विशेष
-इस संसदीय सीट पर तैयार हो गयी है रोमांचक मुकाबले की जमीन
-पलामू के लिए प्रभावशाली सांसद साबित हुए हैं राज्य के पूर्व डीजीपी

झारखंड के 14 संसदीय क्षेत्रों में से अनुसूचित जाति के लिए एकमात्र आरक्षित पलामू में चुनावी मुकाबले की रोमांचक जमीन उसी समय तैयार हो गयी, जब भाजपा ने लगातार तीसरी बार झारखंड के पूर्व डीजीपी विष्णु दयाल राम को यहां से अपना प्रत्याशी बनाया। कभी नक्सलियों के गढ़ और झारखंड के सबसे पिछड़े इलाके के रूप में चर्चित पलामू संसदीय क्षेत्र में हालांकि विपक्ष की ओर से प्रत्याशी की घोषणा अब तक नहीं की गयी है, लेकिन इतना तय है कि विपक्ष के प्रत्याशी के लिए वीडी राम को पछाड़ पाना मुमकिन नहीं दीखता। पलामू संसदीय सीट पर पिछले 75 साल में कई तरह की खिचड़ी पक चुकी है और यह क्षेत्र कभी किसी एक दल का गढ़ नहीं रहा। राजनीतिक दृष्टि से पलामू की धरती बेहद उर्वर है, लेकिन रेन शैडो क्षेत्र होने के कारण यहां अक्सर अनावृष्टि और सुखाड़ की स्थिति बनी रहती है। मध्य बिहार के औरंगाबाद और यूपी-छत्तीसगढ़ से सटे होने के कारण पलामू संसदीय सीट राजनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील भी है और महत्वपूर्ण भी। पलामू ने एक पूर्व नक्सली कमांडर को भी अपना सांसद चुना है, तो एक पूर्व डीजीपी को भी। पलामू संसदीय सीट की यह विशिष्टता है। इसलिए पलामू के बारे में कोई भविष्यवाणी करना खतरे से खाली नहीं है। लेकिन आंकड़े और माहौल फिलहाल तो भाजपा के पक्ष में दिखाई दे रहे हैं। इसलिए कहा जा रहा है कि वीडी राम को हैट्रिक लगाने से रोकने के लिए विपक्ष को लोहे के चने चबाना होगा। हालांकि वीडी राम के लिए रास्ता सुगम नहीं है। भाजपा का प्रत्याशी घोषित होने के बाद क्या है पलामू का राजनीतिक परिदृश्य, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित झारखंड की एकमात्र संसदीय सीट पलामू से भारतीय जनता पार्टी ने लगातार तीसरी बार राज्य के पूर्व डीजीपी विष्णुदयाल राम को टिकट देकर रोमांचक मुकाबले की जमीन तैयार कर दी है। विष्णुदयाल राम 2014 और 2019 में भाजपा के टिकट पर पलामू से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं। विष्णुदयाल राम 1973 बैच के आइपीएस अधिकारी रहे हैं। उन्हें प्रत्याशी बनाये जाने की घोषणा से पहले उनकी उम्र को लेकर कई तरह की चचार्एं थीं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से उन पर भरोसा जताते हुए टिकट दिया है।

पलामू का राजनीतिक माहौल
पलामू संसदीय सीट पर इस बार सियासी माहौल पूरी तरह बदला हुआ है। पिछले चुनाव में वीडी राम के प्रतिद्वंद्वी रहे घूरन राम अब भाजपा में हैं। वह इस सीट से पिछला तीन संसदीय चुनाव लड़ चुके हैं। घूरन राम के पाला बदलने के बाद से अब लोगों की निगाह विपक्षी गठबंधन पर है कि वह किसे प्रत्याशी बनाता है। ऐसी संभावना है कि पलामू सीट राजद के कोटे में जायेगी और यह देखना दिलचस्प होगा कि वह किसे टिकट देता है। इधर चर्चा यह भी है कि पूर्व सांसद जोरावर राम के बेटे राकेश पासवान इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ सकते हैं। यदि ऐसा हुआ, तो मुकाबला त्रिकोणीय हो जायेगा।

पलामू में जातीय समीकरण है निर्णायक
जातीय समीकरण और वोटों के हिसाब से पलामू संसदीय सीट पर अनुसूचित जाति काफी अहम भूमिका निभाती है। वोटों के हिसाब से देखें तो यहां एससी जाति की संख्या करीब 27 प्रतिशत के करीब है। इसमें राम (15.1), भुइयां (5 प्रतिशत), पासवान (2.4), प्रसाद (2.1), बैठा (1.2), मांझी (0.6), मोची (0.3 ) प्रमुखता से शामिल हैं। यहां का जातीय समीकरण ही जीत-हार तय करता है। 2024 के लिए बन रहे चुनावी समीकरण में भाजपा का दावा मजबूत माना जा रहा है।

