सब कुछ हेमंत सरकार के जिम्मे छोड़ा, अपने पास से खर्च नहीं करना चाहते एक धेला
कोरोना से जूझ रहे झारखंड में एक तरफ जहां सरकार पूरा जोर लगा रही है, वहीं लोग भी कमोबेश अपनी क्षमता के अनुसार इसमें योगदान दे रहे हैं। लेकिन राज्य के अधिकांश विधायक लगता है कहीं खोये हुए हैं। ऐसा भी नहीं है कि ये विधायक कुछ नहीं कर रहे हैं, लेकिन इस जंग में आर्थिक योगदान करने में दूसरे राज्यों की तुलना में झारखंड के विधायक पीछे हैं। अब तक जो परिदृश्य सामने आया है, उससे साफ हो गया है कि राज्य के अधिकांश विधायक अपनी जेब से एक धेला भी खर्च करने की इच्छा नहीं रखते हैं। देश के दूसरे राज्यों के विधायक अपना वेतन राहत कोष में दान दे रहे हैं, झारखंड के विधायकों से भी ऐसी दरियादिली दिखाने की उम्मीद की जा रही है, क्योंकि झारखंड को इसकी सबसे अधिक जरूरत है। यह बेहद अफसोसनाक है कि राज्य के अधिकांश विधायकों का अपने क्षेत्र से केवल वोट का ही रिश्ता है, वहां के लोगों के दुख-दर्द से वे या तो अंजान हैं या अंजान बने रहना चाहते हैं। आज जब पूरा राज्य और यहां के आम लोग कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं, मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपना सब कुछ झोंक दिया है, जबकि अधिकांश विधायकों ने अपने संसाधनों का इस्तेमाल नहीं किया है। कुछ विधायकों ने अपने इलाके में भोजन के पैकेट और खाद्यान्न जरूर बांटे हैं, लेकिन इनकी व्यवस्था या तो पार्टी की ओर से की गयी है या सरकार की तरफ से। हां, कुछ अपवाद भी हैं। झारखंड के माननीयों की इस चुप्पी पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

अब तक विधायकों ने वेतन मद से मदद की पेशकश नहीं की
फरवरी के अंतिम सप्ताह में जब देश में कोरोना का संक्रमण फैलना शुरू हुआ, तब लोग इसके खतरनाक होने के बारे में जानते तो थे, लेकिन शायद उन्हें इस बात का आभास नहीं था कि देश को डेढ़ महीने तक लॉकडाउन झेलना होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 मार्च को जब सबसे पहले तीन सप्ताह के लॉकडाउन का एलान किया, तब भी झारखंड इस संक्रमण से अछूता था, जबकि देश के नौ राज्य इस खतरनाक वायरस से संक्रमित हो चुके थे। झारखंड में कोरोना का पहला मामला 31 मार्च को सामने आया, लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन से पहले से ही प्रदेश इस जंग की तैयारी में लगा हुआ था। लॉकडाउन के कारण होनेवाली परेशानियों से राज्य सरकारें अपनी क्षमता के हिसाब से मुकाबला कर रही थीं। झारखंड में भी हेमंत सोरेन सरकार मुश्किल में फंसे लोगों को राहत पहुंचाने में लगी हुई थी। देश की सबसे बड़ी पंचायत के सदस्य कोरोना के खिलाफ जंग में अपना योगदान दे रहे थे। राज्यों के विधायक भी वेतन दान करने लगे। लेकिन झारखंड के विधायक अब तक इसमें पिछड़े हैं। अब तक न तो विधायकों ने अपना वेतन ही मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष में दिया है और न कोई अन्य सहायता। हां, भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने इसकी पेशकश जरूर की है।
