बहनें और चार भाई हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा प्राथमिक विद्यालय ठांगर और इंटर तक की शिक्षा भरत मंदिर इंटर कॉलेज ऋषिकेश में हुई। इसके बाद गढ़वाल विश्वविद्यालय से बीएससी करने के लिए वह कोटद्वार आ गये। इस दौरान वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और राजकीय महाविद्यालय कोटद्वार के छात्रसंघ चुनाव में महासचिव का चुनाव भी लड़ा। इसके बाद वह एमएससी करने के लिए फिर ऋषिकेश चले गये। योगी शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रभावित थे। वह आरएसएस की कार्य पद्धति और राष्ट्र के प्रति उनके समर्पण के भाव को देख कर बहुत प्रभावित हुए। साल 1994 में 22 साल की उम्र में योगी ने संन्यास की दुनिया में कदम रखा।
योगी आदित्यनाथ के योगी बनने तक के सफर से यह समझा जा सकता है कि योगी आदित्यनाथ को देश की सेवा तो करनी ही थी, साथ-साथ राम मंदिर आंदोलन को और भी प्रभावशाली बनाना था। राम मंदिर निर्माण भी योगी के समक्ष वह आकर्षण का केंद्र था, जिसने योगी आदित्यनाथ को कर्मयोगी बना दिया। योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ जी महाराज ने 1998 में राजनीति से संन्यास लिया और योगी आदित्यनाथ को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। यहीं से योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक पारी शुरू हुई। 1998 में गोरखपुर से 12वीं लोकसभा का चुनाव जीत कर योगी आदित्यनाथ संसद पहुंचे, तो उस समय वह सबसे कम उम्र के सांसद थे। उनकी उम्र उस वक़्त महज 26 साल थी। वह वर्ष 2014 था, जब योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद पांचवीं बार जीत हासिल की थी। 1998 से लेकर मार्च 2017 तक योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से सांसद रहे। हर बार उनकी जीत का आंकड़ा बढ़ता ही गया। साल 2017 में उत्तरप्रदेश विधानसभा के चुनाव में भाजपा की जीत की आंधी में विपक्षी दल उड़ गये। भाजपा और सहयोगी दलों ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 324 सीटें हासिल की थीं। इनमें से भाजपा ने अकेले ही दम पर 312 सीटें झटक ली थीं। यूपी में भाजपा का यह अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। जब 2017 में उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए नामों की चर्चा हो रही थी, तब किसी को अनुमान ही नहीं था कि एक योगी, किसी पीठ का महंत देश के सबसे बड़े राज्य का मुख्यमंत्री बन सकता है। 19 मार्च 2017 को योगी आदित्यनाथ ने बतौर मुख्यमंत्री पद और गोपनीयता की शपथ ली थी। यह उत्तरप्रदेश की हवाओं में एक नये नाम की गूंज थी। एक नये राजनीतिक प्रयोग की कहानी गढ़ी जा रही थी। योगी के मुख्यमंत्री बनते ही अपराधियों के हाथ-पांव फूलने लगे। योगी के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते ही प्रशासनिक महकमे के अधिकारियों को समझ में आ गया कि अब काम करना होगा। जो फाइलें आफिस में धूल फांक रही थीं, उन पर से धूल के हटने की बारी आ गयी थी। अब आॅफिस में पान के छीटें नहीं, बल्कि भ्रष्ट अफसरों को साफ करने की बारी आ गयी थी। उत्तरप्रदेश को स्वच्छ भारत अभियान की पुरजोर जरूरत थी। योगी ने मोदी के इस अभियान को आगे बढ़ाते हुए उत्तरप्रदेश को स्वच्छ करने की दिशा में कदम आगे बढ़ाया। साथ- साथ उत्तरप्रदेश को अपराध मुक्त करने की दिशा में योगी ने एक्शन लेना शुरू किया। आज उत्तरप्रदेश में बच्चा- बच्चा बोलता है। आज उत्तरप्रदेश में अपराधी या तो जेल में हैं या फिर ऊपर हैं, या फिर राज्य छोड़ भाग चुके हैं। उत्तरप्रदेश की जनता का कहना है कि 2017 से पहले उत्तरप्रदेश में रात को चलने में डर लगता था, लेकिन अब उत्तरप्रदेश की रातें अंजोरिया गयी हैं। अब नहीं डर लगता। जब योगी ने 2017 में उत्तरप्रदेश की कमान संभाली, तब राज्य का खजाना खाली था। हर तरफ से भ्रष्टाचार की दुर्गंध आ रही थी। योगी ने राज्य की अर्थव्यस्था को पटरी पर लाने के लिए पहले खुद के घर से शुरूआत की। उन्होंने अपने मंत्रियों, राज्य के
