रांची। झारखंड में पहली बार ब्लड से संबंधित दुर्लभ और गंभीर बीमारी का इलाज किया गया है। इस इलाज में इंसानी नहीं बल्कि घोड़े से एंटीबॉडी लेकर इलाज किया गया है। मेडिकल टर्म में ब्लड से रिलेटेड इस बीमारी को अप्लास्कि एनीमिया कहा जाता है। इलाज कर रहे डॉक्टरों के मुताबिक यह ब्लड से रिलेटेड ऐसी बीमारी है, जिसका इलाज काफी खर्चीला होता है। वहीं उम्र के हिसाब से यह कई बार जानलेवा साबित होती है। शहर के सेंटेविटा अस्पताल में 84 साल की महिला का इलाज हुआ है। इलाज पूरी तरह से सफल रहा है।
मरीज का इलाज करनेवाले डॉ अभिषेक रंजन के मुताबिक 50 साल की उम्र के ऊपर के मरीज का इलाज केवल इम्यूनो स्प्रेसिव थेरेपी से संभव हो पाता है। मंगलवार को इस इलाज की पूरी प्रक्रिया के संबंध में डॉ अभिषेक रंजन ने पत्रकारों से जानकारी साझा की।
ऐसे डिटेक्ट हुआ अप्लास्कि एनीमिया
पेशे से स्त्री रोग विशेषज्ञ 84 साल की महिला को गंभीर स्थिति में अस्पताल लाया गया था। उन्हें डीएम क्लीनिकल हर्मेटोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक रंजन की देखरेख में भर्ती किया गया। उन्होंने कई तरह के टेस्ट किये, जिसमें पता चला कि मरीज को गंभीर पेंसीटूपेनिया के साथ डब्ल्यूबीसी काउंट सबसे कम है। ऐब्सोल्यूट न्यूट्रोफिल्स काउंट 500 से कम है। प्लेटलेट्स 20000 से कम होने के साथ हीमोग्लोबिन अपने सबसे निचले स्तर पर है। इसके बाद बोन मैरो टेस्ट, बायोप्सी, मॉलिकुलर पैनल और फ्लो साइटोमेट्री के एडवांस्ट टेस्ट कि ये गये, जिसके बाद मरीज का अप्लास्टि अनीमिया से ग्रसित होने की पुष्टि हुई।
इलाज की क्या हैं मुश्किलें?
इलाज कर रहे डॉ अभिषेक रंजन ने बताया कि उम्र के लिहाज से इस बीमारी का इलाज आसान नहीं होता है। बढ़ती उम्र के साथ इलाज के विक्लप सीमित हो जाते हैं। 50 वर्ष से कम आयु वर्ग के रोगियों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट है। यह अपने किसी संबंधी या बिना संबंध वाले से हो सकता है। अगर मरीज की उम्र 50 साल से अधिक है तो इलाज का बेहतर विकल्प इम्यूनोस्प्रेसिव थेरेपी है। इसमें हॉर्स एटीजी को साइक्लोस्पोरिन के साथ या टैबलेट रेपोलेड के साथ जोड़ा जाता है।