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कोर वोटरों के बाद अब दूसरे वर्ग को साधने के लिए बनाया मास्टर प्लान
टिकट वितरण में तरजीह के बाद अब बनाया जा रहा है व्यक्तिगत संपर्क

लगातार तीसरी बार देश की सत्ता हासिल करने के लिए तैयार की गयी अपनी रणनीति के तहत भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव में हर जाति और समाज को साधने में जुट गयी है। झारखंड की सभी 14 सीटों पर जीत हासिल करने के लिए भी पार्टी ने एक खास तरह का प्लान तैयार किया है और इस पर काम भी शुरू कर दिया गया है। झारखंड में भाजपा ने दलितों और पिछड़ों को साधने की दिशा में जो कदम उठाये हैं, उससे विपक्षी दलों में खलबली मची हुई है। राज्य की आबादी के करीब 55 फीसदी लोग इसी वर्ग से आते हैं और भाजपा ने टिकट वितरण में इन्हें तरजीह देकर इनमें अपनी पैठ बढ़ायी है। अब चुनाव प्रचार अभियान में पार्टी ने इन वर्गों पर खास ध्यान दिया है। इसके लिए एक तरफ नेताओं की मदद ली जा रही है, तो दूसरी तरफ कार्यक्रम भी चलाये जा रहे हैं। भाजपा ने पिछले महीने 10 दिन का बूथ शक्तिकरण अभियान चलाया, जिसमें दलित-पिछड़ा बहुल बूथों पर खास ध्यान दिया गया। इसके बाद पार्टी ने दलितों को साधने के लिए ‘घर-घर चलो अभियान’ चलाया, जिसके तहत 14 अप्रैल से एक सप्ताह तक पार्टी के नेताओं-कार्यकर्ताओं ने दलित बस्तियों में संपर्क साधा। चुनाव से पहले पार्टी ने दलितों-ओबीसी वर्ग के बड़े नेताओं को झारखंड के उन इलाकों में भेजने की योजना बनायी है। राष्ट्रीय स्तर के इन नेताओं की सभाएं दलितों-ओबीसी बहुल इलाकों में ही करायी जायेंगी। इसकी रूपरेखा तैयार की जा रही है और मई के पहले सप्ताह से यह अभियान शुरू होगा। क्या है भाजपा का पूरा प्लान और इसका क्या होगा असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

लोकसभा चुनावों में समाज के विभिन्न वर्गों का वोट हासिल करने के लिए तमाम दल हरसंभव उपाय कर रहे हैं, लेकिन जहां तक दलितों-ओबीसी वर्ग का सवाल है, तो इसमें भाजपा तेजी से अपनी पैठ बढ़ाती नजर आ रही है। झारखंड में दलितों और ओबीसी वर्ग के मतदाताओं के वोट नौ जिलों के नौ विधानसभा क्षेत्रों और आठ लोकसभा सीट के चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं। इनमें पलामू, देवघर, गोड्डा, चतरा, कोडरमा, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, रांची और लातेहार जिला शामिल हैं। पलामू जिले में अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या 28 फीसदी है। इसलिए पलामू लोकसभा सीट के साथ-साथ यहां की छतरपुर विधानसभा सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

क्यों अहम हैं दलितों-पिछड़ों का वोट
झारखंड की आबादी में दलितों और पिछड़ों की संख्या करीब 55 प्रतिशत है। 2019 के लोकसभा चुनाव में इस वर्ग का वोट बिखर गया था और उसी साल विधानसभा के चुनाव में तो यह वोट बुरी तरह विभाजित हो गया था। इसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा को सत्ता से बाहर होना पड़ा। इस बार भाजपा कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। इसलिए उसने शुरू से ही इस वर्ग पर फोकस किया है।

