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एक सौ विधानसभा सीटों वाले इस इलाके के समीकरण सभी के लिए अहम
बिहार की सत्ता का ताला इसी इलाके पर जीत हासिल करने से खुलता रहा है

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार के आसन्न विधानसभा चुनाव के मद्देनजर तमाम राजनीतिक दल अपना-अपना समीकरण फिट करने में लगे हुए हैं। इस दौरान बिहार के मिथिलांचल पर खास ध्यान दिया जा रहा है, क्योंकि कहा जाता है कि बिहार की सत्ता का ताला इसी इलाके पर जीत के साथ खुलने का इतिहास रहा है। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से एक सौ सीटें मिथिलांचल से हैं, जो इसे सत्ता की दौड़ में निर्णायक बनाती हैं। यह क्षेत्र उत्तरी बिहार का एक बड़ा हिस्सा है, जिसमें दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर और सीतामढ़ी जैसे जिले शामिल हैं, जो परंपरागत रूप से एनडीए के लिए मजबूत गढ़ रहे हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए ने दरभंगा जिले की सभी नौ सीटें जीती थीं। लेकिन मिथिलांचल की सियासत के साथ एक खास बात यह है कि इस इलाके ने कभी किसी एक दल या गठबंधन का समर्थन नहीं किया, क्योंकि यहां का सामाजिक समीकरण अपने-आप में विशिष्ट है। मिथिलांचल में ब्राह्मण, राजपूत, यादव, अति पिछड़ा वर्ग और दलित समुदायों की महत्वपूर्ण आबादी है। इनके अलावा मुस्लिम वोटर भी यहां की सियासी धारा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मिथिलांचल की सियासत का इतिहास बताता है कि ब्राह्मण और मुस्लिम वोटरों की गोलबंदी ही यहां के चुनाव परिणाम को तय करते हैं। इसलिए इस बार एनडीए और महागठबंधन, दोनों ही मिथिलांचल पर खास ध्यान दे रहे हैं। ‘पग-पग पोखरि माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान’ वाले मिथिलांचल में इस बार क्या है सियासी माहौल और क्या हैं चुनावी संभावनाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बिहार के सत्ता संग्राम में मिथिलांचल का महत्व सभी को पता है। इस अंचल की एक सौ विधानसभा सीटें बिहार की सत्ता की चाबी हैं, क्योंकि इन सीटों पर जीत का मतलब ही सत्तासीन होने का प्रमाण पत्र होता है। इसलिए इस बार के चुनाव में भी मिथिलांचल को खासा महत्व दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद यहां से चुनाव प्रचार अभियान का आगाज कर चुके हैं, तो महागठबंधन की तरफ से राहुल गांधी ने दरभंगा का छात्रावास दौरा कर चुनाव प्रचार अभियान को हरी झंडी दिखा दी है। तेजस्वी यादव ने भी पिछले दिनों मिथिला का दौरा किया था। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों दोनों गठबंधनों के लिए मिथिलांचल इतना महत्वपूर्ण है।

क्यों जरूरी है मिथिलांचल
पिछले विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में मिथिलांचल में महागठबंधन को जबरदस्त हार का सामना करना पड़ा था, जबकि एनडीए विशेषकर बीजेपी को शानदार कामयाबी मिली थी। लिहाजा इस वोट बैंक को इंटैक्ट रखते हुए नये मतदाताओं को जोड़ना भी एनडीए का लक्ष्य है। यही वजह है कि बीजेपी के साथ-साथ तमाम घटक दल भी मिथिलांचल के लिए पसीना बहा रहे हैं।

मिथिलांचल में एक सौ सीटें
मिथिलांचल और उत्तर बिहार की करीब एक सौ विधानसभा सीटें इस क्षेत्र में आती है। कहते हैं कि इस इलाके में जीत हासिल करने वाला ही बिहार की सत्ता पर राज करता है। पिछली बार तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन ने एनडीए को कड़ी चुनौती दी थी, लेकिन इसी क्षेत्र में वह काफी पीछे रह गये, जिस वजह से वह सत्ता में नहीं आ पाये। वहीं बीजेपी और जेडीयू ने शानदार कामयाबी हासिल करते हुए सत्ता में वापसी की।

2024 में एनडीए की एकतरफा जीत
लोकसभा चुनाव 2024 में भी एनडीए की एकतरफा जीत हुई। मिथिलांचल में आरजेडी का खाता भी नहीं खुला, जबकि कांग्रेस सिर्फ कटिहार सीट ही जीत पायी, वहीं पूर्णिया में निर्दलीय पप्पू यादव को जीत मिली। बीजेपी ने जहां मधुबनी, दरभंगा, उजियारपुर, मुजफ्फरपुर और अररिया में जीत हासिल की, वहीं झंझारपुर, सीतामढ़ी, शिवहर, मधेपुरा और सुपौल में जेडीयू को जीत मिली। समस्तीपुर (सुरक्षित) और खगड़िया में चिराग पासवान की एलजेपी (आर) को सफलता मिली।

