यह समय हेमंत सरकार को कठघरे में खड़ा करने का नहीं, मिसाल कायम करने का है
अंग्रेजी में एक कहावत है-यूनाइटेड वी स्टैंड, डिवाइडेड वी फॉल। अर्थात एकता में अटूट शक्ति है और बंटा हुआ होना पतन की ओर बढ़ना है। कोरोना संकट गहराने के बाद झारखंड की जनता पक्ष और विपक्ष दोनों से यह उम्मीद लगाये बैठी है कि वे इस आपद काल में राजनीति से ऊपर उठकर मानवता के कल्याण के लिए काम करेंगे। लेकिन झारखंड में ऐसा हो नहीं रहा। यहां आपद काल में भी राजनीति हो रही है। सामान्य दिनों में राजनीति हो तो इसमें कोई दिक्कत नहीं है, पर कोरोना संकट आपद काल है। ऐसे में पक्ष और विपक्ष की दूरियों को मिटाकर जनता के हित में फैसले लेने का और मिल-जुलकर सहयोग की भावना से काम करने का समय है। हिंदपीढ़ी में जब कोरोना के मरीज मिले तो सरकार ने वहां स्थिति पर नियंत्रण रखने के लिए अपने विवेक से स्पेशल टास्क फोर्स की तैनाती की। इस तैनाती ने भाजपा को राजनीति करने का मौका दे दिया और बाबूलाल मरांडी जैसे परिपक्व नेता इस राजनीति से अपने को बचा नहीं सके। संकट की इस घड़ी में भी उन्होंने हेमंत सोरेन सरकार के इस निर्णय पर सवाल उठा दिया। दो-दो बार की वीडियो कांफ्रेंसिंग में प्रधानमंत्री को झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को तवज्जो नहीं देना और अब भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी की तरफ से संकट की इस घड़ी में अफसरों की तैनाती पर उठाये गये सवाल के बाद झारखंड में की मौजूदा स्थितियों पर दयानंद राय की रिपोर्ट।
राजनीति से ऊपर उठ कर केंद्र से वाजिब मदद दिलाने की पहल करें बाबूलाल
वाकया 12 मार्च का है। बजट सत्र चल रहा था और इसमें नेता प्रतिपक्ष की घोषणा की मांग को लेकर भाजपा के विधायक बार-बार हंगामा करते वेल में पहुंच रहे थे। बाबूलाल मरांडी से यह स्थिति नहीं देखी गयी और वे अपने आसन से उठे। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष महोदय, सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के विधायक अपने क्षेत्र की समस्याओं को सदन में उठाना चाहते हैं। अगर सदन की यही स्थिति रही तो कई ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पायेगी। इसलिए अब भाजपा के विधायक नेता प्रतिपक्ष के मामले में कोई मांग नहीं करेंगे, अध्यक्ष चाहें तो किसी को भी नेता प्रतिपक्ष चुन सकते हैं। इस दिन इस बयान के बाद बाबूलाल की गरिमा और बढ़ गयी थी। इसलिए बढ़ी थी, क्योंकि वे राजनीति की संकीर्णता और दलगत सीमाओं से ऊपर उठकर झारखंड की जनता के भले की सोच रहे थे।
सदन की सोच रहे थे और सोच रहे थे उन उम्मीदों की, जो झारखंड की जनता अपने चुने गये विधायकों से लगाती आयी है। इस घटना के 24 दिन बाद छह अप्रैल को बाबूलाल मरांडी के एक बयान ने उनकी उस गंभीरता पर प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है, जो उन्होंने विधानसभा सत्र के दौरान दर्शायी थी। हिंदपीढ़ी में स्क्रीनिंग के लिए और लॉक डाउन के दौरान विधि व्यवस्था को दुरुस्त रखने के लिए हेमंत सोरेन सरकार ने कुछ अधिकारियों की तैनाती की। संकट की इस घड़ी में भी बाबूलाल मरांडी ने हेमंत सोरेन के इस कदम की घोर आलोचना की और इस तैनाती को एक धर्म विशेष के पुलिस पदाधिकारियों से जोड़ दिया। यहां तक कह दिया कि सरकार का यह एक बेहद खतरनाक कदम है। किसी भी विधि-व्यवस्था का धार्मिक आधार पर विभाजन एक ऐसी विकृति