सीमित संसाधनवाले झारखंड में जांच ही एकमात्र समाधान
राष्ट्रीय औसत से बहुत पीछे हैं झारखंड के जांच केंद्र
झारखंड समेत पूरे देश में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के एक महीने पूरे हो गये हैं। इस खतरनाक बीमारी से सरकार का पूरा तंत्र और समाज का हर वर्ग पूरी ताकत से लड़ रहा है। इसके बावजूद हर दिन संक्रमितों की संख्या बढ़ती जा रही है। झारखंड में संक्रमित मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी जहां सरकार और लोगों की चिंता बढ़ा रही है, वहीं अब सवाल इस बीमारी के चिकित्सकीय प्रबंधन को लेकर भी उठने लगे हैं। यह सही है कि झारखंड के पास संसाधनों की कमी है, लेकिन कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जिस प्रबंधकीय कौशल की जरूरत है, उसकी कहीं न कहीं कमी अब सामने आने लगी है। झारखंड में सैंपल जांच की गति बेहद धीमी है, जिसके कारण संक्रमित मरीजों की सही संख्या का पता नहीं लग पा रहा है। इसके साथ ही संक्रमितों का पता लगने के बाद जो कदम उठाये जाने चाहिए, उसमें भी ढिलाई बरती जा रही है। जांच रिपोर्ट आने में हो रही देरी भी संक्रमण फैलने का एक बड़ा कारण बनता जा रहा है। सामाजिक मोर्चे पर काम कर रही झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार को अब स्वास्थ्य मशीनरी पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि झारखंड में कोरोना की जांच की रफ्तार बढ़ायी जा सके और संक्रमितों का पता जल्दी लग सके। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो यह महामारी राज्य को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर देगी। इसे रोकने के लिए झारखंड में चिकित्सकीय प्रबंधन को और अधिक सक्रिय होना पड़ेगा। तभी कोरोना के खिलाफ जंग हम जीत सकेंगे। राज्य में जांच की धीमी रफ्तार और इसके कारण होने वाले दुष्परिणामों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
एक महीने में 5380 सैंपलों की जांच ही हो पायी है झारखंड में
समुचित संसाधन नहीं होने के कारण डॉक्टरों पर भी बढ़ रहा है संक्रमण का खतरा
गुरुवार 23 अप्रैल की देर रात जब राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स से यह सूचना मिली कि 24 घंटे में सात नये कोरोना संक्रमित पाये गये हैं, प्रशासन और चिकित्सकों में चिंता की लकीरें दौड़ गयीं। कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे एक चिकित्सक ने टिप्पणी की, हम संदिग्धों की जांच ही नहीं कर पा रहे हैं, तो मरीज का पता कैसे चलेगा। हमारे पास पर्याप्त संख्या में टेस्टिंग किट नहीं है। इसलिए जांच की रफ्तार सुस्त है। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। इस चिकित्सक का दर्द सचमुच चिंताजनक है। झारखंड में पिछले एक महीने में महज 5380 सैंपलों की जांच की गयी है। इसका मतलब है कि राज्य के चार कोरोना जांच केंद्रों में हर दिन औसतन दो सौ से भी कम सैंपलों की जांच हो रही है, यानी एक केंद्र में 50 से भी कम। राज्य सरकार का मेडिकल बुलेटिन बताता है कि 23 अप्रैल को राज्य के जांच केंद्रों में कुल 94 सैंपलों की जांच की गयी, जिसमें चार पॉजिटिव और 90 निगेटिव आये। सैंपल जांच की यह गति दूसरे राज्यों या राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है। महाराष्ट्र के एक जांच केंद्र में औसतन हर दिन ढाई सौ सैंपलों की जांच होती है, जबकि दिल्ली में यह संख्या 310 है। राष्ट्रीय औसत तीन सौ का है।
