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    Home»विशेष»विधानसभा के बजट सत्र के तीसरे सप्ताह की समीक्षा
    विशेष

    विधानसभा के बजट सत्र के तीसरे सप्ताह की समीक्षा

    shivam kumarBy shivam kumarMarch 24, 2025No Comments6 Mins Read
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    मंत्री सुदिव्य और प्रदीप रहे लाइम लाइट में, इरफान-योगेंद्र निशाने पर
    दो मंत्रियों के भिड़ने और एक अन्य का मोबाइल जब्त किये जाने की घटना भी हुई
    नये विधायकों में पूर्णिमा साहू का प्रदर्शन बेहतर रहा
    राकेश सिंह
    रांची। झारखंड विधानसभा के बजट सत्र का तीसरा सप्ताह भी गुजर गया। इस सप्ताह हालांकि अधिकतर विधायी कामकाज ही निबटाये गये, लेकिन फिर भी जनहित के मुद्दे भी खूब उठे। विधायकों ने अपने-अपने क्षेत्र के मुद्दों को लेकर सवाल उठाये और सरकार से जवाब भी मिले। इस सप्ताह विपक्ष ने भी अच्छी भूमिका निभाई। हंगामा और सदन का बहिष्कार करने की जगह मुद्दों पर सरकार को घेरा। इन सब रूटीन कामकाज के अलावा झारखंड विधानसभा में इस सप्ताह कुछ ऐसी घटनाएं भी हुईं, जो पहले कभी नहीं हुई थीं।

    सबसे पहले बात विधायकों की। पूरे सप्ताह विधायकों ने अपने-अपने इलाकों के मुद्दों को सवालों के जरिये सदन में उठाया। इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष के विधायक शामिल रहे। यह महसूस भी किया गया कि नेता प्रतिपक्ष के तौर पर बाबूलाल मरांडी के चुनाव के बाद विपक्षी खेमा थोड़ा ज्यादा सक्रिय हुआ है। खुद बाबूलाल मरांडी और सीपी सिंह के साथ नवीन जायसवाल, डॉ नीरा यादव, सत्येंद्र तिवारी, कुशवाहा शशिभूषण मेहता, नये विधायकों में पूर्णिमा साहू आदि ने सवाल उठाया और जहां तक संभव हुआ सरकार को घेरने का भी प्रयास किया। जरूरत को अनुसार हंगामा किया, लेकिन कामकाज को ज्यादा बाधित नहीं किया। सदन का बहिष्कार करने की जगह, सदन में रह कर सरकार को घेरने का प्रयास ज्यादा रहा। हालांकि विपक्षी खेमे की आक्रामकता में कमी साफ दिखी। जाहिर है यह कम संख्या बल के कारण हो रहा।

    घोड़थंबा की घटना को मुद्दा नहीं बना सका विपक्ष
    सप्ताह की शुरूआत में सदन में विपक्ष ने होली के दौरान गिरिडीह के घोड़थंबा में हुई सांप्रदायिक घटना को उठाया और सरकार को घेरने की कोशिश की। लेकिन भाजपा के मनोनुकूल मुद्दा होने के बावजूद पार्टी के विधायक इसे अधिक कारगर नहीं बना सके और सरकार को घेरने की उनकी कोशिश विफल हो गयी। पिछली विधानसभा में जिस तरह बरही और लोहरदगा में सांप्रदायिक घटनाओं को लेकर सरकार को घेरा गया था, इस बार वह धार पूरी तरह गायब थी।

    सुदिव्य सोनू बने सरकार के कवच
    पूरे सप्ताह विधानसभा में सरकार की तरफ से मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू ने कमान संभाल रखी थी। वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर के बीमार पड़ने के बाद उन पर बड़ी जिम्मेदारी डाल दी गयी थी। इसका उन्होंने बखूबी निर्वाह किया और इस क्रम में कई बार विधायकों के निशाने पर भी आये। लेकिन उन्होंने बेहद जिम्मेदारी और सूझ-बूझ से तमाम सवालों के जवाब भी दिये और सरकार का कवच बने रहे।

    मंत्री योगेंद्र प्रसाद भी रहे चर्चा में
    सुदिव्य कुमार सोनू के अलावा मंत्री योगेंद्र प्रसाद भी इस सप्ताह चर्चा के केंद्र में रहे। खास कर स्वर्णरेखा परियोजना में फर्जी निकासी के मुद्दे पर अपने जवाब को लेकर, जिसमें वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर उनके खेवनहार बने और पांच अधिकारियों के निलंबन की जानकारी देकर मुद्दे को सुलझाया। इसके अलावा विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष के कई विधायकों ने उन्हें अपने सवालों में उलझाया और योगेंद्र प्रसाद कई बार घिरते भी दिखे।

