हिंदपीढ़ी के बहाने झारखंडी समाज को बांटने की हो रही साजिश

शीर्षक जरूर चौंकानेवाला है, लेकिन हकीकत यही है। एक तरफ पूरा देश खतरनाक कोरोना महामारी से जूझ रहा है, तो दूसरी तरफ झारखंड की राजधानी रांची के बीच में स्थित एक इलाके से पूरे समाज को बांटने की साजिश रची जा रही है। जिस हिंदपीढ़ी में सभी धर्मों और संप्रदायों के लोग पीढ़ियों से मिल-जुल कर रहते आ रहे थे, वहां अब गलियों और मुहल्लों की पहचान धर्म के आधार पर हो रही है। लोग अपनी-अपनी गलियों में दूसरे संप्रदाय के लोगों का प्रवेश वर्जित कर रहे हैं, सामान की खरीद-बिक्री में भी धर्म का जिक्र हो रहा है और लोग एक-दूसरे को नीचा दिखाने पर उतारू हैं। यह स्थिति तब है, जब पूरे इलाके पर कोरोना का खतरा मंडरा रहा है। दर्जन भर से अधिक लोगों के संक्रमित होने के बाद जहां हिंदपीढ़ी के लोगों को एकजुट होकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ना चाहिए, वहां अफवाहों और गलत सूचनाओं की मदद से सोशल वायरस फैलाया जा रहा है। राजनीति की दुकान सजायी जाने लगी है। यह बेहद चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि यह चिंगारी कब लपट बन जायेगी, कोई बता नहीं सकता। और जब तक उन लपटों का पता चलेगा, झारखंड को बहुत बड़ा नुकसान हो चुका होगा। यह खूबसूरत समाज तबाही की कगार पर पहुंच चुका होगा। इसलिए इस पर सख्ती से लगाम लगाना होगा। कोरोना संकट के इस दौर में इस गहराती सामाजिक समस्या पर आजाद सिपाही ब्यूरो का खास विश्लेषण।

