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ऑक्सफोर्ड यूनियन का न्योता ठुकराने के बाद खींची लंबी लकीर
देश के पहले राजनीतिक परिवारों के दो ‘चिरागों’ में नहीं है कोई समानता
देश के पहले राजनीतिक परिवार के दो ‘चिराग’ इन दिनों खासी चर्चा में हैं। एक तरफ इंदिरा-राजीव गांधी की विरासत को आगे बढ़ाने का दावा करनेवाले राहुल गांधी हैं, तो दूसरी तरफ उनके चचेरे भाई और संजय-मेनका गांधी के पुत्र वरुण गांधी हैं। राजनीति के मैदान में सक्रिय इन दोनों भाइयों में इस बात के अलावा कि दोनों लोकसभा के सदस्य हैं, कहीं कोई समानता नहीं है। राहुल जिस विचारधारा का विरोध करते हैं, वरुण उसी विचारधारा का समर्थन करनेवाली भाजपा में हैं, हालांकि हाल के दिनों में वरुण ने भाजपा और उसकी नीतियों की खासी आलोचना की है और उन्हें सत्ता विरोधी खेमे का कहा जाता है। लेकिन ध्यान देने की बात यह है कि वरुण ने नीतियों का तर्कों के आधार पर विरोध किया है, न कि राजनीति के लिए। दूसरी तरफ राहुल गांधी हैं, जो भाजपा विरोध के प्रतीक बन चुके हैं। एक ही परिवार के इन दो बेटों की यदि तुलना की जाये, तो वरुण समझदारी के पैमाने पर अपने बड़े भाई से भारी पड़ते हैं। इसका कारण भी है। राहुल ने ब्रिटेन में भारत के खिलाफ बयान देकर खुद को राजनीतिक विवाद में फंसा लिया है, जबकि वरुण इस तरह की बयानबाजी के नफा-नुकसान को अच्छी तरह से समझते हैं। इसलिए उन्होंने मोदी सरकार की नीतियों और भारत से जुड़े मुद्दों पर बोलने के आॅक्सफोर्ड यूनियन के न्योते को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उनके पास इस मुद्दे पर बोलने के लिए अपने ही देश में कई मंच उपलब्ध हैं। वरुण गांधी का यह स्टैंड राजनीति के क्षेत्र में उन्हें अपने बड़े भाई से मीलों आगे ले जानेवाला साबित हुआ है। भाजपा और मोदी सरकार के प्रति बगावती तेवर अपनाने के बावजूद वरुण ने यह फैसला कर दिखा दिया है कि गांधी-नेहरू परिवार के असली राजनीतिक बारिस होने का हक उन्हें मिलना चाहिए। वरुण गांधी के इसी फैसले और राहुल गांधी के मुकाबले उनके व्यक्तित्व का बारीक विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भाजपा सांसद वरुण गांधी ने आॅक्सफोर्ड यूनियन के निमंत्रण को ठुकरा दिया है। आॅक्सफोर्ड ने वरुण को नरेंद्र मोदी सरकार की नीतियों और भारत से जुड़े अन्य मुद्दों पर बोलने के लिए बुलाया था। वरुण का कहना है कि इन मुद्दों पर बोलने के लिए देश में बहुत से मंच हैं। वरुण के इस एक फैसले ने साबित कर दिया है कि राजनीतिक समझदारी के मामले में वह अपने चचेरे बड़े भाई राहुल गांधी के मुकाबले बहुत भारी हैं। बता दें कि राहुल गांधी ने विदेश में भारत और सरकार की आलोचना की थी, जिसके कारण उन्हें इन दिनों भारी किरकिरी झेलनी पड़ रही है। वरुण गांधी ने इसको लेकर ट्वीट कर बताया, मैंने आॅक्सफोर्ड यूनियन के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है। भारत की राजनीति नियमित रूप से हमें अपनी नीतियों में सुधार के लिए समालोचना करने और रचनात्मक सुझाव देने का स्थान प्रदान करती है। भारत की पसंद और चुनौतियों को अंतरराष्ट्रीय जांच के अधीन करना मेरे लिए एक अपमानजनक कार्य है। वरुण ने आमंत्रण को अस्वीकार करते हुए कहा कि सरकार से संबंधित मुद्दे देश के अंदर और नीति निर्माताओं के समक्ष उठाये जाने चाहिए। उन्होंने टॉपिक को भी पूर्व परिभाषित निष्कर्ष वाला बताया। उन्होंने आंतरिक मुद्दे को देश के बाहर उठाने को देश का अपमान बताया। पीएम मोदी की अक्सर आलोचना करने वाले वरुण ने जवाब में कहा कि पीएम मोदी के नेतृत्व में देश सही रास्ते पर है।
वरुण का यह स्टैंड इसलिए चर्चा में है, क्योंकि कुछ दिन पहले ही उनके बड़े भाई राहुल गांधी ब्रिटेन की यात्रा पर गये थे। वहां विभिन्न कार्यक्रमों में हिस्सा लेकर उन्होंने पीएम मोदी और देश की प्रणाली को लेकर आलोचना की थी। उन्होंने कहा था कि भाजपा और आरएसएस के कारण देश में लोकतंत्र खतरे में है। उन्होंने देश की संवैधानिक संस्थाओं को भी हाइजैक करने का आरोप लगाया था। राहुल गांधी के इन बयानों के बाद देश भर में उनकी जमकर आलोचना हुई। उन पर देश को अपमानित करने का आरोप लगा और उनकी पार्टी कांग्रेस लगातार उनके बचाव में लगी हुई है, हालांकि सोशल मीडिया पर भी लोग राहुल की उनके बयानों के लिए आलोचना कर रहे हैं।