झारखंड के विधायकों का यह व्यवहार वाकई चौंकानेवाला है। छह महीने पहले चुनाव लड़ने के नाम पर करोड़ों खर्च करनेवाले इन विधायकों ने कोरोना के खिलाफ जंग में यह कंजूसी क्यों दिखायी है, किसी को समझ में नहीं आ रहा है। झारखंड विधानसभा के कम से कम 60 ऐसे सदस्य हैं, जिनके पास दो करोड़ से अधिक की संपत्ति है। वह बहुत कुछ कर सकते हैं। सवाल यह है कि विधायकों की इस बेरुखी का कारण क्या है। इसके कारणों की पड़ताल के दौरान कई चौंकानेवाले तथ्य सामने आये हैं। सत्ताधारी गठबंधन के एक विधायक ने इस बाबत पूछने पर कहा कि उनके पास पार्टी का कोई निर्देश नहीं है। एक अन्य विधायक ने कहा कि जब सरकार इतना काम कर रही है, तो फिर हम अपनी ओर से क्या करें। विपक्ष के एक विधायक ने कहा कि सरकार को यदि जरूरत है, तो वह पहले हमसे मांगे, तब हम पीछे नहीं रहेंगे। यानी पूरी मानव जाति पर मंडरा रहे संकट को भी झारखंड के विधायक राजनीति के चश्मे से ही देखते हैं। सत्ता पक्ष के विधायकों को सरकार का कामकाज संतोषजनक लगता है, तो विपक्ष के विधायक चाहते हैं कि सरकार उनके सामने हाथ फैलाये। विधायकों का यह रवैया उचित नहीं है।
कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे झारखंड को संसाधनों की भारी कमी झेलनी पड़ रही है। अस्पतालों के पास समुचित संख्या में उपकरण नहीं हैं और जैसे-तैसे काम चलाया जा रहा है। हर तरफ जांच की गति बढ़ाने की बात हो रही है, लेकिन कोई टेस्टिंग किट की बात नहीं कर रहा है। झारखंड के सभी विधायक यदि 10-10 लाख रुपये की टेस्टिंग किट ही राज्य सरकार को दान कर दें, तो बहुत राहत मिल सकती है। अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं हैं। एक वेंटिलेटर की कीमत करीब 12 लाख रुपये होती है। यदि सभी विधायक अपने-अपने क्षेत्र के अस्पताल में एक-एक वेंटिलेटर ही लगवा दें, तो पूरे झारखंड में स्थिति सुधर सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हो रहा, क्योंकि यहां हर चीज को राजनीति के चश्मे से देखने की परिपाटी हो गयी है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन समेत तमाम नेता कोरोना के खिलाफ जंग को राजनीति से ऊपर रखने की अपील कर चुके हैं। पड़ोसी राज्य ओड़िशा और पश्चिम बंगाल के विधायकों ने अपने-अपने कोष से अस्पतालों में संसाधन बढ़ाने की सिफारिश की है। महाराष्ट्र और तमिलनाडु के विधायकों ने तो अपना वेतन राहत कोष में दिया है। इसके अलावा दूसरे तरीके से भी वे अपनी सरकारों की मदद कर रहे हैं।
पंजाब, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और केरल के विधायकों ने अपना वेतन दान कर दिया है। झारखंड में स्वयंसेवी संस्थाओं, दूसरे संगठनों, निजी कंपनियों और यहां तक कि पाई-पाई जोड़ कर घर चलानेवाले दिहाड़ी मजदूर भी मदद को आगे आये हैं और कर रहे हैं, लेकिन विधायक प्रवासी मजदूरों तक की मदद के लिए सरकारी कोष की बाट जोह रहे हैं। विधायकों को लगता है कि उनका काम केवल विधानसभा सत्र में शामिल होकर वाद-विवाद करना है, जबकि उनका पहला और सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य संकट में घिरे लोगों की हरसंभव मदद करना है। उम्मीद की जानी चाहिए कि झारखंड के विधायक इसे समझेंगे और कोरोना के खिलाफ जारी इस जंग में अपना योगदान देंगे।

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