विशेष
-घुसपैठ की समस्या से जूझ रहे संथाल परगना के वोटिंग पैटर्न में होगा बदलाव
-राज्य के दूसरे इलाकों में भी भाजपा को मजबूत करेगा मोदी सरकार का फैसला
-राम मंदिर के बाद सीएए लागू कर मोदी सरकार ने हासिल कर ली है बड़ी बढ़त
लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के प्रति आश्वस्त दिख रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने आम चुनाव की घोषणा से ठीक पहले नागरिकता संशोधन अधिनियम, यानी सीएए के नियमों को अधिसूचित कर बड़ी सियासी बढ़त हासिल कर ली है। धारा 370 और अयोध्या में राम मंदिर के बाद भाजपा का यह तीसरा सबसे बड़ा वादा था, जो पूरा हो गया है। जाहिर है कि इसका सियासी असर भी पड़ेगा। सीएए में प्रावधान है कि दूसरे देशों से शरणार्थी बन कर 2014 तक आये सिख, इसाई, पारसी और जैन समेत छह अल्पसंख्यक समुदायों को भारत सरकार नागरिकता देगी। मुसलमान शरणार्थियों के लिए यह छूट नहीं होगी, यानी वे भारत के नागरिक नहीं बन पायेंगे। प्रत्यक्ष तौर पर इसमें किसी राष्ट्र भक्त को कोई बुराई या खराबी नजर नहीं आनी चाहिए, पर विपक्ष विरोध में बलबला रहा है। यहां बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर सीएए का सियासी असर और वह भी झारखंड जैसे राज्यों में क्या हो सकता है और विपक्ष इसका विरोध क्यों कर रहा है। इस सवाल का जवाब तलाशने से पहले यह जान लेना जरूरी है कि सीएए का विरोध प्रकारांतर से मुस्लिम तुष्टिकरण है, यानी विपक्ष अब खुले तौर पर मुस्लिमपरस्ती कर रहा है। जहां तक झारखंड में सीएए के सियासी असर का सवाल है, तो यह कानून देश के उन तमाम हिस्सों में बड़ा सियासी असर पड़ेगा, जो बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार और अफगानिस्तान की सीमा से सटे या नजदीक हैं या फिर घुसपैठ की समस्या से जूझ रहे हैं। झारखंड का संथाल परगना का इलाका भी इस समस्या से जूझ रहा है, तो यहां भी सीएए का असर होगा। झारखंड में क्या होगा सीएए का असर और इसका आनेवाले आम चुनावों पर क्या होगा प्रभाव, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
आम चुनावों की दहलीज पर खड़े देश में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू हो गया है। इसके साथ ही आसानी से समझा जा सकता है कि अब देश का सियासी माहौल कैसा होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ‘400 पार’ का सपना पूरा होगा या ‘भाजपा भगाओ’ का विपक्षी दलों का मंसूबा कामयाब होगा। इन सवालों को यदि सीएए के आइने में देखें, तो साफ नजर आता है कि यह भाजपा के लिए अनुकूल माहौल तैयार करने में सफल होगा। लेकिन उन राज्यों में क्या होगा, जहां भाजपा को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है या फिर उसकी सरकार नहीं है। झारखंड, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश आदि राज्यों में सीएए लागू होने के बाद भाजपा के लिए स्थिति सुधरेगी या फिर चुनौती बढ़ेगी, यह जानना जरूरी है।
भाजपा का तीसरा बड़ा वादा पूरा हुआ
सीएए लागू कर भाजपा ने तीसरा बड़ा वादा पूरा कर दिया है। पहले धारा 370 हटाने और फिर अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कर उसने देश के सियासी माहौल को पहले ही अपने पक्ष में मोड़ने में कामयाबी हासिल कर ली है। इसलिए आम चुनावों से ठीक पहले मोदी सरकार ने सीएए लागू कर माहौल को भाजपा के पक्ष में कर दिया है। लेकिन यह उतना आसान भी नहीं है।
विपक्ष के सामने बड़ी दुविधा
