संतों की भूमि महाराष्ट्र पर लगा कलंक, उद्धव ठाकरे सकते में

देश में कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक पीड़ित महाराष्ट्र में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की पीट-पीट कर हत्या किये जाने से पूरा देश स्तब्ध है। खुद का पिंडदान कर चुके सनातन धर्म की इन दो विभूतियों को पता नहीं किस अफवाह ने चोर करार दिया और गढ़चिंचले गांव के उपद्रवियों ने उन्हें घेर कर मार डाला। पुलिस की मौजूदगी में साधुओं की हत्या ने कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे लोगों में एक उबाल पैदा कर दिया है। महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार की छवि पर इस घटना ने एक ऐसा धब्बा लगा दिया है, जो शायद कभी मिट नहीं सकेगा। लॉकडाउन में कैसे दो सौ से अधिक उपद्रवी लाठी-डंडों के साथ जुटे बैठे थे और पुलिस ने उस भीड़ के सामने कैसे साधुओं को चौकी से निकाल कर भीड़ के सामने कर दिया, यह तो विस्तृत जांच के बाद पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि यह सब बिना सुनियोजित साजिश के संभव नहीं हुआ होगा। पालघर में केवल दो साधुओं की हत्या नहीं हुई, बल्कि यहां हिन्दुस्तान की आत्मा मरी है, जिस मानवता को बचाने के लिए पूरा देश एकजुट होकर जंग लड़ रहा है, वह मानवता मरी है। पालघर की घटना महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा मोड़ साबित होगी और इस झटके से उबरने में उद्धव ठाकरे को शायद अपना पूरा कैरियर दांव पर लगाना होगा। इस घटना की जिस तरह की प्रतिक्रिया पूरे देश में हो रही है, लाखों की संख्या में जिस तरह संत समाज उबल रहा है, उससे साफ है कि इसका देश भर में असर दिखेगा। पालघर में साधुओं की हत्या का विश्लेषण करती आजाद सिपाही ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

