विशेष
-अमित शाह, नीतीश और अब असदुद्दीन ओवैसी के दौरे से गरमाया माहौल
-राजनीति में बेहद संवेदनशील हो गया है नेपाल-बांग्लादेश से सटा इलाका

लोकतंत्र की जननी कहे जानेवाले बिहार का सीमांचल इलाका इन दिनों राजनीतिक गतिविधियों, या यों कहें कि यात्राओं की राजनीति से गरमाया हुआ है। बांग्लादेश और नेपाल से सटे पूर्णिया, अररिया, किशनगंज और कटिहार सीमांचल के इलाके में आते हैं और यहां का राजनीतिक माहौल आज से पहले इतना गरम कभी नहीं हुआ था। लेकिन जैसे-जैसे 2024 नजदीक आ रहा है, इस इलाके में राजनीतिक दलों, गठबंधनों और नेताओं की आवाजाही बढ़ती ही जा रही है। राजनीतिक दृष्टि से आम तौर पर शांत रहनेवाले इस इलाके के लोग इन बढ़ती गतिविधियों से भौंचक्के तो हैं, लेकिन इसके साथ वे अब अपनी राजनीतिक हैसियत को महसूस भी करने लगे हैं। इसलिए सीमांचल को बिहार के दूसरे हिस्सों से जोड़नेवाले दो राष्ट्रीय उच्च पथों, यानी नेशनल हाइवे के दोनों ओर के निवासी अब सभाओं, रैलियों और यात्राओं में अधिक संजीदगी से शामिल होने लगे हैं। लोगों की राजनीतिक जागरूकता में इस अप्रत्याशित वृद्धि की पृष्ठभूमि में यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि आखिर साल के सात-आठ महीने बाढ़ से घिरे रहने और तमाम तरह की बाधाओं को झेलने के लिए अभिशप्त रहनेवाले सीमांचल का इलाका राजनीतिक दलों के लिए अचानक इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है कि तीन महीने के अंतराल में बिहार में सत्तारूढ़ जदयू-राजद के नेता, फिर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और अब एआइएमआइएम सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी यहां राजनीतिक कार्यक्रम करने आ गये हैं। क्या है सीमांचल की राजनीति का फंडा और यह इलाका क्यों इतना संवेदनशील और महत्वपूर्ण हो गया है, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार का सीमांचल इलाका इन दिनों राजनीतिक गतिविधियों से गुलजार है। पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज और अररिया का इलाका, जो साल में सात-आठ महीने तक बाढ़ में डूबा रहता है और जहां के लोग अभाव झेलने के लिए अभिशप्त हैं, इन दिनों राजनीतिक नेताओं की यात्राओं का मंजिल बना हुआ है। पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने पूर्णिया में रैली की। उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी किशनगंज में रैली करने पहुंचे और अब देश में मुसलमानों के स्वघोषित नेता, एआइएमआइएम के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी यहां पदयात्रा कर रहे हैं। इसे उन्होंने ‘सीमांचल अधिकार यात्रा’ नाम दिया है। ओवैसी की बिहार में इंट्री से राजनीतिक दलों में बेचैनी बढ़ गयी है। राजनीतिक दलों का मानना है कि एआइएमआइएम चीफ तुष्टिकरण करने के लिए सीमांचल आये हैं, लेकिन प्रदेश की जनता उनके मंसूबों को कामयाब नहीं होने देगी। अब सवाल है कि क्या बिहार की सत्ता सीमांचल से ही तय होगी, क्योंकि इस इलाके पर जिस तरह सभी का फोकस है, उससे लगता है कि बिहार की राजनीति का असली मुकाबला यहीं देखने को मिलेगा।

