विशेष
-प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने यूं ही पीठ नहीं थपथपायी है सांसद की
-राजनीति के कोलाहल में सुकून देते हैं इनके काम
-जीतने के 24 घंटे बाद से ही जुट गये जनता के काम में
सूचना क्रांति के इस दौर में राजनीति भी पूरी तरह बदल चुकी है। यह एक कड़वी वास्तविकता है कि आज की राजनीति जनता के कल्याण और देश-समाज को आगे ले जाने के उद्देश्यों के लिए कम और निजी स्वार्थ साधने के लिए अधिक होने लगी है। इसलिए राजनीति का चेहरा इतना भयानक हो गया है। आज के अधिकांश राजनीतिज्ञों का अंतिम उद्देश्य सांसद-विधायक बन मंत्री पद हासिल करना ही रह गया है। लेकिन इस विद्रूप राजनीति के दौर में भी रांची के सांसद संजय सेठ जैसे राजनीतिज्ञ भी हैं, जो लीक से हट कर काम करते हैं और जन प्रतिनिधि होने का असली मतलब समझाते हैं। रांची के भाजपा सांसद संजय सेठ आज देश के उन गिने-चुने सांसदों की कतार में शामिल हैं, जो चुने जाने के अगले दिन से ही विवादों से परे रह कर बिना रुके अपने क्षेत्र के लोगों के साथ कदम से कदम मिला कर चल रहे हैं, उनके सुख-दुख में भागीदार बन रहे हैं। संजय सेठ 17वीं लोकसभा के संभवत: अकेले ऐसे सांसद हैं, जिनकी हाल ही में चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में की है। दूसरे सांसदों को उनसे सीखने को कहा है। राजनीति में लंबे संघर्ष के बाद वह पहली बार सांसद का चुनाव लड़े और चुने गये और इसके साथ ही वह एक-एक वोट की कीमत अदा कर रहे हैं। रांची के लोगों को यह अच्छी तरह याद है कि संजय सेठ की पीठ पर तत्कालीन लालू सरकार की पुलिस ने कैसे लाठियां चटखायी थीं। कोतवाली में उस समय के सिटी एसपी अरविंद पांडेय और उनकी पुलिस ने किस बेरहमी से पीटा था। पीठ का कोई ऐसा हिस्सा नहीं था, जहां लाठियों के निशान नहीं थे। उनका गुनाह मात्र इतना था कि वह तत्कालीन पुलिस की दबंगई का विरोध कर रहे थे। संजय सेठ ऐसे सांसद हैं, जो चुपचाप अपना काम करने में विश्वास रखते हैं और केवल चर्चा में बने रहने के लिए अनावश्यक रूप से सक्रियता नहीं दिखाते हैं। अपने क्षेत्र की समस्याओं के साथ राज्यहित के मुद्दों पर उनकी समझ बिल्कुल साफ है और उनके विचार काफी सुलझे हुए हैं। संजय सेठ के बारे में कहा जा सकता है कि वह राजनीतिज्ञ की बजाय जन प्रतिनिधि हैं, जिसे राजनीतिक खुंटचाल और गुटबाजी से लेकर कमीशनखोरी तक से कोई मतलब नहीं है। उनके जैसे नेताओं से देश भर के राजनीतिज्ञों को सीखने की जरूरत है, क्योंकि ऐसे नेता ही समाज और देश को बदलने का माद्दा रखते हैं। सांसद संजय सेठ की सकारात्मक राजनीति पर नजर दौड़ा रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के अग्रणी योद्धा और लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने 19वीं सदी के अंत में पुणे में फैली प्लेग महामारी के दौरान अपने अखबार ‘केसरी’ के संपादकीय में लिखा था कि दुनिया की आंखों को उन स्वयंसेवकों के कामों की रोशनी हमेशा चुंधियाती रहेगी, जो आज पीड़ित लोगों की सेवा कर रहे हैं। यह सिलसिला नया नहीं है। जब से इंसानी सभ्यता शुरू हुई, तब से ऐसा होता आया है और तब तक होता रहेगा, जब तक एक भी इंसान जिंदा है। ऐसी मिसालें हर जमाने में सामने आनी चाहिए। तिलक की यह टिप्पणी आज के संदर्भ में इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि उस जमाने में राजनीतिज्ञों और उनके साथियों का एकमात्र उद्देश्य देश की आजादी हासिल करना था, लेकिन उन्होंने बीमार लोगों की मदद के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया था।
