- रांची-बोकारो में भीलवाड़ा मॉडल लागू करने की जरूरत
खतरनाक महामारी कोरोना का संक्रमण झारखंड में फैलने लगा है। अब तक इस संक्रमण से लगभग अछूता रहनेवाले प्रदेश में एक ही दिन में नौ नये मरीजों का मिलना और एक अन्य की मौत ने पूरे प्रदेश को गहरी चिंता में डुबो दिया है। लोग अब इस जानलेवा महामारी के खतरे को महसूस करने लगे हैं। अब तक झारखंड सरकार ने संक्रमण को रोकने के लिए जो कदम उठाये हैं, उनमें आम लोगों का बहुत अधिक सहयोग नहीं मिल रहा है। न लॉकडाउन का सख्ती से लोग पालन कर रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का ही ध्यान रख रहे हैं। समाज का एक बड़ा वर्ग अब भी बाहर से आये परिजनों या अन्य लोगों को अपने घरों में छिपा कर रखे हुए है। इससे संक्रमण फैल रहा है। इसलिए अब समय आ गया है कि झारखंड में सख्त कदम उठाये जायें और लॉकडाउन के साथ दूसरी सावधानियों का भी सख्ती से पालन किया जाये। यदि इसमें और देरी हुई, तो यह संकट विकराल हो जायेगा और झारखंड जैसे कम संसाधन वाले राज्य में तबाही का आलम देखने को मिल सकता है। झारखंड के दो शहर, रांची और बोकारो में अब तत्काल भीलवाड़ा मॉडल को कड़ाई से लागू करने की जरूरत है, ताकि कोरोना के संक्रमण को फैलने से रोका जा सके। क्या है भीलवाड़ा मॉडल और रांची-बोकारो में इसे लागू करने की जरूरतों का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।
खतरनाक कोरोना का संक्रमण अब झारखंड में भी पैर पसार चुका है। राज्य की सवा तीन करोड़ आबादी इस बीमारी के हमले की जद में आ गयी है। अब तक राज्य के तीन शहरों से ही 13 संक्रमित मिल चुके हैं और एक की मौत हो गयी है। झारखंड की यह तस्वीर बेहद डरावनी हो चली है। राज्य की हेमंत सोरेन सरकार, जिसने झारखंड को इस संक्रमण से इतने दिनों तक बचाने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया था, के लिए अब समय आ गया है कि वह सख्ती करे। झारखंडी समाज का भी एक वर्ग कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए किये जा रहे उपायों का जिस तरह खुलेआम उल्लंघन कर रहा है और अपनी दकियानूसी विचारों के कारण जांच के लिए सामने नहीं आ रहा है, उसके साथ रियायत करना पूरे झारखंड को खतरे में डालना होगा।
तबलीगी जमात की एक विदेशी महिला से शुरू हुआ कोरोना का संक्रमण रांची के हिंदपीढ़ी इलाके में छह और लोगों को अपना शिकार बना चुका है। इसी तरह इसी जमात से जुड़ी बोकारो की एक महिला के कारण वहां और चार लोग संक्रमित हो चुके हैं। भारत में कोरोना संक्रमण के जिस तीसरे चरण को रोकने और कड़ी को तोड़ने की बात हो रही थी, वह स्थिति अब आ गयी है।
पिछले 24 घंटे में जो नौ लोग संक्रमित पाये गये हैं, वे इन दोनों महिलाओं के संपर्क में आये थे। जिस एक कोरोना संक्रमित की मौत हुई है, उसकी तो कोई ट्रैवेल हिस्ट्री भी नहीं थी। इससे साफ पता चलता है कि झारखंड में कोरोना संक्रमण का तीसरा चरण यानी सामुदायिक संक्रमण का सिलसिला शुरू हो गया है। इस खतरनाक स्थिति के बावजूद लोग न लॉकडाउन का पालन कर रहे हैं और न ही कर्फ्यू का। वे घरों से बाहर निकल रहे हैं और झूठे बहाने बना कर शहर में घूम रहे हैं।
क्या है भीलवाड़ा मॉडल
इस परिस्थिति में रांची और बोकारो में कोरोना के खिलाफ जंग के लिए भीलवाड़ा मॉडल अपनाने की जरूरत है। देश की कपड़ा नगरी के रूप में विख्यात राजस्थान के भीलवाड़ा ने कोरोना के खिलाफ जंग में विजय हासिल कर ली है। आज पूरी दुनिया जब इस वैश्विक महामारी से कराह रही है, इस जीत की चर्चा चारों तरफ हो रही है। भीलवाड़ा देश का एकमात्र शहर है, जिसने 20 दिन में कोरोना को हरा दिया। यह जीत आसानी से नहीं मिली, बल्कि इसके पीछे जिला प्रशासन की ठोस रणनीति, कड़े फैसले, चुनाव की तरह मैनेजमेंट और जीतने की जिद रही। इसके साथ लोगों का सहयोगात्मक रवैया भी बेहद महत्वपूर्ण रहा। इसलिए आज कोरोना के खिलाफ जंग में भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा हो रही है।
