विशेष
-आइएएस छवि रंजन के खिलाफ इडी की कार्रवाई के बाद उठ रहे हैं सवाल
-23 साल में झारखंड में कैसा सिस्टम बना कि एक हलका कर्मचारी अपने घर पर रखता है सरकारी दस्तावेज

झारखंड के एक और आइएएस अधिकारी छविरंजन और कई अन्य सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ गुरुवार को हो रही प्रवर्तन निदेशालय की कार्रवाई के बाद सोशल मीडिया में एक बात बहुत जोर-शोर से कही जा रही है और वह है कि अब झारखंड को लूटने का यह सिलसिला हर कीमत पर बंद करना होगा। लोग सवाल कर रहे हैं कि क्या झारखंड में 23 साल में यही सिस्टम विकसित हुआ, जिसमें एक हलका कर्मचारी अपने घर पर सरकारी दस्तावेज जमा रखता है और फिर उसमें हेराफेरी करता है। दरअसल, 23 साल पहले बिहार से अलग होकर बने झारखंड में यदि दो चीजें खूब फली-फूलीं, तो वे हैं भ्रष्टाचार और जमीन का धंधा। इन दो बड़ी बीमारियों ने खनिज संपदा से भरपूर इस खूबसूरत प्रदेश को ऐसा जकड़ा कि यहां के लोग त्राहि-त्राहि करने लगे। एक तरफ भ्रष्टाचार ने राज्य के विकास में बाधाएं पैदा कीं, तो दूसरी तरफ जमीन के धंधे ने यहां के अधिकारियों को अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ने से रोका। झारखंड में जमीन का कारोबार इतना फैला कि राज्य के भ्रष्टाचार की नदी का सारा पानी इसमें समाता चला गया। काली कमाई को कंपनियों के माध्यम से जमीन में निवेश करना यहां आम हो गया। इसलिए जमीन का आकर्षण भी बढ़ता गया और देखते-देखते पैसेवालों का यह सबसे प्यारा शगल बन गया। इस धंधे ने स्वाभाविक तौर पर दलाल और बिचौलिये पैदा किये, आपसी रंजिश बढ़ी, तो हिंसक वारदातें भी हुईं। अधिकारियों को तब भी कोई फर्क नहीं पड़ा। अरबों रुपये की सरकारी जमीन को दस्तावेज में हेराफेरी कर बेच दिया गया और खासमहाल या गैर-मजरुआ जमीन का भी सौदा कर लिया गया। झारखंड में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की लिस्ट इतनी लंबी है और उनके खातों में ऐसे-ऐसे कारनामे दर्ज हैं कि इस पर एक पूरा शोध प्रबंध तैयार किया जा सकता है। आइएएस छविरंजन और अन्य के खिलाफ शुरू हुई इडी की कार्रवाई की पृष्ठभूमि में झारखंड में लूट-खसोट के खेल के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

बहुत कुछ कहती हैं भ्रष्टाचार की ये चर्चित कहानियां
घटना 2004 की है। झारखंड बने चार साल ही हुए थे। राज्य में तैनात एक आइएएस अधिकारी राजधानी रांची के सबसे पॉश इलाके अशोक नगर के इलाके में अपने लिए एक मकान खोज रहे थे। तभी उन्हें अरगोड़ा में बन रहे एक अपार्टमेंट के बारे में जानकारी मिली। वह उसे देखने पहुंचे और फ्लैट की बुकिंग कराने की जगह उन्होंने पूरा अपार्टमेंट ही खरीद लिया। उस अपार्टमेंट में आठ फ्लैट थे। सौदा ढाई करोड़ में तय हुआ था। उन दिनों इस सौदे की खूब चर्चा हुई थी। बाद में उस अपार्टमेंट को ध्वस्त कर वहां आलीशान बंगला बनाया गया। यह घटना इस बात की ओर संकेत करती है कि झारखंड में जमीन-मकान खरीदने में अफसर कितनी रुचि दिखाते हैं।
वर्ष 2010 के मई महीने में गुमला जिले में एक ही रात सात पुल बह गये थे और किसी ठेकेदार या अधिकारी का बाल बांका नहीं हुआ। जामताड़ा में पूरा का पूरा स्कूल भवन ही आसमानी बिजली का शिकार होकर ध्वस्त हो गया और इसे बनानेवाला ठेकेदार कहीं दूसरी जगह ऐसी ही इमारत बनवा कर अपनी तिजोरी भर रहा था। 2019 में हजारीबाग की कोनार सिंचाई नहर परियोजना का उद्घाटन किया गया था। करीब दो हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना के उद्घाटन का पूरा श्रेय नेताओं ने लिया, लेकिन महज 13 घंटे में ही यह बह गया, क्योंकि चूहों ने इसे कुतर दिया था। चतरा में हजारों हेक्टेयर जमीन पर जंगल लगाये गये, लेकिन एक भी पौधा पेड़ नहीं बन सका, क्योंकि मवेशियों ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया था। हजारीबाग में करोड़ों की खास महाल की जमीन बेच दी गयी। इन घटनाओं के कारण ही झारखंड को भ्रष्टाचार का पर्याय माना जाने लगा। 2021 के मई महीने में चक्रवाती तूफान ‘यास’ के कारण राज्य में खूब बारिश हुई। इस बारिश में बुंडू के पास तीन साल पहले बना 10 करोड़ रुपये की लागत से बना एक पुल बह गया।