यही बात पिछले महीने भाजपा संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दूसरे शब्दों में दोहरायी थी। अपने संबोधन में उन्होंने भाजपा सांसदों से जनता से जुड़ने और उनके सुख-दुख में सक्रिय भागीदारी निभाने का आह्वान किया था। इस क्रम में उन्होंने जिस एक सांसद का नाम लिया था, वह थे रांची के सांसद संजय सेठ। पिछले चार साल में यह दूसरा मौका था, जब पीएम मोदी ने भाजपा संसदीय दल की बैठक में किसी सांसद का नाम लेकर उसके काम की तारीफ की थी। पहली बार 2019 के चुनाव के बाद हुई संसदीय दल की बैठक में पीएम मोदी ने गुजरात के नवसारी से चुने गये चंद्रकांत रघुनाथ पाटिल का नाम लिया था, जिनके कारण आज भाजपा गुजरात के हर घर में पहुंच गयी है। जिन्होंने कड़ी मेहनत कर गुराजत में लगभग एक करोड़ भाजपा कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी कर दी है। रांची के सांसद संजय सेठ के कार्यों की तारीफ करते हुए पीएम मोदी ने दूसरे सांसदों से उनसे सीखने को कहा। संसदीय दल की बैठक में प्रधानमंत्री ने करीब पांच मिनट तक संजय सेठ के कामों पर रोशनी डाली। उन्होंने संजय सेठ को वाराणसी में जाकर भी कुछ समय देने की बात कही। बता दें कि उसके बाद संजय सेठ वाराणसी गये और दो दिनों तक वहां रह कर एक रूपरेखा बनायी।
पीएम मोदी ने संजय सेठ की तारीफ वैसे ही नहीं की है। वह पहली बार 2019 में लोकसभा का चुनाव लड़े और जीते। उनकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह राजनीति को पेशा नहीं, बल्कि समाज सेवा और लोक कल्याण का एक माध्यम समझते हैं। 2019 के आम चुनाव में जब संजय सेठ पहली बार सांसद चुने गये थे, तब बहुत से लोगों ने कहा था कि एक सांसद के रूप में वह सफल नहीं हो सकेंगे। वह सिर्फ बोलेंगे, काम नहीं करेंगे। लेकिन पिछले चार साल में संजय सेठ ने साबित कर दिया है कि वह बेहतरीन ही नहीं, सर्वाधिक सक्रिय सांसद जरूर हैं। विधायी कामकाज का पूर्व का अनुभव नहीं होने के बावजूद लोकसभा में उन्होंने कई मुद्दों पर जो विचार रखे, उसकी तारीफ ही हुई। इससे अलग अपने क्षेत्र के साथ उनका जुड़ाव वाकई प्रशंसनीय है। चुनाव जीतने के बाद से वह लगातार अपने क्षेत्र के लोगों के बीच उपलब्ध हैं और उनके सुख-दुख में साथ खड़े हैं।
रांची के हर मतदाता से जीवंत संपर्क
संजय सेठ को जनता से जुड़े मुद्दों पर संघर्ष का लंबा अनुभव है। 1990 के दशक में जब तत्कालीन बिहार में लालू यादव की तूती बोलती थी, संजय सेठ ने सड़क पर उतर कर आंदोलन किया था और कोतवाली थाना परिसर में उनकी पीठ पर बरसी पुलिस की लाठी के बहुत दिनों तक थे। उनका गुनाह मात्र इतना था कि लालू प्रसाद की निरंकुश पुलिस के खिलाफ वह आंदोलन कर रहे थे। संजय सेठ और गामा सिंह उस समय के विधायक गुलशन लाल आजमानी के साथ मिल कर भाजपा को जन-जन की पार्टी बनाना चाहते थे। पानी की समस्या से लेकर बिजली की समस्या को लेकर वह बीच चौराहे पर उतरते थे। आज भी संजय सेठ की वह सक्रियता कम नहीं हुई है। आज भी वह निजी स्कूलों की मनमानी का मामला हो या फिर पानी-बिजली की समस्या, विधि-व्यवस्था का मामला हो या सांप्रदायिक सौहार्द का, रांची ने संजय सेठ को हमेशा पहली पंक्ति में देखा है।
