विशेष
लालू-तेजस्वी की नाराजगी के बाद इंडी गठबंधन के भविष्य पर संशय
कांग्रेस आलाकमान भी अब खुल कर बैटिंग करने की तैयारी में जुटा
कन्हैया कुमार को लेकर गठबंधन के दूसरे घटक भी सहज नहीं दिख रहे
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में इस साल के अंत में होनेवाले विधानसभा चुनाव की तैयारी शुरू हो गयी है। राज्य का चुनावी परिदृश्य अब तक तो सीधे मुकाबले की तरफ इशारा कर रहा है, लेकिन हाल के दिनों में इंडी गठबंधन के दो सबसे बड़े घटक, राजद और कांग्रेस के बीच में पैदा हुई दरार से यह परिदृश्य बदल भी सकता है। असल में बिहार में इंडी गठबंधन, जिसे महागठबंधन भी कहा जाता है, में कांग्रेस अब राजद से ज्यादा सक्रिय भूमिका निभा रही है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी दो बार बिहार का दौरा कर चुके हैं और दलित राजनीति पर केंद्रित कार्यक्रमों में शामिल हुए हैं। कांग्रेस ने अपने प्रभारी कृष्णा अल्लवरु को बिहार में रहने और नियमित रूप से रिपोर्ट करने का निर्देश दिया है। पार्टी ने कन्हैया कुमार के नेतृत्व में 16 मार्च से बिहार में युवाओं को जोड़ने के लिए ‘नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ शुरू की है। कांग्रेस की सक्रियता से राजद के भीतर खलबली देखी जा रही है। लालू-तेजस्वी ने कन्हैया कुमार को बिहार में सक्रिय करने पर आपत्ति जतायी है और राहुल गांधी को यह जानकारी भी दे दी है। समझा जा रहा है कि कन्हैया कुमार ही वह ‘कांटा’ हैं, जो राजद और कांग्रेस के रिश्तों की चादर को तार-तार कर रहा है। कन्हैया के प्रति राजद का रवैया और कांग्रेस, खास कर राहुल गांधी का उन पर भरोसा ही टकराव की जमीन तैयार कर रहा है। ऐसे में बिहार का चुनाव सीधे मुकाबले से त्रिकोणीय हो जाये, तो बहुत अधिक आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्या है कन्हैया कुमार को लेकर बिहार में राजद और कांग्रेस के बीच तल्खी और क्या हो सकता है इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
बिहार में आठ महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने हैं, लेकिन सियासी दांव और समीकरण अभी से सेट किये जाने लगे हैं। प्रदेश में अपने खोये जनाधार को वापस पाने के लिए कांग्रेस पार्टी अब किसी पर निर्भर रहने की बजाय आत्मनिर्भर बनने की कवायद में है। इसके लिए पार्टी ने अपनी यूथ बटालियन यानी कन्हैया कुमार और कृष्णा अल्लावुरु को मैदान में उतार दिया है। कन्हैया कुमार ने भी रविवार 16 मार्च से ‘नौकरी दो, पलायन रोको यात्रा’ शुरू कर दी है। यात्रा का मकसद युवाओं को पार्टी से जोड़ने का है, लेकिन यह पदयात्रा पार्टी को फायदा पहुंचाने की बजाय नुकसान भी पहुंचा सकती है। सियासी जानकारों का तो यह भी कहना है कि कन्हैया कुमार की पदयात्रा कहीं कांग्रेस पार्टी को पैदल ना कर दे।
दरअसल, बिहार में कांग्रेस पार्टी अभी तक राजद के पीछे खड़े होकर राजनीति कर रही थी। लेकिन राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने जब से राहुल गांधी को इंडी ब्लॉक की कप्तानी से हटाने की सिफारिश की, तभी से दोनों दलों के बीच काफी मनमुटाव देखने को मिल रहा है। इस मुद्दे पर दलों के बीच काफी तीखी बयानबाजी देखने को मिल चुकी है। इस दौरान राहुल गांधी दो बार बिहार आये और दोनों बार लालू परिवार से मुलाकात की, लेकिन दोनों बार राजद को फंसाने वाले बयान देकर वापस गये। अब राजद को जवाब देने के लिए ही कांग्रेस पार्टी ने कन्हैया कुमार को बिहार में उतारा है। वैसे भी लालू परिवार के दबाव में ही कन्हैया कुमार को दिल्ली ट्रांसफर किया गया था।
राजद को कन्हैया पर है आपत्ति
विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कन्हैया कुमार को बिहार में सक्रिय करने से राजद नाराज हो गया है। लालू-तेजस्वी की तरफ से राहुल गांधी को इसका संदेश भी दिया जा चुका है। बताया जाता है कि पहले राहुल गांधी चंपारण से कन्हैया कुमार की यात्रा को रवाना करने आनेवाले थे, लेकिन लालू-तेजस्वी की नाराजगी ने उनके कदम रोक दिये। इसलिए कहा जा रहा है कि कांग्रेस द्वारा कन्हैया को सक्रिय करना पार्टी को फायदा की जगह नुकसान भी पहुंचा सकता है। सियासी जानकारों का कहना है कि कन्हैया कुमार के आने से बिहार कांग्रेस भी दो खेमों में बंट गयी है। कांग्रेस के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावरू, कन्हैया कुमार, पप्पू यादव अभी एक कैंप में हैं और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह दूसरे कैंप में। अखिलेश प्रसाद का गुट राजद से रिश्ता रखने के समर्थन में है, जबकि कन्हैया कुमार का गुट अब ‘एकला चलो’ की नीति पर काम करना चाहता है। बिहार में कांग्रेस पार्टी 90 के दशक से राजद के सहारे ही राजनीति कर रही है। अब अचानक से राजद से अलग होकर चुनावी मैदान में कूदना उसके लिए खुदकुशी के बराबर होगा।
यदि रिश्ता टूटा, तो क्या होगा
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि यदि कांग्रेस और राजद का रिश्ता कन्हैया के कारण टूटा, तो फिर बिहार में क्या होगा। इसका जवाब यही है कि नया समीकरण बनेगा। अकेले अपने दम पर लड़कर जीतना बिहार में किसी दल के लिए आसान नहीं है। प्रशांत किशोर जिस वोट बैंक के आधार पर राजनीति कर रहे हैं, कांग्रेस का आधार भी अकेले होने पर वही होगा। ऐसे में इन दोनों के बीच एक समीकरण पनप सकता है। वहीं दूसरी ओर कन्हैया कुमार तो अपनी पदयात्रा के पहले बयान में ही घिर गये हैं। वह नौकरी-रोजगार पर बोलते-बोलते अचानक से हनीमून की बातें करने लगे। पदयात्रा में एनडीए सरकार पर हमला करते हुए कन्हैया कुमार ने कहा कि यहां की जनता को न केवल शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ता है, बल्कि हनीमून मनाने तक के लिए भी दूसरे राज्यों का रुख करना पड़ता है। चूंकि कांग्रेस पार्टी कन्हैया कुमार को प्रमोट कर रही है, तो उनकी हर बात में ‘बाल की खाल’ निकाली जायेगी, इतनी समझ तो कन्हैया कुमार को होनी ही चाहिए।
क्यों कन्हैया से नाराज हैं लालू-तेजस्वी
अब कन्हैया कुमार को लेकर लालू-तेजस्वी की नाराजगी के कारणों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए। लालू-तेजस्वी का मानना है कि कन्हैया को यदि बिहार में स्थापित किया गया, तो वह राजद की जातीय गोलबंदी वाली राजनीति को खत्म कर देंगे। इतना ही नहीं, तेजस्वी के लिए वह बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं। इसलिए उन्हें बिहार से बाहर ही रखना अच्छा है। कन्हैया कुमार राजद के इन दोनों नेताओं के बारे में खुल कर तो कुछ नहीं कहते, लेकिन राजनीतिक जानकार कहते हैं कि उनके कदम कांग्रेस के लिए शुभ तो नहीं ही हो सकते। इसके अलावा कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार कांग्रेस के जिस पलायन और बेरोजगारी के मुद्दे को उठा रहे हैं, कमोबेश तेजस्वी का भी यही कोर मुद्दा है। ऐसे में इन दो युवा नेताओं के टकराव में सियासी परिदृश्य कैसा होगा, इसका अंदाजा बखूबी लगाया जा सकता है।
कांग्रेस से नाराजगी के दूसरे कारण
कन्हैया के अलावा राजद की कांग्रेस से नाराजगी के दूसरे कारण भी हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को पता चला है कि बिहार के कुछ नेता राजद के करीब हैं। गुजरात दौरे के दौरान राहुल गांधी ने भाजपा के साथ सहयोग करने वाले कांग्रेस नेताओं की पहचान कर उन्हें हटाने का जिक्र किया था। उन्होंने पार्टी के कुछ सदस्यों को आगे करने और अन्य को दरकिनार करने की भी बात कही थी। कांग्रेस अब राजद खेमे में जवाबी हमले की तैयारी कर रही है और इसे लेकर राजद में खलबली है।