विशेष
-पार्टी को राज्य की सात में से पांच सीटों पर नहीं मिल रहे दमदार उम्मीदवार
-रांची और हजारीबाग के अलावा हर जगह है उम्मीदवारों का टोटा

देश में लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल फूंका जा चुका है। यहां तक कि पहले चरण की चुनाव प्रक्रिया शुरू भी हो गयी है। झारखंड में हालांकि चुनावी प्रक्रिया 18 अप्रैल से शुरू होगी, लेकिन चुनाव से जुड़ी गतिविधियां चरम पर हैं। भाजपा ने राज्य की 14 में से 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिये हैं, लेकिन विपक्ष की ओर से राजद के दो प्रत्याशियों को छोड़ कर अन्य किसी का नाम अब तक घोषित नहीं किया गया है। यहां तक कि विपक्षी गठबंधन द्वारा सीट शेयरिंग का भी औपचारिक एलान नहीं किया गया है। विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस बड़े भाई की भूमिका में बतायी जा रही है और कयास लगाये जा रहे हैं कि वह राज्य की सात सीटों पर उम्मीदवार उतारेगी। लेकिन उसकी वास्तविक स्थिति यह है कि उसके पास योग्य उम्मीदवार ही नहीं हैं। पार्टी के लोग ही कह रहे हैं कि पार्टी को योग्य प्रत्याशी नहीं मिल रहा है, जिस पर दांव खेला जा सके। जयप्रकाश भाई पटेल को अपने खेमे में लाकर कांग्रेस ने हजारीबाग सीट की कमी पूरी कर ली है, जबकि रांची सीट पर उसके पास सुबोधकांत सहाय हैं, लेकिन धनबाद, खूंटी, लोहरदगा और गोड्डा जैसी सीटों पर कौन होगा पार्टी का उम्मीदवार, इसे लेकर संशय बरकरार है। उम्मीदवारों का नाम फाइनल नहीं होने से कार्यकर्ता भी ऊहापोह की स्थिति में हैं। ऐसी स्थिति में कांग्रेस झारखंड में भाजपा को टक्कर दे सकेगी या नहीं, इस सवाल का जवाब भी अधर में है। झारखंड कांग्रेस की इसी ऊहापोह की स्थिति के असर का आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश में आम चुनावों की प्रक्रिया की शुरूआत हो चुकी है। पहले चरण के चुनाव के लिए अधिसूचना जारी की जा चुकी है और नामांकन की प्रक्रिया भी शुरू हो गयी है। झारखंड में हालांकि चुनावी प्रक्रिया शुरू होने में अभी करीब एक महीने का वक्त है, लेकिन राज्य का सियासी माहौल पूरी तरह चुनावी हो गया है। राज्य की 14 संसदीय सीटों पर चुनावी मुकाबले की तस्वीर अब तक साफ नहीं हुई है। एक तरफ भाजपा है, जिसने 11 उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है, लेकिन उसे टक्कर देने के लिए तैयार इंडी अलायंस में उम्मीदवार तो दूर की बात, अभी सीट शेयरिंग का औपचारिक एलान भी नहीं हुआ है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव ‘करो या मरो’ जैसा है। झारखंड में वह सत्ता में हिस्सेदार है, लेकिन उसके सामने ऐसी समस्या है, जिसका समाधान उसकी समझ में नहीं आ रहा है।

सीट शेयरिंग के घाव पर राजद का नमक
विपक्षी गठबंधन में सबसे अजीब स्थिति कांग्रेस की है, जो खुद को झारखंड में बड़े भाई की भूमिका में कह रही है। अब तक जो कयास लगाये जा रहे हैं, उसके अनुसार राज्य की सात सीटों पर कांग्रेस लड़ेगी, जबकि पांच सीटों पर झामुमो और एक-एक सीट पर राजद और भाकपा माले का उम्मीदवार होगा। सीट शेयरिंग के इस फॉर्मूले पर औपाचरिक मुहर अब तक नहीं लगी है। इसी बीच राजद ने चतरा और पलामू सीट पर उम्मीदवार उतार कर इस फॉर्मूले के आकार लेने पर ग्रहण लगा दिया है। अब कांग्रेस के पास या तो एक सीट राजद के लिए छोड़ने या फिर पिछली बार की तरह चतरा में दोस्ताना मुकाबले का सामना करने का विकल्प है। राजद की घोषणा के बाद कांग्रेस पसोपेश में है और आनेवाले दिनों में इसे दूर करने की कोशिश की जायेगी।

कांग्रेस ने हजारीबाग की समस्या दूर की
कांग्रेस ने मांडू के विधायक जयप्रकाश भाई पटेल को अपने खेमे में शामिल कराने में सफलता हासिल की है। पार्टी उन्हें हजारीबाग से उम्मीदवार बनायेगी, जहां से भाजपा की ओर से मनीष जायसवाल उम्मीदवार हैं। मनीष जायसवाल भी हजारीबाग सदर सीट से विधायक हैं। इस तरह कांग्रेस ने जेपी पटेल को अपने खेमे में लाकर हजारीबाग में उम्मीदवार की कमी को दूर कर लिया है। वह क्या कर सकेंगे, यह तो समय बतायेगा, लेकिन लोकसभा चुनाव में उनका मनीष जायसवाल के साथ मुकाबला देखने लायक होगा, इसमें कोई संदेह नहीं है। हालांकि यह चर्चा भी होने लगी है कि कांग्रेस भी आयातित उम्मीदवारों पर ही दांव लगा रही है।

