विशेष
केशव महतो कमलेश से खुश नहीं हैं पार्टी के कई दिग्गज, लॉबी एक्टिव!
किसी आदिवासी नेता को कमान सौैंपने के मिल रहे हैं पुख्ता संकेत

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले पिछले साल अगस्त में झारखंड कांग्रेस ने संगठन में बड़ा बदलाव किया था और पुराने नेता केशव महतो कमलेश को कमान सौंपी गयी थी। लेकिन 10 महीने के बाद एक बार फिर झारखंड कांग्रेस में बदलाव की आहट सुनी जा रही है। इस आहट के बाद कांग्रेस की अंदरूनी सियासत गर्म हो गयी है। कहा जा रहा है कि कांग्रेस आलाकमान ने बदलाव का फैसला वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष के प्रति पनपे असंतोष के कारण किया है। केशव महतो कमलेश को पिछले साल अगस्त में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। उस समय पार्टी को विधानसभा चुनाव लड़ना था और उसे झारखंड में सबसे ज्यादा आबादी वाले अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) मतदाताओं को आकर्षित करना था। नवंबर में हुए चुनाव में पार्टी को अच्छी कामयाबी मिली, लेकिन उसके बाद केशव महतो कमलेश के कई फैसलों पर संगठन के अंदर सवालिया निशान खड़ा होने लगा। स्वच्छ छवि का होने के बावजूद वह कई तरह के विवादों में घिरते चले गये और इसका नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के भीतर उनके खिलाफ एक प्रभावशाली खेमा तैयार हो गया। प्रदेश प्रभारी के राजू ने भी मौके की नजाकत को समझा है। इसके बाद ही प्रदेश कांग्रेस में बदलाव के आहट मिलने लगे हैं। इस बार कांग्रेस आलाकमान द्वारा झारखंड की कमान किसी सरना आदिवासी चेहरे को सौंपे जाने की संभावना है, जिसके लिए कई नामों की चर्चा हो रही है। क्या है झारखंड कांग्रेस में बदलाव की इस आहट के मायने और कौन हैं रेस में शामिल, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की झारखंड प्रदेश इकाई में एक बार फिर उथल-पुथल मची है। इसका कारण पार्टी संगठन में बड़े बदलाव की आहट है। इस बात के पुख्ता संकेत मिल रहे हैं कि झारखंड कांग्रेस का सेनापति बदला जा रहा है और पार्टी आलाकमान ने इस बदलाव को हरी झंडी दे दी है। पार्टी के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश की जगह पर किसी नये नेता को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जायेगा। इस बार किसी आदिवासी चेहरे पर पार्टी दांव खेल सकती है। इस संकेत के मद्देनजर प्रदेश के तमाम कांग्रेस नेता अपनी-अपनी गोलबंदी में जुट गये हैं। नेताओं ने दावेदारी पेश करनी भी शुरू कर दी है। इस बात के संकेत भी हैं कि इस बार आदिवासी में भी सरना तबके से आने वाले अदिवासी नेता को कमान सौंपी जा सकती है। झारखंड की वर्तमान सरकार में कांग्रेस के चारों मंत्री दलित, अल्पसंख्यक, ब्राह्मण और इसाइ (आदिवासी) कोटे से हैं। वहीं प्रदेश अध्यक्ष और नेता विधायक दल ओबीसी समाज से है। इन पदों पर किसी भी सरना आदिवासी को जगह नहीं दी जा सकी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि सरना आदिवासी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है, ताकि सामाजिक संतुलन कायम किया जा सके।

