विशेष
-18वें आम चुनाव के एजेंडे में सबसे ऊपर रहेगा अयोध्या का मुद्दा
-कांग्रेस के वर्तमान रवैये से उसका बहुसंख्यक विरोधी चेहरा ही सामने आ रहा

देश में 18वां आम चुनाव होने में अभी एक साल से अधिक का समय है, लेकिन इसके लिए एजेंडा सेट करने का काम पूरे जोर-शोर से चल रहा है। चूंकि पिछले दो आम चुनावों में भाजपा ने रिकॉर्डतोड़ जीत हासिल की, इसलिए इस बार भी एजेंडा सेट करने की जिम्मेदारी उस पर ही है। पिछले दो चुनावों की तरह इस बार भी विपक्षी दलों, खास कर कांग्रेस में जिस तरह की दुविधा की स्थिति देखने को मिल रही है, उससे तो यही लग रहा है कि 2024 में भाजपा की धुन ही सबसे तेज और प्रभावी होगी, जिसका असर दूसरे दलों पर भी हो सकता है। जाहिर है, भाजपा ने 2024 के एजेंडे पर काम करना शुरू कर दिया है और यह सभी को मालूम है कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण इस बार भी भाजपा की उपलब्धियों के खाते में पहले स्थान पर रहेगा। 2019 में लगातार दूसरी बार चुनाव जीतने के बाद जिस तरह पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास में गंभीरता दिखायी, उसने भाजपा की जीत के रास्ते को निष्कंटक बना दिया है। दूसरी तरफ भाजपा का रास्ता रोकने के लिए खुद को तैयार कर रही कांग्रेस का अयोध्या मुद्दे पर वर्तमान स्टैंड उसका मंदिर विरोधी चेहरा ही साफ करता है। सियासत के मैदान में कांग्रेस का यह रुख उसके लिए नुकसानदेह हो सकता है, यह विचार कांग्रेस के अंदर भी घर करने लगा है। इसलिए पार्टी के नेता अब अयोध्या और राम मंदिर के बारे में सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी करने से बचने लगे हैं। लेकिन भारतीय सियासी परिदृश्य में अयोध्या का भव्य राम मंदिर अभी कई साल तक मुख्य भूमिका में रहेगा, यह बात लगभग तय हो गयी है। मिशन 2024 में जुटे राजनीतिक दलों के लिए राम मंदिर का मुद्दा और उसमें कांग्रेस की संभावनाओं का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

अब यह मान लेना चाहिए कि अगले महीने होनेवाले कर्नाटक विधानसभा के चुनावों के बाद देश आगामी लोकसभा चुनाव के मोड में होगा। हालांकि उससे पहले इस साल के अंत में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव होंगे। लोकसभा चुनाव अगले साल अप्रैल-मई में होंगे। चुनाव की तारीखों की घोषणा से ठीक पहले जनवरी में अयोध्या में भव्य राम मंदिर के कपाट भक्तों के लिए खोले जायेंगे। इस दौरान पूरे देश में उत्सव का माहौल होगा। बेशक, 1980 में अस्तित्व में आने के बाद से ही राम मंदिर भाजपा की राजनीति की आत्मा रहा है, लेकिन यह सवाल उठना लाजिमी है कि एक बार मंदिर निर्माण कार्य पूरा होने के बाद क्या 2024 लोकसभा चुनाव में राम मंदिर का मुद्दा भाजपा को लाभ और कांग्रेस को नुकसान पहुंचा सकता है? भाजपा चाहती है कि मंदिर लोकसभा चुनाव से पहले भक्तों के लिए खुले। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निगरानी में मंदिर के उद्घाटन से पहले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर पूरे देश में हिंदू संस्कृति, हिंदुत्व, हिंदू अस्मिता और एकता का बड़े पैमाने पर ध्वज-पताका फहरायी जायेगी। संघ से जुड़े संगठन इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन की योजना बना रहे हैं। बता दें कि लगातार हो रहे चुनावों के बीच जब पांच अगस्त 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में मंदिर का भूमि-पूजन किया था, पूरा देश राममय हो गया था।
1984 में लोकसभा की केवल दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने पालमपुर सम्मेलन में राम मंदिर निर्माण को मुख्य राजनीतिक एजेंडा बनाया। नयी नवेली पार्टी का इसका फायदा भी हुआ। नौ नवंबर 1989 को शिलान्यास समारोह आयोजित किया गया और इसके कुछ दिनों बाद जब लोकसभा चुनाव हुए, तो भगवा पार्टी के सांसदों की संख्या बढकर 85 पहुंच गयी। इसके बाद तो पार्टी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के नेता कहते थे कि किसी और शासन काल में मंदिर नहीं बन पायेगा। साथ ही कांग्रेस और समाजवादी पार्टी पर बरसों तक मंदिर निर्माण कार्य में रोड़े अटकाने का आरोप भी वे लगाते थे।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2017 में सत्ता में आने के बाद से लगभग हर महीने मंदिर स्थल का दौरा किया है और व्यक्तिगत रूप से विकास कार्यों की निगरानी कर रहे हैं। राम जन्मभूमि आंदोलन को लेकर जो उत्साह था, उसका फायदा भाजपा को मिला और अब इसके अंतिम परिणाम का समय आ गया है। पार्टी ने जो भी वादा किया, उसे पूरा किया।
इसलिए पूरी संभावना है कि भाजपा संगठित तरीके से मंदिर को प्रचार में लायेगी। यहां तक कि अगर यह भव्य मंदिर की तस्वीर प्रचार में प्रयोग करती है, तो इसका हिंदू जनमानस पर प्रभाव पड़ेगा। खासकर हिंदी भाषी क्षेत्रों में सकारात्मक असर होगा। हालांकि दक्षिण भारत के लोग भी काफी धार्मिक हैं। वे क्षेत्रीय दलों को वोट दे सकते हैं, लेकिन मंदिर निर्माण की मंशा उनकी भी थी। ऐसे में मंदिर निर्माण से भाजपा को दक्षिण भारत में फायदा मिल सकता है।
2019 के लोकसभा चुनाव में सर्जिकल स्ट्राइक बड़ा मुद्दा था, तो 2024 के आम चुनाव में राम मंदिर बड़ा नैरेटिव बन सकता है। इससे देश का कोई भी राजनीतिक दल इंकार नहीं कर सकता। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में त्रिपुरा में कहा था कि कांग्रेस आजादी के बाद से ही अदालतों में राम मंदिर निर्माण के मामले को लटकाती रही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया और भूमि पूजन के बाद उसी दिन मंदिर निर्माण शुरू हो गया। 2024 के आम चुनावों में राम मंदिर बड़ा नैरेटिव बनेगा। यह स्वाभाविक भी है। यह भाजपा का प्रमुख चुनावी मुद्दा होगा। इसका लाभ पार्टी को मिल सकता है, क्योंकि मोदी सरकार ने चुनावों से पहले जनता से किये अपने दो वैचाारिक वादों को पूरा करके दिखाया है। इसमें एक राम मंदिर निर्माण भी था। दूसरा वायदा अनुच्छेद 370 को हटाना था।

