-पहली बार भगवा पार्टी ने ताला मरांडी पर जताया है बड़ा भरोसा
-संथाल परगना की इस सीट पर रोमांचक मुकाबले की जमीन तैयार
-इंडी गठबंधन से झामुमो के विजय हांसदा के ही उतरने की उम्मीद

संथाल परगना की राजमहल लोकसभा सीट पर इस बार का चुनाव बेहद रोमांचक होगा। झामुमो का गढ़ माने जानेवाले इस संसदीय क्षेत्र की ह्यचाबीह्ण इसाइ और अल्पसंख्यक मतदाताओं के साथ आदिवासियों के पास है। इसलिए यहां भाजपा की सफलता हमेशा संदेह के घेरे में रही है। भाजपा ने ताला मरांडी को राजमहल का प्रत्याशी बना कर इस बार के चुनावी मुकाबले को रोमांचक बना दिया है। भाजपा ने पहली बार ताला मरांडी पर भरोसा जताया है, जबकि इंडी गठबंधन की तरफ से झामुमो के विजय हांसदा के ही मैदान में उतरने की उम्मीद है। विजय हांसदा दो बार से यहां से चुनाव जीत चुके हैं और इस बार हैट्रिक के लिए कोशिश करेंगे। ऐसे में राजमहल की पहाड़ियों में यह सवाल अभी से ही तैरने लगा है कि क्या भाजपा के लिए रामहल की ह्यचाबीह्ण हासिल करने में ताला मरांडी सफल हो सकेंगे। राजमहल संसदीय क्षेत्र के मतदाता चुनाव को लेकर जितने उत्साहित हैं, उतने ही गंभीर भी। यह क्षेत्र आदिवासी बहुल है और यहां के अधिकांश लोग गरीब तबके हैं और वनोत्पाद के अलावा खेती कार्य और मजदूरी करते हैं। ऐसे में अपने बच्चों को उच्च शिक्षा नहीं दिला पाते और यदि किसी तरह उच्च शिक्षा प्राप्त कर भी लिया, तो उन्हें रोजगार के लिए अन्य राज्य पलायन करना पड़ता है। यही इस क्षेत्र का सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है। इसलिए ताला मरांडी का सफर बहुत आसान नहीं होनेवाला है। ताला मरांडी को टिकट दिये जाने के बाद क्या है राजमहल सीट का सियासी माहौल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड के संथाल परगना क्षेत्र की राजमहल संसदीय सीट पर चुनावी तस्वीर काफी हद तक साफ हो चुकी है। भाजपा ने पहली बार ताला मरांडी को इस सीट से प्रत्याशी बना कर चुनावी मुकाबले को रोमांचक मोड़ पर खड़ा कर दिया है। अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित इस सीट पर हार-जीत की ह्यचाबीह्ण आदिवासी और अल्पसंख्यक वोटरों के हाथों में है। इसके चलते सभी प्रमुख प्रत्याशी उधर ही ताक रहे हैं। भाजपा को भी उम्मीद है कि ताला मरांडी यह ह्यचाबीह्ण उसके लिए हासिल कर पाने में कामयाब हो जायेंगे। 2019 में यहां से झामुमो के विजय कुमार हांसदा लगातार दूसरी बार जीते थे।

राजमहल संसदीय क्षेत्र की पृष्ठभूमि
छह विधानसभा क्षेत्र में फैले राजमहल सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र में साहिबगंज और पाकुड़ जिले के कुल 15 प्रखंड हैं। गोड्डा जिले के दो बोआरीजोर और सुंदरपहाड़ी और दुमका जिले का गोपीकांदर प्रखंड आता है। राजमहल सुरक्षित लोकसभा क्षेत्र शुरू से ही संथाल की राजनीति का केंद्र रहा है। पिछले 10 साल में साहिबगंज जिले में कई बड़ी परियोजनाएं शुरू हुई हैं। इनमें समदा में बंदरगाह, साहिबगंज और राजमहल में सीवरेज सिस्टम और महादेवगंज में डेयरी प्रोजेक्ट प्रमुख हैं। साहिबगंज-मनिहारी के बीच गंगा पुल का निर्माण भी तेजी से हो रहा है। पूरे इलाके में तेजी से बड़े शहरों की संस्कृति विकसित हो रही है।

राजमहल की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
संताल हूल के महानायक सिदो-कान्हू और चांद-भैरव के जन्मस्थल के रूप में देश-विदेश में साहिबगंज जिले की पहचान है। 1857 में हुए सिपाही विद्रोह से दो साल पहले ही 1855 में साहिबगंज जिले के बरहेट प्रखंड के भोगनाडीह गांव के इन चार भाइयों ने ब्रिटिश शासकों से लोहा लेकर उनके दांत खट्टे कर दिये थे। इस्ट इंडिया कंपनी के जमाने में 1861-62 के आसपास साहिबगंज से किऊल तक रेल लाइन बिछी थी। इसे साहिबगंज रेल लूप खंड कहा जाता था। देश के सबसे पुराने रेलखंड में साहिबगंज रेलखंड शामिल है। राजमहल संसदीय क्षेत्र को रेल लाइन से सीधे जुड़े होने का गौरव शुरू से ही हासिल है।

