यह समय राजनीति का नहीं, एकजुट होकर लड़ने का है
सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ देना पलायनवाद है

वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ाई लड़ रहे झारखंड में अब जंग का एक और मोर्चा खोल दिया गया है और यह मोर्चा खोेला है विपक्ष के विधायकों ने। विपक्षी भाजपा के चार विधायक शुक्रवार 17 अप्रैल को दिन भर के उपवास पर बैठे, क्योंकि उन्हें शिकायत है कि राज्य सरकार इस महामारी से निपटने में पूरी ताकत नहीं लगा रही है। सामान्य दिनों में सत्ता पक्ष और विपक्ष में इस तरह की झकझूमर तो चलती रहती है और आम लोग इसे स्वीकार भी करते हैं, लेकिन संकट के इस दौर में विधायकों के इस रवैये का आम लोग शायद ही समर्थन करेंगे। कोरोना से लड़ने के लिए लोकतंत्र का सबसे ताकतवर और पवित्र हथियार ‘उपवास’ कारगर नहीं हो सकता। यह हथियार तो ब्रह्मास्त्र होता है और इसका इस्तेमाल सोच-समझ कर ही करना होता है, ताकि इसकी ताकत और इसका महत्व बचा रहे। संकट के इस दौर में, जब पूरी मानवता एक महामारी से लड़ रही है और भारत पिछले 25 दिन से लॉकडाउन में है, उपवास जैसे कदम लड़ाई को कमजोर ही करेंगे। आखिर उपवास करनेवाले विधायक सब कुछ सरकार के भरोसे क्यों छोड़ना चाहते हैं। एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि होने के नाते उनका भी कुछ कर्तव्य बनता है और इन विधायकों को बताना चाहिए कि उन्होंने अपना कर्तव्य कितना निभाया है। सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ना पलायनवाद ही हो सकता है, क्योंकि यह अपनी जिम्मेदारियों से भागना है। कोरोना के खिलाफ जंग की पृष्ठभूमि में भाजपा विधायकों के उपवास कार्यक्रम का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

