विशेष
-14 राज्यों की इन सीटों पर 30 फीसदी से अधिक हैं मुस्लिम मतदाता
-आरएसएस के ग्राउंड वर्क के बाद अब भाजपा ने शुरू किया संपर्क अभियान
दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा ने देश की सत्ता में लगातार तीसरी बार वापस आने के लिए तैयारी शुरू कर दी है। अगले साल की पहली छमाही में होनेवाले आम चुनावों के लिए पार्टी ने खास रणनीति तैयार की है और इस पर अमल भी शुरू कर दिया गया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ग्राउंड वर्क और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश के बाद पार्टी ने अल्पसंख्यक समुदाय में पहुंच बनाने का मेगा प्लान बनाया है। इसके लिए भाजपा ने 14 राज्यों में 64 जिलों के 60 लोकसभा क्षेत्रों की पहचान की है, जहां अल्पसंख्यक आबादी 30 फीसदी से ज्यादा है। इन सीटों के लिए भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा ने खास प्लान बनाया है। यह आउटरीच प्लान चार महीने का होगा। भाजपा के इस प्लान के दायरे में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की सीट वायनाड भी आती है। मतलब साफ है कि राहुल गांधी से अमेठी छीनने के बाद भाजपा अब उन्हें वायनाड में भी हराने की तैयारी कर रही है। प्लान के अनुसार पार्टी कार्यकर्ता इन 60 सीटों में पांच हजार ऐसे लोगों की पहचान करेंगे, जो पीएम मोदी और उनकी कल्याणकारी योजनाओं की तारीफ करते हैं। इनके जरिये ही उस समाज में पकड़ मजबूत की जायेगी। होली के बाद 10 मार्च से इस प्लान की शुरूआत हो चुकी है। कुछ दिन पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा मुसलमानों को करीब लाने की कोशिश के तहत मेल-मुलाकातों का सिलसिला शुरू किया गया था, जिसके बाद भाजपा की ओर से यह अभियान शुरू किया गया है। इस मेगा प्लान का चुनाव परिणाम पर क्या असर पड़ेगा, यह अभी तो कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इसने विपक्षी खेमे में हलचल जरूर मचा दी है। भाजपा के इस मेगा प्लान के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भारतीय जनता पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चा ने 10 मार्च से देशभर में मुस्लिमों के साथ जनसंपर्क अभियान शुरू किया है। यह अभियान कई चरणों में लागू होगा, लेकिन पहले चरण में 14 राज्यों में इसकी शुरूआत की गयी है, जिसमें 64 जिले शामिल हैं। इन राज्यों में जम्मू-कश्मीर, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, तेलंगाना, मध्यप्रदेश, लद्दाख, महाराष्ट्र, केरल और बिहार शामिल हैं। इन 60 लोकसभा सीटों की खास बात यह है कि यहां मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी से अधिक है। इनमें केरल की वायनाड सीट भी है और बंगाल की 13 सीटें भी। बिहार की अररिया और किशनगंज भी है। 2014 और 2019 में इनमें से महज सात सीटें ही भाजपा की झोली में आयी थीं। पिछले कुछ समय से आरएसएस भी लगातार मुसलमानों से संवाद कर रहा है। भाजपा इसी कड़ी को आगे बढ़ा रही है।
जनवरी में हुई भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अल्पसंख्यक समुदाय और खासकर पसमांदा मुसलमानों तक पहुंचने की बात कही थी। इसी को लेकर अब पार्टी की तरफ से संवाद अभियान शुरू किया गया है, जबकि संघ और मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पहले से ऐसे संवाद कार्यक्रम कर रहे हैं।
क्या है इस अभियान का मकसद
दरअसल, विपक्षी दल भाजपा पर मुस्लिम विरोधी पार्टी होने का आरोप लगाते हैं। विभिन्न चुनावों के वोटिंग पैटर्न पर नजर डालने से पता चलता है कि अल्पसंख्यक समाज भाजपा को वोट देने से कतराता रहा है। उसका मानना है कि भाजपा एक हिंदूवादी पार्टी है। ऐसे में पार्टी को लगता है कि अगर उसे लंबे समय तक सत्ता में रहना है, तो सभी समुदायों को साथ लेकर चलना होगा। इसके लिए संघ भी मुस्लिमों से संवाद स्थापित कर उन्हें भरोसे में लेने का प्रयास कर रहा है।
भाजपा का क्या प्लान है
2024 में भाजपा यह संदेश देना चाहती है कि वह मुस्लिम विरोधी नहीं है। वह खुले मन से इस समाज को गले लगाने के लिए तैयार है। यह सही है कि लोकसभा और विधानसभाओं में भाजपा का एक भी मुसलमान सांसद और विधायक नहीं है। इसको लेकर पार्टी की खासी आलोचना होती रही है। भाजपा पर अक्सर चुनावों में मुस्लिमों को टिकट नहीं देने का आरोप लगता रहा है। ऐसे में पार्टी अब इस नैरेटिव को बदलना चाहती है। इसी के तहत पार्टी ने त्रिपुरा में दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया। जाहिर है इस दिशा में पार्टी को काफी काम करना बाकी है। पार्टी अति पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों के बाद अब मुस्लिम वोटर विशेषकर पसमांदा मुस्लिमों को अपने पाले में लाने की कोशिश में है।