कांग्रेस लड़ाई के लिए तैयार नहीं
कांग्रेस की हालत यह है कि वह मुकाबले के लिए इच्छुक तो है, लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसके पास योद्धा ही नहीं हैं। पार्टी के नेता भी कह रहे हैं कि अगर अचानक किसी को चुनाव लड़ने के लिए कहा जाये, तो कौन इसके लिए तैयार होगा। पार्टी ने कभी संकेत नहीं दिया कि किसी नेता को चुनाव लड़ना है। इसलिए कांग्रेस का कोई नेता चुनाव की तैयारी नहीं कर सका है। इसके अलावा कांग्रेस के पास ऐसे नेताओं की भारी कमी है, जो लोकसभा चुनाव में उतरने की काबिलियत रखते हों। पहचान की बात छोड़ भी दें, तो संसाधन के हिसाब से भी वे प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ते नजर आ रहे हैं।
कुछ समय पहले कांग्रेस ने अधिक महत्वपूर्ण भूमिका के लिए संभावित युवा नेताओं की पहचान करने और उन्हें तैयार करने की कोशिश की, लेकिन यह झारखंड में असफल साबित हुई। इसीलिए पार्टी को भाजपा से मुकाबला करने के लिए उपयुक्त उम्मीदवारों के वास्तविक संकट का सामना करना पड़ रहा है, जो हमेशा चुनावी मोड में रहती है।

कांग्रेस के पास प्रत्याशियों की कमी
कांग्रेस ने रांची संसदीय सीट से पार्टी के पूर्व डिप्टी मेयर अजयनाथ शाहदेव को चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया है। इसलिए पार्टी अब सुबोधकांत सहाय पर दांव लगायेगी, जो पिछले दो चुनाव हार चुके हैं। इसी तरह कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने धनबाद से चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। वहां अब बेरमो के विधायक अनूप सिंह की पत्नी या छोटे भाई के अलावा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष टिकट पाने की जुगत में हैं। कांग्रेस के पास चाइबासा सीट के लिए भी कोई उम्मीदवार नहीं है। इसलिए उसने यह सीट झामुमो के लिए छोड़ दी है। लोहरदगा में पार्टी के भीतर तीन खेमे हैं, जिनमें एक सुखदेव भगत हैं, दूसरे डॉ रामेश्वर उरांव और तीसरे बंधु तिर्की। इन तीनों में से कोई भी बाकी दो को टिकट दिये जाने का विरोध कर रहा है। हालांकि रामेश्वर उरांव सांसद रह चुके हैं, जो अभी विधायक और मंत्री हैं, लेकिन वह खुद लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। वह चाहते हैं कि उनके किसी विश्वासपात्र को टिकट मिले। खूंटी में पिछली बार कांग्रेस ने कालीचरण मुंडा को उतारा था, जिन्होंने अर्जुन मुंडा को कड़ी टक्कर दी थी। इस बार वह मैदान में उतरने के इच्छुक तो हैं, लेकिन पार्टी की तरफ से उन्हें अब तक कोई संकेत नहीं मिला है। कांग्रेस के अंदरखाने चर्चा है कि पार्टी दयामनी बारला को टिकट देने की तैयारी कर रही है, जो हाल ही में कांग्रेस में शामिल हुई हैं और पिछले चुनाव में महज तीन हजार वोट ही पा सकी थीं। झारखंड में गोड्डा एकमात्र ऐसी सीट है, जहां कांग्रेस के पास दो मजबूत दावेदार हैं। ये हैं विधायक प्रदीप यादव और दीपिका पांडेय सिंह। इसमें भी प्रदीप यादव को कांग्रेसी बाहरी बताते हैं।

एक भी मंत्री चुनाव लड़ने को तैयार नहीं
झारखंड में कांग्रेस कोटे का एक भी मंत्री चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि विभिन्न लोकसभा क्षेत्रों से प्रत्याशियों की संभावित सूची में मंत्रियों का नाम नहीं है। ये मंत्री अपने काम के बूते विकास का दंभ भरते नहीं थकते हैं, लेकिन वे संसदीय चुनाव लड़ने के इच्छुक नहीं हैं। दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा के मंत्रियों को पार्टी आलाकमान के निर्देश का इंतजार है। पार्टी के आदेश पर वे चुनाव लड़ेंगे। दूसरी तरफ झामुमो के मंत्री आलाकमान के निर्देश पर ही मैदान में उतरेंगे। माना जा रहा है कि एक-दो मंत्री को पार्टी ने तैयार रहने का निर्देश भी दे दिया है। हालांकि झामुमो की तरफ से भी अभी तक उम्मीदवार को लेकर कोई औपचारिक घोषणा नहीं की गयी है। राजमहल को छोड़ कर अन्य सीटों पर स्थिति अभी साफ नहीं है।

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