जन प्रतिनिधियों और अधिकारियोंकी फिजूलखर्ची पर रोक लगायी। राज्य के विकास के लिए नयी- नयी योजनाएं शुरू की गयीं। लेकिन 2020 में भारत में कोरोना का आगमन हो गया। जिस प्रकार से प्रधानमंत्री ने उस वक्त कोरोना की पहली लहर से देश को बचाया, वह कई देशों के लिए मिसाल बना। उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने भी कोरोना की पहली लहर को जिस प्रकार खदेड़ा, वह सराहनीय था। लेकिन फिर कोरोना की दूसरी लहर का आगमन हुआ। उसने देशभर में क्या उत्पात मचाया था, ये किसी से छिपा नहीं है। उसी प्रकार उत्तरप्रदेश भी इससे अछूता नहीं रहा। 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तरप्रदेश की जनता की जिम्मेदारी योगी के कंधों पर थी। जब उत्तरप्रदेश के कई बड़े विपक्षी नेता घरों में दुबक कर बैठे थे, तब योगी जनता के बीच थे। अस्पतालों के चक्कर लगा रहे थे। मरीजों की स्वास्थ्य व्यवस्था में लगे योगी खुद कोरोना की चपेट में आ गये थे। लेकिन उसके बाद भी वह काम करते रहे। उन्होंने हार नहीं मानी। आखिरकार योगी-मोदी की जोड़ी ने उत्तरप्रदेश में कोरोना को धूल चटा दी।
आज 2022 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा की प्रचंड जीत से पूरे देश की राजनीति में हलचल पैदा हो गयी है। क्योंकि उत्तरप्रदेश ही वह कड़ी है, जो केंद्र के सत्ता शीर्ष पर पहुंचने का द्वार खोलती है। यूपी में भाजपा ने इतिहास रच दिया है। 37 साल में पहली बार दोबारा पूर्ण बहुमत। उत्तरप्रदेश की 403 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए कम से कम 202 सीटों की जरूरत थी। भारतीय जनता पार्टी ने अपने सहयोगियों के साथ 273 सीटों पर जीत दर्ज कर पूर्ण बहुमत हासिल की। राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर शहर विधानसभा सीट पर करीब एक लाख से अधिक मतों के अंतर से चुनाव जीते। अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी साइकिल की सवारी करती 125 सीटों का आंकड़ा ही छू पायी। यह कमाल जहां शीर्ष स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कुशल नेतृत्व से फलीभूत हो सका, वहीं योगी आदित्यनाथ ने साबित कर दिया कि एक योगी यदि सांसारिक और भौतिक सुखों को त्याग कर जन कल्याण के लिए उद्यत होता है, तो फिर उसे रोकने की ताकत किसी भी परिस्थिति में नहीं होती। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जिस प्रकार से प्रदेश में कानून व्यवस्था को मजबूत किया है। जिस प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास का मॉडल प्रदेश में लागू किया। हिंदुत्व को धारदार बनाया और लोगों को ये विश्वास दिलाया कि उत्तर प्रदेश के लिए योगी ही उपयोगी हैं। इसी का नतीजा है यह प्रचंड बहुमत। योगी ने अपने पांच साल के कार्यकाल में कई सियासी मिथक तोड़े। नोएडा जाने का मिथक तोड़ा, एक बार नहीं, कई बार नोएडा आये और सत्ता में वापसी कराने में सफल रहे। सीएम योगी बीजेपी के यूपी में पहले मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने पांच साल काम किया। यूपी चुनाव में अबकी बार भले ही बीजेपी की सीटों की संख्या कम हुई हों, लेकिन पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ा है। सीएम योगी ने कहा कि यह बहुमत भाजपा के राष्ट्रवाद, विकास और सुशासन के मॉडल को यूपी की 25 करोड़ जनता का आशीर्वाद है। उन्होंने यह भी कहा कि बीते 5 सालों में डबल इंजन की सरकार ने जिस तरह से यूपी में सुरक्षा देने का काम किया, उसे लोगों ने सराहा है। जिस प्रकार से सीएम योगी को घेरने के लिए यूपी चुनाव में हाथरस कांड से लेकर लखीमपुर तक के मुद्दे उठाये गये। ब्राह्मण और ओबीसी विरोधी नैरेटिव गढ़े गये। सपा और कांग्रेस ने इन सभी मुद्दों के जरिए सूबे में बीजेपी को डेंट पहुंचाने की रणनीति पर काम किया। लेकिन नतीजे कुछ और ही कहानी कहते हैं। विपक्ष के सभी के सभी मुद्दे धराशायी हो गया। यूपा में बीजेपी को बंपर वोट पड़े और प्रचंड जीत हासिल हुई। यूपी की जनता ने बुलडोजर बाबा पर ही यकीन किया।