Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Tuesday, June 17
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»विशेष»मोदी सरकार का एक और ऐतिहासिक कदम
    विशेष

    मोदी सरकार का एक और ऐतिहासिक कदम

    azad sipahiBy azad sipahiApril 29, 2022No Comments7 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र पर पिछले आठ साल से शासन कर रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और जीवन के दूसरे क्षेत्र में चाहे जो भी ऐतिहासिक कदम उठाये हैं, संसदीय व्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव लाने और शुचिता पर इसने खासा ध्यान दिया है। यही कारण है कि हंगामे, शोर-गुल और दूसरे विवादों के लिए जानी जानेवाली संसद अब तय समय से अधिक काम कर रही है और सांसद भी गंभीरता से बहस में हिस्सा ले रहे हैं। मोदी सरकार ने संसद की गरिमा को बरकरार रखते हुए जो दो फैसले लिये हैं, वे भारतीय विधायी परंपरा में मील के पत्थर साबित होंगे। पहला फैसला था संसद भवन की कैंटीन के लिए दी जानेवाली सब्सिडी को खत्म करने का और अब दूसरा फैसला केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन में सांसदों का कोटा खत्म करने का। मोदी सरकार के पहले फैसले से जहां भारत के करदाताओं की गाढ़ी कमाई की फिजूलखर्ची रुक गयी है, वहीं दूसरे फैसले से उन जरूरतमंद बच्चों के लिए केंद्रीय विद्यालयों में पढ़ने का रास्ता साफ हुआ है, जिनके अभिभावकों की पहुंच सांसद तक नहीं थी। केंद्रीय विद्यालयों में क्या था सांसदों का कोटा और इसके खत्म होने के क्या परिणाम हो सकते हैं, इस बारे में आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।

    केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार बड़ा कदम उठाते हुए केंद्रीय विद्यालयों में 2022-23 और उसके बाद के दाखिले संबंधी दिशा-निर्देशों में बदलाव कर दिया है। सरकार ने इसके तहत केंद्रीय विद्यालयों में दाखिले के लिए सांसद यानी एमपी कोटे, पूर्व कर्मचारियों, जिला कलेक्टर और अधिकारियों के लिए निर्धारित कोटे को खत्म कर दिया है। मोदी सरकार ने कहा है कि केंद्रीय विद्यालयों में प्रवेश के लिए संसद सदस्य (सांसद) नामों की सिफारिश करने ाले कोटे को खत्म कर दिया है। इसके साथ ही शिक्षा मंत्रालय के कर्मचारियों, बच्चों और सांसदों के आश्रित पोते और सेवारत या सेवानिवृत्त केवी कर्मचारियों के बच्चों को प्रवेश देने के लिए विशेष प्रावधान, स्कूल प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के विवेकाधीन कोटे को भी हटा दिया गया है।
    क्या था सांसद कोटा और कितनी सिफारिश का था अधिकार?

    अभी तक सांसदों के कोटे के माध्यम से प्रत्येक सांसद द्वारा प्रत्येक शैक्षणिक वर्ष की शुरूआत में कक्षा एक से नौवीं तक में प्रवेश के लिए 10 छात्रों की सिफारिश की जा सकती थी। नियमों के तहत 10 नाम उन बच्चों तक ही सीमित होने चाहिए, जिनके माता-पिता सिफारिश करनेवाले सांसद के निर्वाचन क्षेत्र से संबंधित हैं। लोकसभा में 543 और राज्यसभा में 245 सांसद होते हैं, जो व्यक्तिगत कोटे के तहत सामूहिक रूप से प्रति वर्ष 7880 छात्रों के प्रवेश की सिफारिश कर सकते थे। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2018-19 में सांसदों के कोटे के तहत 8164 दाखिले हुए, यानी कि सिफारिश सीमा को पार किया गया। वहीं 2019-20 और 2020-21 में इस श्रेणी में क्रमश: 9411 और 12 हजार 295 दाखिले हुए तथा 2021-22 में 7301 दाखिले सिफारिश से हुए थे। इससे पहले इस कोटे को अतीत में कम से कम दो बार वापस लिया गया था, लेकिन वापस बहाल कर दिया गया। अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एक बार फिर इस विवेकाधीन कोटे के माध्यम से प्रवेश रोक दिये हैं।

    1963 में हुई थी केंद्रीय विद्यालयों की स्थापना
    आज देश के लगभग हर शहर में एक केंद्रीय विद्यालय देखने को मिल रहा है। कई एकड़ के कैंपस में फैला यह विद्यालय आम लोगों और छात्रों को हमेशा लुभाता है। शायद ही कोई ऐसा नौकरीपेशा अभिभावक होगा, जो अपने बच्चे को केंद्रीय विद्यालय में न भेजना चाहता हो। पहली बार केंद्रीय विद्यालय की स्थापना 1963 में की गयी थी। वर्तमान में देश में 1248 केंद्रीय विद्यालय हैं। इनका संचालन केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के अधीन केंद्रीय विद्यालय संगठन द्वारा किया जाता है। इनकी स्थापना केंद्र सरकार के विभागीय अधिकारियों, सेना और अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के बच्चों को बेहतर शिक्षण सुविधा देने के लिए की गयी थी। इसके पीछे का मकसद था कि अधिकारियों के ट्रांसफर का असर उनके बच्चों की पढ़ाई पर न पड़े। आज इन केंद्रीय विद्यालयों में 14.36 लाख विद्यार्थी पढ़ते हैं।