बिहार में यात्राओं की बहार
सीमांचल से पहले यह समझना जरूरी है कि बिहार में पिछले कुछ महीनों में कितनी यात्राएं हुईं या हो रही हैं। कांग्रेस (भारत जोड़ो यात्रा), नीतीश कुमार (समाधान यात्रा), प्रशांत किशोर (जन सुराज अभियान), उपेंद्र कुशवाहा (विरासत बचाओ नमन यात्रा), जीतनराम मांझी (गरीब संपर्क यात्रा) के बाद आरसीपी सिंह, चिराग पासवान और मुकेश साहनी भी यात्रा कर रहे हैं। अब इस कड़ी में एआइएमआइएम का भी नाम शामिल हो गया है। यहां गौर करनेवाली बात यह है कि भाजपा की प्रदेश में छोटी-मोटी यात्राएं लगातार चलती रहती हैं।

क्यों हो रही है ओवैसी की यात्रा
पिछले महीने फरवरी में एआइएमआइएम का राष्ट्रीय अधिवेशन मुंबई में हुआ था। इसमें आर्थिक पैकेज के साथ सीमांचल को विशेष दर्जा देने का प्रस्ताव, सीमांचल में अवैध प्रवासियों के बसने का झूठा आरोप और राजद द्वारा एआइएमआइएम के चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करने की निंदा की गयी थी। अपनी यात्रा में ओवैसी ने किशनगंज, ठाकुरगंज, बहादुरगंज, कोचाधामन, बायसी और अमौर में अलग-अलग जगहों का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान ओवैसी के निशाने पर भाजपा के अलावा बिहार की महागठबंधन सरकार रही।

सीमांचल में क्या छुपा है सत्ता का राज
बिहार में लोकसभा की 40 और विधानसभा की 243 सीटें हैं। इसमें से प्रदेश की 40 से 41 विधानसभा सीटें ऐसी हैं, जिन पर सीधा प्रभाव अल्पसंख्यकों का है, यानी 20 फीसदी सीट पर अल्पसंख्यक समाज की मजबूत पकड़ है। सीमांचल में मुस्लिमों की बड़ी आबादी है। इसकी सीमा बंगाल और असम से सटी हुई है। यहां की 24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिमों का सीधा प्रभाव है और 12 सीटों पर 50 फीसदी आबादी मुसलमानों की है। यहां लोकसभा की तीन सीटें महागठबंधन (पूर्णिया, किशनंगज और कटिहार) के पास हैं और एक (अररिया) भाजपा के पास है। अब आते हैं विधानसभा सीट पर। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में सीमांचल में एनडीए (भाजपा-जदयू) ने 12 सीटें जीती थीं, सात महागठबंधन और पांच एआइएमआइएम को मिली थी। हालांकि बाद में एआइएमआइएम के चार विधायक राजद में शामिल हो गये थे। अब भाजपा-जदयू के अलग होने के बाद कुल 16 सीटों पर महागठबंधन का कब्जा है। इनमें कांग्रेस के पास पांच, राजद के पास सात और जदयू के पास चार सीटें हैं। यानी सत्ता का एक बड़ा दरवाजा सीमांचल से होकर गुजरता है और यही वजह है कि सभी की निगाह सीमांचल पर टिकी हुई है।

ओवैसी की यात्रा से क्या हो सकता है
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद सबसे बड़ा दल बन कर उभरा था, लेकिन वह सत्ता पर काबिज होने से चूक गया था। पार्टी से जुड़े नेताओं की मानें, तो एआइएमआइएम की वजह से उसे भारी नुकसान हुआ था। उनका कहना है कि अगर एआइएमआइएम ने अपने प्रत्याशी कई जगहों पर न उतारे होते, तो मुसलमानों का वोट नहीं बंटता और इसका फायदा राजद को मिलता। बाद में राजद ने एआइएमआइएम के पांच में से चार विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया था। राजद के इस कदम के बाद से ओवैसी के निशाने पर लालू यादव की पार्टी है। पिछले साल बिहार एआइएमआइएम के अध्यक्ष अख्तरुल इमान ने राजद पर निशान साधते हुए कहा था कि जो लोग अल्पसंख्यकों की बात करते थे, उन्होंने अल्पसंख्यक समाज की पार्टी को तोड़ा है। राजद को हमने धूल चटायी और वे हमारे चार विधायक ले गये हैं, लेकिन अब अगले चुनाव में हम 24 विधायक लेकर आयेंगे।