मिथिलांचल का सामाजिक समीकरण
मिथिलांचल का क्षेत्र बहुत बड़ा है। इसके तहत मिथिला का मुख्य इलाका तो शामिल है ही, इसके अलावा कोसी और सीमांचल भी इसी में आता है। ऐसे में ब्राह्मण, यादव और मुस्लिम मतदाता उम्मीदवारों की जीत-हार तय करते हैं। पारंपरिक तौर पर ब्राह्मण कांग्रेस के वोटर रहे हैं, लेकिन हालिया सालों में उनका रुझान एनडीए, विशेषकर बीजेपी की तरफ रहा है। वहीं यादव और मुस्लिम वोटर आरजेडी के साथ रहते हैं। हालांकि अति पिछड़ी जातियों को गोलबंदी जेडीयू के साथ रही है। इस वजह से नीतीश कुमार जिस गठबंधन में रहते हैं, उनके उम्मीदवारों की जीत की संभावना बढ़ जाती है।

ब्राह्मण और राजपूत पारंपरिक रूप से भारतीय जनता पार्टी के कोर वोटर रहे हैं, जबकि ओबीसी और कुछ हद तक यादव मतदाता जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल के बीच बंटते हैं। 1989 के राम मंदिर आंदोलन के बाद से ब्राह्मण और मुस्लिम समुदायों का ध्रुवीकरण हुआ, जिसने भाजपा को इस क्षेत्र में मजबूत किया। मिथिलांचल में मुस्लिम आबादी भी कुछ क्षेत्रों में प्रभावशाली है, जिसे राजद और अन्य विपक्षी दल अपने पक्ष में करने की कोशिश करते हैं। इस तरह यह क्षेत्र जातीय और धार्मिक समीकरणों का एक जटिल मिश्रण है। मिथिलांचल मैथिली भाषा और संस्कृति का केंद्र है, जो इसे बिहार के अन्य क्षेत्रों से अलग करता है। मिथिलांचल में जातीय समीकरण जटिल हैं। एनडीए को ब्राह्मण और राजपूत वोटों को बनाए रखने के साथ-साथ इबीसी और मुस्लिम मतदाताओं को भी लुभाना होगा, जो राजद की ओर झुक सकते हैं।अगर राजद मुस्लिम-यादव समीकरण को मजबूत करता है, तो एनडीए को कुछ सीटों पर नुकसान हो सकता है।

मिथिलांचल के विकास पर जोर
केंद्र की नरेंद्र मोदी की सरकार लगातार मिथिलांचल पर सौगातों की बारिश कर रही है। इनमें सड़क, रेल परियोजना, दरभंगा एयरपोर्ट, दरभंगा एम्स, मैथिली में संविधान, मखाना को जीआइ टैग और मखाना बोर्ड का गठन समेत कई योजनाएं शामिल हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार मिथिलांचल और मखाने की तारीफ करते रहे हैं। पिछली बार भी जब वह बिहार दौरे पर आये थे, तब भी उन्होंने मखाने का जिक्र किया था। इतना ही नहीं, बीजेपी की तरफ से इस साल अहमदाबाद में ‘शाश्वत मिथिला महोत्सव 2025’ का आयोजन किया गया, जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने गुजरात के विकास में मिथिला और बिहार के लोगों के योगदान की तारीफ की थी। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में लोकतंत्र और दर्शन को सशक्त बनाने का इतिहास रहा है।

हालिया मंत्रिमंडल विस्तार में मिथिलांचल की धमक
नीतीश कैबिनेट के आखिरी विस्तार में बीजेपी कोटे से जिन सात नये मंत्रियों को शामिल कराया गया, उनमें से पांच मिथिला क्षेत्र से ही आते हैं। इनमें जीवेश मिश्र, संजय सरावगी, राजू कुमार सिंह, मोती लाल प्रसाद और विजय कुमार मंडल शामिल हैं। पार्टी को उम्मीद है कि इनके मंत्री बनने से विधानसभा चुनाव में लाभ मिलेगा।

तेजस्वी ने भी किया मिथिलांचल दौरा
पिछले साल तेजस्वी यादव ने पूर्व मुख्यमंत्री भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली समस्तीपुर से अपने ‘कार्यकर्ता दर्शन सह संवाद कार्यक्रम’ की शुरूआत की। मिथिलांचल के तमाम जिलों में जाकर उन्होंने कार्यकर्ताओं से मिलकर फीडबैक लिया।

अलग राज्य का दांव कितना असरदार
पिछले चुनावों में आरजेडी को सबसे अधिक मिथिलांचल में ही नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में पिछले दिनों पूर्व सीएम राबड़ी देवी ने अलग मिथिला राज्य की वकालत कर बड़ा दांव चल दिया। यह मांग पिछले कई दशकों से क्षेत्र के लोग कर रहे हैं। हालांकि हाल के वर्षों में कोई भी राजनीतिक दल इसे हवा नहीं दे रहा है। ऐसे में राबड़ी की मांग को बीजेपी विधायक हरिभूषण ठाकुर बचौल ने मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ते हुए कहा कि वह बांग्लादेश बनाना चाहती हैं मिथिलांचल को, इसलिए ऐसी मांग कर रही हैं।

क्या है मिथिलांचल की खासियत
राजनीतिक तौर पर मिथिलांचल जहां सरकार बनाने और बिगाड़ने में असर डालता है, वहीं इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी रही है। ‘पग-पग पोखरि माछ मखान, मधुर बोल मुस्की मुख पान’, इस पंक्ति से ही मिथिलांचल की विशेषता को समझा जा सकता है। ये पंक्तियां मिथिलांचल की पहचान से जुड़ी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद, ललित नारायण मिश्रा, जगन्नाथ मिश्रा और विनोदानंद झा जैसे दिग्गजों की जन्म और कर्मभूमि रहा मिथिलांचल पिछड़े इलाकों में गिना जाता है।

 

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