झारखंड में कोरोना संक्रमितों की संख्या अब तक महज 60 है। यह संख्या निश्चित रूप से बहुत कम है, लेकिन इससे खुश होना खतरनाक हो सकता है। राज्य में सैंपलों की जांच ही नहीं हुई है, तो संक्रमितों की वास्तविक संख्या का पता कैसे चलेगा। यही बात रिम्स के चिकित्सक ने कही है।
झारखंड की स्वास्थ्य मशीनरी में कोरोना प्रबंधन की दूसरी सबसे बड़ी कमी संदिग्धों के चयन में हो रही है। विशेषज्ञ कहते हैं कि झारखंड में सैंपल लेने के बाद उस संदिग्ध को छोड़ दिया जाता है। तीन दिन बाद जब उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आती है, तब उसे आइसोलेशन वार्ड में भर्ती किया जाता है। इन तीन दिनों में वह संक्रमित व्यक्ति कम से कम डेढ़ सौ लोगों को संक्रमित कर चुका होता है। लेकिन उनकी जांच को टाल दिया जाता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कोरोना संक्रमण का पता केवल और केवल जांच से ही लग सकता है। इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी स्वस्थ व्यक्ति में कोरोना का संक्रमण नहीं हो। बिना लक्षण वाले लोग भी पॉजिटिव पाये जा रहे हैं। इसलिए हर व्यक्ति की जांच जरूरी है। प्रबंधन में एक और कमी यह है कि किसी कोरोना संक्रमित के परिजनों की जांच तुरंत नहीं की जा रही है, जिससे संक्रमण के फैलने का खतरा बना रहता है।
झारखंड में अभी कोरोना संक्रमण जांच के लिए चार केंद्र बनाये गये हैं। रिम्स के अलावा जमशेदपुर का एमजीएम, धनबाद का पीएमसीएच और इटकी यक्ष्मा आरोग्यशाला अभी सैंपल जांच कर रहे हैं। इन चारों केंद्रों में पर्याप्त संख्या में जांच किट उपलब्ध नहीं है। मैनपावर की भी कमी है। लेकिन कोरोना वायरस को इन सबसे कोई मतलब नहीं है। वह अपनी गति से फैलता जा रहा है। इसलिए विशेषज्ञ कहते हैं कि कोरोना पर नियंत्रण के लिए सबसे पहले जांच की गति को बढ़ाना होगा। लॉकडाउन इस संक्रमण को फैलने से रोकने में कारगर जरूर है, लेकिन जो लोग संक्रमित हो चुके हैं, उनका पता भी तो लगाना उतना ही जरूरी है, ताकि लॉकडाउन खत्म होने के बाद वे संक्रमण को फैला नहीं सकें।
कोरोना के खिलाफ जंग में झारखंड सरकार ने पूरी ताकत झोंक दी है। राज्य के किसी भी कोने से किसी व्यक्ति के भूखे होने की सूचनाएं नहीं आ रही हैं। इसका साफ मतलब है कि राज्य सरकार की प्रशासनिक मशीनरी सामाजिक मोर्चे पर प्रशंसनीय काम कर रही है। लेकिन अब स्वास्थ्य मशीनरी को रफ्तार देने की चुनौती है। अब इस मोर्चे पर ध्यान केंद्रित करने का समय आ गया है।
झारखंड में संसाधनों की कमी कड़वी हकीकत है। इसका खामियाजा आम लोगों के साथ-साथ कोरोना के खिलाफ जंग में जुटे पहली पंक्ति के योद्धाओं, यानी चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को भी उठाना पड़ा है। उनके पास न संक्रमण से बचाव के पर्याप्त साधन हैं और न इलाज के लिए पर्याप्त सुविधाएं। इससे चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों में संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है, क्योंकि वे लगातार संक्रमितों के संपर्क में रहते हैं। संसाधन जुटाने की जिम्मेदारी सरकार की है और वह इसमें लगी भी हुई है। यदि पर्याप्त संख्या में जांच किट नहीं है, तो इसका रास्ता भी तलाशना होगा। राज्य सरकार ने इसके लिए केंद्र सरकार को अनुरोध भी किया है। अब केंद्र सरकार को भी झारखंड जैसे छोटे राज्यों पर ध्यान देना होगा, क्योंकि लॉकडाउन खत्म होने के साथ कोरोना का संक्रमण फैलने का खतरा अभी मंडराता रहेगा। इसलिए एक तरफ जहां झारखंड की स्वास्थ्य मशीनरी को सक्रिय होने की जरूरत है, वहीं सरकार को भी इस दिशा में काम करने और संसाधन जुटाने की चुनौती है। तभी झारखंड को इस खतरनाक बीमारी से बचाया जा सकता है।