तेजस्वी ने एआइएमआइएम को बताया भाजपा की बी टीम
फरवरी में अमित शाह भी बिहार दौरे पर आये थे और इसी दिन महागठबंधन ने भी सीमांचल के पूर्णिया में एक जनसभा की थी। इस जनसभा में बिहार के डिप्टी सीएम और राजद नेता तेजस्वी यादव ने बिना नाम लिये एआइएमआइएम को भाजपा की बी टीम बताया था। उन्होंने कहा था कि ये लोग अभी फिर आयेंगे और आपको डरायेंगे, लेकिन इनके बहकावे में नहीं आना है। राजद नेता ने कहा था कि वोट के लिए ये 2024 से पहले कुछ बड़ा करनेवाले हैं।

भाजपा और महागठबंधन की भी सीमांचल पर निगाह
भाजपा बिहार में लगातार सीमांचल को केंद्र में रखी हुई है। अमित शाह से लेकर पार्टी के तमाम नेता क्षेत्र का लगातार दौरा कर रहे हैं। वे यहां पर जनसंख्या, बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्या मुसलमानों का मुद्दा उठा रहे हैं। भाजपा सीमांचल में जनसंख्या और घुसपैठ का मुद्दा उठा कर बिहार के बाकी हिस्सों में खासकर बहुसंख्यक वोटरों को संदेश देना चाहती है। वहीं, महागठबंधन विशेषकर राजद यहां पर खुद को मजबूत करना चाह रहा है। इसलिए सीमांचल को भाजपा और महागठबंधन, दोनों साधना चाहते हैं। इसलिए अमित शाह ने पिछले साल पूर्णिया के रंगभूमि मैदान से लोकसभा चुनाव अभियान का आगाज किया था। वह चाहते हैं कि वैसे क्षेत्रों से चुनावी शंखनाद करें, जहां भाजपा का प्रभाव कम है। सीमांचल वह इलाका है, जिससे बंगाल और पूर्वोत्तर दोनों जगहों पर असर पड़ सकता है। इसके अलावा सीमांचल में माइ (मुस्लिम-यादव) समीकरण है और राजद यहां अभी कमजोर है। इसलिए वह इस इलाके में पैठ बनाने की कोशिश कर रहा है।

ओवैसी की मजबूती से राजद को टेंशन
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अगर बिहार में एआइएमआइएम मजबूत होता है, तो इसका सीधा नुकसान राजद को होगा, क्योंकि पार्टी का कोर वोटर मुस्लिम-यादव है। ओवैसी की पार्टी का विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से उत्साह बढ़ गया है। एआइएमआइएम को लगता है कि सीमांचल की सियासी जमीन उसकी राजनीति के लिए उपजाऊ है और इसलिए वह बार-बार भाजपा के साथ राजद-जदयू पर हमलवार है। हालांकि राजद नेता कहते हैं कि ओवैसी की यात्रा से महागठबंधन को कोई चिंता नहीं है। उनकी पूरी राजनीति भारतीय जनता पार्टी को फायदा पहुंचाने और धार्मिक ध्रुवीकरण के लिए की जाती है। वह भाजपा के राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर सीमांचल की यात्रा कर रहे हैं। ओवैसी जैसे लोग भाजपा की मदद कर रहे हैं, यह चिंता का विषय सभी के लिए होना चाहिए।

भाजपा के लिए सीमांचल ही क्यों
दरअसल, भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव और 2025 विधानसभा चुनाव को देखते हुए अभी से अपनी जमीन तैयार करने में जुट गयी है। दूसरी तरफ भाजपा को ओवैसी की यात्रा से कोई अंतर नहीं पड़नेवाला है, क्योंकि उसके वोटर इंटैक्ट दिख रहे हैं। राजनीतिक जानकार बताते हैं कि नीतीश से अलग होने के बाद भाजपा के पास अब अपने हिंदुत्व के एजेंडे के सहारे वोटर को रिझाने का मौका है।

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