    क्या था केंद्रीय विद्यालय में सांसद कोटा
    साल 1975 में केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालयों में विशेष योजना के तहत सांसद कोटा का निर्धारण किया था। इसके तहत लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों के लिए सीटों की संख्या तय की गयी थी। इसके माध्यम से जनप्रतिनिधि अपने क्षेत्र के प्रमुख और जरूरतमंद लोगों को सुविधा दे सकते थे। सांसद केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और केंद्रीय विद्यालय संगठन को एक कूपन और छात्र, जिसका प्रवेश कराना हो, उसकी पूरी जानकारी भेजते थे। इसके बाद संगठन द्वारा आधिकारिक वेबसाइट पर शॉर्टलिस्ट किये गये छात्र का नाम जारी किया जाता था और इसके बाद एडमिशन की प्रक्रिया शुरू होती थी। यह सुविधा केवल पहली से नौवीं कक्षा तक ही लागू होती थी। सांसदों के साथ ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री के पास भी 450 छात्रों को प्रवेश दिलाने का कोटा दिया गया था।
    समय के साथ बढ़ती गयी सीटों की संख्या सांसद कोटा के तहत सीटों की संख्या में समय-समय पर इजाफा भी होता आया था। शुरूआत में एक सांसद केवल दो छात्रों के लिए सिफारिश कर सकते थे। साल 2011 में इसे बढ़ाकर पांच, 2012 में छह और 2016 में 10 तक कर दिया गया।

    इसलिए मोदी सरकार ने खत्म किया कोटा
    सांसद कोटे को लेकर संसद दो धड़ों में बंटा हुआ था। एक धड़ा इसे खत्म करने की मांग कर रहा था, तो वहीं दूसरा सीटों की संख्या को बढ़ाने की। कोटे के तहत प्रवेश विद्यालयों में पहले से निर्धारित सीटों से अलग होता था। ऐसे में छात्रों की संख्या अधिक होने से शिक्षक-छात्र अनुपात पर भी असर पड़ता था। इसके अलावा लाखों लोगों के प्रतिनिधि की ओर से कुछ छात्रों के प्रवेश के लिए अनुरोध कहीं न कहीं भेदभावपूर्ण भी लगता था। यही कारण है कि इस कोटे को ही खत्म कर दिया गया।
    पहले भी खत्म हुआ था कोटा

    सांसद कोटे को खत्म करने का फैसला देश में पहली बार नहीं हुआ है। कई बार इसे खत्म किया गया और राजनीतिक दवाब के कारण वापस ले आया गया। साल 1997 में सरकार ने सांसद कोटे को वापस लिया था। एक साल बाद ही 1998 में इसे वापस लागू कर दिया गया। इसके बाद 2010 में इस कोटे को सस्पेंड किया गया था। हालांकि, अगले साल इसे वापस ले आया गया और सीटों की संख्या में भी बढ़ोतरी की गयी। इसके बाद साल 2016 में एक बार फिर से सांसद कोटा के तहत सीटों को बढ़ाकर 10 कर दिया गया। हालांकि शिक्षा मंत्री का कोटा कई वर्षों तक बंद ही रहा था। तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी के दौर में इसे दोबारा से शुरू किया गया। हालांकि, वर्तमान केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस कोटे को सर्वसम्मति के आधार पर खत्म करने की बात कही है।

    सांसद कोटे को खत्म करने का फैसला इसलिए भी ऐतिहासिक है, क्योंकि इसके माध्यम से होनेवाली गड़बड़ी अब खत्म हो जायेगी। इतना ही नहीं, सांसदों के जिन प्रतिनिधियों ने इसे अवैध कमाई का जरिया बना लिया था, उस पर भी लगाम लग जायेगी और वैसे जरूरतमंद बच्चे केंद्रीय विद्यालय में पढ़ने की हसरत पूरी कर सकेंगे, जिनके अभिभावकों की पहुंच सांसद तक नहीं है। मोदी सरकार का यह फैसला केंद्रीय विद्यालयों में नामांकन प्रक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव तो लायेगा ही, लोकोपयोगी संस्थाओं की सूची में इन विद्यालयों को शामिल कर देगा।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleशरजील इमाम की जमानत याचिका पर सुनवाई, दिल्ली पुलिस को नोटिस
    Next Article झारखंड में बिजली संकट गहराया, कम बिजली कटौती के निर्देश
    azad sipahi

      Related Posts

      एक साथ कई निशाने साध गया मोदी का ‘कूटनीतिक तीर’

      June 8, 2025

      राहुल गांधी का बड़ा ‘ब्लंडर’ साबित होगा ‘सरेंडर’ वाला बयान

      June 7, 2025

      बिहार में तेजस्वी यादव के लिए सिरदर्द बनेंगे चिराग

      June 5, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • प्रधानमंत्री मोदी को साइप्रस का सर्वोच्च नागरिक सम्मान
      • डीजीपी अनुराग गुप्ता अब न अखिल भारतीय सेवा में हैं, ना सस्पेंड हो सकते हैं : बाबूलाल मरांडी
      • भाजपा के टॉर्चर से बांग्ला बोलना सीख गया : इरफान
      • राजभवन के समक्ष 108 एंबुलेंस के कर्मी 28 को देंगे धरना
      • झारखंड में 19 तक मानसून के पहुंचने की उम्मीद, 21 तक होगी बारिश
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version