झारखंड के अफसरों के कारनामे भी कम चर्चित नहीं हैं
ये कुछ कहानियां हैं, जिनके कारण झारखंड को दुनिया भर में उसकी खनिज संपदा के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के लिए जाना जाता है। ऐसा नहीं है कि केवल यही घटनाएं झारखंड की बदनामी का कारण बनीं। झारखंड के डीजीपी रहे एक आइपीएस ने सरकारी दस्तावेज में गड़बड़ी कर जमीन कब्जा पर कर लिया और उस पर बाकायदा पुलिस कॉलोनी बना दी गयी। जांच के आदेश हुए, जमीन भी गड़बड़ मिली, लेकिन फाइल धुल फांक रही है। एक महिला आइएएस अधिकारी के कारोबारी पति ने भुइंहरी जमीन पर आलीशान अस्पताल बना लिया। इस अधिकारी के सीए के घर से 19 करोड़ रुपये नगद बरामद किये गये। झारखंड के अधिकारियों को जमीन खरीदने का नशा है, इसलिए उन्होंने रांची के एक प्रखंड का एक पूरा मौजा ही सरकारी नक्शे से गायब कर दिया। झारखंड का एक इंजीनियर सरकारी अधिकारियों का निवेश मैनेज करता है, तो सत्ता के एक दलाल के घर में बैठ कर एक आइएएस अधिकारी फाइलें निबटाते देखे जाते हैं।

नयी नहीं है झारखंड में भ्रष्टाचार की कहानी
झारखंड में भ्रष्टाचार की कहानी नयी नहीं है, लेकिन इसके बेलगाम होने का सिलसिला उदारीकरण के बाद शुरू हुआ। लोग कह रहे हैं कि इस काली होती तस्वीर को बदलने का वक्त अब आ गया है। लोग मान चुके हैं कि भ्रष्टाचार का यह दानव अब पूरे राज्य को अपने कब्जे में ले चुका है। इसे काबू में करना किसी सरकार या अदालत के वश की बात नहीं है, बल्कि इसके लिए सामाजिक रीति तैयार करनी होगी। भ्रष्टाचार और घूसखोरी को हम चाहे कितना भी कोस लें, यह हकीकत है कि आज यह हमारे सिस्टम का अंग बन गया है। इस अंग को हर हाल में काट कर अलग करना ही होगा। एक तरफ हम विश्व गुरु बनने का सपना देख रहे हैं, तो दूसरी तरफ झारखंड के भ्रष्ट नौकरशाह हैं, जो 130 करोड़ लोगों के इस सपने को इस सड़ांध में डुबोने के लिए तैयार बैठे दिखायी देते हैं।
तो फिर इसका विकल्प क्या है। यह एक सवाल है, जो झारखंड को मथ रहा है। क्या अब भ्रष्टाचार के दूसरे किरदारों की पहचान सामने आयेगी या यह कारवां रुक जायेगा। फिलहाल ऐसा तो दिख नहीं रहा। अभी तो शुरूआत हुई है। प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने जिस तरह से जांच शुरू की है, इसकी आंच झारखंड के कई भ्रष्ट अधिकारियों को अपने लपेटे में लेगी। पूजा सिंघल, राजीव अरुण एक्का, रामनिवास यादव के बाद छवि रंजन के खिलाफ कार्रवाई के बाद कई और नौकरशाहों के नाम चर्चा में हैं। इस चर्चा की पुख्ता वजह भी है। ये अधिकारी जब जिला या विभाग में महत्वपूर्ण पदों पर रहे, तो भ्रष्टाचार का आरोप लगता रहा। किसी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई, तो किसी के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) की कार्रवाई चली या फिर चल रही है। कुछ ऐसे अधिकारी भी हैं, जिनके खिलाफ जांच के लिए फाइल ही आगे नहीं बढ़ी। अभी भी वह सरकार के स्तर पर लंबित है।

