झारखंड में श्वेत क्रांति पर मंडरा रही काली छाया
इनसान की मदद हर कोई कर रहा, बेजुबान की आवाज दब गयी हैकोरोना के खिलाफ जारी जंग में पिछले 28 दिन से लॉकडाउन झेल रहे झारखंड के लोगों की परेशानियों की चर्चा तो खूब हो रही है, लेकिन बेजुबान दुधारू मवेशियों की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं है। ये मवेशी दूध तो नियमित रूप से दे रहे हैं, लेकिन उस दूध की खपत नहीं हो रही है। इतना ही नहीं, इन मवेशियों के चारे की व्यवस्था करना इनके पालकों के लिए दिन-ब-दिन असंभव होता जा रहा है। चारे की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो गयी है और राज्य के कई इलाकों में तो ऊंचे दाम पर भी पशु आहार नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ पशुपालकों की आय भी बंद है, क्योंकि दूध की मांग 60 प्रतिशत तक कम हो गयी है। ऐसी हालत में ये बेजुबान मवेशी इधर-उधर भटक रहे हैं, जबकि पशुपालक लगातार सरकार से गुहार लगा रहे हैं। उनका कहना है कि पशु चारे की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी और दूध की खपत में गिरावट ने उनकी कमर तोड़ कर रख दी है। यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया, तो उनके सामने यह व्यवसाय छोड़ने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा। पशुपालकों की यह समस्या हर दिन गंभीर होती जा रही है और इसके समाधान की दिशा में अब तक कोई ठोस पहल होती नहीं दिख रही है। यदि यही हाल रहा, तो झारखंड में श्वेत क्रांति की मशाल हमेशा के लिए बुझ जायेगी और तब हाथ मलने के अलावा कुछ नहीं बचेगा। पशुपालन मंत्री बादल से झारखंड के साढ़े तीन लाख से अधिक पशुपालक गुहार कर रहे हैं। लॉकडाउन के कारण झारखंड के डेयरी उद्योग पर मंडराते संकट का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
दो दिन पहले जब मीडिया में खबर आयी कि झारखंड के कई इलाकों में सड़कों और नालियों में दूध बह रहा है, तो सहसा किसी को यकीन नहीं हुआ, लेकिन खबर सही थी। रांची के अलावा लोहरदगा, गुमला, हजारीबाग, बोकारो और दुमका-देवघर में दूध उत्पादक परेशान हैं, क्योंकि खरीदार नहीं हैं। रांची के कोकर में पिछले 30 वर्ष से दूध का कारोबार करनेवाले अर्जुन यादव ने बताया कि उनके खटाल में 16 गाय और पांच भैसें हैं। इनमें से सात गाय और दो भैसें दूध नहीं दे रही हैं। हर रोज 60 लीटर दूध होता है। सामान्य दिनों में सारा दूध बिक जाता था, लेकिन अभी महज 30 लीटर दूध की ही खपत हो रही है। लेकिन 21 मवेशियों का चारा उतना ही लगता है। एक मवेशी हर दिन औसतन पांच से सात किलो चारा-कुट्टी खाता है।
पहले यह खर्च करीब तीन सौ रुपये था, जो लॉकडाउन के कारण पांच सौ रुपये तक पहुंच गया है। इस हिसाब से देखा जाये, तो अर्जुन यादव दोहरे संकट में फंसे हैं। एक तो उनकी आमदनी घट गयी है और दूसरे खर्च बढ़ गया है। इसलिए वह इस कारोबार को बंद करने की सोच रहे हैं। यह हाल पूरे झारखंड का है। लॉकडाउन में इंसान की समस्याओं की तरफ ध्यान है, लेकिन बेजुबान मवेशियों की तरफ अब तक किसी का ध्यान नहीं गया है। मवेशियों को चारा नहीं मिल रहा है, जबकि वे लगातार दूध दे रहे हैं। चारे की कीमतों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी हो गयी है, क्योंकि बाहर से आवक बंद है।
झारखंड में डेयरी उद्योग का अर्थशास्त्र एकदम साफ है। नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश में जहां दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता चार सौ ग्राम के करीब है, वहीं झारखंड में यह 160 ग्राम है। यानी झारखंड में हर दिन करीब 50 लाख लीटर दूध उपलब्ध होता है। राज्य में दुधारू मवेशियों की आबादी 40 लाख के करीब है और इसमें से 60 प्रतिशत, यानी करीब 24 लाख दूध देते हैं। करीब 12 लाख लीटर दूध पड़ोसी राज्यों से आता है। झारखंड में इस उद्योग में साढ़े तीन लाख लोग लगे हुए हैं। यह सामान्य दिनों का आंकड़ा है। अभी जब कोरोना संकट के कारण लॉकडाउन चल रहा है, झारखंड में दूध की खपत आधी से भो कम हो गयी है। होटल और रेस्टोरेंट बंद हैं। इसलिए मिठाई, छेना, खोवा, पनीर और दही का कारोबार भी पूरी तरह ठप पड़ा हुआ है। लोहरदगा के 27 सौ मवेशी पालकों से झारखंड मिल्क फेडरेशन लॉक डाउन के पहले प्रतिदिन 21 हजार लीटर दूध खरीदता था। मिल्क कलेक्शन सेंटर से दूध मित्र के माध्यम से रोजाना दो बार गाड़ियां दूध का उठाव करती थीं। अब केवल सुबह दूध का कलेक्शन किया जा रहा है। फेडरेशन के लोगों का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से दूध की खपत कम हो गयी है। बिक्री घट गयी है। इसलिए फेडरेशन कम दूध खरीद रहा है।
यह तो नुकसान का एक पक्ष है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि मवेशियों के लिए चारे की उपलब्धता बहुत कम हो गयी है। झारखंड में पशु चारे की आपूर्ति मुख्य रूप से बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से होती है। लॉकडाउन के दौरान आपूर्ति का यह चेन टूट गया है। पहले रांची में जो पशु चारा 8 से 9 रुपये प्रति किलो मिलता था, आज उसकी कीमत डेढ़ गुनी हो गयी है।
इसी तरह पशु आहार की कीमतों में भी अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। अब डेयरी उद्योग में लगे लोगों को इस बात की चिंता सता रही है कि वे पहले अपना पेट भरे या मवेशियों का और बैंक का कर्ज चुकायें या इस उद्योग को बंद कर दें।
जानकारों का कहना है कि यदि इस संकट की तरफ तत्काल ध्यान नहीं दिया गया, तो झारखंड में श्वेत क्रांति की मशाल हमेशा के लिए बुझ जायेगी।
कुछ दिन पहले झारखंड सरकार ने डेयरी उद्योग के सामने पैदा हुए संकट के समाधान के लिए कई उपायों पर विचार किया था, लेकिन ठोस फैसले के अभाव में कोई रास्ता नहीं निकल सका। अब समय आ गया है कि सरकार झारखंड के पशुधन और डेयरी उद्योग को बचाने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाये। पशु चारे की निर्बाध आपूर्ति और उत्पादित दूध की खपत सुनिश्चित करने के लिए सरकार को आगे आना होगा। पशु चारे की कालाबाजारी और जमाखोरी भो रोकनी होगी, अन्यथा जिस झारखंड में दूध की नदियां बहाने के दावे किये जाते थे, लोग प्रकृति के इस नायाब तोहफे से हमेशा के लिए महरूम हो जायेंगे।