    डॉ इरफान अंसारी ने भी ध्यान खींचा
    एक पुरानी कहावत है कि बदनाम होंगे, तो क्या नाम नहीं होगा। स्वास्थ्य मंत्री डॉ इरफान अंसारी पर यह कहावत पूरी तरह फिट बैठती है। पिछले सप्ताह सदन में उन्होंने कई बार अपने वक्तव्यों से और आचरण से विवाद खड़ा किया। सदन में वह मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू से भिड़ गये, तो मंत्री योगेंद्र प्रसाद को भी कुछ अप्रिय कह दिया। इतना ही नहीं, नेता प्रतिपक्ष से लेकर विपक्ष और सत्ता पक्ष के वरिष्ठ विधायकों को भी उन्होंने खूब सुनाया। ऐसा कर स्वास्थ्य मंत्री चर्चा में तो रहे, लेकिन यह नकारात्मक चर्चा रही। चाहे हेमलाल मुर्मू हों या फिर सीपी सिंह, इरफान अंसारी सभी के निशाने पर रहे।

    प्रदीप यादव ने निभायी विपक्ष की भूमिका
    विधानसभा के बजट सत्र के तीसरे सप्ताह में यदि किसी एक विधायक ने सबसे अधिक ध्यान खींचा, तो वह रहे कांग्रेस विधायक दल के नेता प्रदीप यादव। सत्ता पक्ष का होने के बावजूद उन्होंने कई ऐसे मुद्दे उठाये, जो आम तौर पर विपक्ष उठाता है और सरकार को घेरता है। प्रदीप यादव ने कई बार अपनी बातों से न केवल मंत्रियों को घेरा, बल्कि सिस्टम को भी कटघरे में खड़ा किया।

    चंपाई सोरेन की चुप्पी
    विपक्ष की तरफ से जिस एक विधायक का मौन सबसे अधिक महसूस किया गया, वह थे चंपाई सोरेन। पूरे सप्ताह चंपाई सोरेन ने न कोई सवाल पूछा और न ही कुछ बोला। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पाला बदल कर भाजपा में आनेवाले चंपाई सोरेन को देख कर ऐसा लगता है कि वह अब तक खुद को नयी पार्टी में एडजस्ट नहीं कर पाये हैं।

    कल्पना सोरेन की सक्रियता
    गांडेय विधायक कल्पना सोरेन इस सप्ताह सदन के भीतर बेहद सक्रिय रहीं। उन्होंने न केवल सत्ता पक्ष की तरफ से सरकार से सवाल पूछे, बल्कि सदन के बाहर साथी विधायकों से मंत्रणा करती भी दिखीं। केंद्र पर झारखंड के बकाये का सवाल पूछ कर कल्पना सोरेन ने साबित कर दिया कि वह बहुत तेजी से मुद्दों की गहराई में उतर रही हैं। कल्पना ने विपक्ष के सदस्यों के बजट पर दिये वक्तव्य का सटीक जवाब दिया। अपने वक्तव्य के दौरान उन्होंने विपक्ष को जबाव दिया, तो सरकार के कामकाज बेहतर तरीके से प्रस्तुत किया।

    पूर्णिमा ने दोनों पक्षों की शाबाशी ली
    नये विधायकों मे जमशेदपुर (पूर्वी) से भाजपा की विधायक और पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास की बहू का प्रदर्शन अच्छा रहा। वह सभी सदस्यों का ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहीं। शून्यकाल में महिलाओं को बोलने के लिए समय आरक्षित करने की बात पर उन्होंने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही तरफ से शाबाशी ले ली। सदन में उनकी इस बात पर दोनों पक्षों से मेज थपथपा कर समर्थन दिया गया। वहीं, जमशेदपुर के 86 बस्तियों को मालिकाना हक देने समेत हर दिन कोई न कोई मुद्दा उठाया। सत्ता पक्ष की तरफ से रघुवर सरकार के शासन की चर्चा आने पर जम कर पलटवार भी किया।

    जब्त हुआ मंत्री का मोबाइल
    झारखंड विधानसभा के इतिहास में पहली बार किसी मंत्री का मोबाइल जब्त किया गया। यह घटना भी इसी सप्ताह हुई। मंत्री हफीजुल हसन सदन के भीतर मोबाइल पर बात कर रहे थे। इस पर विधायक प्रदीप यादव ने आपत्ति की, तो स्पीकर रबींद्र नाथ महतो ने मंत्री का मोबाइल जब्त कर लिया।

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