आदेश हुआ, पर जांच शुरू नहीं हुई
हकीकत यह है कि राज्य के कई वरिष्ठ अधिकारी आरोपों से घिरे हैं। कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के आरोप की फाइल धूल फांक रही है। सरकार ने जांच की मंजूरी ही नहीं दी। न ही आरोपों को निरस्त किया गया और न ही सरकार ने जांच के लिए अनुमति दी। नतीजतन, आरोप फाइलों में दम तोड़ रहे हैं। इनमें से कई अधिकारी अब भी महत्वपूर्ण पदों पर हैं। सूत्रों की मानें तो ऐसे अधिकारी अपने रसूख से हर स्तर पर मामले को फिट कर लेते हैं, जिससे जांच तक की अनुमति नहीं मिल पाती है। आखिर फाइल को तो उन्हें ही आगे बढ़ाना है और वे उसे बढ़ाते ही नहीं।

सबसे अधिक फला-फूला है जमीन का कारोबार
यह सही है कि भारत के लोग जमीन को मान-मर्यादा और परिवार की प्रतिष्ठा से जुड़ा मानते हैं। इसलिए यहां जमीन के कारण अकसर खून-खराबे की खबरें भी आती हैं। भारतीय समाज का शायद ही कोई ऐसा वर्ग होगा, जिसमें जमीन हासिल करने की आकांक्षा नहीं होगी। झारखंड जैसे राज्य में जमीन का महत्व और बढ़ जाता है, जहां आदिवासी-गैर-आदिवासी का कानूनी पेंच सामने रहता है। 23 साल पहले जब बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य बना, यहां जमीन का कारोबार बहुत तेजी से फैला। काली कमाई को जमीन में निवेश किया जाने लगा और इस कारण कीमत भी मनमाने ढंग से बढ़ी।

रीयल इस्टेट का कारोबार बढ़ा, तो इसमें समाज का प्रभावशाली वर्ग भी रुचि लेने लगा। बड़े व्यवसायियों और उद्योगपतियों के साथ अधिकारियों में जमीन-मकान खरीदने की होड़ मच गयी। देखते ही देखते झारखंड के हर बड़े शहर में बड़े पैमाने पर जमीन की खरीद-बिक्री होने लगी। इस क्रम में सरकारी जमीन भी बेची गयी और वन भूमि भी। खास महाल और गैर-मजरुआ जमीन को दस्तावेज में हेराफेरी कर बिना किसी रोक-टोक के बेच दिया गया। रांची से लेकर देवघर, हजारीबाग, धनबाद, गिरिडीह, दुमका और गोड्डा तक में जमीन का कारोबार परवान चढ़ने लगा। जब किसी सौदे पर कोई कानूनी अड़चन आती, कारोबारी संबंधित अधिकारी से संपर्क करता और उसकी मदद से सौदे को पूरा कर लेता। बदले में उस अधिकारी को या तो जमीन मिलती या फ्लैट। राजधानी रांची की कई आवासीय कॉलोनियों में इस तरह की लेन-देन खूब हुई है। कांके के चामा में पुलिस अधिकारियों की मिलीभगत से गैर-मजरुआ जमीन पर कब्जा कर लिया गया। राज्य के पूर्व डीजीपी और कई अन्य पुलिस अधिकारियों तथा अन्य प्रभावशाली लोगों ने इस जमीन को गलत तरीके से खरीदा और फिर अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर सरकारी दस्तावेज में हेराफेरी कर अपने नाम करा लिया। इतना ही नहीं, वहां आलीशान मकान भी खड़े हो गये। इसी तरह राज्य की एक महिला आइएएस अधिकारी ने बीच राजधानी में सरकारी जमीन पर कब्जा कर लिया और उस पर उनके पति का अस्पताल खड़ा हो गया। झारखंड के साथ यह विडंबना रही है कि यहां के हुक्मरान, कार्यपालिका और विधायिका से जुड़े लोग और आम जनता को पता है कि गड़बड़ी हुई है या हो रही है, लेकिन कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं दिखती। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप खूब होते हैं। नेताओं पर खूब निशाना साधा जाता है, लेकिन कभी कोई दल भ्रष्ट अधिकारियों के खिलाफ धावा नहीं बोलता। चुप्पी साध जाता है। चुनावी सभाओं में और दूसरे सार्वजनिक मंचों पर राजनीतिक दलों और नेताओं पर आरोप तो खूब लगाये जाते हैं, लेकिन जब किसी अधिकारी की कारस्तानी सामने आती है, तो सभी चुप लगा जाते हैं। उनके खिलाफ जांच की जहमत कोई नहीं उठाता। हाल के दिनों में भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों के खिलाफ जो एक्शन लिये गये हैं, जो सख्त कदम उठाये गये हैं, उनसे लोगों को बड़ी उम्मीद जगी है। झारखंड के लोग अब यह खुल कर स्वीकार करते हैं कि अब इस राज्य में लूट-खसोट का खेल नहीं चलेगा। राज्य को खोखला करनेवालों के दिन अब लद गये हैं। अब हर गड़बड़ी का इंसाफ होगा और हर काम का हिसाब लिया जायेगा।

 

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