बात बहुत पुरानी नहीं है। करीब डेढ़ महीने पहले जब देश भर में लोकसभा चुनावों की तैयारियां पूरे जोरों पर थीं, नौ मार्च की सुबह झारखंड के लोगों को एक चौंकानेवाला समाचार मिला। अखबारों में भाजपा-आजसू में तालमेल और भाजपा द्वारा गिरिडीह सीट आजसू के लिए छोड़े जाने की खबर सुर्खियों में थी। इस खबर ने राज्य के राजनीतिक हलकों में चर्चा ला दी। भाजपा के प्रदेश स्तरीय नेताओं और आजसू के अधिकांश नेताओं को तालमेल के बारे में कोई सूचना नहीं थी। यहां तक कि उन्हें यह आभास भी नहीं था। इस तालमेल से दूसरे दलों के नेताओं को भी आश्चर्य हुआ कि आखिर सत्ता में लौटने की तैयारी करनेवाली भाजपा जिस गिरिडीह सीट पर पांच बार कब्जा जमा चुकी थी, उसे अपने सहयोगी दल को कैसे दे दिया। इतना ही नहीं, आश्चर्य तो इस बात का भी था कि भाजपा जैसी विशाल पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह और आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो के बीच सीधी बातचीत इतने गोपनीय ढंग से तय कैसे हुई।
इस कहानी में उठे सवालों के जवाब तो नहीं मिले, लेकिन इतना तय हो गया कि आजसू पार्टी ने एक झटके में अपने ऊपर लगे ह्यसत्ता की पिछलग्गू पार्टीह्ण के कलंक को धो डाला है और इसकी इबारत लिखी सुदेश महतो ने।
सुदेश महतो ने झारखंड बनने के बाद से एक कुशल राजनीतिज्ञ के रूप में अपनी अलग पहचान स्थापित की है। अपने गृह क्षेत्र सिल्ली से लगातार दो बार विधानसभा का चुनाव हारने के बावजूद उन्होंने पार्टी के साथ-साथ अपना हौसला भी बनाये रखा। इस बार तो भाजपा से गिरिडीह सीट लेकर उन्होंने साबित कर दिया कि वह किसी भी नेता से बराबरी के स्तर पर बातचीत कर सकते हैं।
तालमेल होने के बाद सुदेश ने आजसू को भाजपा का सच्चा सहयोगी साबित कर दिया है। आज स्थिति यह है कि राज्य की 14 में से 13 सीटों पर, जहां भाजपा ने अपने उम्मीदवार उतारे हैं, आजसू उसके साथ कदम से कदम मिला कर चल रही है। रांची, कोडरमा, हजारीबाग, जमशेदपुर और लोहरदगा जैसी सीटों पर तो वह भाजपा की मदद के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया है। गिरिडीह सीट पर आजसू खुद लड़ रही है।
सुदेश महतो की इस सक्रियता के राजनीतिक मायने हैं। उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा से कुरमी-महतो के अलग होने का संकेत बहुत पहले भांप लिया। उन्हें यह भी पता चल गया कि आदिवासियों के बीच झामुमो की पैठ को तोड़ने से आसान कुरमी-महतो को साधना हो सकता है। सुदेश ने इसी अनुरूप अपनी रणनीति बनायी और सुनियोजित तरीके से उन्होंने झामुमो को कमजोर करने की बजाय खुद को मजबूत करने का अभियान शुरू किया। ऐन चुनावों से पहले उन्होंने राज्य के पांच हजार से अधिक गांवों की पदयात्रा की। इस दौरान उन्होंने उन इलाकों पर विशेष ध्यान दिया, जो कुरमी-महतो बहुल हैं। इसका सकारात्मक परिणाम भी जल्दी ही नजर आया, जब कुरमी-महतो बहुल गिरिडीह सीट भाजपा ने उन्हें दी। झामुमो और दूसरी पार्टियों को सुदेश महतो की इस रणनीति की भनक भी नहीं लगी। वे भाजपा पर ही निशाना साधने में लगे रहे, जिसमें बीच-बीच में आजसू का नाम भी सरकार की सहयोगी पार्टी होने के नाते उछलता था। इससे सुदेश की रणनीति पर कोई असर नहीं पड़ा।
जब लोकसभा चुनाव की घोषणा हुई और भाजपा ने झारखंड की सभी 14 सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ मैदान में आयी, तो उसके पास सुदेश महतो जैसा विश्वस्त सहयोगी था। झारखंड के बारे में यह हकीकत सभी जानते हैं कि यहां की राजनीति में कुरमी-महतो की उपेक्षा की कोई जगह नहीं है। भाजपा के पास कुरमी-महतो नेता के रूप में रामटहल चौधरी का चेहरा था, लेकिन रांची से उन्हें टिकट नहीं मिला, तो वह बागी बन गये। ढुल्लू महतो और विद्युत वरण महतो भी इसी समुदाय के हैं, लेकिन उनकी स्वीकार्यता हर क्षेत्र में नहीं है। ऐसी स्थिति में भाजपा यह भांप गयी कि रामटहल चौधरी की बगावत के कारण पैदा हुई विपरीत परिस्थिति को वह सुदेश महतो की मदद से ही नियंत्रित कर सकती है। सुदेश तब तक साबित कर चुके थे कि यदि वह रामटहल चौधरी से आगे नहीं हैं, तो पीछे भी नहीं हैं। भाजपा नेतृत्व को उनका यह नया अवतार मंजूर करना ही था और इसका नतीजा सामने है।
सुदेश ने भाजपा नेतृत्व को यह भी भरोसा दिलाया कि कुरमी-महतो बहुल सीट पर वह भाजपा प्रत्याशियों की हरसंभव मदद करेंगे। सुदेश को जाननेवाले कहते हैं कि भरोसा देकर पीछे हटना उनकी फितरत नहीं है। भाजपा ने उन पर भरोसा किया और आज रांची, हजारीबाग, कोडरमा, लोहरदगा, खूंटी, जमशेदपुर और धनबाद में आजसू अपने दम पर भाजपा के पक्ष में काम कर रही है। यहां तक कि प्रधानमंत्री की झारखंड यात्रा के दौरान मंच पर सुदेश महतो लगातार मौजूद रहे। उनकी मौजूदगी ने साफ कर दिया कि एनडीए में आजसू का स्थान दूसरे किसी भी घटक दल से कमतर नहीं है। आज हालत यह है कि कई क्षेत्रों में आजसू के कार्यकर्ता भाजपा के पक्ष में न केवल अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं, बल्कि खुद सुदेश महतो खुद भी भाजपा नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं वह अपने कार्यकर्ताओं को एक सूत्र में बांधे रखने में भी कामयाब रहे हैं।
सुदेश महतो की इस सक्रियता को राजनीतिक हलकों में भले ही कुछ भी नाम दिया जाये, इतना तय है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के सफल प्रदर्शन का एक कारण आजसू के खाते में भी जायेगा। और सुदेश महतो इसके लिए तैयार भी हैं।

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