चतरा सीट ने बिगाड़ा है महागठबंधन का खेल
झारखंड में चार चरणों में चुनाव होना है। राज्य में पहले चरण का चुनाव 29 अप्रैल को तीन सीटों पर होने जा रहा है। चतरा, पलामू और लोहरदगा में पहले चरण में होनेवाले चुनाव को लेकर प्रचार तेजी पर है। पर तीनों ही सीटों पर अभी तक ऐसी स्थिति नहीं बन सकी है कि तमाम विपक्षी दलों के नेता किसी सीट पर एक मंच पर साथ दिखे हों। तीनों ही सीटों पर महागठबंधन के उम्मीदवारों के नामांकन से लेकर अब तक के चुनाव प्रचार में लोगों को विपक्षी दलों के दिग्गजों का बस इंतजार ही रहा है। जानकारी के अनुसार चतरा सीट पर महागठबंधन में शामिल राजद द्वारा अलग से अपना प्रत्याशी उतारे जाने के कारण पलामू सीट भी प्रभावित हुई है। चतरा सीट महागठबंधन के समझौते के तहत कांग्रेस को मिली है और बगल की पलामू सीट राजद के खाते में गयी है। लेकिन राजद ने सुभाष यादव को यहां से अपने प्रत्याशी के रूप उतार दिया है। न सिर्फ उतारा है, बल्कि उसके पक्ष में पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष तेजस्वी यादव धुआंधार प्रचार भी कर रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में महागठबंधन में शामिल दलों के नेताओं के सामने परेशानी है कि वे किसके पक्ष में प्रचार करने जायें। यदि झामुमो और झाविमो के नेता राजद के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने जाते हैं, तो यह महागठबंधन धर्म का उल्लंघन होगा और यदि वे कांग्रेस के प्रत्याशी मनोज यादव के पक्ष में प्रचार करते हैं, तो उन्हें राजद की परेशानी झेलनी पड़ सकती है।
पलामू सीट पर पड़ा है सीधा प्रभाव
चतरा सीट पर राजद द्वारा प्रत्याशी उतारे जाने का सीधा प्रभाव पलामू सीट पर पड़ा है। पलामू सीट महागठंबधन में राजद के पाले में गयी है। राजद ने यहां सुभाष यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है। विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं के सामने परेशानी यह है कि यदि वे पलामू में राजद के प्रत्याशी घूरन राम के पक्ष में प्रचार करते हैं, तो उन्हें कांग्रेस की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है। वहीं कांग्रेसी नेता भी पलामू में राजद से दूरी बनाये हुए हैं कि राजद ने चतरा में उनकी परेशानी बढ़ा रखी है। कुल मिलाकर ये दोनों सीटें ऐसी हो गयी हैं कि महागठबंधन के नेता चाहकर भी एकजुट नहीं हो सकते। उन्हें लगता है यहां दूरी बनाये रखने में ही महागठबंधन की भलाई है।
सुखदेव को मिल रहा बंधु का साथ
लोहरदगा सीट पर भी पहले ही चरण में चुनाव होना है। यहां महागठबंधन की ओर से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में विधायक सुखदेव भगत चुनाव मैदान में जोर आजमा रहे हैं। उनके नामांकन से लेकर अब तक महागठबंधन के दलों के बड़े नेताओं का लोहरदगा आगमन नहीं हुआ। उनके नामांकन के दौरान भी कांग्रेस के ही चंद बड़े नेता मसलन सुबोधकांत सहाय और झाविमो महासचिव बंधु तिर्की ही मौजूद रहे। इसके बाद से चुनाव प्रचार में भी सुखदेव भगत अपनी टीम के साथ मोर्चा संभाले हुए हैं। हां, महागठबंधन के नाम पर उनके लोकसभा क्षेत्र के ही मांडर के पूर्व विधायक झाविमो महासचिव बंधु तिर्की का साथ उन्हें भरपूर मिल रहा है। वहीं उन्हीं के लोकसभा क्षेत्र के विशुनपुर विधायक और झामुमो नेता चमरा लिंडा का एक बयान तक उनके पक्ष में नहीं आया है। चमरा लिंडा की भूमिका संदेहास्पद है।
दिग्गज नेताओं की गैरमौजूदगी के मायने
