विशेष
-राजस्थान जीतने के लिए गुजरात फॉर्मूला अपनायेगी भाजपा
-मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में बेरोजगारों की लगायी जा रही है बोली
पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद अब भाजपा और कांग्रेस समेत तमाम राजनीतिक दल तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गये हैं। इन तीन राज्यों में मुख्य मुकाबला एक बार फिर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही होगा, हालांकि आम आदमी पार्टी और अजीत जोगी की छत्तीसगढ़ कांग्रेस भी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है। इसलिए अब देश भर का ध्यान जयपुर, भोपाल और रायपुर में होनेवाली राजनीतिक गतिविधियों पर केंद्रित रहेगा। ये तीनों राज्य भाजपा के साथ कांग्रेस के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण हैं। 2018 में हुए चुनाव में इन तीनों राज्यों में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, लेकिन मध्यप्रदेश की सत्ता उसके हाथों से निकल गयी थी। इस बार भाजपा इन राज्यों की सत्ता छीनने का पूरा प्रयास करेगी और इसलिए वह इन राज्यों के लिए अलग रणनीति बना रही है। पार्टी ने राजस्थान के लिए गुजरात फॉर्मूला अपनाने का फैसला किया है, जिसके तहत राज्य के हर मतदाता तक पार्टी कार्यकर्ता पहुंचेंगे। पन्ना प्रमुख से लेकर राज्य स्तरीय मॉनिटरिंग सिस्टम बनाया जा रहा है। उधर मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के लिए भाजपा ने जो प्लान तैयार किया है, उस पर काम शुरू कर दिया गया है। इन दोनों राज्यों में बेरोजगारों को रिझाने पर पार्टी का फोकस है। दूसरी तरफ कांग्रेस अब तक अशोक गहलोत की ‘जादूगरी’ पर भरोसा कर रही है, जबकि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में वह भी बेरोजगारों को अपनी तरफ आकर्षित किये जाने की कोशिश कर रही है। इन तीन राज्यों के लिए चल रही राजनीतिक पार्टियों की तैयारियों के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
पूर्वोत्तर के तीन छोटे राज्यों, त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में विधानसभा चुनाव संपन्न होने के बाद अब राजनीतिक दलों का ध्यान तीन बड़े राज्यों, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की विधानसभाओं के लिए इसी साल के उत्तरार्द्ध में होनेवाले चुनावों पर केंद्रित हो गया है। राजस्थान में विधानसभा की दो सौ सीटें हैं, जबकि मध्यप्रदेश में 230 और छत्तीसगढ़ में 90 सीटें हैं। जहां तक इन तीनों राज्यों में 2018 में हुए चुनावों का सवाल है, तो यहां कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी, लेकिन मध्यप्रदेश की सत्ता उसके हाथों से फिसल गयी थी, क्योंकि पार्टी में बगावत हो गयी थी। इसलिए इस बार इन तीनों राज्यों में दिलचस्प चुनावी मुकाबला देखने को मिल सकता है, जिसका आभास अभी से होने लगा है। जहां तक मुकाबले की बात है, तो राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है। इन चुनावों के कारण तीनों सरकार मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रही हैं। इतना ही नहीं, दोनों पार्टियां अपनी रणनीति बना रही हैं।
राजस्थान में गुजरात का फॉर्मूला अपनायेगी भाजपा
बात राजस्थान से शुरू करते हैं। यहां दो सौ सीटों के लिए चुनाव होगा। सत्तारूढ़ कांग्रेस जहां दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए अशोक गहलोत की ‘जादूगरी’ के भरोसे है, वहीं भाजपा ने इस बार फुल प्रूफ प्लान बनाया है। कांग्रेस के भीतर गहलोत बनाम सचिन पायलट की लड़ाई जगजाहिर है, लेकिन पार्टी का नेतृत्व आत्ममुग्धता से बाहर आने के लिए तैयार नहीं दिखता है। दूसरी तरफ भाजपा ने विधानसभा चुनाव के एक्शन प्लान पर काम शुरू कर दिया है। बड़ी जीत के लिए भाजपा ने इस बार छोटे-छोटे प्लान बनाये हैं। उसका माइक्रो मैनेजमेंट शुरू हो गया है। एक-एक विधानसभा सीट के साथ एक-एक बूथ की मैपिंग चल रही है। सबसे ज्यादा फोकस हर बूथ को मजबूत करने पर है। बूथ मैनेजमेंट के लिए करीब 10 लाख कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी करने के काम को पार्टी ने लगभग पूरा कर लिया है। अब इनके वेरिफिकेशन का काम चल रहा है। इन 10 लाख लोगों के जिम्मे वोटिंग के दिन हर मतदाता को बूथ तक लेकर आने का काम रहेगा। इसके लिए प्रत्येक 12 से 15 घरों पर एक सक्रिय कार्यकर्ता को तैनात किया जा रहा है। पार्टी का प्लान यह है कि राज्य के हरेक मतदाता तक पार्टी जरूर पहुंच जाये। इसके लिए पन्ना प्रमुख से लेकर राज्य स्तरीय मॉनिटररिंग सिस्टम की स्थापना की जा रही है। पार्टी ने यही फॉर्मूला गुजरात में अपनाया था, जिसके कारण उसे रिकॉर्डतोड़ सफलता हासिल हुई थी।
मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में बेरोजगारों पर निगाहें
अब मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की चर्चा। इन दोनों राज्यों में बड़ी संख्या में युवा मतदाता हैं। इसलिए दोनों राज्यों में उन्हें आकर्षित करने के लिए तरह-तरह की योजनाओं की घोषणा की जा रही है।
मध्यप्रदेश में जहां शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा की सरकार है, वहीं छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस सत्ता में है। मध्यप्रदेश चुनाव में इस साल करीब 30 लाख ऐसे मतदाता शामिल होंगे, जो पहली बार वोट डालेंगे। 18 से 21 साल की उम्र के बीच के ये 30 लाख वोटर राज्य के कुल 5.30 करोड़ मतदाताओं का करीब 10 फीसदी हिस्सा हैं। इससे पहले साल 2018 के विधानसभा चुनाव के समय भी करीब 17 लाख नये वोटर जुड़े थे। प्रदेश में करीब चार लाख युवा हर साल मतदाता बनने की योग्य उम्र का आंकड़ा पार कर लेते हैं।
छत्तीसगढ़ में भी 50 फीसदी से ज्यादा मतदाता 40 साल से कम उम्र के हैं, जिनमें 30 साल से कम उम्र के मतदाताओं की संख्या 30 फीसदी से ज्यादा है। इनमें भी तीन लाख वोटर ऐसे हैं, जो पहली बार वोट डालेंगे। किसी भी चुनाव की शक्ल बदलने के लिए यह बड़ा आंकड़ा है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के बराबर ही है।
इस हिसाब से देखा जाये, तो राज्य सरकार की ‘लाडली बहन योजना’ इन महिला मतदाताओं को लुभाने की कोशिश है, जो चुनाव में अहम भूमिका निभा सकती हैं। उधर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए बेरोजगारों को हर महीने ढाई हजार रुपये का भत्ता देने की घोषणा की है। इससे पहले मध्य प्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी बेरोजगार युवाओं को डेढ़ हजार रुपये और महिलाओं के लिए अलग से एक हजार रुपये महीना के भत्ते की घोषणा की थी, जिसके बाद विपक्ष में बैठे कांग्रेस नेता कमलनाथ ने भी अपनी सरकार बनने पर महिलाओं को एक हजार रुपये की बजाय डेढ़ हजार रुपये का भत्ता दिये जाने की घोषणा कर दी थी। बेरोजगारी भत्ते को लेकर इन बड़ी-बड़ी योजनाओं से सभी हैरान हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इन दोनों राज्यों की सरकार और विपक्ष को आखिर अचानक बेरोजगारों की याद क्यों आने लगी है।
छत्तीसगढ़ की बघेल सरकार ने राज्य के उन युवाओं को ढाई हजार रुपये महीना का बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है, जिनकी उम्र 18 से 35 साल के बीच है और उनके परिवार की सालान आमदनी ढाई लाख रुपये से कम है। हालांकि यह लाभ उन्हें ही मिलेगा, जो राज्य सरकार के रोजगार विभाग के पास पंजीकृत हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान ने बेरोजगार युवाओं के लिए दो बड़ी योजनाएं घोषित की हैं। पहले शिवराज ने एमपी बेरोजगार भत्ता स्कीम के तहत हर शिक्षित बेरोजगार युवा को डेढ़ हजार रुपये हर महीने देने की घोषणा की। उन्होंने इस भत्ते को डेढ़ हजार रुपये से बढ़ाकर साढ़े तीन हजार रुपये करने की भी घोषणा की है, लेकिन इसे अब तक लागू नहीं किया गया है। इसके बाद मुख्यमंत्री ने राज्य की 23 से 60 साल की उम्र वाली सभी महिलाओं के लिए ‘लाडली बहन योजना’ की घोषणा की, जिसके तहत हर महिला को एक हजार रुपये महीने देने की योजना है। यह लाभ हर उस महिला को मिलेगा, जिनके पास ढाई एकड़ से कम जमीन और ढाई लाख रुपये से कम सालाना आय है। इसके बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने लाडली बहन योजना के तहत एक हजार रुपये को महिलाओं का अपमान बताया है। उन्होंने राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर हर महिला को एक हजार की बजाय डेढ़ हजार रुपये महीना देने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि इससे महिलाओं को 12 हजार रुपये की बजाय सालाना 18 हजार रुपये मिलेंगे।
इन तीनों राज्यों में भाजपा और कांग्रेस की रणनीतियों से ऐसा लगता है कि यहां का चुनाव इस बार बेहद दिलचस्प होगा। ऐसा होना भी जरूरी है, क्योंकि इन चुनावों के बाद ही 2024 के आम चुनावों की तस्वीर पर छाये अनिश्चितता के बादल थोड़े कम होंगे।