कांग्रेस का स्टैंड ही उसके खिलाफ जायेगा
इस बार भी राम मंदिर मुद्दा चुनावों में कांग्रेस को अखिल भारतीय स्तर पर परेशान करता रहेगा। राजीव गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस ने राम मंदिर मुद्दे को पूरी तरह से छोड़ दिया, जबकि भाजपा ने इसे समझदारी से अपना लिया। कांग्रेस के लिए धीरे-धीरे राम, रामायण और रामराज्य एक फोबिया हो गया। चूंकि कभी कांग्रेस ने अयोध्या को छोड़ दिया था, उत्तर भारत में हिंदुओं ने कांग्रेस को छोड़ना शुरू कर दिया। इसका बड़ा कारण 2009 में यूपीए सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में भगवान राम के अस्तित्व पर सवाल उठाना था। कांग्रेस के इस रुख से करोड़ों हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची। इसकी कीमत कांग्रेस अभी तक चुका रही है। इतने सालों में देश ने कभी किसी कांग्रेसी नेता को भगवान राम के बारे में बात करते नहीं देखा। वास्तव में कांग्रेस के अंदर राम नाम का ऐसा शोर बना दिया गया है कि यदि कोई भगवान राम का नाम ले भी लेता है, तो उसे संघी, सांप्रदायिक, धर्मांध या हिंदुत्व एजेंट करार दे दिया जाता है।
खैर, प्रतीकवाद से परे जाकर राम मंदिर एकता और सांस्कृतिक संश्लेषण का एक बड़ा संदेश देगा। देवत्व के आह्वान के जरिये यह एक तरह की सोशल इंजीनियरिंग है। मोदी के सुझाव के आधार पर परिसर में सात नये मंदिरों का भी निर्माण किया जायेगा, जो रामायण के प्रमुख पात्रों, महर्षि वाल्मीकि, शबरी, निषाद राज, आचार्य वशिष्ठ, ऋषि विश्वामित्र, अहिल्या और अगस्त्य मुनि को समर्पित होंगे। ये विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग जातियों और समुदायों द्वारा पूजनीय हैं। वाल्मीकि और शबरी दलितों के लिए पूजनीय हैं। सूरत में एक मंदिर उन्हें समर्पित है, जबकि माना जाता है कि केरल में सबरीमाला मंदिर का नाम उन्हीं से लिया गया है। निषाद राज मछुआरा समुदाय द्वारा पूजनीय हैं। आचार्य वशिष्ठ ब्राह्मण थे, जबकि विश्वामित्र क्षत्रिय जाति के हैं। पूरे देश में अहिल्या और अगस्त्य के मंदिर हैं।
जाहिर है कि भाजपा असदुद्दीन ओवैसी सरीखे नेताओं को भी बेनकाब करने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी, जो राम मंदिर के आलोचक थे। गौरतलब है कि ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर जमकर निशाना साधा था और उन पर अयोध्या में राम मंदिर के भूमि पूजन में हिस्सा लेकर पद की गरिमा के उल्लंघन का आरोप लगाया था। तो साफ है कि अगले लोकसभा चुनावों के केंद्र में राम मंदिर का मुद्दा ही रहेगा। और विपक्ष, खास कर कांग्रेस के लिए इसका भंवर बेहद खतरनाक हो सकता है।

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