कौन हैं विष्णु दयाल राम
विष्णु दयाल राम मूल रूप से बिहार के बक्सर के नैनीजोर के रहने वाले हैं। नेतरहाट आवासीय स्कूल से उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई है। 1973 में भारतीय पुलिस सेवा के लिए उनका चयन हुआ था। 2005 और 2007 में विष्णु दयाल राम झारखंड के डीजीपी बने थे। 2007 से 2010 तक झारखंड के डीजीपी रहे हैं। विष्णुदयाल राम बिहार के भागलपुर और पटना के एसपी भी रह चुके हैं। डीजीपी के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की थी और 2014 में पहली बार पलामू से सांसद चुने गये थे। सांसद बनने के बाद विष्णु दयाल राम को विदेशी संबंधी समिति का स्थायी सदस्य बनाया गया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर विष्णु दयाल राम को सात लाख 55 हजार 659 वोट, जबकि राजद के घूरन राम को दो लाख 78 हजार 53 वोट मिले थे। इस तरह वीडी राम ने पौने पांच लाख से अधिक वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी।

वीडी राम के खाते में कई उपलब्धियां दर्ज हैं
लोकसभा में पलामू के लिए सबसे अधिक बार आवाज उठाने वाले सांसद विष्णु दयाल राम हैं। इन्होंने लोकसभा में पलामू संसदीय क्षेत्र को लेकर 115 से अधिक बार आवाज उठायी है। 2019 में सांसद चुने जाने के बाद विष्णुदयाल राम ने लोकसभा में दर्जनों बार पलामू की आवाज उठायी है। सांसद बनने के बाद विष्णु दयाल राम ने पलामू के इलाके में 21 सिंचाई परियोजनाओं को मंजूरी दिलवायी है। नेशनल हाइवे 75 और नेशनल हाइवे 98 को फोरलेन भी करवाया है। इस दौरान गढ़वा बाइपास एक बड़ी उपलब्धि है। सांसद की पहल पर सासाराम-रांची एक्सप्रेस का परिचालन शुरू हुआ है। बरवाडीह-चिरमिरी और गया-पलामू रेल लाइन को मंजूरी मिली है। पलामू और गढ़वा केंद्र सरकार के आकांक्षी जिलों की सूची में शामिल हैं। इस सूची से दोनों जिलों को बाहर निकालना एक बड़ी चुनौती है, ताकि इलाके में औद्योगिक प्रतिष्ठानों की स्थापना हो।

राजनीतिक रूप से समृद्ध है पलामू
आजादी से लेकर अब तक पलामू पिछड़ा कहा जाता रहा है। सच्चाई भी है कि हर क्षेत्र में धनी होने के बावजूद इस क्षेत्र के माथे पर पिछड़ेपन का टीका लगा हुआ है। पलामू की धरती ऐसी है कि यहां जंगल-पहाड़, खेत-खलिहान व मैदान सब कुछ है। पलामू में कई बड़ी-बड़ी नदियां, राष्ट्रीय स्तर के नेता, मंत्री और सांसद रह चुके हैं। संयुक्त पलामू आज तीन जिलों का प्रमंडल बन गया है। पलामू प्रमंडल, विशेषकर पलामू लोकसभा की राजनीतिक पृष्ठभूमि अपनी गोद में पूरा इतिहास समेटे हुए है। पलामू को पिछड़ा कहने वालों को शायद पता नहीं है कि यहां के चार लाल ने एक साथ झारखंड के चार अलग-अलग संसदीय सीट पर कब्जा जमा रखा था। वर्ष 2004 में पूरे देश में 14वीं लोकसभा का आम चुनाव हुआ। इसमें पलामू सीट से राजद प्रत्याशी सतबरवा निवासी मनोज कुमार, संयुक्त पलामू निवासी अब गढ़वा जिला के मंझिआंव चौखरा गांव निवासी चंद्रशेखर दुबे धनबाद, पलामू जिला मुख्यालय से सटे चियांकी गांव निवासी रामेश्वर उरांव लोहरदगा और पलामू के ही सुबोधकांत सहाय रांची से एक साथ सांसद बने थे। इस समृद्धि के बावजूद इसे विडंबना ही कहा जायेगा कि हर स्तर पर बुलंदी तक पहुंचाने वाली पलामू प्रमंडल की धरती अपने पिछड़ेपन पर आंसू बहाने को विवश है। पलामू प्रमंडल के लोगों को को इंतजार है एक ऐसे रहबर की, जो आये और पलामू को गरीबी-मुफलिसी की बेड़ी से एक हद तक आजाद करा दे।

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