प्रसंग रामायण का है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम की सेना लंका में रावण की सेना से जूझ रही थी। लक्ष्मण और मेघनाद के बीच भीषण युद्ध चल रहा था। लक्ष्मण युद्धभूमि में जाने से पहले राम से मेघनाद पर ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करने की अनुमति मांगते हैं। तब राम उन्हें ऐसा करने से रोकते हुए कहते हैं, ब्रह्मास्त्र का प्रयोग असाधारण परिस्थितियों में ही किया जाता है, जब कोई दूसरा अस्त्र पास में न हो या कोई और विकल्प नहीं बचे। विरोधी के खिलाफ इसका प्रयोग न केवल विध्वंसकारी होगा, बल्कि इससे इस अस्त्र का महत्व भी कम हो जायेगा। लक्ष्मण इसे मान लेते हैं और मेघनाद द्वारा चलाये गये शक्ति वाण से मृतप्राय हो जाते हैं।
रामायण के इस बेहद ज्ञानवर्द्धक प्रसंग का उल्लेख यहां इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि वैश्विक महामारी कोरोना से लड़ रहे झारखंड में भाजपा के चार विधायकों ने अभी ही लोकतंत्र के सबसे पवित्र और ताकतवर ब्रह्मास्त्र ‘उपवास’ का इस्तेमाल कर दिया है। इस हथियार का इस्तेमाल ऐसे समय में किया गया है, जब इसकी कोई जरूरत नहीं थी। इतना ही नहीं, भाजपा विधायकों के उपवास से राजनीतिक उद्देश्य भले ही सध जाये, वर्तमान संकट पर इसका कोई असर नहीं होनेवाला है।
शुक्रवार 17 अप्रैल को भवनाथपुर के विधायक भानु प्रताप शाही ने कोरोना के खिलाफ जंग में राज्य सरकार पर संवेदनहीनता बरतने और विधायकों के साथ साजिश करने का आरोप लगा कर दिन भर उपवास पर बैठ कर विरोध जताया। उनके समर्थन में हटिया विधायक नवीन जायसवाल, हजारीबाग सदर विधायक मनीष जायसवाल और चंदनकियारी विधायक अमर बाउरी भी उपवास पर बैठे। ये सभी उस भाजपा के विधायक हैं, जिसके शीर्षस्थ नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राण-प्रण से कोरोना के खिलाफ जंग में देश का नेतृत्व कर रहे हैं। संकट के इस दौर में विपक्षी विधायकों का ऐसा विरोध प्रदर्शन देश में पहली बार हुआ है। किसी भी राज्य में किसी भी दल ने अब तक ऐसा नहीं किया है। इस मायने में भाजपा के इन चार विधायकों का यह विरोध प्रदर्शन अनुचित नहीं, तो समय के अनुकूल नहीं कहा जा सकता।
आखिर ये विधायक चाहते क्या हैं। अपने-अपने विधानसभा क्षेत्रों से चुन कर आये इन माननीयों को यह बताना चाहिए कि कोरोना के खिलाफ जारी जंग में अब तक उन्होंने क्या भूमिका अदा की है। कुछ लोगों के बीच खाद्यान्न या भोजन बांट देना ही पर्याप्त नहीं हो सकता। यह लड़ाई बड़ी है और इसका दायरा विस्तृत है। विधायकों को यह समझना होगा, क्योंकि जन प्रतिनिधि होने के नाते उनकी भी कुछ जिम्मेदारी बनती है। यह सही है कि काम सरकार को करना चाहिए और वह भरसक कर भी रही है। विधायकों को इस लड़ाई में सेनापति नहीं, तो कम से कम सेना नायक की भूमिका तो निभानी ही होगी। उन्हें सरकार की मदद करने की बजाय उसके काम का विरोध करने की प्रवृत्ति छोड़नी होगी, क्योंकि इससे इस लड़ाई में स्थिति कमजोर होगी। इन विधायकों को अपने इलाके की स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए अपने प्रभाव का इस्तेमाल करना चाहिए। उनके पास विधायक फंड की राशि है, अपने संसाधन हैं और निजी संपत्ति भी है। जिन प्रवासी मजदूरों की पीड़ा को वे उपवास रख कर सामने ला रहे हैं, उस पीड़ा को वे अपने स्तर से भी दूर कर सकते हैं। आखिर क्यों ये विधायक सब कुछ सरकार के भरोसे ही छोड़ देना चाहते हैं। यह सही है कि सरकार को प्रवासी मजदूरों की मदद के लिए व्यापक रूप से काम करना चाहिए, लेकिन इन विधायकों की भी तो जिम्मेदारी बनती है कि वे कम से कम अपने क्षेत्र के प्रवासी मजदूरों की पीड़ा दूर करने की कोशिश करें।
इन विधायकों को यह भी समझना होगा कि यह संकट केवल उनके क्षेत्र पर नहीं आया है, बल्कि पूरा प्रदेश इससे जूझ रहा है। झारखंड में तो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सर्वदलीय बैठक में अपील की कि कोरोना संकट के इस दौर में चलाये जा रहे सरकारी अभियान पर विधायक नजर रखें और कोई शिकायत होने पर तत्काल उन्हें सूचित करें। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने सभी मुख्यमंत्रियों से कहा है कि वह उनके लिए चौबीसों घंटे उपलब्ध हैं। जिस देश का प्रधानमंत्री और जिस राज्य का मुख्यमंत्री सब कुछ भूल कर इस समय मानवता पर आये इस संकट से जूझ रहा है, उसके सामने उपवास जैसी चुनौती पेश करना कहीं से भी उचित नहीं कहा जा सकता। यह समय एकजुट होकर कोरोना से लड़ने का है और इसमें कोई भी चूक पूरे समाज के लिए बेहद महंगी साबित होगी। इसलिए फिलहाल ऐसे विरोध प्रदर्शनों को स्थगित कर इस जंग को एकजुट होकर जीतने पर ध्यान लगाना होगा, ताकि मानवता सुरक्षित रह सके। ऐसे विरोध प्रदर्शन तो लोकतंत्र का गहना हैं। अभी गहना पहन कर सजने-संवरने का नहीं, कवच-कुंडल धारण कर कोरोना से लड़ने का है। विपक्ष के विधायकों को यह समझना चाहिए।

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