उधर, जब से राज्य में चुनावी प्रक्रिया शुरू हुई है, झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष और महागठबंधन के सूत्रधारों में एक हेमंत सोरेन दुमका में सिमट गये हैं। शायद भाजपा और एनडीए द्वारा दी जा रही चुनौतियों के बीच वह अपना किला संथाल परगना बचाने की पुरजोर कोशिश में जुटे हों, लेकिन महागठबंधन में इसका क्या संदेश जा रहा है, इससे भी वह अनभिज्ञ नहीं होंगे। वहीं, महागठबंधन में एक और प्रमुख सूत्रधार कांग्रेस के झारखंड प्रभारी आरपीएन सिंह भी चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद से झारखंड से गायब हैं। वह वायनाड में पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के प्रचार-प्रसार में व्यस्त हैं। ऐसे में महागठबंधन में छोटे मोटे पेंच फंसÞ रहे हैं, जो हर दिन उलझते ही जा रहे हैं। दूसरी तरफ राजग की टीम में जदयू का क्षेत्रीय धड़ा भी जुड़ गया है। हां, यह बात अलग है कि राजग के साथ झारखंड में लोजपा की वह भागीदारी नहीं है, जो होनी चाहिए थी। इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ रहा, क्योंकि उसकी जमीनी पकड़ झारखंड में कम है। ऐसे में अब तक की स्थिति में यह कहा जा सकता है कि महागठबंधन अभी तक कागजों पर ही सिमटा नजर आ रहा है। पूरे मैदान को उसने खाली छोड़ रखा है।
संथाल परगना में सिमट गया है झामुमोसंथाल परगना में सिमट गया है झामुमो
झारखंड में पूरे लोकसभा चुनाव पर गौर करें, तो झारखंड मुक्ति मोर्चा एक दायरे में कैद दिख रहा है। शायद यही कारण है कि झामुमो प्रत्याशी जगरनाथ महतो के नामांकन में भी विपक्षी दलों के नेता नहीं दिखे। गिरिडीह लोकसभा क्षेत्र से झामुमो विधायक महागठबंधन के प्रत्याशी हैं। वहीं, उनके प्रतिद्वंद्वी आजसू विधायक सह मंत्री एनडीए प्रत्याशी चंद्रप्रकाश चौधरी के नामांकन में मुख्यमंत्री और सुदेश समेत तमाम बड़े नेता मौजूद रहे। राजनीतिक विश्लेषक कयास लगा रहे हैं कि शायद कांग्रेस प्रत्याशियों के नामांकन में झामुमो नेताओं की गैरमौजूदगी के कारण यह स्थिति बनी हो। कांग्रेस के कीर्ति आजाद, सुबोधकांत सहाय, गीता कोड़ा किसी के भी नामांकन में झामुमो के प्रमुख नेता नजर नहीं आये। यह अलग बात है कि शिबू सोरेन के नामांकन में पूरा विपक्षी खेमा एक रहा। पर शिबू सोरेन सिर्फ एक नाम नहीं हैं। भाजपा शासन में वह एक तरह से विपक्ष का चेहरा हैं। विपक्षी दलों के नेता शायद यह भी हवाला दे सकते हैं कि गुरुजी के नामांकन और सभा में रहने के कारण वे जमशेदपुर में झामुमो प्रत्याशी चंपई सोरेन के नामांकन में उपस्थित नहीं हो सके। वैसे जमशेदपुर और दुमका झारखंड के दो छोर है भी।
झामुमो नेताओं की नाराजगी भी कारण
कई सीटों पर झामुमो नेताओं की नाराजगी भी उन्हें एक मंच पर आने से रोक रही है। ये सभी अपने-अपने कारणों से नाराज चल रहे हैं। भले ही पार्टी के नेता इसे महज कोरी बकवास बता रहे हों, पर नेताओं की नाराजगी छुपाये नहीं छुप रही है। ये नाराजगी उनकी निजी हो सकती है, पर इसका प्रभाव तो पूरे महागठबंधन पर पड़ रहा है। चाईबासा में कांग्रेस प्रत्याशी गीता कोड़ा ने नामांकन किया, तो कांग्रेस के बड़े नेता तो मौजूद रहे पर झामुमो का कोई नेता या विधायक नजर नहीं आया। इस क्षेत्र से झामुमो के पांच विधायक हैं। वहीं, खूंटी में कांग्रेस प्रत्याशी कालीचरण मुंडा के नामांकन में भी झामुमो नेताओं की कमी खली। यहां झामुमो विधायक पौलुस सुरीन तक मौजूद नहीं रहे। हालांकि 10 दिन पहले रांची में हुई झामुमो की बैठक के बाद पार्टी के बड़े नेताओं ने कहा था कि कहीं कोई नाराजगी नहीं है और पार्टी के सभी नेता-कार्यकर्ता महागठबंधन धर्म का पालन करेंगे, पर अब तक ऐसा होता नजर नहीं आ रहा।
अब एक साथ खड़ा होने में शरमाने लगे महागठबंधन के नेता
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