चुनाव से पहले सब कुछ तय कर लेना चाहते हैं सुशासन बाबू
बिहार की राजनीति में नये अध्याय की हो सकती है शुरूआत

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार की राजनीति का पहिया इन दिनों बड़ी तेजी से घूम रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भागलपुर दौरा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए उनका ‘लाडला’ संबोधन, फिर जेपी नड्डा का बंद कमरे में नीतीश से बातचीत और बाद में कैबिनेट विस्तार में भाजपा के सात विधायकों को जगह दिये जाने के बाद यह चर्चा आम हो चली है कि नीतीश कुमार विधानसभा चुनाव से पहले सब कुछ सेट कर लेना चाहते हैं। 2020 के चुनाव में उन्होंने कहा था कि यह उनका अंतिम चुनाव है। अब इस साल के अंत में विधानसभा का चुनाव होना है, जिसमें नीतीश कुमार की भूमिका को लेकर अभी से कयासों का दौर शुरू हो गया है। इन चर्चाओं को उस समय बल मिला, जब नीतीश कुमार के पुत्र निशांत भी सियासी बयानबाजी करने लगे। भाजपा से गठबंधन से लेकर बिहार में सुशासन को जारी रखने तक के बारे में निशांत कुमार ने जो कुछ कहा, उस पर नीतीश कुमार की चुप्पी ने इस बात के पुख्ता संकेत दे दिये हैं कि सुशासन बाबू ने अपने पुत्र के लिए सियासी जमीन तैयार कर ली है और अब उन्हें लांच करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। चर्चा तो यहां तक हो रही है कि नीतीश कुमार आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार अभियान की कमान भी अपने पुत्र के हाथों में देंगे, ताकि वे तेजस्वी के युवा चेहरे का जवाब बन सकें। यदि नीतीश कुमार अपने पुत्र को राजनीति में उतारते हैं, तो यह बिहार की राजनीति का नया अध्याय होगा। क्या है नीतीश कुमार की पूरी योजना और निशांत कुमार की सियासत में लांचिंग का क्या हो सकता है असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार लगातार अपने बयानों से यह संकेत दे रहे हैं कि वे बिहार की सक्रिय राजनीति में उतरने को तैयार हैं। निशांत के बयानों पर नीतीश कुमार की चुप्पी भी यही संकेत दे रही है कि बिहार के मुख्यमंत्री अपनी राजनीतिक विरासत और अपनी पार्टी- जनता दल यूनाइटेड दोनों को अपने बेटे के हाथ में सौंपने की तैयारी कर रहे हैं। नीतीश कुमार की चुप्पी और निशांत कुमार के बयानों के कई मतलब और मायने भले ही निकाले जा रहे हों, लेकिन राजनीति को सही ढंग से समझने वाला कोई भी जानकार यह बता सकता है कि पिता-पुत्र के मन में क्या चल रहा है।

नीतीश कुमार शुरू से ही परिवारवाद की राजनीति के खिलाफ रहे हैं। कई बार तो वह सार्वजनिक मंच से परिवारवाद की राजनीति करने के लिए लालू यादव पर निशाना साध चुके हैं। यहां तक कि दशकों तक नीतीश कुमार किसी भी सार्वजनिक मंच पर अपने बेटे निशांत कुमार को अपने साथ नहीं ले गये। लेकिन पिछले कुछ दिनों से नीतीश कुमार और उनके बेटे निशांत कुमार की तस्वीरें लगातार सामने आ रही हैं। निशांत कुमार की राजनीति में एंट्री को लेकर जदयू नेताओं के बयान भी लगातार आ रहे हैं।

दूसरी तरफ, जिन निशांत कुमार की तारीफ में यह बताया जाता था कि वह बहुत सादगी से रहते हैं, मीडिया की चकाचौंध से दूर रहते हैं, वही निशांत कुमार आजकल लगातार मीडिया के सामने आ रहे हैं। सबसे अधिक गौर करने वाली बात यह है कि वह मीडिया को गंभीर राजनीतिक मसलों पर बयान देकर हंगामा भी खड़ा कर रहे हैं। एक पल के लिए यह माना जा सकता है कि अपने पिता को फिर से बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए वह बिहार के मतदाताओं से अपील कर रहे हैं लेकिन एनडीए गठबंधन को लेकर भी उनका बोलना यह दर्शाता है कि नीतीश कुमार उन्हें राजनीति में उतारने का फैसला कर चुके हैं, निशांत कुमार भी इसके लिए अपने आपको तैयार कर रहे हैं और अब लांचिंग के लिए सही मौके का इंतजार किया जा रहा है।

जो बात नीतीश कुमार स्वयं अपनी जुबान से नहीं बोल पा रहे थे, उन्होंने वह बात अपने पुत्र निशांत कुमार की जुबान से बुलवाकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेल दिया है। निशांत कुमार ने एनडीए गठबंधन के सबसे बड़े दल भाजपा को नसीहत देते हुए कहा कि एनडीए भी नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करे। जदयू के तमाम नेता और कार्यकर्ता सभी मिलकर सीएम फेस घोषित करें, ताकि उनके नेतृत्व में विकास कार्य जारी रहे। एक तरफ निशांत कुमार ने भाजपा को एनडीए गठबंधन का नेता घोषित कर विधानसभा चुनाव लड़ने की नसीहत दी, तो वहीं दूसरी तरफ इशारों-इशारों में वह चिराग पासवान और प्रशांत किशोर जैसे नेताओं पर भी बड़ी बात कह गये।

निशांत कुमार के शब्दों पर गौर कीजियेगा। उन्होंने कहा कि वे मीडिया के माध्यम से राज्य के तमाम युवाओं से आह्वान करते हैं कि पिताजी ने विकास किया है, तो उनके लिए वोट करें। पिछली बार लोगों ने उन्हें 43 सीटें दे दी, फिर भी उन्होंने विकास का क्रम रुकने नहीं दिया। इस बार सीट बढ़ना मांगता है, ताकि पिताजी आगे भी कार्य जारी रख सकें। यह सब जानते हैं कि 2020 के पिछले विधानसभा चुनाव में जदयू उम्मीदवारों को हराने में बड़ी भूमिका चिराग पासवान ने निभायी थी। चिराग पासवान ने 2020 के विधानसभा चुनाव में अपने आपको नरेंद्र मोदी का हनुमान बताते हुए नीतीश कुमार की पार्टी को 43 सीटों पर ला दिया था। इस बार कुछ उसी तरह की भूमिका निभाने की तैयारी प्रशांत किशोर करते हुए नजर आ रहे हैं।

निशांत कुमार जिस नपे-तुले शब्दों के साथ सधे हुए अंदाज में बयान दे रहे हैं, उससे यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि एक-एक शब्द का चयन बहुत सावधानी से किया गया है। इसका सीधा मतलब यही निकलता है कि, कितने बड़े पैमाने पर तैयारी की जा रही है। ऐसे में यह तय माना जा रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में बिहार की जनता के सामने समाजवादी विचारधारा के आंदोलन से निकले एक और दिग्गज नेता के पुत्र अपने पिता के नाम पर वोट देने की गुहार लगाते नजर आ सकते हैं।

 

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