खतरनाक मंशा : दंगाइयों ने महिलाओं-बच्चों का कवच के रूप में इस्तेमाल किया
देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में 17 अप्रैल को जो कुछ हुआ, वह दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही, साथ ही इसका एक खतरनाक पहलू भी सामने आया। देश में पहली बार सांप्रदायिक तनाव की स्थिति में महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल कवच के रूप में किया गया। यह माहौल के उस मुकाम पर पहुंचने का साफ संकेत है कि अब इन दंगाइयों के खिलाफ नरमी बरतने का मतलब हिंसा को बढ़ावा देना होगा। जहांगीरपुरी में जिस तरह से दंगाइयों ने महिलाओं और बच्चों को सामने रख कर पथराव और आगजनी की घटना को अंजाम दिया, उससे दंगों का एक नया पैटर्न सामने आया है। चाहे करौली हो या खरगोन या फिर जहांगीरपुरी, हर जगह एक ही तरीके से तनाव भड़काया जाता है और फिर हिंसक वारदातें होती हैं। यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर दूसरे धर्म के प्रति इतनी असहिष्णुता अचानक कैसे पैदा हो गयी कि छोटी-छोटी बातों पर लोग मरने-मारने पर उतारू हो जा रहे हैं और महिलाओं-बच्चों के पीछे छिप कर हिंसा फैलाते हैं। देश के बिगड़ते सांप्रदायिक माहौल के लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है और इस पर तत्काल कठोरता से नियंत्रण जरूरी हो गया है। भारतीय समाज वैसे भी अहिंसक माना जाता है और इसमें हिंसा को बढ़ावा देनेवाले तत्वों को तिरस्कृत ही किया जाता है, इसलिए जहांगीरपुरी की घटनाओं के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ केवल कानूनी ही नहीं, सामाजिक रूप से भी कठोर कदम उठाना जरूरी हो गया है। जहांगीरपुरी में हुई हिंसक वारदात की पृष्ठभूमि में दंगाइयों की खतरनाक मंशा को रेखांकित करती आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राहुल सिंह की खास रिपोर्ट।
पिछले एक पखवाड़े के दौरान देश का सांप्रदायिक माहौल अचानक खराब हो गया है। चैती नवरात्र और रमजान शुरू होने के बाद से राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड और दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इन वारदातों में बड़े पैमाने पर आगजनी हुई, कई लोग घायल हुए और जान-माल का व्यापक नुकसान हुआ। लेकिन सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इन वारदातों का पैटर्न लगभग एक जैसा रहा। महज 15 दिन के भीतर राजस्थान के करौली, मध्य प्रदेश के खरगोन और दिल्ली के जहांगीरपुरी में जिस तरह से हिंसा के मामले सामने आये हैं, उससे यह सवाल तो उठ ही रहा है कि आखिर कौन है, जो सुनियोजित तरीके से देश के माहौल को बिगाड़ने की पटकथा लिख रहा है। इस तरह की घटनाओं की पटकथा कहां लिखी जा रही है और खुफिया विभाग को भनक तक नहीं लग रही है।
इन वारदातों में नयी दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके में हुई घटना सबसे चौंकानेवाली है। इस घटना में दंगाइयों ने महिलाओं और बच्चों को सामने कर पथराव किया, गोलियां चलायीं और पेट्रोल बम फेंके। देश के सांप्रदायिक दंगों के इतिहास में यह पहली बार हुआ कि दंगाइयों के आगे महिलाएं और बच्चे थे। दंगों के दौरान अपनाये जानेवाला यह सबसे खतरनाक तरीका है। वैसे पुलिस का कहना है कि जहांगीरपुरी में हुई हिंसा के संबंध में एक बड़ी साजिश का पता चला है। पुलिस इस बात की जांच कर रही है कि क्या