जहां तक विपक्ष का सवाल है, तो सीएए के मुद्दे पर विपक्ष के सामने कुआं-खाई की स्थिति है। यदि सीएए का विरोध करने से विपक्ष पीछे हटा, तो अब तक के उसके किये-कराये पर पानी फिर जायेगा, यानी सीएए के मुखर विरोधी मुसलमान उससे बिदक-छिटक जायेंगे। झारखंड और पश्चिम बंगाल सरकार के लिए सीएए के विरोध से पीछे हटना उनके सियासी पराभव की बुनियाद बन जायेगा। और दूसरी तरफ सीएए का समर्थन कर भी अब विपक्ष को कुछ हासिल होनेवाला नहीं। भाजपा अब चैन की नींद सो भी जाये, तो सीएए के सहारे उसकी कामयाबी पर संदेह की गुंजाइश नहीं बचती। इसलिए बंगाल में ममता बनर्जी कह रही हैं कि किसी को डरने की जरूरत नहीं। किसी का हक छीना गया, तो उनकी पार्टी टीएमसी सबसे पहले आवाज उठायेगी। केरल ने तो इसे लागू करने से ही मना कर दिया है। यूपी में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव आगबबूला हैं। कांग्रेस के दिग्गज दिग्विजय सिंह को भी सख्त एतराज है। एआइएमआइएम के असद्दुदीन ओवैसी अलग आग उगल रहे हैं। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल को भी सीएए से गजब की तकलीफ पहुंची है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि केंद्र की मोदी सरकार ने अपने हिसाब से सही चाल चली है।
झारखंड में क्या होगा असर
सीएए में कहा गया है कि 31 दिसंबर 2014 या उससे पहले अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और इसाई समुदायों के लोगों को घुसपैठी नहीं माना जायेगा और इस कानून के जरिये ऐसे लोग भारत की नागरिकता पा सकेंगे। लेकिन यह कानून इन देशों के मुस्लिमों को नागरिकता नहीं देगा। झारखंड का संथाल परगना इलाका और खास कर साहिबगंज-गोड्डा का इलाका बांग्लादेश की सीमा से सटा हुआ है। इन इलाकों में हाल के दिनों में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये आये हैं और बस गये हैं। साहिबगंज वह इलाका है, जो राजमहल संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आता है। यहां सीएए के पारित होने से लोग नाराज हैं और मुस्लिमों में डर और चिंता बढ़ गयी है। इस बात की संभावना बढ़ गयी है कि मुस्लिम समुदाय के लोग एक प्रभावी राजनीतिक नेतृत्व की तलाश करें, जिसके माध्यम से वे सीएए के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर कर सकें। जहां तक झामुमो और कांग्रेस का सवाल है, तो ये दोनों दल सांगठनिक रूप से इसके लिए तैयार नहीं दिखाई देते।
झारखंड में कहां से आते हैं बांग्लादेशी
बांग्लादेश सीमा से झारखंड की दूरी 25-40 किलोमीटर है। इसी हिस्से का इस्तेमाल कर बांग्लादेशी यहां आ रहे हैं। बंगाल के मालदा और मुर्शिदाबाद के रास्ते भी अधिकांश बांग्लादेशी यहां पहुंच रहे हैं। झारखंड में अधिकांश बांग्लादेशी फरक्का, उधवा, पियारपुर, बेगमगंज, फुदकलपुर, अमंथ, श्रीधर, दियारा, बेलूग्राम, चांदशहर और प्राणपुर से आते हैं। पुलिस का मानना है कि बांग्लादेशियों के आने से अपराध और देशविरोधी गतिविधियां बढ़ी हैं।
आधार-वोटर आइडी तक बनवाया
अवैध प्रवासियों ने वोटर आइडी, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस तक बनवा रखा है। उधवा पक्षी अभ्यारण्य और वन विभाग की जमीन पर अवैध कब्जा कर लिया गया है। इन इलाकों में जमात उल मुजाहिदीन बांग्लादेश और पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया जैसे प्रतिबंधित संगठन की मजबूत पकड़ हुई है। साहिबगंज, पाकुड़, धनबाद समेत अन्य जिलों में जेएमबी के आतंकियों की गतिविधि रही है। पाकुड़ से संदिग्ध आतंकियों की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।
ऐसे बदल रही जनसांख्यिकी
