विशेष
गैंगस्टर अमन साहू को मार गिरा कर राज्य को आतंक से मुक्त कराया
लंबे अंतराल के बाद झारखंड पुलिस को मिली इतनी बड़ी कामयाबी
दूसरे गैंगस्टरों के खिलाफ भी ऐसी सीधी कार्रवाई की है आवश्यकता

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड पुलिस ने लंबे समय के बाद बड़ी कामयाबी हासिल की है। अलग राज्य बनने के बाद से उसे पहली बार चारों तरफ से इतनी शाबाशी मिल रही है, क्योंकि उसने इस राज्य को अमन साहू नामक गैंगस्टर के आतंक से मुक्ति दिला दी है। अमन साहू के खात्मे के साथ ही राज्य की कानून-व्यवस्था और अपराध के मामले पर झारखंड पुलिस पर उठ रहे सवाल भी हमेशा के लिए खत्म हो गये हैं। पिछले एक दशक से अमन साहू ने पूरे झारखंड में आतंक फैला रखा था। कारोबारी से लेकर व्यवसायी और ठेकेदार से लेकर अधिकारी तक उसके नाम से खौफ खाते थे। पुलिस पर उसे बचाने के आरोप लग रहे थे, लेकिन इस दुर्दांत अपराधी को मार गिरा कर झारखंड पुलिस ने अपनी वर्दी पर लगे कलंक के दाग को मिटा लिया है। अमन साहू ने लोगों का सुख-चैन छीन लिया था, तो फिर उसे भी जीने का कोई अधिकार नहीं रह गया था। झारखंड को अभी इस तरह की कार्रवाई की जरूरत है, क्योंकि अब भी कुछ ऐसे गैंगस्टर हैं, जो इस शांत प्रदेश को अशांत कर रहे हैं। अमन साहू ने झारखंड में अपराध का जो काला साम्राज्य स्थापित किया था, उसके अंत के साथ राज्य में शांति का नया अध्याय शुरू हुआ है। इसके लिए वाकई पुलिस की तारीफ की जानी चाहिए। पुलिस की कार्रवाई का असर उन बचे-खुचे गैंगस्टरों पर भी पड़ेगा, जो खुद को कानून से ऊपर मानते हैं। अमन साहू के खात्मे के इस अध्याय का क्या होगा झारखंड के अपराध जगत पर असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा।

कहानी शुरू करते हैं 90 के दौर से, जब झारखंड अलग राज्य नहीं बना था। रांची में एक युवा आइपीएस की तैनाती हुई थी। नाम था अरविंद पांडेय और पद मिला था एएसपी का। उन दिनों रांची का जनजीवन शाम सात बजे थम जाया करता था। इलाके में सुरेंद्र बंगाली और अनिल शर्मा का आतंक था। अरविंद पांडेय ने रांची को अपराधमुक्त करने का अभियान शुरू किया, तो अपराधी इधर-उधर भागने लगे। कई अपराधी पुलिस मुठभेड़ में मारे गये, तो बड़े गैंगस्टरों को अमिताभ चौधरी (अब दिवंगत) जैसे जांबाज आइपीएस अफसरों ने दबोचना शुरू किया। कुछ ही महीने के बाद रांची और आसपास के इलाके में संगठित अपराध कम हो गये। लेकिन झारखंड अलग राज्य बनने के बाद से पुलिस ने वैसा अभियान कभी शुरू नहीं किया। इसका नतीजा यह हुआ कि राज्य में गैंगस्टरों की हिम्मत बढ़ती गयी। कारोबारी, ठेकेदार और बिल्डर उनके निशाने पर आ गये। पुलिस को इनकी गतिविधियों की जानकारी मिलती तो थी, लेकिन वह कोई कार्रवाई नहीं करती थी।

ऐसे में आठ और नौ मार्च को रांची और हजारीबाग में ताबड़तोड़ दो घटनाओं को अंजाम देकर गैंगस्टर अमन साहू ने झारखंड पुलिस के इकबाल को चुनौती दी। अमन साहू के गुर्गों ने रांची में सरेराह एक कोयला कारोबारी बिपिन मिश्रा को गोली मार कर घायल कर दिया। इसके अगले ही दिन उसके गुर्गों ने हजारीबाग में एनटीपीसी के डीजीएम कुमार गौरव को गोलियों से भून डाला। इन दो घटनाओं ने झारखंड पुलिस पर सवालिया निशान लगा दिया। लेकिन 11 मार्च को झारखंड पुलिस ने अमन साहू को एक मुठभेड़ में मार गिराया। इसके साथ ही झारखंड को उसके आतंक से मुक्ति मिल गयी।