को जन्म देगा, जिसका असर लंबे समय तक समाज में रहेगा और इससे समाज में एक बड़ी खाई बनेगी। बाबूलाल के इस बयान की उनकी पार्टी में भले ही सराहना हुई हो, पर जनता को इसके मजमून में बाबूलाल की वह छवि नहीं दिखी, जो 12 मार्च को विधानसभा में दिखी थी। उलटे यह धारणा बन गयी कोरोना संकट जैसे आपद काल में भी राजनीति। हो सकता है बाबूलाल मरांडी के पास अपनी बात को वाजिब ठहराने के तर्क हों, पर महामारी के इस दौर में उनका यह बयान समायोचित नहीं है।
अब झारखंड के 11 वें मुख्यमंत्री के तौर पर हेमंत सोरेन के कार्यकाल को देखिए। हेमंत सोरेन ने बड़े दिल का राजनेता होने का परिचय उसी दिन दे दिया था, जब उन्होंने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ थाने में दर्ज मामले को वापस लेने का फैसला किया था। हेमंत सोरेन के विपक्ष में रहते रघुवर सरकार ने जिस तरह गंदे तरीके से हेमंत सोरेन और शिबू सोरेन पर हमले किये थे, उसका प्रतिकार सत्ता में आने के बाद हेमंत सोरेन ने नहीं किया। उन्होंने वही किया, जो एक शासक का राजधर्म था। कोरोना संकट के आपद काल में हेमंत सोरेन ने झारखंड की जनता के लिए काम किया और सोशल मीडिया में हुए एक सर्वेक्षण में वे कोरोना से जंग लड़नेवाले सात सर्वश्रेष्ठ सीएम में एक बन कर उभरे। सर्वेक्षण में हेमंत सोरेन की तारीफ इसलिए की गयी, क्योंकि उन्होंने कोरोना के खतरे की आहट पहले ही महसूस कर ली थी। सीमित संसाधनों में उन्होंने राज्य की मशीनरी को इससे लड़ने के लिए तैयार कर लिया था। उन्होंने सबसे पहले राज्य के तमाम शिक्षण संस्थानों को 14 अप्रैल तक के लिए बंद कर दिया, जबकि दूसरे राज्य 31 मार्च तक के लिए इन्हें बंद करने का एलान कर चुके थे। झारखंड में कोरोना का संक्रमण नहीं होने के बावजूद उन्होंने आइसोलेशन और क्वारेंटाइन सेंटर बनवाया। उन्होंने झारखंड पुलिस को मानवीय बनाकर राहत कार्य में इन्वॉल्ब किया। इससे झारखंड पुलिस की छवि में भी सुधार हुआ। ।
1100 करोड़ का लगा है झटका
कोरोना संकट के कारण झारखंड पर दोहरी चोट पड़ी है। एक तो राज्य के संसाधनों को इस बीमारी से लड़ने के लिए खर्च किया जा रहा है वहीं इससे राज्य में जीएसटी संग्रह भी कम हो गया है। बीते वित्तीय वर्ष की तुलना में राज्य में जीएसटी का संग्रह 1059 करोड़ घट गया है। वर्ष 2018-19 में राज्य में जीएसटी का संग्रह 23916 करोड़ था, जो 2019-20 में घटकर मात्र 22847 करोड़ रह गया। वित्तीय वर्ष के अंत में वस्तु और सेवा कर में गिरावट कारोबार में आयी कमी के कारण आया है। बीते वर्ष मार्च में राज्य को जीएसटी से 2149 करोड़ मिले थे जो इस साल घटकर 2049 करोड़ रह गया। कोरोना वायरस ने बीते तीन महीनों में राज्य में काम धंधों की कमर तोड़कर रख दी है।
झारखंड ने केंद्र से मांगा था दस हजार किट, अब तक नहीं मिला
कोरोना महामारी को लेकर हेमंत सरकार की तरफ से झारखंड हाइकोर्ट को जो बताया गया है, उससे साफ है कि इस महासंकट की बेला में केंद्र सरकार से अपेक्षित सहयोग झारखंड को नहीं मिला है। कहा गया है कि जांच के लिए केंद्र से दस हजार किट मांगे गये थे, जो अभी तक नहीं मिले हैं। इस पक्ष को सुनने के बाद चीफ जस्टिस ने असिस्टेंट सालिसिटर जनरल को यह निर्देश दिया कि जरूरत के अनुरूप झारखंड को संसाधन मुहैया कराया जाये।