राजमहल से एक बार मिली है भाजपा को जीत
हेमलाल मुर्मू के झामुमो में वापस जाने के बाद राजमहल इलाके में भाजपा को एक बड़े चेहरे की जरूरत थी, जो झामुमो के इस गढ़ में उसके लिए लड़ सके। शायद इसीलिए भाजपा ने फिलहाल ताला मरांडी को सबसे बड़ा मोहरा माना है और उन पर दांव खेला है। राजमहल में देवीधन बेसरा ही झारखंड बनने के बाद 2009 में एक बार भाजपा को चुनावी जीत दिला सके हैं।

बोआरीजोर के रहने वाले हैं ताला मरांडी
ताला मरांडी गोड्डा जिले के बोआरीजोर प्रखंड के रहने वाले हैं। वह इससे पहले दो बार 2005 और 2014 में भाजपा के टिकट पर बोरियो के विधायक भी रह चुके हैं। जब वह राजनीति के शिखर पर थे और उन्हें भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया, तो वह एक बड़े विवाद में फंस गये, जिसके बाद उन्हें प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी गंवानी पड़ी। इसी विवाद के कारण 2019 में उनका टिकट भी काट दिया गया। उनके टिकट कटने के पीछे एक वजह उनकी अपनी ही सरकार की डोमिसाइल नीति की आलोचना करना भी था। इसके बाद ताला मरांडी बागी बन गये और आजसू में शामिल हो गये। उन्होंने आजसू के टिकट पर चुनाव लड़ा, लेकिन वह खुद भी चुनाव हार गये और भाजपा को भी हरा दिया। भाजपा और ताला मरांडी के बीच इस जंग के चलते बोरियो से झामुमो के लोबिन हेंब्रम चुनाव जीत गये। इसके बाद ताला मरांडी कुछ दिनों के लिए लोजपा में शामिल हुए, लेकिन फिर कुछ दिनों के बाद वह भाजपा में लौट आये।

राजमहल का सामाजिक समीकरण
इस लोकसभा सीट में छह विधानसभा सीटें- राजमहल, बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा, पाकुड़ और महेशपुर हैं। छह में दो सीटें भाजपा, एक निर्दलीय और तीन झारखंड मुक्ति मोर्चा के पास हैं। इसमें बोरियो, बरहेट, लिट्टीपाड़ा और महेशपुर अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। माना जाता है कि इसाइ मिशनरी और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े वोटर यहां जीत और हार में बड़ा फर्क करते हैं।

राजमहल का सियासी परिदृश्य
राजमहल लोकसभा सीट के अंतर्गत साहेबगंज की तीन विधानसभा सीटें, राजमहल, बोरियो और बरहेट आती हैं, तो वहीं तीन विधानसभा क्षेत्र पाकुड़ के लिट्टीपाड़ा, पाकुड़, महेशपुर आते हैं। इन्हीं छह विधानसभा सीटों को मिलाकर राजमहल लोकसभा सीट बनाया गया है। इन छह में से चार विधानसभा सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं और दो सामान्य विधानसभा सीट है। इस सीट का गठन 1957 में ही हो गया था। इस निर्वाचन क्षेत्र में लगभग चुनावी मुकाबला त्रिकोणीय ही रहा है। यहां भाजपा और कांग्रेस का जितना दबदबा रहा है, झामुमो का भी यहां वैसा ही वर्चस्व रहा है। राजमहल लोकसभा सीट को कांग्रेस ने आठ बार, झामुमो ने पांच बार, भाजपा ने दो बार और बीएलडी और जनता पार्टी ने एक-एक बार जीता है। बिहार से अलग होकर झारखंड के गठन के बाद इस सीट पर भाजपा और झामुमो ही टक्कर में रही है। इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक वर्ग और इसाइ मिशनरी का प्रभाव है। माना जाता है कि वे कांग्रेस-झामुमो के समर्थक हैं। वर्तमान सांसद विजय हांसदा के पिता थॉमस हांसदा भी कांग्रेस के सांसद थे। इसलिए इस परिवार का क्षेत्र में खासा प्रभाव है।

राजमहल के चुनावी मुद्दे
राजमहल संसदीय क्षेत्र में इस बार उच्च शिक्षा से लेकर पलायन और गरीबी से लेकर भ्रष्टाचार तक पर बात हो रही है। झारखंड का सबसे गरीब और पिछड़ा इलाका होने के कारण यहां के लोग हमेशा समस्याओं में ही जीते हैं। झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से यहां के दो दर्जन से अधिक पहाड़ पत्थर माफियाओं के कारण गायब हो गये हैं। यह इलाका हाल के दिनों में खनन घोटाले के खिलाफ इडी की कार्रवाई के कारण चर्चा में आया। इस बार के चुनाव में यह मुद्दा भी प्रमुखता से उठेगा। इसके अलावा बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा भी अहम है, जिसे लेकर लोग बेहद चिंतित हैं।

भाजपा के लिए चुनौती है राजमहल सीट
वर्ष 2014 और वर्ष 2019 में जब पूरे देश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी, तब भी झारखंड की जिन सीटों पर भाजपा को जीत नहीं मिली, उसमें एक सीट है राजमहल। इस सीट से पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी को भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया है। झारखंड की यह सीट भाजपा के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण सीट मानी जा रही है। भाजपा के लिए राजमहल सीट अब भी आसान नहीं है। पिछली बार भाजपा ने हेमलाल मुर्मू को अपना उम्मीदवार बनाया था, लेकिन उन्हें विजय हांसदा से करारी हार का सामना करना पड़ा था। अब हेमलाल मुर्मू झामुमो में शामिल हो गये हैं। इसके बाद विजय हांसदा को चुनौती देने के लिए भाजपा ने ताला मरांडी को चुना है।

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