झारखंड का सबसे दुर्दांत गैंगस्टर था अमन
अमन साहू कितना बड़ा गैंगस्टर था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसे झारखंड का लॉरेंस बिश्नोई भी कहा जाने लगा था। जिस तरह जेल में बंद रहकर लॉरेंस बिश्नोई दिल्ली से मुंबई तक वसूली, लूट और हत्या को अंजाम देता है, उसी तरह अमन साहू भी छत्तीसगढ़ की जेल से पूरा नेटवर्क चला रहा था। दुबले-पतले शरीर और मासूम से चेहरे वाले अमन साहू पर 150 से अधिक मुकदमे दर्ज थे। वह लॉरेंस बिश्नोई से भी हाथ मिला चुका था। कभी हार्डकोर नक्सली रहा अमन साहू पिछले कई सालों से आपराधिक गैंग चला रहा था। वह वसूली से लेकर हत्या और लूट का बड़ा नेटवर्क चला रहा था, जिसमें सैकड़ों शूटर और गुर्गे शामिल हैं। झारखंड से छत्तीसगढ़ तक अमन साहू मुख्य तौर पर कोयला कारोबारियों को निशाना बनाता था। वह कोयला कारोबार से जुड़े लोगों से वसूली करता था और इनकार किये जाने पर हत्या कर देता था।

लॉरेंस बिश्नोई से अमन का क्या कनेक्शन
अमन साहू पिछले कुछ सालों में लॉरेंस बिश्नोई का करीबी बन चुका था। बताया जाता है कि लॉरेंस बिश्नोई को वह शूटर और गुर्गे उपलब्ध कराता था। बदले में उसे लॉरेंस गैंग से कई आधुनिक हथियार मिले थे। लॉरेंस बिश्नोई से एएनआइ की पूछताछ के दौरान भी अमन साहू का नाम सामने आया था। अमन साहू बिश्नोई गैंग को गुर्गे उपलब्ध कराने के अलावा शूटरों को सीमापार कराने में भी मदद करता था। पिछले कुछ सालों में साहू लॉरेंस का पक्का यार बन चुका था। लॉरेंस बिश्नोई फिलहाल गुजरात की साबरमती जेल में बंद है।

सोशल मीडिया पर भी एक्टिव था साहू
अमन साहू सोशल मीडिया पर भी खूब एक्टिव रहता था। उसका अकाउंट विदेश में बैठा शख्स आॅपरेट कर रहा था। एनकाउंटर से 15 घंटे पहले भी अमन साहू की एक तस्वीर को फेसबुक पर पोस्ट किया गया था। अमन साहू राजनीति में भी आना चाहता था और वह बड़कागांव से विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहता था।

झारखंड पुलिस ने हासिल की बड़ी कामयाबी
अमन साहू को मार गिराये जाने के बाद झारखंड पुलिस की चौतरफा तारीफ हो रही है। कहा जा रहा है कि जो गैंगस्टर या अपराधी दूसरों के जीने के अधिकार का हनन करते हैं, उन्हें खुद जिंदा रहने का अधिकार नहीं है। अमन साहू ने जिस तरह डेढ़ सौ से अधिक घटनाओं को अंजाम दिया और दिलवाया, दर्जनों लोगों की हत्या की, उसे झारखंड आखिर कब तक बर्दाश्त करता। वास्तव में झारखंड बनने के बाद से यह पहला मौका है, जब झारखंड पुलिस ने किसी गैंगस्टर को मुठभेड़ में मार गिराया है।

राज्य की जेलों पर नजर रखने की जरूरत
अमन साहू को मार गिराने के बाद अब झारखंड पुलिस के सामने यह चुनौती है कि वह जेल के भीतर से संचालित हो रहे अपराध की दुनिया को नेस्तनाबूद करे। पुलिस प्रशासन को खुलेआम घूम रहे अमन साहू के गुर्गों को दबोचने के साथ उस सिस्टम को ध्वस्त करने की चुनौती है, जिसकी मदद से जेल में बंद होने के बावजूद अपराधी बाहर की दुनिया के संपर्क में रहते हैं। जब तक ऐसा नहीं होगा, संगठित अपराध पर लगाम लगाना असंभव होगा।

हेमंत सरकार ने सबका मुंह बंद कराया
इस बात में कोई संदेह नहीं कि अमन साहू को मार गिराये जाने के साथ ही हेमंत सोरेन सरकार ने कानून-व्यवस्था पर हो रही आलोचनाओं को हमेशा के लिए खत्म कर दिया है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के निर्देश पर डीजीपी अनुराग गुप्ता ने अपनी पूरी टीम के साथ संगठित अपराध के खिलाफ जो अभियान शुरू किया है, अमन साहू का एनकाउंटर उसका पहला अध्याय है। अभी इस अभियान में कई अध्याय और लिखे जायेंगे। उनमें निश्चित रूप से झारखंड में सक्रिय दूसरे गैंगस्टरों के नाम शामिल होंगे।

 

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