आरएसएस की सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की जो परिकल्पना है, वह उसको वृहद करना चाहता है और उसी क्रम में इस तरह की पहल की जा रही है। वास्तव में आरएसएस अब नयी दिशा में काम कर रहा है। मुसलमानों के बारे में जो उसका विचार है, उसको मोहन भागवत बदल रहे हैं। इसका कितना फायदा भाजपा को मिलेगा, यह अभी कहना मुश्किल है, लेकिन इतना जरूर है कि आपसी नफरत जरूर मिटेगी।
भाजपा नेता बार-बार कहते हैं कि पार्टी की फिलॉसफी सर्व धर्म समभाव की है। हम समावेशी विकास कर रहे हैं और हमने तय किया है कि हम सबके के पास जायेंगे। विपक्ष भाजपा का भय दिखा कर तुष्टीकरण की राजनीति करता रहा है। 70 साल तक कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को वोट बैंक समझा है। लेकिन हम उनके हक की बात कर रहे हैं। हम उस समाज के भ्रम को दूर करने के लिए पहल कर रहे हैं और निश्चित तौर पर हमें सफलता मिलेगी।
महज आठ फीसदी वोट ही मिले थे भाजपा को
जहां तक वोट की बात है, तो देश में मुस्लिमों की आबादी 30 फीसदी के करीब है। 2014 और 2019 के चुनावों में इनमें से महज आठ फीसदी वोट ही भाजपा को मिले थे। इन 60 सीटों में से सात पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी। इस बार पार्टी इस संख्या को 40 तक ले जाने की योजना पर काम कर रही है। ऐसा नहीं है कि भाजपा को मुस्लिमों का वोट नहीं मिलता। चुनाव बाद के सर्वे में देखा गया है कि मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिया है। 2002 में गोधरा कांड होने के बाद भी भाजपा गुजरात की सत्ता में लंबे समय से काबिज है। भाजपा ने 2022 में गुजरात चुनाव में जो जीत हासिल की है, वह उसकी सफलता की कहानी बयां करती हैं
क्या अल्पसंख्यकों का भरोसा जीत पायेगी भाजपा
भाजपा का यह अभियान आखिर में कितना सफल होगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इसने माहौल जरूर बदला है। अब मुस्लिम समाज कह रहा है कि उसे भाजपा-आरएसएस से कोई दुश्मनी नहीं है। अगर वे करीब आने की कोशिश करते हैं, तो स्वागत है, लेकिन नफरत का माहौल खत्म होना चाहिए और संविधान के मुताबिक काम होना चाहिए। मुसलमान कहते हैं कि बोलने से काम नहीं चलेगा, एक्शन होना चाहिए। भाजपा और संघ अगर पसमांदा के लिए कुछ बेहतर करना चाहते हैं, तो अच्छा है। उन्हें उनका हक मिलना चाहिए।
पसमांदा मुसलमानों में भाजपा को क्यों दिख रहा अवसर
पसमांदा पिछड़े और दलित मुसलमान को कहते हैं। वे गरीब हैं। देश के मुसलमानों में 80 फीसदी आबादी पसमांदाओं की है। भाजपा इसे अवसर के रूप में देख रही है। पसमांदा मुसलमानों को कम राजनीतिक दलों ने ही तवज्जो दी है। भाजपा-आरएसएस की सोच है कि अगर उसमें से 15 से 20 फीसदी भी साथ आ गये, तो उनका काम हो जायेगा। मुस्लिम आदतन भाजपा विरोधियों को वोट देते हैं। ऐसे में भाजपा अगर किसी मुस्लिम नेता को प्रमोट कर दे, तो यह समाज पार्टी के साथ आ सकता है।
भाजपा को कितना मिलेगा फायदा
यह बात शीशे की तरह साफ है कि संघ को अपर कास्ट का संगठन माना जाता है, लेकिन उसने पिछड़ी जाति से आनेवाले नरेंद्र मोदी को आगे किया और आज वह प्रधानमंत्री हैं। भाजपा और आरएसएस उसी सोच के तहत काम कर रहे हैं। उन्हें पता है कि अगर 2024 में सत्ता बरकरार रखनी है, तो मुस्लिम मतदाताओं के कुछ वोट हासिल करने होंगे।
भाजपा के सामने क्या है चुनौती
दरअसल, भाजपा और संघ अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए पहल तो कर रहे हैं, लेकिन हेट स्पीच, मॉब लिंचिंग और गौ-तस्करी के नाम पर हत्या जैसे कई उदाहरण हैं, जो पार्टी पर सवाल उठाते रहे हैं। भाजपा और आरएसएस मुसलमानों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए मुहिम चला रहे हैं, लेकिन दूसरी तरफ उससे जुड़े संगठन हेट स्पीच दे रहे हैं, जो विरोधाभास पैदा करता है। अगर भाजपा वाकई चाहती है कि उसके प्रति मुसलमानों का नजरिया बदले, तो उसे ऐसे संगठनों पर कड़ी कार्रवाई करनी होगी, तभी मुसलमानों में अच्छा संदेश जायेगा।
किसको होगा नुकसान
भाजपा अगर थोड़ा बहुत पसमांदा मुसलमानों को अपने पाले में करने में सफल होती है, तो उसका सीधा असर कांग्रेस के अलावा क्षेत्रीय दलों पर पड़ेगा। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राजद, जदयू और टीएमसी जैसे दलों को भारी नुकसान हो सकता है।