टिकट वितरण में दी तरजीह
टिकट वितरण में भाजपा ने जातीय समीकरण पर फोकस किया है। झारखंड की अगड़ी जातियां भाजपा का समर्थन करती आयी हैं और इस बार भी करेंगी। इसलिए पार्टी ने इस बार दलितों और पिछड़ों को प्राथमिकता दी है। पार्टी के कुल 13 उम्मीदवारों में केवल दो सवर्ण हैं। इनमें एक ब्राह्मण और एक भूमिहार हैं। पार्टी ने झारखंड में दबदबा रखने वाली कुरमी, बनिया और यादव जाति के वोट बैंक को साधने के लिए कई उलटफेर किये हैं। भाजपा ने धनबाद से ढुल्लू महतो और जमशेदपुर से विद्युत वरण महतो, हजारीबाग से मनीष जयसवाल और रांची से संजय सेठ और एक पर यादव (कोडरमा से अन्नपूर्णा देवी) को टिकट दिया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में आठ अनारक्षित सीटों में से सात सीट पर लड़ने वाली भाजपा ने चार सवर्णों को टिकट दिया था। 2019 में भाजपा कोटे की सात अनारक्षित लोकसभा सीटों में से चार (हजारीबाग, धनबाद, चतरा और गोड्डा) पर अगड़ी जाति के उम्मीदवार जीते थे। इस लिहाज से भाजपा ने करीब 53 प्रतिशत भागीदारी अगड़ी जातियों को दी थी। लेकिन आजसू की गिरिडीह सीट को जोड़कर देखें, तो एनडीए के लिहाज से आधी भागीदारी अगड़ी जाति को मिली थी। लेकिन इस बार एनडीए की कुल आठ सीटों में सिर्फ दो सीटें अगड़ी जाति के खाते में गयी हैं। प्रतिशत के लिहाज से 25 प्रतिशत भागीदारी अगड़ी जाति को और पिछड़ी जाति को 75 प्रतिशत भागीदारी दी गयी है।

झारखंड में जातियों का अनुमानित प्रतिशत
झारखंड में अनुसूचित जनजाति की आबादी करीब 26 प्रतिशत और अनुसूचित जाति की आबादी करीब 12 प्रतिशत है। लेकिन अन्य जातियों की आबादी अनुमान के आधार पर ही निकाली जाती है। वैसे ओबीसी की राजनीति करने वाले संगठनों का दावा है कि झारखंड में उनकी आबादी 50 प्रतिशत से ज्यादा है। अनुमान के मुताबिक पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा कुरमी समाज की आबादी 16 प्रतिशत, यादव की 14 प्रतिशत, वैश्य, साहू और तेली समाज की 22 प्रतिशत है। वहीं सामान्य वर्ग की अनुमानित आबादी 16 प्रतिशत है, जिसमें ब्राह्मणों की आबादी पांच फीसदी मानी जाती है। शेष 11 प्रतिशत में राजपूत, भूमिहार और कायस्थ जाति प्रमुख हैं। इस तरह टिकट वितरण से साफ हो गया कि इस बार भाजपा हर समीकरण का ख्याल रख कर आगे बढ़ रही है। अब तक भाजपा पर अगड़ी जातियों के प्रति झुकाव का आरोप लगता रहा है। इस मिथक को पार्टी ने इस बार तोड़ दिया है।

नेताओं के जरिये वोटरों को साधने की कोशिश
टिकट वितरण के बाद भाजपा ने दलित-ओबीसी वर्ग के वोटरों को साधने के लिए उन इलाकों पर फोकस किया है, जहां इनकी आबादी ज्यादा है। पार्टी ने पहले चरण में राज्य स्तरीय नेताओं को इन इलाकों में भेज कर सभाएं करायी हैं। इसके बाद दूसरे चरण में आजसू जैसे सहयोगी दलों के नेताओं और दलित-ओबीसी समाज के प्रभावशाली चेहरों के जरिये इन वोटरों को साधा जा रहा है। पार्टी ने दलित बस्तियों में जाकर व्यक्तिगत संपर्क भी किया है और अब योजनाओं और चेहरों के माध्यम से इस वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रही है। अब भाजपा बड़े चेहरों को उन इलाकों में भेजने का कार्यक्रम तैयार कर रही है, जहां दलितों-ओबीसी वोटरों की बहुलता है।

नये किस्म की सोशल इंजीनियरिंग
दरअसल यह चुनाव भाजपा का ओबीसी को जाति के खांचे से निकालने का प्रयोग है। जातिगत आबादी के अनुरूप सरकारी नौकरी और अवसरों में हिस्सेदारी की विपक्ष की मांग के बीच पार्टी ने राजनीति में परंपरागत जाति आधारित सियासत की जगह गरीब, युवा, किसान और महिला के रूप में नये सामाजिक समीकरण तैयार करने की कोशिश की है। हालांकि इस नये प्रयोग के बीच भाजपा ओबीसी के परंपरागत स्वभाव के प्रति न सिर्फ सतर्क है, बल्कि कोई खतरा भी नहीं उठाना चाहती। मोदी-शाह के युग में भाजपा ने ब्राह्मण-बनिया की पार्टी की अवधारणा को तोड़ दिया है। इसमें पीएम मोदी का ओबीसी वर्ग से होना मददगार साबित हुआ है। बीते दो चुनाव में इस वर्ग के बड़े हिस्से में पहुंच बना चुकी भाजपा पिछड़ा वर्ग से जुड़े चेहरों को आगे बढ़ा रही है।

 

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