वे साधू थे। श्री पंचनाम दशजूना अखाड़े से जुड़े थे। नाम था संत कल्पवृक्ष गिरि और सुशील गिरि। संत की उम्र 70 वर्ष और सुशील की उम्र 35 वर्ष थी। दोनों सांसारिक मोह त्याग चुके थे। अपना पिंडदान कर साधू जीवन को आत्मसात कर चुके थे। सनातन धर्म के लिए उन्होंने खुद को समर्पित कर दिया था। लेकिन हिंदूवाद की राजनीति के बूते महाराष्ट्र की सत्ता में आयी शिवसेना के गढ़ कहे जानेवाले पालघर जिले के गढ़चिंचले गांव में एक अफवाह के कारण उनकी हत्या कर दी गयी। दो सौ से अधिक लोगों की भीड़ के सामने पुलिस उन्हें लेकर आगे बढ़ी और भीड़ ने झपट्टा मार कर उन साधुओं को अपने कब्जे में कर लिया और लाठी-डंडों से पीट कर मार डाला। उनके साथ उनके ड्राइवर निलेश तेलगड़े भी उपद्रवी हिंसा का शिकार हो गया।
पालघर के जिस इलाके में यह लोमहर्षक वारदात हुई है, वह आदिवासी बहुल है। लॉकडाउन के कारण पूरी आबादी घरों में बंद है। इलाके में पुलिस का पहरा भी है। इसके बावजूद दो सौ से अधिक लोग कैसे लाठी-डंडों से लैस होकर हाइवे पर एकत्र हो गये और अपने गुरु के अंतिम दर्शन करने जा रहे इन साधुओं को घेर लिया, यह सोचनेवाली बात है। पालघर की इस नृशंस और लोमहर्षक घटना ने एक साथ कई सवालों को जन्म दे दिया है। संत कल्पवृक्ष गिरि और सुशील गिरि ने अपने बलिदान से न केवल महाराष्ट्र को, बल्कि पूरे देश को बहुत बड़ी सीख भी दी है।
इस घटना से एक बात साफ हो गयी है कि भारतीय समाज आज भी अफवाहों पर अत्यधिक भरोसा करता है। इन दो साधुओं के गढ़चिंचले गांव में आने और उन्हें चोर बताने की अफवाह इलाके में तेजी से फैली, लेकिन उसका खंडन करने के लिए प्रशासन का कोई तंत्र सामने नहीं आया। मॉब लिंचिंग की इस वारदात ने हमारे समाज के स्याह चेहरे को उजागर कर दिया है कि कैसे भीड़ किसी अफवाह पर हत्यारी बन जाती है और इंसान का खून पीने पर उतारू हो जाती है। इस घटना का जो वीडियो सामने आया है, उससे एक बात साफ हो जाती है कि भीड़ में शामिल अधिकांश लोग युवा थे और वे किसी की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थे। यह चिंताजनक है। उन युवकों के धर्म के बारे में जो बातें सामने आ रही हैं, वे चिंताजनक हैं।
तीन साल पहले का मंजर याद कीजिये। महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके से उड़ी बच्चा चोर गिरोह की अफवाह से पूरा देश अशांत हो गया। उस समय इसी अप्रैल-मई के महीने में अफवाहों का ऐसा दौर चला कि झारखंड में 20 लोगों की हत्या कर दी गयी। इससे पहले मवेशी चोरी और अन्य अपराधों के लिए भीड़ द्वारा इंसाफ किये जाने की कई घटनाएं सामने आ चुकी थीं। पालघर में जिस अफवाह ने दो साधुओं समेत तीन निर्दोष लोगों की जान ले ली, वह वहीं खत्म हो जायेगी, यह सोचना व्यर्थ है। कोरोना संकट से जूझ रहे देश में इस समय तरह-तरह की अफवाहों का दौर चल रहा है। इसलिए लोगों को इससे सतर्क करना सबसे जरूरी है।
पालघर की घटना का राजनीतिक अंजाम तो और व्यापक होनेवाला है। इस घटना ने महाराष्ट्र की उद्धव सरकार के सामने बड़ी चुनौती पेश कर दी है। शिवेसना के संस्थापक बाला साहेब ठाकरे जिस राजनीति के अगुआ थे और वर्तमान मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे जिस राजनीतिक विरासत को लेकर सत्ता में हैं, इस घटना ने उसके आधार को ही हिला दिया है। इस घटना ने उद्धव के विरोधियों को प्रहार का ताकतवर हथियार अनायास ही उपलब्ध करा दिया है। इसका इस्तेमाल विरोधी तो करेंगे ही, संत समाज और समाज के दूसरे वर्ग भी अवसर आने पर इसके इस्तेमाल से नहीं चूकेंगे। देश भर के साधू-संतों ने तो इस मुद्दे को लेकर दिल्ली तक को घेरने की चेतावनी दे दी है। ऐसे में इस घटना के राजनीतिक असर की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है। पालघर की घटना पर बॉलीवुड से लेकर खेल जगत और धार्मिक संगठनों से लेकर आम लोगों ने जिस गुस्से और पीड़ा का इजहार किया है, उससे साफ हो गया है कि इसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है।
पालघर के दोषियों के खिलाफ सख्त और त्वरित कार्रवाई केवल जरूरी ही नहीं, बल्कि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए आवश्यक भी हैं। अभी तक 110 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन साजिश को उजागर नहीं किया गया है। ऐसे में जितनी देरी होती रहेगी, लोगों के मन उतने ही अशांत रहेंगे। इसलिए इस घटना के दोषियों को तत्काल और त्वरित सजा मिले, यही समय की मांग है। उद्धव ठाकरे सरकार ने इलाके के चार पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया है, लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। इस घटना के पीछे की पूरी साजिश को बेनकाब करना और जिम्मेदार लोगों को सामने लाकर ही उद्धव ठाकरे सरकार के चेहरे पर लगा धब्बा थोड़ा हलका हो सकता है। उद्धव ठाकरे को यह भी बताना पड़ेगा कि आखिर किन परिस्थितियों में पुलिसकर्मियों ने साधुओं को भीड़ के हवाले कर दिया और जब भीÞ उन्हें पीटने लगी, तो पुलिसकर्मी चुपचाप किनारे खड़े हो गये।

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