सांसद बनने के बाद भी वह हर दूसरे-तीसरे दिन दिल्ली में केंद्रीय मंत्रियों से मिल कर रांची की समस्याओं के समाधान का मुद्दा उठा रहेहैं। सड़क मंत्री नितिन गडकरी, रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया, भारी उद्योग मंत्री, इस्पात मंत्री और दूसरे विभागों के मंत्रियों से मिल कर संजय सेठ ने रांची से जुड़ी समस्याओं के निदान के लिए सकारात्मक पहल तो की ही है, रांची संसदीय क्षेत्र को 17वीं लोकसभा के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है। संसद सत्र के दौरान जनता की समस्याओं को लेकर हर मंत्री के दरवाजे पर वह दस्तक दे रहे हैं।
पीएम मोदी के सच्चे सिपाही हैं
संजय सेठ को उनके समर्थक पीएम मोदी के सच्चे सिपाही कहते हैं। उन्होंने कम से कम आधा दर्जन ऐसी पहल या ऐसा अभियान शुरू किया है, जिसकी तारीफ हर जगह होती है। खास बात यह है कि इन सभी अभियानों का नाम उन्होंने पीएम मोदी के नाम पर रखा है। जब प्रधानमंत्री पहली बार सांसद बने, तो उन्होंने सबसे पहले मोरहाबादी मैदान मरें ‘नमो टी स्टॉल’ की शुरूआत की, जिसने भाजपा की जीत में अहम भूमिका निभायी। इसके बाद उन्होंने मकर संक्रांति के मौके पर ‘नमो पतंग उत्सव’ का आयोजन शुरू किया, जो आज बेहद लोकप्रिय आयोजन बन चुका है। फिर ‘नमो रोटी बैंक’ की स्थापना कर उन्होंने कोरोना काल में भूखों का पेट भरने का काम शुरू किया था, जो आज तक चल रहा है। इसके बाद उन्होंने ‘नमो खिलौना बैंक’ की स्थापनी की, जिसमें गरीब बच्चों के लिए खिलौने उपलब्ध कराये जाते हैं। ये खिलौने अमीर घरों के बच्चों के यहां से संग्रहित किये जाते हैं। ढाई साल पहले सांसद संजय सेठ ने ‘नमो बुक बैंक’ की शुरूआत कर जो लंबी लकीर खींची है, उससे साफ हो जाता है कि संजय सेठ केवल वर्तमान के लिए ही नहीं, भविष्य के लिए भी सोचते हैं। इस बुक बैंक में अब तक ढाई लाख पुस्तकें जमा हो गयी हैं। इसकी सफलता का पैमाना यह है कि अब खुद बच्चे अपनी पढ़ी गयी पुस्तकें लाकर इस बुक बैंक में जमा कर रहे हैं। गरीब बच्चों के लिए ये पुस्तकें ज्ञान बांटने का आधार बन रही हैं। इन अभियानों-कार्यक्रमों के अलावा सांसद खेल महोत्सव का सफल आयोजन कर संजय सेठ ने अपनी सक्रियता को अगले स्तर पर पहुंचा दिया है। इस महोत्सव में झारखंड के नामचीन खिलाड़ियों ने जिस उत्साह से भाग लिया, उससे सांसद की लगन का परिचय मिल जाता है। होली के अवसर पर जब पूरा देश रंग-अबीर उड़ा रहा था, संजय सेठ ने मोटे अनाज के प्रमोशन के लिए अन्न होली मनायी। मोटे अनाज से पुवा पकवान तैयार करवाया और उसे लोगों में वितरित किया। अभी संजय सेठ सांसद सांस्कृतिक महोत्सव का आयोजन कर रहे हैं, जिसमें झारखंड के लोक कलाकारों को परफॉर्म करने का अवसर मिलेगा। पद्मश्री मुकुंद नायक की देखरेख में इस आयोजन की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। इन आयोजनों और इसके पीछे संजय सेठ की यही सोच उन्हें देश भर के सांसदों से अलग स्थान दिलाते हैं। संजय सेठ की मुख्य विशेषता यही है कि किसी भी कार्यक्रम को वह जन कार्यक्रम का हिस्सा बना देते हैं। उसमें समाज के हर व्यक्ति की जिम्मेदारी वह सुनिश्चित करते हैं। उसके लिए रशीद लेकर वह सड़क पर चंदा नहीं काटते। लोगों की सहभागिता से वह हर कार्यक्रम को सफल बना देते हैं।