केशव महतो कमलेश के खिलाफ माहौल
वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष केशव महतो कमलेश पुराने कांग्रेसी हैं। उन्हें पिछले साल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले अगस्त में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। अपने कार्यकाल के पहले तीन महीने तो कमलेश विधानसभा चुनाव में व्यस्त रहे। पार्टी ने चुनाव में कामयाबी तो हासिल की, लेकिन संगठनात्मक रूप से कुछ खास नहीं कर सकी। इसके बाद से कमलेश का कामकाज किसी भी नजरिये से संतोषजनक नहीं रहा है। पार्टी संगठन पूरी तरह निष्क्रिय है और सिवाय फीडबैक लिये जाने के अलावा कोई काम नहीं हुआ है। स्वच्छ छवि का होने के बावजूद कमलेश संगठन को सक्रिय नहीं कर पाये हैं। प्रदेश प्रभारी के राजू से अच्छे संबंध के बावजूद अपनी टीम का गठन तक उनसे नहीं हो सका है। इस बीच उन्होंने कई प्रखंड अध्यक्षों को मनमाने तरीके से हटा दिया, जिसका काफी विरोध हुआ। बाद में कमलेश को अपना फैसला वापस लेना पड़ा। इन सब कारणों से उनके खिलाफ एक माहौल तैयार हो गया।

इस बार कई नेता कर रहे दावेदारी
प्रदेश नेतृत्व में बदलाव के संकेत के बीच कांग्रेस के नेता अपनी-अपनी गोलबंदी में जुट गये हैं। केंद्रीय नेतृत्व समेत पार्टी के आला नेताओं से एक-एक कर मिल कर अपनी दावेदारी भी पेश कर रहे हैं। सरना आदिवासी नेताओं में विधायक राजेश कच्छप पर पार्टी दांव खेल सकती है। वर्तमान में झारखंड विधानसभा में वह पार्टी के उपनेता हैं। वह युवा हैं और लगातार दो बार से विधायक हैं। संगठन में निचले स्तर से उन्होंने शुरूआत की है। वहीं खूंटी सांसद कालीचरण मुंडा भी इस रेस में हैं। उन्होंने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को हराकर खूंटी से चुनाव जीता था। ऐसे में उन्हें इसका इनाम मिल सकता है। कांग्रेस के दो पूर्व अध्यक्ष सुखदेव भगत (वर्तमान सांसद) और प्रदीप बलमुचू भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में हैं। पार्टी इनके नेतृत्व पर फिर से भरोसा जता सकती है और अनुभव का लाभ ले सकती है।

दो बार से कार्यकारी अध्यक्ष ही बन रहे अध्यक्ष
झारखंड कांग्रेस में दो बार से कार्यकारी अध्यक्ष को ही प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा रहा है। 2019 में कार्यकारी अध्यक्ष रहे राजेश ठाकुर पहले प्रदेश अध्यक्ष बने। उनके बाद उस समय कार्यकारी अध्यक्ष रहे केशव महतो कमलेश वर्तमान में पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष हैं। ऐसे में वर्तमान दावेदारों में कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते बंधु तिर्की का दावा मजबूत दिख रहा है।

कमलेश को क्यों सौंपी गयी थी कमान
झारखंड में आदिवासियों के बाद सबसे बड़ी संख्या ओबीसी की है। इस समुदाय का एक दर्जन से अधिक विधानसभा सीटों पर प्रभाव है। जनसंख्या के लिहाज से झारखंड में भूमिहार जाति (विशेष रूप से भूमिहार) की संख्या डेढ़ प्रतिशत से अधिक नहीं है। इसके बावजूद कांग्रेस नेतृत्व ने ओबीसी, एससी और एसटी के नेताओं की तुलना में उच्च जाति के नेताओं पर भरोसा किया था। उसका यह दांव विफल हो गया था। 2011 की जनगणना के अनुसार, झारखंड की आबादी में ओबीसी की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति (एसटी) की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत और सामान्य की हिस्सेदारी 16 प्रतिशत है। ऐसे में केशव महतो कमलेश को झारखंड प्रमुख बनाना कांग्रेस की सोची-समझी योजना थी।

क्या है झारखंड कांग्रेस की चुनौती
झारखंड कांग्रेस के सामने सबसे बड़ा चैलेंज अपनी संगठनात्मक कमजोरी को दूर करना ही है। लगातार दो विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन करनेवाली झारखंड कांग्रेस की हालत इन दिनों किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में पार्टी के भीतर मची उथल-पुथल और खेमेबंदी को खत्म करना किसी भी नेता के लिए आसान नहीं है।

Share.
Leave A Reply

Exit mobile version