– डीएसजे के विद्यार्थियों ने सीखे शिवाजी के प्रबंधन कौशल के गुर
– दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में स्वराज उत्सव का हुआ आयोजन
नई दिल्ली। दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म में छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम “स्वराज उत्सव 2025” का आयोजन किया गया। इस अवसर पर “छत्रपति शिवाजी महाराज- द मैनेजमेंट गुरु” विषय पर विशेष व्याख्यान भी हुआ। कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित करते हुए ऑयल एंड गैस प्रोफेशनल, अनकंवेंशनल के सलाहकार विलास तावड़े ने कहा कि शिवाजी महाराज के समय में राजस्व का संग्रहण और वितरण बहुत ही सुगठित था। इस दौरान तावड़े ने शिवाजी महाराज के प्रबंधन कौशल की बारीकियों से विद्यार्थियों को अवगत करवाया।
तावड़े ने बताया कि छत्रपति शिवाजी के काल में किसानों को बीज और खाद के रूप में कर्ज तक देने की व्यवस्था थी। उनके समय में सब्जियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखने की भी व्यवस्था थी, ताकि वे जल्दी खराब न हों और अधिक से अधिक राजस्व प्राप्त हो सके। यही नहीं शिवाजी महाराज को ‘फादर ऑफ इंडियन नेवी’ भी कहा जाता है। उनके समय में शासन एवं सैन्य व्यवस्था भी बहुत सुगठित थी। उनके सैनिकों में दो तरह के सैनिक होते थे, जिनमें स्थायी व 8 महीने के लिए अस्थाई सैनिक भर्ती करने की व्यवस्था थी। उन्होंने कहा कि माता-पिता ही बच्चों में संस्कारों की नींव रखते हैं। शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व निर्माण में भी माता जीजाबाई की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इस अवसर पर तावड़े ने विद्यार्थियों से शिवाजी जैसी नेतृत्व क्षमता और आत्मविश्वास अपनाने का आह्वान किया।
कार्यक्रम के आरंभ में दिल्ली स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की मानद निदेशिका प्रो. भारती गोरे ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि शिवाजी केवल योद्धा ही नहीं थे, बल्कि भारत के इतिहास के सबसे कुशल प्रशासकों में से एक थे। उन्होंने अपनी दूरदर्शिता और रणनीतिक कौशल से मराठा साम्राज्य की नींव रखी, जो भारतीय स्वाभिमान और स्वतंत्रता का प्रतीक बना। उन्होंने शिवाजी महाराज से जुड़े अनछुए पहलुओं को उजागर करने पर विलास तावड़े का धन्यवाद करते हुए कहा कि भविष्य में भी ऐसे प्रेरक कार्यक्रमों का आयोजन डीएसजे में किया जाता रहेगा ताकि विद्यार्थियों को अपनी समृद्ध विरासत और परंपरा के प्रति भी सटीक जानकारी मिलती रहे। कार्यक्रम के अंत में प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित किया गया, जिसमें विद्यार्थियों ने शिवाजी महाराज की युद्ध नीति और प्रशासनिक सुधारों से जुड़े प्रश्न पूछे।