यह नहीं रुका, तो तबाही के मुहाने पर पहुंच जायेगा झारखंड

वाकया 15 अप्रैल का है। कोरोना संकट के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के दूसरे चरण का पहला दिन। झारखंड की राजधानी रांची के बीच में स्थित हिंदपीढ़ी की दो गलियों के मुहाने बांस-बल्ली के सहारे बंद कर दिये गये थे। इन दोनों गलियों में दोनों धर्मां के लोग रहते हैं।
एक धर्म के लोगों ने अपनी गली में तो बांस-बल्ली लगा कर रास्ता बंद कर दिया, लेकिन दूसरी गली में ऐसा किये जाने का विरोध करने लगे और अवरोध को बलपूर्वक हटा दिया। इसकी प्रतिक्रिया में पहली गली के लोग भी दूसरी गली में लगाये गये अवरोध को हटाने पहुंच गये। विवाद बढ़ा और पुलिस प्रशासन के हस्तक्षेप से मामला शांत कराया जा सका। इस घटना के बारे में शहर के दूसरे हिस्सों में जिस तरह अधकचरी जानकारी दी गयी, वह खतरनाक थी।
सोशल मीडिया पर इसे सांप्रदायिक रंग दिया जाने लगा और धार्मिक टिप्पणियां की जाने लगीं। यानी मुट्ठी भर लोग सक्रिय हो गये। वह तो पुलिस प्रशासन के लोगों ने स्थिति को संभाला, वरना कोरोना संक्रमण के कारण दहशत में डूबे हिंदपीढ़ी और रांची के लोग किसी दूसरे संकट में फंस गये होते।
आखिर ऐसा क्यों हो रहा है। यह सवाल जितना महत्वपूर्ण है, उतना ही संवेदनशील भी। कोरोना महामारी को किसी धर्म के साथ जोड़ना न केवल खतरनाक है, बल्कि आत्मघाती भी। लोगों को यह समझ लेना होगा कि बीमारी किसी धर्म या जाति को देख-पूछ कर नहीं आती। वायरस की कोई जाति नहीं होती और किसी भी बीमारी का इलाज एक ही जैसा होता है। इसलिए कोरोना संकट को किसी धर्म के साथ जोड़ना पूरी तरह गलत है। लेकिन लोग इसे समझ नहीं रहे हैं। ऐसी सूचनाएं भी आने लगी हैं कि झारखंड के बहुत से इलाकों में धर्म पूछ कर सामान खरीदा या बेचा जाने लगा है। यह सामाजिक विभाजन इतना खतरनाक रूप ले लेगा, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। झारखंड को सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भाव के लिए जाना जाता है। यहां का समाज दकियानूसी विचारों को तरजीह नहीं देता। ऐसी स्थिति में झारखंड में ये विभाजनकारी घटनाएं पीड़ा देती हैं।
तो फिर इसका उपाय क्या है। दरअसल कोरोना से बचाव के लिए जिस सोशल डिस्टेंसिंग की अवधारणा का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह असल में फिजिकल डिस्टेंसिंग यानी शारीरिक दूरी है। हमें सामाजिक नहीं, शारीरिक दूरी पर ध्यान देना चाहिए। हिंदपीढ़ी और इस तरह के दूसरे इलाकों में लोगों को यह समझना होगा कि केरल और भीलवाड़ा जैसी जगहों ने कोरोना से जंग केवल इसलिए जीती, क्योंकि वहां के लोगों ने एकजुटता दिखायी। खुद जांच के लिए आगे आये और प्रशासन का सहयोग किया।
वे पहले ही जान गये थे कि यदि इस समय ध्यान दूसरी जगह भटका, तो फिर समाज और धर्म का अस्तित्व ही नहीं बचेगा। इसलिए सभी लोग मिल कर जंग लड़ने लगे।
इसलिए अब समय आ गया है कि जिन इलाकों में कोरोना का संक्रमण फैल चुका है या फैल रहा है, वहां के लोग तमाम दूसरे मुद्दों को भुला कर इस महामारी से बचने में जुट जायें। राजनीति, दबंगई, चुनाव और विचार-विमर्श बाद में भी होते रहेंगे, लेकिन महामारी से जंग जीतना आज समय की जरूरत है। इसके लिए प्रशासन को, आम लोगों को और समाज के दूसरे वर्गों को सामने आकर लोगों को दिशा देनी चाहिए। सामाजिक ताने-बाने को सुरक्षित और मजबूत बनाने वाले स्तंभों को भी अपनी जिम्मेवारी बखूबी लेनी होगी। चाहे प्रशासन हो या मीडिया, धर्मगुरु हों या बुद्धिजीवी, हर अंग को इस लड़ाई में अपनी भूमिका निभानी होगी। प्रशासनिक अमला जरूरतमंदों को मदद पहुंचाने में जी-जान से लगा हुआ है, तो स्वास्थ्य कर्मी और सफाई कर्मी भी अपनी भूमिका बखूबी निभा रहे हैं।
अब जरूरत ऐसा माहौल बनाने की है, जिसमें अधिक से अधिक लोग स्वेच्छा से जांच के लिए आगे आयें और दूसरी तमाम बातें भूल कर कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। जितने अधिक लोगों की जांच होगी, उतनी ही कुशलता से संक्रमण का मुकाबला किया जा सकेगा। लेकिन इसके लिए आवश्यक शर्त यह है कि सोशल वायरस को दूर रखा जाये। वरना यह इतना खतरनाक रूप ले लेगा कि इससे कोई बच नहीं पायेगा। वह दौर झारखंड के लिए अधिक पीड़ादायक होगा, क्योंकि इस खूबसूरत प्रदेश की स्थापना इस उद्देश्य को लेकर तो कतई नहीं की गयी थी।
महान समाज विज्ञानी डॉ हेनरी वुटमायर ने कहा है कि वही समाज जिंदा रहता है और आगे बढ़ता है, जिसमें आसन्न संकट को पहचानने की क्षमता और वर्तमान संकट से जूझने का माद्दा होता है। झारखंड के समाज को अपनी इस क्षमता और माद्दा का परिचय देने का समय आ गया है।

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