क्या किया भीलवाड़ा जिला प्रशासन ने
भीलवाड़ा जिला प्रशासन ने कोरोना के खिलाफ जंग शुरू होने के पहले दिन ही अपनी पूरी ताकत इसमें झोंक दी। शहर में पहला मरीज 19 मार्च को मिला। अगले पांच दिन तक मरीज मिलते रहे। शहर के एक निजी अस्पताल के 27 कर्मी और मरीज संक्रमित पाये गये। तब वहां के डीएम राजेंद्र भट्ट ने अपनी टीम के साथ मिल कर पूरी प्लानिंग की। पहले लॉकडाउन लागू किया गया। उसके बाद कर्फ्यू। स्थिति को नियंत्रण में नहीं आता देख तीन अप्रैल को महाकर्फ्यू लगा दिया गया। यह फैसला इस महायुद्ध में मील का पत्थर साबित हुआ। भीलवाड़ा जिला प्रशासन ने क्लस्टर कंटेनमेंट का अद्भुत मॉडल पेश किया।
शहर के 55 वार्डों में नगर परिषद के जरिये दो बार सैनिटाइजेशन करवाया गया। हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड एक प्रतिशत का छिड़काव किया गया। जिले में 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग करायी गयी। इस काम में छह हजार कर्मचारी लगाये गये। मरीजों के संपर्क में आये लोगों की पहचान की। सात हजार से अधिक संदिग्ध होम क्वारेंटीन में रखे गये। एक हजार को 24 होटलों, रिसोर्ट और धर्मशालाओं में क्वारेंटीन किया गया। जिले के सरकारी अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया। इसमें कार्यरत डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदली गयी। वे कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिए सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारेंटीन में रखा। छह पॉजीटिव केस आते ही 20 मार्च को भीलवाड़ा शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया। फिर 14 दिन बाद तीन से 13 अप्रैल तक दस दिन के लिए महाकर्फ्यू। ऐसा करना जरूरी था, ताकि लोग घरों में ही रहें। वायरस का सामुदायिक प्रसार न हो। जिले के ग्रामीण क्षेत्र या गांव का व्यक्ति कोरोना से संक्रमित मिला, तो उस गांव या क्षेत्र को सेंटर प्वाइंट मानते हुए एक किलोमीटर की परिधि को नो मूवमेंट जोन घोषित कर दिया गया, यानि वहां कर्फ्यू भी लगाया। प्रशासन ने जिले की सीमाएं सील कर दीं। 20 चेक पोस्ट बनाकर कर्मचारी तैनात कर दिये, ताकि न कोई बाहर से आ सके, न जिले से बाहर जा सके। शहर और जिले में रोडवेज और प्राइवेट बसें सहित सभी तरह के वाहन और ट्रेन भी बंद करवा दिये गये। कर्फ्यू में लोगों को खाने-पीने का सामान भी मिलता रहे, इसके लिए सहकारी भंडार के जरिये वाहनों से घर-घर राशन सामग्री, फल-सब्जियां और डेयरी के जरिये दूध पहुंचाया गया। श्रमिकों, असहायों और जरूरतमंदों को नि:शुल्क भोजन पैकेट और किराना सामान भेजा गया।
रांची-बोकारो में क्यों जरूरी है यह मॉडल
इसी रणनीति पर रांची और बोकारो जिला प्रशासन को भी काम करना होगा। इन दोनों जिलों की आबादी भीलवाड़ा से कम है। गनीमत है कि इन दो जिलों में भी कोरोना के मरीज एक सीमित दायरे में ही मिले हैं। ऐसे में यह मॉडल लागू करना बहुत आसान है। संसाधन की कमी जरूर हो सकती है, लेकिन भीलवाड़ा में यह चुनौती थी। राजस्थान की सरकार सीधे जिला प्रशासन के संपर्क में थी।
इसलिए कहीं कोई रुकावट नहीं आयी। रांची और बोकारो में यह मॉडल तत्काल लागू करने की जरूरत है, ताकि कोरोना के सामुदायिक संक्रमण को रोका जा सके। झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भीलवाड़ा मॉडल के अनुरूप बाद के दो कदमों को पहले ही अपना चुके हैं, अब जिला प्रशासन को कदम उठाने की जरूरत है, ताकि झारखंड को इस संक्रमण से बचाया जा सके।