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    Home»लाइफस्टाइल»ब्लॉग»चप्पलबाज महाराज!
    ब्लॉग

    चप्पलबाज महाराज!

    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीApril 1, 2017No Comments4 Mins Read
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    अचल कौशल: बहुत ही गुस्सैल था वह भोले का भोला भाला भक्त, सैनिक , बचपन से ही! जन्म होते ही नर्स ने सही ढंग से नहीं नहलाया धुलाया तो रोने की जगह चीखने चिल्लाने लगा। वह तो किस्मत अच्छी थी नर्स की, के बालक पैरों में चप्पल नहीं थी। इनके गुस्से का सामना घरवाले, मोहल्लेवाले, गांववाले, शहर वाले होते होते पुरे विधान सभा के लोगों ने किया और अपने चप्पलबाज सैनिक को महाराज बना सर माथे बिठा लिया। वह अपने गुस्सैल महाराज के पंखे बन गये। महाराज की पार्टी का निशान था चप्पल! कोई बात पसंद नहीं आयी तो दे चप्पल , कहीं विरोध दिखाना है तो दे चप्पल। किसी के विचारों से असहमति हो तो दे चप्पल। चप्पल, चप्पल ना हो मानो एक हथियार एक औजार बन गयी थी। इतिहास में भी पादुका प्रेम, दिखाई दिया, जब राजा राम के भक्त, उनके छोटे भाई भरत ने अयोध्या का राजकाज प्रभु श्रीराम जी के अयोध्या लौटाने तक उनकी पादुकाएं राजगद्दी पर रख शासन किया था।

    इधर चप्पल बाज महाराज के प्रति उनके भक्त भी अत्याधिक स्नेह भाव रखते हैं। बेचारे जिनकी घर में और आॅफिस में एक ना चलती , जो न घर के ना घाट के थे , ऐसे सभी लोग इन के समर्थन में नारेबाजी करते और महाराज के हर अच्छे बुरे काम का पुरजोर समर्थन करते। नौबत तो यहां तक आ गयी के महाराज जहां भी जाते और लोग हेलमेट पहन उनका स्वागत और सत्कार करते और उनसे एक हाथ चप्पल की दूरी बनाये रखते क्योंकि ना जाने महाराज कब कहां कैसे किस बात पर कितना क्रोधित हो जायें और प्रसाद स्वरुप अपनी निशानी सर माथे अंकित कर दें। पार्टी ने भी इन्हें सम्मानपूर्वक एक अत्यंत उच्च पद और गरिमा युक्त आसन दिया गया।

    एक चप्पल बनाने वाली कम्पनी ने इन्हें अपना फायर ब्रैंड एम्बेसडर बनाने की भी पेशकश कर दी , पर विनम्रतापूर्वक इन्होंने इस लाभ के पद को ठुकरा दिया और इस पेशकश को सविनय अस्वीकार कर दिया , लेकिन इस पर कम्पनी ने निराश होने के बजाय विज्ञापन में महाराज की पादुकाओं का खूब इस्तेमाल किया। गुस्सैल पार्टी के फायर ब्रांड नेता के हाथों में सुशोभित पादुका हमारे ही कम्पनी की है। और कंपनीयों की चप्पल तो सड़क पर घिस घिस के ही दम तोड़ देती हैं पर हमारी कंपनी की चप्पल तो 25 – 25 लोगों के 25-25 बार पीटने के बाद भी ज्यों की त्यों बनी रहती है। पूरे देश में फायर ब्रांड चप्पल धड़ल्ले से बिकने लगी। एक बार ये महाराज आकाश गमन कर रहे थे। वैसे तो हमेशा ही आकाश यात्रा में जूता पहन उड़ते पर इस बार जल्दबाजी में हवाई जहाज पर हवाई चप्पल पहन उड़ रहे थे। और मूड भी कुछ हवा हवाई सा था। तिस पर एक इक अदने से कर्मचारी ने हवा से कुछ देर के लिए धरती मां की गोद में उतरने के लिए कहा।

    ताकि हवाई रथ पर महाराज के विराजमान होने राजगद्दी और आसन की सफाई की जा सके । अपमान, घोर अपमान । महाराज ने आव देखा ना ताव। बस फिर क्या था एक बार फिर हवा में लहरा उठी पार्टी की निशानी। गूंज उठी फटकार। हवाई चप्पल का जन-जन प्रिय प्रहार और वह भी एक-दो नहीं गिन-गिन कर 25-25 बार कहर बन बरस था महाराज के हाथों प्रसाद । एक बुजुर्ग, बा-ईमान, बिमान सेवक, लाचार और मजबूर इस अपमान का घूंट पी कर मनमसोस कर रह गया। महाराज के भक्तों ने फिर एक बार जयकारा लगाया और इस बिमान अवतार में अवतरित महापुरुष को कांधे पर बिठा लिया। प्रतिक्रया देने में क्रिया से भी आगे रहने वाली पार्टी प्रमुख ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है और हवा किस तरफ बह रही है इसका अंदाज लेने में लगे हैं। सूना है महाराज अपने राजाधिराज से मिलने माया नगरी जा रहे हैं। राजाधिराज ने अपने और सभी दरबारियों के लिए हेलमेट का आॅर्डर दे दिया है, और दरबार में पग धो कर नंगे पांव ही प्रवेश अनिवार्य कर दिया है। चप्पल बाज महाराज की महिमा निराली है। जय हो चप्पल बाज महाराज की , जय हो !

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