यह सर्वविदित है कि झारखंड संसाधनों के मोर्चे पर एक पिछड़ा राज्य है। कोरोना संकट के इस काल में राज्य के अधिकांश संसाधन इस बीमारी से लड़ने में खर्च हो रहे हैं। ऐसे में राज्य को उसका वाजिब हक दिये जाने की जरूरत है। इसी जरूरत की बाबत वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा कि झारखंड की जीएसटी का हिस्सा केंद्र ने रोक दिया है। पूर्व की भाजपा सरकार ने राज्य का खजाना खाली कर दिया था। अभी किसी तरह की टैक्स वसूली पर झारखंड सरकार ने रोक लगा रखी है। ऐसे में राज्य सरकार के पास पैसे की कमी है। केंद्र को झारखंड को विशेष पैकेज देना चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि आपद के इस काल में केंद्र झारखंड के साथ सौतेला बर्ताव कर रहा है। राज्य सरकार ने केंद्र से कोरोना से लड़ने के लिए दस हजार से अधिक टेस्टिंग किट, 75,000 पीपीई किट और 300 वेंटिलेटर मांगे हैं। केंद्र की ओर से चार टेस्टिंग मशीनें आ गयी हैं लेकिन केंद्र से उनके संचालन की अनुमति नहीं मिली है। ऐसे में ये मशीनें क्या काम करेंगी। सचमुच में झारखंड में यह स्थिति चिंताजनक है।
इतिहास गवाह रहा है कि जनता ने जब आगे बढ़कर नेताओं को उनका कर्तव्य बताया है, तो राजनीति के दो धुर विरोधी भी न सिर्फ एक मंच पर बैठे हैं, बल्कि एक दूसरे से बातें भी की हैं। यह वाकया उस समय का है जब केंद्र में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। ममता बनर्जी केंद्र में रेल मंत्री थीं और ज्योति बसु पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री। हावड़ा में आयोजित एक बैठक में बंगाल में रेल परियोजनाओं को लेकर चर्चा हो रही थी।
इस बैठक में ज्योति बसु भी थे और ममता बनर्जी भी, लेकिन दोनों में से कोई एक-दूसरे से बात नहीं कर रहा था। ऐसे में सभा में बैठी जनता आगे आयी और कहा कि पश्चिम बंगाल के हित के लिए आप दोनों को बात करनी चाहिए, क्योंकि यहां सवाल बंगाल की जनता के हित का है। जनता का दबाव काम आया और ममता बनर्जी तथा ज्योति बसु ने न सिर्फ एक-दूसरे से बात की, बल्कि यह आश्वासन दिया कि बंगाल की जनता के हित में वे मिल कर काम करेंगे। यह जनता की ताकत थी, जिसने राजनीति के दो धुर विरोधियों को एक-दूसरे से बात करने पर मजबूर कर दिया था। झारखंड में अभी जो हालात हैं, उसमें भारतीय जनता पार्टी को दलीय राजनीति से ऊपर उठकर झारखंड की मदद करनी चाहिए। सवाल महागठबंधन की सरकार का नहीं है। सवाल झारखंड की जनता का है। इस जनता ने विधानसभा चुनाव में महागठबंधन की सरकार को बहुमत दिया है तो लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को अपार जन समर्थन। ऐसे में जनता की अपेक्षाएं जितनी राज्य की हेमंत सोरेन सरकार से है, उससे कहीं अधिक महामारी के इस संकट में नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार से। हेमंत ने विनम्रता और कुशलता से अपना दायित्व निभाया है, अब बारी भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी और उनके नेताओं, भाजपा सांसदों की है, जो राजनीति से ऊपर उठ कर झारखंड की सवा तीन करोड़ जनता के हित में केंद्र सरकार से झारखंड को ज्यादा से ज्यादा सहयोग दिलाने की दिशा में मदद करें। उचित तो यही होता है कि भाजपा के तमाम नेता राजनीति से ऊपर उठ कर केंद्र सरकार पर दबाव बनाते और कोरोना महामारी से निबटने के लिए केंद्र से मेडिकल संसाधन और विशेष पैकेज दिलाने की पहल करते। कारण जब झारखंड सुरक्षित रहेगा, यहां के लोग आबाद रहेंगे, तभी राजनीति भी होगी।