अपने क्षेत्र के साथ झारखंड और देश-दुनिया को अलग निगाहों से देखने और लोकसभा के भीतर पूरी तैयारी के साथ चर्चा में हिस्सा लेने की आदत के कारण ही संजय सेठ महज चार साल के विधायी अनुभव के बावजूद इतनी चर्चा में बने हुए हैं। उन्होंने कभी भी चर्चा में बने रहने के लिए अनावश्यक सक्रियता नहीं दिखायी और न ही कभी विवादों में ही रहे। उन्होंने उचित समय पर बेहद शालीनता और गंभीरता से अपनी बात रखी। इसलिए जब भी वह बोलने के लिए खड़े होते हैं, हर पक्ष उन्हें गौर से सुनता है। चाहे रांची हो या दिल्ली, वह हर काम पूरी शिद्दत से करते हैं। अभी पिछले दिनों संसद में उन्होंने नशा से कराह रहे युवा वर्ग का मुद्दा उठाया था। उसका लब्बोलुआब यही था कि नशा मुक्ति का अभियान केंद्र सरकार अपने हाथों में ले और नशा से टूट-बिखर रहे परिवारों को इससे मुक्ति दिलाये। उस दौरान उन्होंने बेंगलूर से लेकर रांची में बढ़ रहे नशा के सौदागरों के कारनामों का जिक्र किया और यह बताने की कोशिश की कि अब तक कितने युवा इससे बर्बाद हो चुके हैं। इस पूरी चर्चा के बीच उन्होंने झारखंड का एक छोटा सा डाटा भी रखा था। उन्होंने बताया था कि नशा कैसे रांची को अपने आगोश में ले रहा है। वर्ष 2020 में झारखंड में अफीम की खपत 36 किलोग्राम थी और गांजा की खपट एक टन से अधिक। इसके फैलाव का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2021 में अफीम की खपत बढ़ने के साथ-साथ गांजा की खपत चार टन हो गयी है।
लंबी रेस के लिए तैयार हैं संजय सेठ
सांसद संजय सेठ भाजपा का ऐसा चेहरा हैं, जो कभी विवादों में नहीं रहे। पार्टी के भीतर की राजनीति में वह रुचि नहीं लेते हैं। इसलिए वह अपने किसी भी काम के लिए सड़कों पर उतर कर चंदा नहीं काटते। उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र के हर मुहल्ले में सांसद कार्यालय खोल रखा है, जो हमेशा खुले रहते हैं। इन कार्यालयों में लोग अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं और फिर उनके निवारण की दिशा में कार्रवाई शुरू होती है। आम लोग अपनी जरूरतें भी इन कार्यालयों में दर्ज कराते हैं और उन्हें पूरी करने का हरसंभव प्रयास किया जाता है।
सांसद संजय सेठ के कामकाज को रेखांकित करना आज के संदर्भ में इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि आज के नकारात्मक माहौल के दौर में इन्होंने जो स्टैंड लिया है, वह इनके आभा मंडल को थोड़ा चमकीला ही बनाता है। आज राजनीति को हेय दृष्टि से देखा जाता है और लोग राजनेताओं के प्रति आम तौर पर नकारात्मक नजरिया ही रखते हैं। ऐसे दौर में जनहित के कामों को दूसरे कामों पर तरजीह देना और हमेशा अपने क्षेत्र के लिए उपलब्ध रहना बड़ी बात ही कही जा सकती है। लोग मानते हैं कि राजनीतिज्ञ तो साफ-सुथरी छवि का हो ही नहीं सकता और उसका हर काम केवल वोट को ध्यान में रख कर ही होता है। लेकिन संजय सेठ ने साबित किया है कि वे वोट के लिए काम नहीं कर रहे हैं और उन्हें सचमुच समाज को आगे ले जाने की चिंता है। उनकी इसी चिंता से देश भर के सांसदों-विधायकों को सीखने की जरूरत है। यदि राजनीतिज्ञ उनकी तरह सोचने लगेंगे, तो फिर न झारखंड पिछड़ा रहेगा और न ही देश को ही आगे बढ़ने से कोई रोक सकेगा।