मुख्य आरोपी अंसार और असलम हिंसक सीएए विरोध और 2020 के हिंदू विरोधी दिल्ली दंगों से जुड़े हैं। पुलिस रोहिंग्या, अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों और स्थानीय अपराधियों का भी पता लगा रही है, जिन्होंने शोभा यात्रा जुलूस में हिंसा और पथराव में भाग लिया था। जांच अधिकारी हनुमान जयंती समारोह और राम नवमी के जुलूसों पर पथराव के बीच हिंसा का पैटर्न खोजने की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यह हिंसा महज संयोग नहीं, बल्कि एक साजिश थी। दिल्ली पुलिस के अनुसार इन दंगों को अंजाम देने में ‘चुप्पी की साजिश’ थी, जिसका मकसद पूरी तरह से व्यवस्था को पंगु बना देना था। जहांगीरपुरी हो या करौली या फिर खरगोन, दंगों के पहले अभियान में असफल रहने के बाद आरोपियों ने दूसरे दौर के दंगों की तैयारी की और फिर दंगे करवाने में सफल रहे।
अब इन घटनाओं का पैटर्न देखें। हिंदू नववर्ष पर राजस्थान के करौली में बाइक रैली निकाली जा रही थी। रैली जब मुस्लिम बहुल क्षेत्र से गुजर रही थी, तो कुछ उपद्रवियों ने पथराव कर दिया था, जिसके बाद हिंसा भड़क गयी थी। जांच में सामने आया कि यहां उपद्रव की प्लानिंग पहले से थी। छतों से सैकड़ों टन पत्थर, लाठी, सरिये, चाकू बरामद किये गये थे। माहौल खराब करने के लिए कई दिनों से साजिश रची गयी थी, लेकिन पुलिस और खुफिया एजेंसियों ने गंभीरता नहीं दिखायी। इसी तरह मध्य प्रदेश के खरगोन शहर में रामनवमी के जुलूस में पथराव और आगजनी के बाद पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया था। हिंसा का सच सीसीटीवी फुटेज में सामने आया कि नकाबपोश उपद्रवियों ने किस तरह शहर में उत्पात मचाया। तीन सौ-चार सौ लोगों की भीड़ ने शीतला माता मंदिर और आसपास के घरों पर हमला बोल दिया। पत्थरबाजी की, खिड़कियों और दरवाजों पर लात मारी। इस घटना में भी पुलिस का खुफिया तंत्र फेल रहा। यहां तक कि उपद्रवियों ने पेट्रोल बम भी फेंके। उसी दिन गुजरात के साबरकांठा के हिम्मतनगर में दो समुदायों के बीच पथराव हुआ। पेट्रोल बम भी फेंके गये। पुलिस ने चार उपद्रवियों को पकड़ा। खंभात शहर में भी हिंसक झड़प हुई। हथियार के तौर पर पत्थर, कांच की बोतलें और लाठियां इस्तेमाल की गयीं। नयी दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती पर निकाली जा रही शोभायात्रा के मस्जिद के करीब पहुंचने पर हिंसा भड़की। चश्मदीदों ने बताया कि उपद्रवियों ने पहले से पत्थर, बोतल और चोट पहुंचानेवाली चीजें जमा कर रखी थीं। विवाद की शुरूआत बहस से हुई और जब दोनों पक्ष आमने-सामने आये, तो एक पक्ष ने महिलाओं और बच्चों को आगे कर दिया।
इन तमाम वारदातों में एक बात साफ नजर आती है कि हर घटना पहले से नियोजित थी और बाकायदा इसकी तैयारी की गयी थी। लेकिन सबसे खतरनाक तो महिलाओं और बच्चों का इस्तेमाल ही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर किसी एक धर्म की शोभा यात्रा पर ही हमले क्यों होते हैं। क्यों एक खास इलाके में ही विवाद की शुरूआत होती है और अचानक घरों की छतों पर पत्थर, पेट्रोल बम और दूसरे घातक हथियार कैसे जमा हो जाते हैं।
अब समय आ गया है कि इन परिस्थितियों पर गंभीरता से विचार करना होगा और ऐसे तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो भारत उस साजिश का शिकार हो जायेगा, जिसका ताना-बाना 1947 के बाद से ही बुना जा रहा है।