वरुण और राहुल की तुलना यहीं जरूरी हो जाती है। समय-समय पर भाजपा सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले वरुण गांधी ने समझदारी दिखाते हुए ऐसे किसी विवाद में फंसने से इनकार कर दिया है। वरुण गांधी शायद राहुल गांधी का हश्र और विदेश में अपनी ही सरकार की आलोचना के बाद अपनी राजनीतिक स्थिति को भांप गये हैं, वरना ऐसे अनेक मौके हैं, जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से भाजपा सरकार और पीएम मोदी की आलोचना की है।
अक्सर अपने बगावती तेवर के कारण चर्चा में बने रहनेवाले वरुण की खासियत यही है कि वह अपने बड़े भाई की तरह भावुकता में नहीं बहते। वह हर बात को तौल कर बोलते हैं और बोलने से पहले सौ बार सोचते हैं। इतना ही नहीं, अपनी बात को वह तर्कों की कसौटी पर भी तौलते हैं। उनका यही गुण उन्हें राहुल से अलग करता है और देश के पहले राजनीतिक परिवार का असली उत्तराधिकारी साबित करता है।
पिछले कुछ दिनों से वरुण के भाजपा छोड़ने और कांग्रेस में जाने की अटकलें लगायी जा रही थीं। लेकिन वह कांग्रेस में भी अब नहीं जा सकते। राहुल गांधी ने उन्हें विचारधारा के आधार पर पार्टी में शामिल करने से मना कर दिया है। ऐसे में वरुण गांधी ने आॅक्सफोर्ड में जाने पर अपनी राजनीतिक अनिश्चितता का अंदाजा लगा लिया था। बता दें कि राहुल जब भारत जोड़ो यात्रा पर थे, तब भाजपा में असंतुष्ट वरुण गांधी के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लगायी जा रही थीं। समय-समय पर कई बार ऐसी चर्चाएं सामने आयीं। मीडिया ने वरुण की कांग्रेस में एंट्री को लेकर जब सवाल पूछा, तो राहुल ने कहा था कि उनकी और वरुण की विचारधारा अलग है। चाहे उनका गला कट जाये, वह आरएसएस कार्यालय नहीं जायेंगे। राहुल ने कहा था, वरुण गांधी भाजपा में हैं। इसलिए यदि वह उनके साथ भारत जोड़ो यात्रा में चलेंगे, तो उन्हें दिक्कत हो सकती है। मेरी विचारधारा, उनकी विचारधारा से मेल नहीं खाती। मैं कभी आरएसएस के आॅफिस में नहीं जा सकता। उसके लिए आपको पहले मेरा गला काटना पड़ेगा। राहुल ने आगे कहा था, मेरा जो परिवार है, उसकी एक अलग विचारधारा है। वरुण ने दूसरी विचारधारा को अपनाया, जिसे मैं कभी स्वीकार नहीं कर सकता। मैं जरूर वरुण से प्यार से मिल सकता हूं, उन्हें गले लगा सकता हूं, लेकिन मैं उस विचारधारा को कभी भी स्वीकार नहीं कर सकता। साल 2019 में भी वरुण के कांग्रेस में शामिल होने की अटकलें लगी थीं, लेकिन राहुल ने यह कहकर विराम लगा दिया था कि इसके बारे में उन्हें पता नहीं है। दरअसल वरुण गांधी कई मौकों पर पार्टी लाइन को तोड़ते नजर आये हैं। किसान आंदोलन से लेकर कोरोना वायरस, बेरोजगारी, अग्निवीर योजना सहित तक कई बार वह कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाते नजर आये हैं। वह सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की भी तारीफ कर चुके हैं। दिसंबर 2022 में वरुण गांधी का एक वीडियो भी वायरल हुआ था। इसमें उन्होंने कहा था, न तो मैं नेहरू जी के खिलाफ हूं और ना ही कांग्रेस के खिलाफ हूं। हमारी राजनीति देश को आगे बढ़ाने के लिए होनी चाहिए, ना कि गृह युद्ध पैदा करने के लिए। आज जो लोग केवल धर्म और जाति के नाम पर वोट मांग रहे हैं, हमें उनसे यह पूछना चाहिए कि रोजगार, शिक्षा, चिकित्सा का क्या हाल है।
वरुण के स्टैंड से साफ हो गया है कि भारत ही नहीं, राजनीति के प्रति उनका दृष्टिकोण राहुल से एकदम अलग है। देश और समाज को देखने का उनका नजरिया है और यही नजरिया उन्हें अपने बड़े भाई से ऊंचे पायदान पर रखता है।
इस वीडियो के सामने आने के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि वह भाजपा का दामन छोड़ कॉन्ग्रेस में जा सकते हैं, लेकिन राहुल गाँधी ने इन अटकलों पर भी विराम लगा दिया। अब राहुल गाँधी का हश्र और अपनी राजनीतिक की अनिश्चितता को देखते हुए उन्होंने मोदी सरकार की कार्यप्रणाली पर बोलने के लिए आॅक्सफोर्ड यूनियन का निमंत्रण भी ठुकरा दिया।