पाकुड़ जिले में साल 2001 में मुस्लिम आबादी 33.11 प्रतिशत थी। साल 2011 में मुस्लिम आबादी बढ़ कर 35.87 प्रतिशत हो गयी। अवैध प्रवासियों के अधिक आबादी वाले जिलों में आदिवासी आबादी घटी है। साल 1951 में राज्य में 8.09 फीसदी मुस्लिम आबादी थी। 2011 में यह आबादी बढ़ कर 14.53 फीसदी हो गयी है। यह एक हकीकत है कि बांग्लादेशी हों या फिर रोहिंग्या मुसलमान, भारत के विभिन्न भागों में दोनों की घुसपैठ गंभीर समस्या है। देश का शायद ही कोई राज्य हो, जहां बांग्लादेशी और रोहिंग्या लोग अवैध रूप से ना बसे हों। राष्ट्रीय स्तर पर यह मामला उठता ही रहता है और स्वाभाविक रूप से झारखंड भी इससे अछूता नहीं है। राज्य का प्राय: हर जिला कमोबेश इससे प्रभावित है। प्रशासन को पता है कि संथाल परगना के जिलों और कस्बों में भारी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठिये आ गये हैं और उन्हें वैध नागरिकता प्रमाण पत्र उपलब्ध कराये जा रहे हैं। पूरी दुनिया जानती है कि भारत में यह घुसपैठ बांग्लादेश गठन के बाद से चली आ रही है और पिछले कुछ वर्षों में इसमें बहुत तेजी आयी है। चूंकि संथाल परगना की सीमा बांग्लादेश से लगती है, तो यहां घुसपैठ और बसने की सुविधा अधिक है। अविभाजित बिहार में ऐसी घुसपैठ की सुध नहीं ली गयी। फिर झारखंड का गठन हुआ। लेकिन इस मुद्दे को गंभीरता से लिया ही नहीं गया। इसलिए अब यह मुद्दा उठाना राजनीतिक कहा जा सकता है।
यह सही है कि घुसपैठिये नागरिकता प्रमाण पत्र हासिल कर रहे हैं और उन्हें संरक्षण भी मिल रहा है। लेकिन इसके साथ यह भी सच है कि यह सिलसिला झारखंड बनने के पहले से चल रहा है। इन घुसपैठियों ने स्थानीय स्तर पर इतनी गहरी पैठ बना ली है कि अब इनकी पहचान लगभग असंभव हो गयी है। घुसपैठियों ने स्थानीय स्तर पर सामाजिक रिश्ते कायम कर लिये हैं, जमीन खरीद ली है और आधार कार्ड-वोटर आइडी तक हासिल कर लिया है। उनके बच्चे झारखंड के स्कूलों में पढ़ रहे हैं और कई लोग तो सरकारी नौकरी में भी हैं।
ध्रुवीकरण की स्थिति में भाजपा को लाभ
पूरे देश में माना जा रहा है कि लोकसभा चुनावों की घोषणा के ठीक पहले सीएए लागू करने से जबरदस्त ध्रुवीकरण हो सकता है और इसका भाजपा को लाभ हो सकता है। झारखंड की परिस्थितियां इस तरफ इशारा कर भी रही हैं और कहा जा रहा है कि इसका लाभ भाजपा को मिलेगा। विपक्ष इसकी कोई काट खोज पायेगा, कह पाना मुश्किल है। भाजपा उत्तर भारत के राज्यों में पहले ही बहुत मजबूत स्थिति में है। वहां पर उसे इस तरह के किसी समीकरण के बिना भी बेहतर सफलता मिलने की पूरी-पूरी उम्मीद है। उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में वह सीएए जैसे किसी कानून के बिना भी मजबूत सफलता हासिल करेगी, ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है। भाजपा को बिहार और पश्चिम बंगाल में अभी भी सबसे बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। झारखंड की सियासी स्थिति भी भाजपा के लिए एकदम अनुकूल नहीं थी, लेकिन अब वह बदलती हुई दिखाई देने लगी है।
कहा जा सकता है कि सीएए का मुद्दा केवल उत्तर भारतीय राज्यों में ही अपना असर नहीं दिखायेगा, बल्कि पूर्व में पश्चिम बंगाल और झारखंड के साथ दक्षिण में कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और केरल में भी भाजपा इस तरह के मुद्दे को लगातार हवा देने का काम करती रही है। यदि सीएए का मुस्लिम वर्ग से विरोध बढ़ता है, तो इसकी प्रतिक्रिया में हिंदुओं के बीच एकजुटता बढ़ सकती है और उस स्थिति में लाभ भाजपा को ही होगा।